अखिल भारतीय किसान सभा ने बजट को जन विरोधी व किसान विरोधी बताया है। संगठन ने कहा कि सी2+50% के अनुसार एमएसपी की कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया व किसानों की आय दोगुनी करने का वादा एक दिखावा है और कॉर्पोरेट मुनाफ़े को अधिकतम करने का लक्ष्य नजर आता है।
अखिल भारतीय किसान सभा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार यह झूठ फल रही है कि केंद्रीय बजट 2024-25 (अंतरिम) "अभिनव और समावेशी" है, जबकि ठोस वास्तविकता यह है कि 2023-24 और 2024-25 पिछले पांच वर्षों में कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर सबसे कम खर्च वाले वर्ष होंगे। चुनावी वर्ष में भी, केंद्रीय बजट 2024-25 (अंतरिम) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र के लिए कुछ भी खास नहीं है। 2022-23 की तुलना में 2024-25 के बजट में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए आवंटन में 81 हजार करोड़ की भारी कटौती की गई है।
बयान में आगे कहा गया है कि कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए कुल आवंटन में 2022-23 में वास्तविक व्यय की तुलना में 22.3% की गिरावट आई है और 2023-24 के संशोधित बजट की तुलना में 6% की गिरावट आई है। इस कदम से मोदी शासन के "समावेश" के वर्ग चरित्र को समझा जा सकता है, जो अपने कॉर्पोरेट दोस्तों के इशारे पर व्यवस्थित रूप से खेती और करोड़ों किसानों एवं खेत मजदूरों की आजीविका को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। मोदी शासन द्वारा ईजाद किए गए किसानों को निचोड़ने के "अभिनव" तरीकों को राष्ट्रवाद के लबादे में छिपाने की कोशिश की जा रही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट में ग्रामीण विकास, मनरेगा, ग्रामीण रोजगार, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना, सहकारी, खाद्य भंडारण एवं भण्डारण, वृक्षारोपण, फसल पालन, बाढ़ नियंत्रण एवं जल निकासी, भूमि सुधार, उर्वरक सब्सिडी, खाद्य सब्सिडी, डेयरी विकास, मिट्टी एवं जल संरक्षण, सिंचाई, पोषण, ग्रामीण सड़कें, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य में भारी कटौती देखी गई है। महिलाओं और बच्चों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए संसाधनों के आवंटन में भी भारी कटौती की गई है। किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांग C2+50% के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए कोई आवंटन नहीं किया गया ।
2024-25 में उर्वरक सब्सिडी के लिए आवंटित राशि 2022-23 के वास्तविक खर्च से 87339 करोड़ कम है। खाद्य सब्सिडी के लिए आवंटित 67552 करोड़ रुपये 2022-23 के वास्तविक व्यय से कम है। मोदी सरकार के किसान विरोधी रवैये का इस बात से भी पता चलता है कि साल दर साल उर्वरक और खाद्य सब्सिडी जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ-साथ मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन में कटौती सरकार की मंशा को दर्शाती है। व्यापक संकट के मद्देनजर यह असंवेदनशीलता गरीबों की दुर्दशा के प्रति इसकी उदासीनता को उजागर करती है। इस गंभीर संकट की वास्तविकता को देखते हुए ही इस भाजपा सरकार को हर साल आवंटन बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बजट में इस पहलू पर ध्यान न देना इसके गरीब विरोधी चरित्र की उजागर करता है।
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अखिल भारतीय किसान सभा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार यह झूठ फल रही है कि केंद्रीय बजट 2024-25 (अंतरिम) "अभिनव और समावेशी" है, जबकि ठोस वास्तविकता यह है कि 2023-24 और 2024-25 पिछले पांच वर्षों में कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर सबसे कम खर्च वाले वर्ष होंगे। चुनावी वर्ष में भी, केंद्रीय बजट 2024-25 (अंतरिम) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र के लिए कुछ भी खास नहीं है। 2022-23 की तुलना में 2024-25 के बजट में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए आवंटन में 81 हजार करोड़ की भारी कटौती की गई है।
बयान में आगे कहा गया है कि कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए कुल आवंटन में 2022-23 में वास्तविक व्यय की तुलना में 22.3% की गिरावट आई है और 2023-24 के संशोधित बजट की तुलना में 6% की गिरावट आई है। इस कदम से मोदी शासन के "समावेश" के वर्ग चरित्र को समझा जा सकता है, जो अपने कॉर्पोरेट दोस्तों के इशारे पर व्यवस्थित रूप से खेती और करोड़ों किसानों एवं खेत मजदूरों की आजीविका को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। मोदी शासन द्वारा ईजाद किए गए किसानों को निचोड़ने के "अभिनव" तरीकों को राष्ट्रवाद के लबादे में छिपाने की कोशिश की जा रही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट में ग्रामीण विकास, मनरेगा, ग्रामीण रोजगार, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना, सहकारी, खाद्य भंडारण एवं भण्डारण, वृक्षारोपण, फसल पालन, बाढ़ नियंत्रण एवं जल निकासी, भूमि सुधार, उर्वरक सब्सिडी, खाद्य सब्सिडी, डेयरी विकास, मिट्टी एवं जल संरक्षण, सिंचाई, पोषण, ग्रामीण सड़कें, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य में भारी कटौती देखी गई है। महिलाओं और बच्चों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए संसाधनों के आवंटन में भी भारी कटौती की गई है। किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांग C2+50% के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए कोई आवंटन नहीं किया गया ।
2024-25 में उर्वरक सब्सिडी के लिए आवंटित राशि 2022-23 के वास्तविक खर्च से 87339 करोड़ कम है। खाद्य सब्सिडी के लिए आवंटित 67552 करोड़ रुपये 2022-23 के वास्तविक व्यय से कम है। मोदी सरकार के किसान विरोधी रवैये का इस बात से भी पता चलता है कि साल दर साल उर्वरक और खाद्य सब्सिडी जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ-साथ मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन में कटौती सरकार की मंशा को दर्शाती है। व्यापक संकट के मद्देनजर यह असंवेदनशीलता गरीबों की दुर्दशा के प्रति इसकी उदासीनता को उजागर करती है। इस गंभीर संकट की वास्तविकता को देखते हुए ही इस भाजपा सरकार को हर साल आवंटन बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बजट में इस पहलू पर ध्यान न देना इसके गरीब विरोधी चरित्र की उजागर करता है।
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