अपने परिपत्र में विश्वविद्यालय प्रशासन ने समस्त विद्याथियों-शोधार्थियों को विश्वविद्यालय परिसर में कार्यक्रम के पूर्व विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी बताया है, नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की चेतावनी दी है।
छात्रों का आरोप है कि विश्वविद्यालय का यह परिपत्र छात्र-छात्राओं द्वारा देश में घट रही घटनाओं दलितों-मुस्लिमों के मॉब लिंचिंग, बलात्कार व यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं, कश्मीर को कैद करने, एनआरसी, रेलवे व बीएसएनएल के निजीकरण जैसे देश बेचने के जारी अभियान तथा लुटेरे कॉरपोरेटों के हित में बैंकों को बर्बाद करने आदि समेत संविधान व लोकतंत्र पर जारी फासीवादी हमले पर पीएम मोदी को पत्र लिखे जाने की सोशल मीडिया पर घोषणा करने के बाद आया है।
विश्वविद्यालय के दर्जनों छात्र-छात्राओं ने अपने फेसबुक वॉल पर 6 अक्टूबर को एक सूचना सर्कुलेट की थी कि हिंदी विश्वविद्यालय परिसर के गांधी हिल पर इकट्ठे होकर आगामी 9 अक्टूबर को दर्जनों छात्र-छात्राएं पीएम मोदी को सामूहिक पत्र लेखन का कार्यक्रम आयोजित करेंगे।
छात्र नेता चंदन सरोज बताते हैं कि छात्र-छात्राओं के इसी अपील को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन की यह मोदी भक्ति सामने आई है। उन्होंने बताया कि जब हमलोग 7 अक्टूबर को कार्यक्रम की लिखित सूचना विश्वविद्यालय प्रशासन को देने गए तो हमारा पत्र रिसीव तो किया गया किंतु कार्यक्रम करने की लिखित अनुमति प्रदान नहीं की गई। इसके बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपना तुगलकी फरमान विश्वविद्यालय के बेबसाइट पर जारी कर दिया और विरोध होने के एक घंटे बाद उसे हटा भी लिया।
इस परिपत्र पर छात्र नेता चन्दन ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों के शैक्षणिक- लोकतांत्रिक अधिकार को खत्म करने पर तुला हुआ है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में अजीब स्थिति पैदा कर दी गई है। लोकतंत्र की पाठशाला कहे जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों में लगातार छात्रों के हितों को कुचला जा रहा है। एक तरफ अपराधियों-बलात्कारियों व मॉब लिंचिंग करने वाले को सरकार के मंत्री फूलमाला पहना रहे हैं और दूसरी तरफ बलात्कारियों को बचाने में सत्ता अपनी पूरी ताकत झोंक दे रही है।
जब देश के गृह मंत्री खुलेआम किसी समुदाय विशेष को टारगेट कर रहा है वहीं दूसरी तरफ मॉब लिंचिंग के सवाल पर पीएम मोदी को पत्र लिखने वाले बुद्धिजीवी व लेखकों पर न्यायालय के निर्देश पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाता है। ऐसे तमाम मामलों पर छात्र-छात्राएं कैसे चुप रह सकते हैं!
उन्होंने कहा कि छात्र-छात्राएं विश्विद्यालय की गीदड़-भभकियों से डरने वाले नहीं हैं। इस देश में घटने वाली घटनाओं को हम तमाशबीन बनकर नहीं देख सकते! हम तयशुदा समय-स्थान पर पीएम मोदी को पत्र लेखन का कार्यक्रम करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे। जरूरत पड़ने पर सड़क पर भी उतरेंगे।
वहीं विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र नेता और वर्तमान में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस के छात्र कौशल यादव ने विश्वविद्यालय द्वारा जारी परिपत्र पर अपनी फेसबुक वॉल पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है कि अब विरोध भी तय दायरों में किया जायेगा। कुछ अफसर होंगे जो तय करेंगे कि किसका विरोध करना है और किसका नहीं? विरोध में ब्राह्मणवाद को चोट पहुंचाना है या नहीं। एक कार्यक्रम कराने के लिए जो लोग कमरे नहीं देते वो विरोध करने के लिए अनुमति देंगे। विरोध करने का अधिकार, असहमति का अधिकार भारतीय संविधान देता है तब उसको रोकने या अनुमति देने का फरमान तानाशाही है। जिसको संघ पूरे मुल्क में लागू करना चाहता है।
संघ की गोद में बैठकर विश्वविद्यालय चलाये जाएंगे तो गाँधी की हत्या करने वाले गोडसे की पूजा भी की जायेगी। जिस भारत माता का प्रचार विश्वविद्यालय में किया जा रहा है वह पूरे मुल्क की नहीं बल्कि वह एक खास समूह की माता है जो उच्च वर्ग है उसने अपने देवी और देवता खुद बनाये हैं। आज अब वह नियम भी खुद ही बनायेगा।