आज के अखबारों में टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर सबसे अलग और अच्छी कही जा सकने वाली है। अखबार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णयों को तो प्रमुखता दी ही है यह भी बताया है कि ऐन चुनाव से पहले सरकार ने 30 प्रमुख निर्णय लिए हैं। इसके साथ प्रमुखता से बताया है कि जो प्रमुख मंजूरियां दी गई उनमें पावर पैकेज के लिए 31.5 हजार करोड़ रुपए, बेकार पड़ी हवाई पट्टियों को दुरुस्त करने के लिए 4500 करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल नारायणपुर और भद्रक के बीच तीसरी रेलवे लाइन के लिए 1866 करोड़ रुपए की मंजूरी और चीनी क्षेत्र की सहायता के लिए इथेनॉल के उत्पादन क्षमता में वृद्धि और 50 केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना जैसे प्रमुख निर्णय हैं।
स्वास्थ्य योजना का विस्तार पूर्व फौजियों के लिए करने और 43,000 लोगों को लाभ पहुंचाना भी कल के निर्णयों में प्रमुख है। इसके साथ ही दिल्ली मेट्रो के चौथे चरण के तहत तीन कॉरीडोर क्लियर करने की खबर भी है। 13 प्वाइंट रोस्टर खत्म कर एससी, एसटी व ओबीसी के पक्ष में अध्यादेश लागू करने और इस तरह आरक्षण की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू किए जाने के निर्णयों की घोषणा एक साथ एक खबर में की है। इनमें से किसी एक को अलग-अलग अखबारों ने लीड बनाया है। जबकि टाइम्स ने खबको एक साथ शुरू कर अंदर अलग-अलग छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह लीड है जबकि नवोदय टाइम्स ने इसमें शिलान्यास की खबरों को जोड़कर, पांच कॉलम का बॉटम बनाया है जिसका शीर्षक है, चुनाव घोषणा से पहले उद्घाटन और शिलान्यासों की भरमार।
आज के अखबारों में इन लोकलुभावन घोषणा के साथ यह सूचना भी नहीं है कि चुनाव का एलान होने और आचार संहिता लागू होने से कुछ पहले ये घोषणाएं क्यों की जा रही है। दूसरी ओर आज कई उद्घाटन की खबरें भी हैं और इन सबको टाइम्स ऑफ इंडिया तथा नवोदय टाइम्स ने दो ही खबरों में अच्छी तरह समेट लिया है। भारतीय अखबारों के बारे में मैं तो रोज बताता ही हूं आइए, आज आपको बताऊं कि वाशिंगटन पोस्ट ने इनके बारे में क्या लिखा है। मूल खबर अंग्रेजी में है ।
मैं इसकी खास बातें बताता हूं। सुचित्रा विजयन और वसुंधरा सरनाते ड्रेनन के हवाले से छपी चार मार्च की इस खबर का लिंक मुझे कल रात ही एक मित्र ने भेजा। इस खबर में बताया गया है कि सुचित्रा एक पोलिस प्रोजेक्ट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं जबकि वसुंधरा इसकी डायरेक्टर हैं। इस खबर का शीर्षक ही बहुत स्पष्ट और आकर्षित (असल में नाराज) करने वाला है। इसकी हिन्दी होगी, पुलवामा के बाद भारतीय मीडिया ने साबित किया कि वह भाजपा की प्रचार मशीन है। इसके साथ 27 फरवरी के अखबारों की फोटो जिसमें भारतीय हवाई हमले की खबर प्रमुखता से छपी थी।
खबर में कहा गया है कि पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली और जवाब में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला किया। उस समय भारत के विदेश सचिव वीके गोखले ने दावा किया कि सबसे बड़े शिविर पर हमला हुआ है और बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं। अखबार ने लिखा है कि किसी मारे गए लोगों की संख्या के बारे में किसी आधिकारिक बयान के बिना भारतीय समाचार मीडिया ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर दी कि 300 आतंकवादी मारे गए हैं। पर पाकिस्तान ने इन दावों को खारिज किया और एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि वह इलाका ज्यादातर खाली और पेड़ पौधों वाला है। इसलिए कोई नहीं मरा ना जमीन पर कोई नुकसान हुआ।
यह गड़बड़ी भारतीय मीडिया द्वारा फैलाई जाने वाली गलत सूचना और भ्रम का एक उदाहरण भर है। अखबार ने लिखा है कि पुलवामा पर भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग की हमारी जांच से पता चला है कि कई रिपोर्ट परस्पर विरोधी, पूर्वग्रहपूर्ण, भड़काऊ और बिना पुष्टि की हुई थीं। अखबार ने समाचार संगठनों - इंडिया टुडे, एनडीटीवी, न्यूज 18, दि इंडियन एक्सप्रेस, फर्स्ट पोस्ट, मुंबई मिरर और एएनआई का नाम लेकर और अन्य के बारे में लिखा है कि इन्होंने नियमित रूप से अपनी सूचनाएं अनजाने सरकारी, फॉरेंसिक एक्सपर्ट, पुलिस अधिकारी और खुफिया अधिकारी जैसे सूत्रों के हवाले से दीं। कोई भी स्वतंत्र जांच नहीं की गई और खुफिया तंत्र के नाकाम रहने से संबंधित गंभीर सवालों को अनुत्तरित रहने दिया।
इसकी कुछ जिम्मेदारी भारत सरकार की भी है। दो परमाणु शक्तियों के बीच इस अस्थिरता के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को सीधे संबोधित नहीं किया। विदेश सचिव और विदेश मंत्रालय की दो प्रेस कांफ्रेंस में किसी सवाल के जवाब नहीं दिए गए। पर गोपनीय तथा परस्पर विरोधी सूचना देने वाले अनजाने सूत्रों की संख्या और उनका उल्लेख करने वालों से पता चलता है कि यह संकट कितना गंभीर है और जनता को कैसे सूचना दी जा रही है। एक बार इस तमाशे को अलग रखने के बाद हमलोगों ने महसूस किया कि भारत की जनता को पुलवामा हमले और उसके बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में बहुत मामूली सूचना मिली है।
बालाकोट में मरने वालों की संख्या के अलावा भिन्न संगठनों ने हमले में 25 से 350 किलो तक विस्फोटक आरडीएक्स का उपयोग करने की खबर दी जबकि ऐसी कोई सूचना आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई। भिन्न रपटों में भिन्न लोगों की पहचान, भिन्न समय पर पुलवामा हमले के संभावित मास्टर माइंड के रूप में की गई पर कोई सूत्र स्पष्ट नहीं था। हमले के दो हफ्ते बाद हमारे विश्लेषण में पता चला कि किसी भी समाचार साइट ने अपनी गलतियां नहीं सुधारी है और भ्रमित करने वाले तथ्यों को सार्वजनिक रिकार्ड के रूप में रहने दिया है। भारतीय मीडिया ने खुद को सरकारी प्रचार का एम्पलीफायर (बढ़ाने वाला) बना लिया है। अखबार ने लिखा है कि यह सब करते हुए भारतीय मीडिया ने जनता की जांच के दूसरे मुद्दे छोड़ दिए और इसमें रफाल सौदे में भ्रष्टाचार का जिक्र है।
स्वास्थ्य योजना का विस्तार पूर्व फौजियों के लिए करने और 43,000 लोगों को लाभ पहुंचाना भी कल के निर्णयों में प्रमुख है। इसके साथ ही दिल्ली मेट्रो के चौथे चरण के तहत तीन कॉरीडोर क्लियर करने की खबर भी है। 13 प्वाइंट रोस्टर खत्म कर एससी, एसटी व ओबीसी के पक्ष में अध्यादेश लागू करने और इस तरह आरक्षण की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू किए जाने के निर्णयों की घोषणा एक साथ एक खबर में की है। इनमें से किसी एक को अलग-अलग अखबारों ने लीड बनाया है। जबकि टाइम्स ने खबको एक साथ शुरू कर अंदर अलग-अलग छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह लीड है जबकि नवोदय टाइम्स ने इसमें शिलान्यास की खबरों को जोड़कर, पांच कॉलम का बॉटम बनाया है जिसका शीर्षक है, चुनाव घोषणा से पहले उद्घाटन और शिलान्यासों की भरमार।
आज के अखबारों में इन लोकलुभावन घोषणा के साथ यह सूचना भी नहीं है कि चुनाव का एलान होने और आचार संहिता लागू होने से कुछ पहले ये घोषणाएं क्यों की जा रही है। दूसरी ओर आज कई उद्घाटन की खबरें भी हैं और इन सबको टाइम्स ऑफ इंडिया तथा नवोदय टाइम्स ने दो ही खबरों में अच्छी तरह समेट लिया है। भारतीय अखबारों के बारे में मैं तो रोज बताता ही हूं आइए, आज आपको बताऊं कि वाशिंगटन पोस्ट ने इनके बारे में क्या लिखा है। मूल खबर अंग्रेजी में है ।
मैं इसकी खास बातें बताता हूं। सुचित्रा विजयन और वसुंधरा सरनाते ड्रेनन के हवाले से छपी चार मार्च की इस खबर का लिंक मुझे कल रात ही एक मित्र ने भेजा। इस खबर में बताया गया है कि सुचित्रा एक पोलिस प्रोजेक्ट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं जबकि वसुंधरा इसकी डायरेक्टर हैं। इस खबर का शीर्षक ही बहुत स्पष्ट और आकर्षित (असल में नाराज) करने वाला है। इसकी हिन्दी होगी, पुलवामा के बाद भारतीय मीडिया ने साबित किया कि वह भाजपा की प्रचार मशीन है। इसके साथ 27 फरवरी के अखबारों की फोटो जिसमें भारतीय हवाई हमले की खबर प्रमुखता से छपी थी।
खबर में कहा गया है कि पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली और जवाब में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला किया। उस समय भारत के विदेश सचिव वीके गोखले ने दावा किया कि सबसे बड़े शिविर पर हमला हुआ है और बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं। अखबार ने लिखा है कि किसी मारे गए लोगों की संख्या के बारे में किसी आधिकारिक बयान के बिना भारतीय समाचार मीडिया ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर दी कि 300 आतंकवादी मारे गए हैं। पर पाकिस्तान ने इन दावों को खारिज किया और एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि वह इलाका ज्यादातर खाली और पेड़ पौधों वाला है। इसलिए कोई नहीं मरा ना जमीन पर कोई नुकसान हुआ।
यह गड़बड़ी भारतीय मीडिया द्वारा फैलाई जाने वाली गलत सूचना और भ्रम का एक उदाहरण भर है। अखबार ने लिखा है कि पुलवामा पर भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग की हमारी जांच से पता चला है कि कई रिपोर्ट परस्पर विरोधी, पूर्वग्रहपूर्ण, भड़काऊ और बिना पुष्टि की हुई थीं। अखबार ने समाचार संगठनों - इंडिया टुडे, एनडीटीवी, न्यूज 18, दि इंडियन एक्सप्रेस, फर्स्ट पोस्ट, मुंबई मिरर और एएनआई का नाम लेकर और अन्य के बारे में लिखा है कि इन्होंने नियमित रूप से अपनी सूचनाएं अनजाने सरकारी, फॉरेंसिक एक्सपर्ट, पुलिस अधिकारी और खुफिया अधिकारी जैसे सूत्रों के हवाले से दीं। कोई भी स्वतंत्र जांच नहीं की गई और खुफिया तंत्र के नाकाम रहने से संबंधित गंभीर सवालों को अनुत्तरित रहने दिया।
इसकी कुछ जिम्मेदारी भारत सरकार की भी है। दो परमाणु शक्तियों के बीच इस अस्थिरता के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को सीधे संबोधित नहीं किया। विदेश सचिव और विदेश मंत्रालय की दो प्रेस कांफ्रेंस में किसी सवाल के जवाब नहीं दिए गए। पर गोपनीय तथा परस्पर विरोधी सूचना देने वाले अनजाने सूत्रों की संख्या और उनका उल्लेख करने वालों से पता चलता है कि यह संकट कितना गंभीर है और जनता को कैसे सूचना दी जा रही है। एक बार इस तमाशे को अलग रखने के बाद हमलोगों ने महसूस किया कि भारत की जनता को पुलवामा हमले और उसके बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में बहुत मामूली सूचना मिली है।
बालाकोट में मरने वालों की संख्या के अलावा भिन्न संगठनों ने हमले में 25 से 350 किलो तक विस्फोटक आरडीएक्स का उपयोग करने की खबर दी जबकि ऐसी कोई सूचना आधिकारिक तौर पर जारी नहीं की गई। भिन्न रपटों में भिन्न लोगों की पहचान, भिन्न समय पर पुलवामा हमले के संभावित मास्टर माइंड के रूप में की गई पर कोई सूत्र स्पष्ट नहीं था। हमले के दो हफ्ते बाद हमारे विश्लेषण में पता चला कि किसी भी समाचार साइट ने अपनी गलतियां नहीं सुधारी है और भ्रमित करने वाले तथ्यों को सार्वजनिक रिकार्ड के रूप में रहने दिया है। भारतीय मीडिया ने खुद को सरकारी प्रचार का एम्पलीफायर (बढ़ाने वाला) बना लिया है। अखबार ने लिखा है कि यह सब करते हुए भारतीय मीडिया ने जनता की जांच के दूसरे मुद्दे छोड़ दिए और इसमें रफाल सौदे में भ्रष्टाचार का जिक्र है।