विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) के अनुसार कोरोना विषाणु (वायरस) या कोविड-19 से दो सौ पांच देश प्रभावित हैं। विषाणु संक्रमण फैलाने वाला एक अतिसूक्ष्म कारक होता है, जो सिर्फ जीवित कोशिकाओं के भीतर ही बढ़ता जाता है। यह जीवाणुओं सहित सभी प्रकार के जीवित रूपों को संक्रमित कर सकता है।
नए विषाणु से होने वाली संक्रमित बीमारी को डब्लयूएचओ ने कोविड-19 नाम दिया है। इसका सबसे पहले पता चीनी डाक्टर ली वेनलियांग ने पिछले साल दिसंबर में लगाया था, जब एक मरीज में ‘नए’ विषाणु की वजह से संक्रमण का पता चला। चीन की सरकार इस डाक्टर के पीछे पड़ गई और इससे कबूलवा लिया गया कि उसे संक्रमण हो गया है और सात फरवरी 2020 को तैंतीस साल की उम्र में उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद चीनी अधिकारियों ने माफी मांग ली। जिस नए विषाणु का पता उसने लगाया था, वह सौ दिन से भी कम समय में पूरी दुनिया में फैल गया।
कोविड-19 को देश की सीमाओं पर नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए राष्ट्रीय सीमाओं का कोई मतलब नहीं है, और यह धर्म, जाति, नस्ल, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। दूसरे अर्थों में देखें, तो यह विषाणु भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का सम्मान करता है।
शक्तिहीन नेता
धरती पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली मनुष्य (जैसा कि वे कहते हैं) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप असहाय हैं और अपने देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की बढ़ती तादाद को देख रहे हैं, जो तीन अप्रैल को दो लाख तेरह हजार छह सौ का आंकड़ा पार गई (दुनिया में सबसे ज्यादा)। यह अनुमान लगाया गया था कि मरने वालों की संख्या एक लाख से दो लाख चालीस हजार के बीच होगी। ‘दुनिया की सबसे ताकतवर सेना’ कुछ भी कर पाने में असमर्थ है। दुनिया के सबसे अमीर देश की दौलत भी लगता है किसी काम की नहीं रह गई। डॉलर चढ़ा हुआ है, लेकिन ‘मजबूत’ डॉलर ‘कमजोर’ यूरो या युआन जैसा ही शक्तिहीन है।
फिर भी, कई शासनाध्यक्ष (चाहे निर्वाचित हों या सत्ता हड़प कर राज करने वाले) अपने देश में राज करना चाहते हैं, न कि अपने नागरिकों की सहमति से शासन करना चाहते हैं। जैसा कि ‘बैडलैंड्स’ में ब्रूस स्प्रिंगस्टीन ने कहा है- ‘और कोई राजा तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कि वह हरेक पर राज नहीं कर लेता’। उसके काम और हथियार आज कितने खोखले नजर आते हैं? जनता पर शासन थोपना, ताउम्र शक्ति, इशारे पर चलने वाली संसदें और अदालतें, आज्ञाकारी एजेंसियां, जासूस, और सबसे ज्यादा व्यापक रूप से बेजा इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार राजनीतिक विपक्षियों को महीनों या सालों के लिए बिना आरोप के जेल में डाल देना, सब खोखलापन लिए हुए हैं।
दमनकारी और दमित
आपको तानाशाहों के बारे में याद करना चाहिए। क्या यह विडंबना नहीं है कि पूरी दुनिया एक कैदखाने में तब्दील हो गई है, और दमन करने वाले और दमन का शिकार होने वाले, सब अपने को एक ही कैद में खड़ा पा रहे हैं?
चूंकि आप घरों में बंद हैं, इसलिए आप इस खेल को खेल सकते हैं। अपने लैपटॉप या मोबाइल फोन पर दुनिया के नक्शे को डाउनलोड कर लें। फिर अपने परिवार के किसी सदस्य से एक-एक करके हर देश पहचानने को कहें और यह सवाल पूछें- क्या इनमें से किसी देश ने बिना किसी आरोप के अपने लोगों को जेल में डाला है?
यहां आप जो पाएंगे, वह सिर्फ उदाहरण भर हैं। दक्षिण अमेरिका से शुरू करते हैं।
वेनेजुएला- राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की कठपुतली न्यायपालिका ने तीस विपक्षी नेताओं की संसदीय सुरक्षा को खत्म कर डाला और ये नेता या तो निर्वासित हैं या फिर जेल में।
अफ्रीका पर आएं, जहां तस्वीर और बदतर है।
इथियोपिया- साल 2018 में अबीय अहमद देश के प्रधानमंत्री बने, इरीट्रिया के साथ शांति समझौता किया और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए। 2019 में पूरे साल देश में इंटरनेट बंद रखा। एक एनजीओ ने चौंसठ हत्याओं और कम से कम एक हजार चार सौ मामले जबरन हिरासत के होने के सबूत दिए हैं।
तंजानिया- राष्ट्रपति जॉन मैगुफ्यूली ने विपक्षी सांसदों और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया, मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया और असंतुष्टों का मुंह बंद करने के लिए कानून बना दिए।
यूरोप मिलीजुली तस्वीर पेश करता है। जहां मजबूत लोकतंत्र हैं, तो दिखावे के लोकतंत्र भी।
हंगरी- प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अपनी मुट्ठी में कर लिया है। उनकी सरकार ने सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया और पहली बार इंटरनेट कर थोप दिया। 30 मार्च को ओरबन ने इमरजंसी कानून पास करा लिया, जो उन्हें ताउम्र आदेश के जरिए शासन करने का अधिकार देता है।
रूस- राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संवैधानिक संशोधन के जरिए अनंतकाल के लिए सत्ता हथिया ली। मास्को में जब हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे, तो पुलिस ने डंडों से जवाब दिया, दो हजार से ज्यादा को हिरासत में ले लिया गया, बड़ी संख्या में लोगों को पीटा गया और कइयों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर लिए गए। राजनीतिक विपक्षियों की गिरफ्तारी, पुलिस की हिंसा, बच्चों को हिरासत में लेना और अभिभावकों को धमकाना आम बात हो गई है। देश में इस वक्त दो सौ से ज्यादा राजनीतिक बंदी हैं।
एशिया- यहां स्वतंत्रता का स्तर हर देश में अलग-अलग है। कुछ को तो लोकतंत्र कहा ही नहीं जा सकता।
थाईलैंड- प्रयूत चान-ओ-चा की नई सरकार पिछले साल सत्ता में आई थी। तब से अब तक राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमले, मानवाधिकारों के हिमायतियों का लापता हो जाना और आपराधिक कानूनों के प्रावधानों ने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा पैदा कर डाला।
कंबोडिया- इस देश में 2018 में गंभीर दमनकारी माहौल में चुनाव हुए थे, जिसमें मतदाताओं के सामने पसंद का कोई विकल्प नहीं था। प्रमुख विपक्षी दल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया या फिर निर्वासित कर दिया गया था। स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज के पर कतर दिए गए थे। सत्तारूढ़ पार्टी दोनों सदनों में हर सीट पर विजयी हुई थी।
जीत मानवता की होगी
आप निराश हों, इससे पहले अपने से पूछें कि आखिर हर शक्तिशाली नेता कोरोना वायरस को फैलने से ‘रोकने’ में क्यों नाकाम है? क्या अंतत महामारी पर मानवता जीत हासिल नहीं कर लेगी? मशहूर तमिल कवि वेरामुथु का ऐसा ही सोचना है और उन्होंने कोरोना वायरस पर अद्भुत कविता लिखी है। यहां उसके एक हिस्से का अनुवाद कर रहा हूं-
परमाणु से भी सूक्ष्म
परमाणु बम से ज्यादा मारक
जो बिना शोर घुसता है
बिना युद्ध नष्ट कर डालता है
इंसान कोरोना को भी
मिटा देगा
महामारी पर
विजय पा लेगा
जब मानवता कोरोना वायरस के खिलाफ यह जंग जीत लेती है, तो मुझे उम्मीद है मानवता तानाशाहों और ऐसा करने-बनने की इच्छा रखने वालों से आजादी भी हासिल कर लेगी।
(इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस दि आइल’ नाम से छपने वाला, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता, पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम। जनसत्ता में यह ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। हिन्दी अनुवाद जनसत्ता से साभार।)
नए विषाणु से होने वाली संक्रमित बीमारी को डब्लयूएचओ ने कोविड-19 नाम दिया है। इसका सबसे पहले पता चीनी डाक्टर ली वेनलियांग ने पिछले साल दिसंबर में लगाया था, जब एक मरीज में ‘नए’ विषाणु की वजह से संक्रमण का पता चला। चीन की सरकार इस डाक्टर के पीछे पड़ गई और इससे कबूलवा लिया गया कि उसे संक्रमण हो गया है और सात फरवरी 2020 को तैंतीस साल की उम्र में उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद चीनी अधिकारियों ने माफी मांग ली। जिस नए विषाणु का पता उसने लगाया था, वह सौ दिन से भी कम समय में पूरी दुनिया में फैल गया।
कोविड-19 को देश की सीमाओं पर नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए राष्ट्रीय सीमाओं का कोई मतलब नहीं है, और यह धर्म, जाति, नस्ल, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। दूसरे अर्थों में देखें, तो यह विषाणु भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का सम्मान करता है।
शक्तिहीन नेता
धरती पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली मनुष्य (जैसा कि वे कहते हैं) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप असहाय हैं और अपने देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की बढ़ती तादाद को देख रहे हैं, जो तीन अप्रैल को दो लाख तेरह हजार छह सौ का आंकड़ा पार गई (दुनिया में सबसे ज्यादा)। यह अनुमान लगाया गया था कि मरने वालों की संख्या एक लाख से दो लाख चालीस हजार के बीच होगी। ‘दुनिया की सबसे ताकतवर सेना’ कुछ भी कर पाने में असमर्थ है। दुनिया के सबसे अमीर देश की दौलत भी लगता है किसी काम की नहीं रह गई। डॉलर चढ़ा हुआ है, लेकिन ‘मजबूत’ डॉलर ‘कमजोर’ यूरो या युआन जैसा ही शक्तिहीन है।
फिर भी, कई शासनाध्यक्ष (चाहे निर्वाचित हों या सत्ता हड़प कर राज करने वाले) अपने देश में राज करना चाहते हैं, न कि अपने नागरिकों की सहमति से शासन करना चाहते हैं। जैसा कि ‘बैडलैंड्स’ में ब्रूस स्प्रिंगस्टीन ने कहा है- ‘और कोई राजा तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कि वह हरेक पर राज नहीं कर लेता’। उसके काम और हथियार आज कितने खोखले नजर आते हैं? जनता पर शासन थोपना, ताउम्र शक्ति, इशारे पर चलने वाली संसदें और अदालतें, आज्ञाकारी एजेंसियां, जासूस, और सबसे ज्यादा व्यापक रूप से बेजा इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार राजनीतिक विपक्षियों को महीनों या सालों के लिए बिना आरोप के जेल में डाल देना, सब खोखलापन लिए हुए हैं।
दमनकारी और दमित
आपको तानाशाहों के बारे में याद करना चाहिए। क्या यह विडंबना नहीं है कि पूरी दुनिया एक कैदखाने में तब्दील हो गई है, और दमन करने वाले और दमन का शिकार होने वाले, सब अपने को एक ही कैद में खड़ा पा रहे हैं?
चूंकि आप घरों में बंद हैं, इसलिए आप इस खेल को खेल सकते हैं। अपने लैपटॉप या मोबाइल फोन पर दुनिया के नक्शे को डाउनलोड कर लें। फिर अपने परिवार के किसी सदस्य से एक-एक करके हर देश पहचानने को कहें और यह सवाल पूछें- क्या इनमें से किसी देश ने बिना किसी आरोप के अपने लोगों को जेल में डाला है?
यहां आप जो पाएंगे, वह सिर्फ उदाहरण भर हैं। दक्षिण अमेरिका से शुरू करते हैं।
वेनेजुएला- राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की कठपुतली न्यायपालिका ने तीस विपक्षी नेताओं की संसदीय सुरक्षा को खत्म कर डाला और ये नेता या तो निर्वासित हैं या फिर जेल में।
अफ्रीका पर आएं, जहां तस्वीर और बदतर है।
इथियोपिया- साल 2018 में अबीय अहमद देश के प्रधानमंत्री बने, इरीट्रिया के साथ शांति समझौता किया और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए। 2019 में पूरे साल देश में इंटरनेट बंद रखा। एक एनजीओ ने चौंसठ हत्याओं और कम से कम एक हजार चार सौ मामले जबरन हिरासत के होने के सबूत दिए हैं।
तंजानिया- राष्ट्रपति जॉन मैगुफ्यूली ने विपक्षी सांसदों और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया, मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया और असंतुष्टों का मुंह बंद करने के लिए कानून बना दिए।
यूरोप मिलीजुली तस्वीर पेश करता है। जहां मजबूत लोकतंत्र हैं, तो दिखावे के लोकतंत्र भी।
हंगरी- प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अपनी मुट्ठी में कर लिया है। उनकी सरकार ने सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया और पहली बार इंटरनेट कर थोप दिया। 30 मार्च को ओरबन ने इमरजंसी कानून पास करा लिया, जो उन्हें ताउम्र आदेश के जरिए शासन करने का अधिकार देता है।
रूस- राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संवैधानिक संशोधन के जरिए अनंतकाल के लिए सत्ता हथिया ली। मास्को में जब हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे, तो पुलिस ने डंडों से जवाब दिया, दो हजार से ज्यादा को हिरासत में ले लिया गया, बड़ी संख्या में लोगों को पीटा गया और कइयों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर लिए गए। राजनीतिक विपक्षियों की गिरफ्तारी, पुलिस की हिंसा, बच्चों को हिरासत में लेना और अभिभावकों को धमकाना आम बात हो गई है। देश में इस वक्त दो सौ से ज्यादा राजनीतिक बंदी हैं।
एशिया- यहां स्वतंत्रता का स्तर हर देश में अलग-अलग है। कुछ को तो लोकतंत्र कहा ही नहीं जा सकता।
थाईलैंड- प्रयूत चान-ओ-चा की नई सरकार पिछले साल सत्ता में आई थी। तब से अब तक राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमले, मानवाधिकारों के हिमायतियों का लापता हो जाना और आपराधिक कानूनों के प्रावधानों ने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा पैदा कर डाला।
कंबोडिया- इस देश में 2018 में गंभीर दमनकारी माहौल में चुनाव हुए थे, जिसमें मतदाताओं के सामने पसंद का कोई विकल्प नहीं था। प्रमुख विपक्षी दल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया या फिर निर्वासित कर दिया गया था। स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज के पर कतर दिए गए थे। सत्तारूढ़ पार्टी दोनों सदनों में हर सीट पर विजयी हुई थी।
जीत मानवता की होगी
आप निराश हों, इससे पहले अपने से पूछें कि आखिर हर शक्तिशाली नेता कोरोना वायरस को फैलने से ‘रोकने’ में क्यों नाकाम है? क्या अंतत महामारी पर मानवता जीत हासिल नहीं कर लेगी? मशहूर तमिल कवि वेरामुथु का ऐसा ही सोचना है और उन्होंने कोरोना वायरस पर अद्भुत कविता लिखी है। यहां उसके एक हिस्से का अनुवाद कर रहा हूं-
परमाणु से भी सूक्ष्म
परमाणु बम से ज्यादा मारक
जो बिना शोर घुसता है
बिना युद्ध नष्ट कर डालता है
इंसान कोरोना को भी
मिटा देगा
महामारी पर
विजय पा लेगा
जब मानवता कोरोना वायरस के खिलाफ यह जंग जीत लेती है, तो मुझे उम्मीद है मानवता तानाशाहों और ऐसा करने-बनने की इच्छा रखने वालों से आजादी भी हासिल कर लेगी।
(इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस दि आइल’ नाम से छपने वाला, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता, पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम। जनसत्ता में यह ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। हिन्दी अनुवाद जनसत्ता से साभार।)