विधानसभा चुनाव 2018 में मिली करारी हार के बाद के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र पर जोरदार हमला किया है. सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा गढ़ा गया 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना जमीनी स्तर पर धराशायी हो गया है.
एनडीटीवी डॉट कॉम को लिखे ब्लॉग में यशवंत सिन्हा ने लिखा कि इसमें कोई शक नहीं कि पांच राज्यों में बीजेपी के खिलाफ परिणाम आए, खास तौर पर तीन हिन्दी पट्टी के राज्यों में. उन राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह स्थिति बनी जहां बीजेपी का मजबूत आधार रहा है और जहां कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेताओं ने वर्षों मेहनत करके पार्टी के लिए जमीन तैयार की. सन 2013 में प्राप्त सीटों की संख्या को लेकर देखें तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ. यह गूंजते रहने वाली हार है.
वे आगे लिखते हैं कि एक्जिट पोल के अनुमान एक बार फिर हमेशा की तरह खरे नहीं उतरे. सबसे पहले, तो यह आकलन अन्य देशों में होने वाले एक्जिट पोल की तरह वैज्ञानिक नहीं हैं. और फिर वे सत्तारूढ़ पार्टी से प्रभावित आंकड़ों के साथ भी आते हैं. यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखा तीसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि प्रत्येक चुनाव में सार्वजनिक सभाओं में भाषण का स्तर नई गिरावट को छू रहा है और प्रधानमंत्री इसके लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं. इस चुनाव में और पहले के चुनावों में भी उन्होंने किस तरह के मुद्दों को उठाया, किस तरह की भाषा का उन्होंने इस्तेमाल किया, भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री क्या ऐसा व्यवहार कर सकता है? वाजपेयी ने तो उत्तेजना पैदा करने वाले हालात में भी कभी ऐसा नहीं किया. बीजेपी यह नहीं कह सकती कि कुछ अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने उसके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और जिसका जवाब देना प्रधानमंत्री का कर्तव्य था. देश के प्रधानमंत्री की तुलना इन नेताओं से नहीं की जा सकती.
सिन्हा ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भी निशाना साधा. उन्होने लिखा, चाहे योगी फैक्टर हो या फिर हिंदू कार्ड, मतदाताओं पर यह असर डालने में नाकामयाब रहे. योगी आदित्यनाथ को अब यूपी में अपना खुद का गढ़ बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.
पांचवी बात, प्रधानमंत्री द्वारा गढ़ा गया 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना जमीनी स्तर पर धराशायी हो गया है. यह बात शुरू से ही मूर्खतापूर्ण थी. मैं हमेशा से कांग्रेस पार्टी की आलोचना करता रहा हूं. जब मोदी गुजरात में सत्ता का आनंद ले रहे थे तब मैं अपने साथियों के साथ कांग्रेस से लड़ रहा था. लेकिन आप लोकतंत्र में मुख्य विपक्षी पार्टी को कैसे हटा सकते हैं, खास तौर पर संसदीय लोकतंत्र में? यहां पर मोदी और शाह दोनों पूरी तरह गलत थे और जनता ने इन चुनावों के जरिए उन्हें सबक सिखा दिया.
ध्यान देने वाली बात है कि इसके साथ ही राहुल गांधी राष्ट्रीय पटल पर हुंकार भरते हुए उभरे हैं. अब लोग उन्हें भविष्य में पप्पू कहकर बुलाने का जोखिम नहीं उठाएंगे.
एनडीटीवी डॉट कॉम को लिखे ब्लॉग में यशवंत सिन्हा ने लिखा कि इसमें कोई शक नहीं कि पांच राज्यों में बीजेपी के खिलाफ परिणाम आए, खास तौर पर तीन हिन्दी पट्टी के राज्यों में. उन राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह स्थिति बनी जहां बीजेपी का मजबूत आधार रहा है और जहां कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेताओं ने वर्षों मेहनत करके पार्टी के लिए जमीन तैयार की. सन 2013 में प्राप्त सीटों की संख्या को लेकर देखें तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ. यह गूंजते रहने वाली हार है.
वे आगे लिखते हैं कि एक्जिट पोल के अनुमान एक बार फिर हमेशा की तरह खरे नहीं उतरे. सबसे पहले, तो यह आकलन अन्य देशों में होने वाले एक्जिट पोल की तरह वैज्ञानिक नहीं हैं. और फिर वे सत्तारूढ़ पार्टी से प्रभावित आंकड़ों के साथ भी आते हैं. यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखा तीसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि प्रत्येक चुनाव में सार्वजनिक सभाओं में भाषण का स्तर नई गिरावट को छू रहा है और प्रधानमंत्री इसके लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं. इस चुनाव में और पहले के चुनावों में भी उन्होंने किस तरह के मुद्दों को उठाया, किस तरह की भाषा का उन्होंने इस्तेमाल किया, भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री क्या ऐसा व्यवहार कर सकता है? वाजपेयी ने तो उत्तेजना पैदा करने वाले हालात में भी कभी ऐसा नहीं किया. बीजेपी यह नहीं कह सकती कि कुछ अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने उसके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया और जिसका जवाब देना प्रधानमंत्री का कर्तव्य था. देश के प्रधानमंत्री की तुलना इन नेताओं से नहीं की जा सकती.
सिन्हा ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर भी निशाना साधा. उन्होने लिखा, चाहे योगी फैक्टर हो या फिर हिंदू कार्ड, मतदाताओं पर यह असर डालने में नाकामयाब रहे. योगी आदित्यनाथ को अब यूपी में अपना खुद का गढ़ बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.
पांचवी बात, प्रधानमंत्री द्वारा गढ़ा गया 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना जमीनी स्तर पर धराशायी हो गया है. यह बात शुरू से ही मूर्खतापूर्ण थी. मैं हमेशा से कांग्रेस पार्टी की आलोचना करता रहा हूं. जब मोदी गुजरात में सत्ता का आनंद ले रहे थे तब मैं अपने साथियों के साथ कांग्रेस से लड़ रहा था. लेकिन आप लोकतंत्र में मुख्य विपक्षी पार्टी को कैसे हटा सकते हैं, खास तौर पर संसदीय लोकतंत्र में? यहां पर मोदी और शाह दोनों पूरी तरह गलत थे और जनता ने इन चुनावों के जरिए उन्हें सबक सिखा दिया.
ध्यान देने वाली बात है कि इसके साथ ही राहुल गांधी राष्ट्रीय पटल पर हुंकार भरते हुए उभरे हैं. अब लोग उन्हें भविष्य में पप्पू कहकर बुलाने का जोखिम नहीं उठाएंगे.