कौन हैं अमेरिका के ईकोनॉमिक हिटमैन जॉन पर्किन्स?

Written by Girish Malviya | Published on: May 12, 2020
आप कहेंगे कि बिल गेट्स श्रृंखला में जॉन पर्किन्स का क्या काम ? ठीक है! उनका कोई सीधा संबंध बिल गेट्स एंड मेलिंडा फाउंडेशन से नहीं है लेकिन बिल गेट्स एंड मेलिंडा फाउंडेशन जैसे समूह कैसे पूरे विश्व मे ख़ासतौर पर तीसरी दुनिया के देशों में कैसे काम करते हैं यह उनके उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है।




1945 में अमेरिका में जन्मे जॉन पर्किन्स एक प्रमुख इंटरनेशनल एडवाजरी फर्म में मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग, फॉर्च्यून 500 निगमों और अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों के नेताओं को सलाह देने का काम करते थे लेकिन वास्तव में वह लेकिन वास्तविक तौर पर वो अमेरिका के ईकोनॉमिक हिटमैन थे।

2004 में जॉन पर्किन्स ने अपनी आत्मकथा लिखी जिसने दुनिया भर में हंगामा मचा दिया। उनकी आत्मकथा का शीर्षक था-"कन्फैशन्स ऑफ एन ईकोनॉमिक हिटमैन।" अपने इस विशिष्ट टाइटल के बारे में बताते हुए जॉन पर्किन्स लिखते हैं 'Economic hit men (EHMs) are highly paid professionals who cheat countries around the globe out of trillions of dollars. They funnel money from the World Bank, the U.S. Agency for International Development (USAID), and other foreign "aid" organizations into the coffers of huge corporations and the pockets of a few wealthy families who control the planet’s natural resources. Their tools include fraudulent financial reports, rigged elections, payoffs, extortion, sex, and murder. They play a game as old as empire, but one that has taken on new and terrifying dimensions during this time of globalization. I should know; I was an EHM."

ईकोनॉमिक हिटमैन काफी अच्छी सेलरी पाने वाले वो लोग होते हैं जो पूरे विश्व के कई देशों के अरबों-खरबों रुपए धोखे से हड़पने का काम करते हैं। यह लोग विश्व बैंक, यूनाईटेज स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवेलपमेंट (USAID) और अन्य विदेशी सहायता संगठनों से पैसे निकालकर उनसे विश्व की बड़ी-बड़ी कॉरपोरेशन्स और कुछ अति धनवान परिवारों की तिजोरिया भरते हैं जो इन पैसों और रसूख से पूरे विश्व की प्राकृतिक सम्पदाओं को नियंत्रित करते हैं। इसके लिए यह लोग झूठी फाइनेंशियल रिपोर्टस, जबर्दस्ती थोपे गए चुनाव, रिश्वत, फिरौती, सेक्स और यहां तक कि हत्या जैसे कामों का भी सहारा लेते हैं।

इन प्रोफेशनल्स का काम तीसरी दुनिया के विकासशील देशों के राजनीतिक नेताओं आर्थिक संस्थाओं को वर्ल्ड बैंक या यूएसएड सरीखी वैश्विक संस्थाओं से भारी-भरकम विकास कर्ज लेने के लिए राज़ी करना है। जब यह देश इन भारी-भरकम कर्ज़ों को लौटा पाने की स्थिति में नहीं होते तब कर्ज़ माफ़ी के नाम पर अमेरिका जैसे बड़े देश उनसे अपनी शर्ते मनवाते हैं।

विकासशील राष्ट्रों को कर्जा लेने को तैयार करने के लिए पर्किन्स ऐसी फाइनेंशियल रिपोर्ट तैयार करते थे जो कि यह दिखाती थी कि कर्ज़ के इन पैसों से देश में जो इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा उससे देश की जीएनपी (ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट) बढ़ेगी। पर्किन्स के अनुसार जीएनपी के आंकड़े इन कामों के लिए काफी उपयुक्त होते हैं क्योंकि अगर सिर्फ एक व्यक्ति या कंपनी की आय में भी वृद्धि हो जाए तो जीएनपी में वृद्धि दिखने लगती है।

कर्ज नहीं चुका पाने के कारण इन छोटे राष्ट्रों के नेता राजनीतिक, आर्थिक और अन्य आंतरिक मामलों पर विकसित देशों की दखलंदाजी सहने के लिए विवश हो जाते हैं। इस तरीके से यह ईकोनॉमिक हिटमैन विकासशील देशों और विकसित देशों के बीच की आर्थिक खाई को और गहरा करने और गरीब देशों की अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने का काम करते हैं ताकि विकसित देश अपनी मनमानी कर सकें।

जॉन पर्किन्स ने इस व्यवस्था को 'कॉरपोरेटोक्रेसी' का नाम दिया है। कॉरपोरेटोक्रेसी- यानि विकसित देशों की सरकारों, बैंकों और अत्यन्त धनवान कॉरपोरेशन्स का संगठन जो विकासशील देशों का पैसा धोखे से हड़पकर उनसे अपनी मांगे मनवाने का काम करता है।

जॉन पर्किन्स के बारे में यह पूरा विवरण शब्द कृतियां नामक ब्लॉग से साभार लिया गया है यदि आप कॉरपोरेटोक्रेसी को समझना चाहते हैं तो विस्तृत रूप कमेन्ट बॉक्स की लिंक में पढ़ सकते हैं। उनका एक ted के प्रोग्राम में दिया गया स्पीच भी इकनॉमिक हिटमैन की टर्म को समझने में सहायता करेगा अनुरोध है कि उस 17-18 मिनट के उस वीडियो को जरूर देखिए।

जॉन पर्किन्स 70 -80 या 90 के दशक की बात करते हैं जब एक अमेरिकी अर्थशास्त्री की सलाह को तीसरी दुनिया के देश गम्भीरता से लिया करते थे लेकिन अब जमाना बदल गया है, गोरे लोगो से स्थानीय लोग वैसे ही चिढ़ जाते हैं। अब भारत जैसे देशों में इकनॉमिक हिटमैन का किरदार वो भारतीय निभाते हैं जो बड़ी-बड़ी अमेरिकन या यूरोपीय यूनिवर्सिटीयो से बिजनेस ओर इकनॉमी में मास्टर्स ओर पीएचडी जैसी डिग्री लेकर के आते हैं और सरकार उन्हें सीधे नीति निर्माण को प्रभावित करने वाले पदों पर नियुक्ति दे देती है और तब ये लोग बड़े अमेरिकी कारपोरेट ओर अमेरिकी सरकार के अनुकूल नीतियों का निर्माण करते हैं-जैसे बड़े बड़े सरकारी संस्थानो का प्राइवेटाइजेशन करना, सब्सिडी जैसी व्यवस्था को देश पर बोझ बताना।

अक्सर यह काम यह लोग समिति बनाकर करते हैं। इन समितियों के प्रमुख ये नए प्रकार के इकनॉमिक हिटमैन होते हैं। फिर अमेरिकन हितों के अनुसार उसकी रिपोर्ट तैयार करते हैं फिर उस रिपोर्ट को सरकार को पेश कर दी जाती है और सरकार उस समिति की अनुशंसा के आधार पर नीतियां लागू कर देती है। सन 2000 से 2020 तक यह खेल धड़ल्ले से भारत मे खेला जाता रहा है। बिल गेट्स ओर मेलिंडा फाउंडेशन इस खेल में मीलों आगे है। दरअसल यह लोग ऐसे ही गेम सेट करने के लिए परोपकार का चोला ओढ़ लेते है।

 

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