इस हफ्ते में बजट आने वाला है इसलिए देश की तेजी से बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के बारे में आपको निम्न तथ्यों की जानकारी होनी चाहिए......
जीएसटी कलेक्शन का बहुत ढोल पीटा जाता है कि वह एक लाख करोड़ के ऊपर पहुंच गया लेकिन जीएसटी को लागू किये 24 महीने होने को आए है हकीकत यही है कि सिर्फ छह सात बार ही टैक्स कलेक्शन 1 लाख करोड़ के ऊपर पुहंच पाया है।
15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने कहा है कि जीएसटी कलेक्शन उत्साहजनक नहीं है। राज्यों के पास रेवेन्यू का अपना कोई स्रोत नहीं बचा है, उनका कहना है कि जीएसटी के बाद जिन राज्यों का राजस्व 14% से बढ़ा है उन्हें केंद्र से मिलने वाला मुआवजा दो साल में खत्म हो जाएगा।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विस के को-फाउंडर विवेक जालान ने जीएसटी संग्रह में कमी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक करार दिया है। उनके मुताबिक पिछले साल मई माह के मुकाबले इस माह जीएसटी कलेक्शन 300 करोड़ रुपए कम रहा। जबकि, इसी दौरान पिछले साल जीएसटी कलेक्शन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। जीएसटी लागू होने की वजह हमारा जीडीपी प्रभावित हुआ है और इसका असर भारत की ग्रोथ रेट पर पड़ा और जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर 6 प्रतिशत रह गयी।
गुजरात के वित्त मंत्री नितिन पटेल ने जीएसटी के दो वर्ष पूरे हो जाने पर हुए एक समारोह में यह खुलासा किया है कि जीएसटी रोलआउट के बाद गुजरात ने अपने राजस्व खो दिया है। आज गुजरात को मूल्य वर्धित कर (वैट) व्यवस्था के तहत वार्षिक राजस्व में 4,000-5,000 करोड़ रुपये कम मिल रहे हैं।
जीएसटी लागू होने के बाद मध्य प्रदेश में राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है। सरकार को जीएसटी लागू होने के 21 महीने में 5377 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी लागू करने पर प्रदेश को पहले नौ माह में 2511 करोड़ का नुकसान हुआ था। 2018-19 में यह नुकसान 2866 करोड़ तक हुआ है तीन महीने का डाटा अभी आया नहीं है।
दरअसल जीएसटी अब सरकार का सबसे बड़ा सिर दर्द साबित हो रहा है जीएसटी लागू होने के बाद राज्य का राजस्व घाटा बढ़कर 20 से 32 प्रतिशत पर पहुंच गया है। केंद्र ने इस नई व्यवस्था से राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई की जिम्मेदारी ली है। घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
राज्यों की परेशानी बहुत ज्यादा है 13 राज्यों पर बकाया कर्ज विस्फोटक हो रहा है। करीब 17 बड़े राज्यों में दस राज्य, 2018 में ही घाटे का लाल निशान पार कर गए थे।
जीएसटी को 2 साल हो चुके हैं। तीन साल बाद केन्द्र घाटे की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था भी बन्द कर देगा। जीएसटी ने राज्यों के लिए टैक्स लगाने के विकल्प सीमित कर दिए हैं. इस विषय में उन्होंने सोचना अभी से शुरू कर दिया है। पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और झारखंड में बिजली महंगी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में करेंट मारने की तैयारी है।
राज्यों को अब केवल बिजली दरें ही नहीं पानी, टोल, स्टॉम्प ड्यूटी व अन्य सेवाएं भी महंगी करनी होंगी क्योंकि उनके पास मोदी सरकार ने ओर कोई चारा नही छोड़ा है।
जीएसटी की इस दोषपूर्ण व्यवस्था से केंद्र सरकार का भी खजाना खाली हो चुका है। प्रश्न उठता है कि क्या मोदी सरकार इस बजट में नए कर लगाने का फैसला कर सकती है?
जवाब है..... मोदी है तो मुमकिन है! .....यानी बिल्कुल कर सकती है.......... लेकिन आपको मालूम होना चाहिए कि जेटली का आखिरी बजट, पांच साल में सबसे ज्यादा टैक्स वाला बजट था। जिसमे करीब 91,000 करोड़ रु. के नए टैक्स लगाए गए थे।
ओवरऑल सिचुएशन देखकर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार की नोटबन्दी और जीएसटी जैसे आर्थिक निर्णय के कारण से हम आने वाले चार सालों में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को प्राप्त करने वाले हैं।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)
जीएसटी कलेक्शन का बहुत ढोल पीटा जाता है कि वह एक लाख करोड़ के ऊपर पहुंच गया लेकिन जीएसटी को लागू किये 24 महीने होने को आए है हकीकत यही है कि सिर्फ छह सात बार ही टैक्स कलेक्शन 1 लाख करोड़ के ऊपर पुहंच पाया है।
15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने कहा है कि जीएसटी कलेक्शन उत्साहजनक नहीं है। राज्यों के पास रेवेन्यू का अपना कोई स्रोत नहीं बचा है, उनका कहना है कि जीएसटी के बाद जिन राज्यों का राजस्व 14% से बढ़ा है उन्हें केंद्र से मिलने वाला मुआवजा दो साल में खत्म हो जाएगा।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विस के को-फाउंडर विवेक जालान ने जीएसटी संग्रह में कमी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक करार दिया है। उनके मुताबिक पिछले साल मई माह के मुकाबले इस माह जीएसटी कलेक्शन 300 करोड़ रुपए कम रहा। जबकि, इसी दौरान पिछले साल जीएसटी कलेक्शन में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। जीएसटी लागू होने की वजह हमारा जीडीपी प्रभावित हुआ है और इसका असर भारत की ग्रोथ रेट पर पड़ा और जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर 6 प्रतिशत रह गयी।
गुजरात के वित्त मंत्री नितिन पटेल ने जीएसटी के दो वर्ष पूरे हो जाने पर हुए एक समारोह में यह खुलासा किया है कि जीएसटी रोलआउट के बाद गुजरात ने अपने राजस्व खो दिया है। आज गुजरात को मूल्य वर्धित कर (वैट) व्यवस्था के तहत वार्षिक राजस्व में 4,000-5,000 करोड़ रुपये कम मिल रहे हैं।
जीएसटी लागू होने के बाद मध्य प्रदेश में राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है। सरकार को जीएसटी लागू होने के 21 महीने में 5377 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी लागू करने पर प्रदेश को पहले नौ माह में 2511 करोड़ का नुकसान हुआ था। 2018-19 में यह नुकसान 2866 करोड़ तक हुआ है तीन महीने का डाटा अभी आया नहीं है।
दरअसल जीएसटी अब सरकार का सबसे बड़ा सिर दर्द साबित हो रहा है जीएसटी लागू होने के बाद राज्य का राजस्व घाटा बढ़कर 20 से 32 प्रतिशत पर पहुंच गया है। केंद्र ने इस नई व्यवस्था से राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई की जिम्मेदारी ली है। घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
राज्यों की परेशानी बहुत ज्यादा है 13 राज्यों पर बकाया कर्ज विस्फोटक हो रहा है। करीब 17 बड़े राज्यों में दस राज्य, 2018 में ही घाटे का लाल निशान पार कर गए थे।
जीएसटी को 2 साल हो चुके हैं। तीन साल बाद केन्द्र घाटे की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था भी बन्द कर देगा। जीएसटी ने राज्यों के लिए टैक्स लगाने के विकल्प सीमित कर दिए हैं. इस विषय में उन्होंने सोचना अभी से शुरू कर दिया है। पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और झारखंड में बिजली महंगी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में करेंट मारने की तैयारी है।
राज्यों को अब केवल बिजली दरें ही नहीं पानी, टोल, स्टॉम्प ड्यूटी व अन्य सेवाएं भी महंगी करनी होंगी क्योंकि उनके पास मोदी सरकार ने ओर कोई चारा नही छोड़ा है।
जीएसटी की इस दोषपूर्ण व्यवस्था से केंद्र सरकार का भी खजाना खाली हो चुका है। प्रश्न उठता है कि क्या मोदी सरकार इस बजट में नए कर लगाने का फैसला कर सकती है?
जवाब है..... मोदी है तो मुमकिन है! .....यानी बिल्कुल कर सकती है.......... लेकिन आपको मालूम होना चाहिए कि जेटली का आखिरी बजट, पांच साल में सबसे ज्यादा टैक्स वाला बजट था। जिसमे करीब 91,000 करोड़ रु. के नए टैक्स लगाए गए थे।
ओवरऑल सिचुएशन देखकर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार की नोटबन्दी और जीएसटी जैसे आर्थिक निर्णय के कारण से हम आने वाले चार सालों में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को प्राप्त करने वाले हैं।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)