रोजी रोटी हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा
तार दिया बेटे को, बोर दिया बाप को।
कहते हैं - जहां न पहुँचे रवि वहां पहुँचे कवि।
इसी कहावत को चरितार्थ करती उनकी यह लाइन जो उन्होंने इंदिरा शासन के वक्त कही थी-
शेर के दांत, भालू के नाखून मर्कट का फोटा
हमेशा हमेशा राह करेगा मेरा पोता
यह बात राहुल गांधी पर कुछ हद तक सटीक बैठती है। यह परिवारवाद पर व्यंग था।
ऐसे दूरदर्शी, जनता के कवि बाबा नागार्जुन को पुण्यतिथि पर नमन।
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलायेगा।
ऐसा मैं नहीं कह रहा। यह तो स्पष्ट विचारों के धनी सीधे कथन वाले बाबा नागार्जुन दशकों पहले कह गए थे जो आज भी प्रासंगिक है। बिखरे बाल, बेतरतीब दाढ़ी, गहरी नीली आँखों, चेहरे पर झुर्रियां बस यही चेहरा बन जाता है आखों के सामने जब कोई बाबा नागार्जुन का नाम लेता है। आज उसी जन कवि बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि है।
30 जून 1911 को बिहार के मधुबनी जिले में जन्में बाबा नागार्जुन ने कविता को छायावाद, रुमानियत, सौन्दर्यवाद से बाहर निकालकर समाज और आम आदमी से जोड़ने की महत्वपूर्ण कोशिश की। बाबा नागार्जुन प्रगतिशील धारा के उस वक्त के कवि हैं जब देश राजनीतिक उथल पुथल के साथ अन्य आंदोलनों से होकर गुजर रहा था। आजादी के बाद जनता की हालत जस की तस देखकर नागार्जुन को यह समझ आने लगा था कि आजादी महज सत्ता परिवर्तन है। जनता की हालत पहले भी वही थी और अब भी वही है।
उनकी कविताओं में जनता का दर्द है, आम आदमी का संघर्ष है। छोटी-छोटी कविताओं और सरल भाषा में वह कितना कुछ कह जाते हैं। उनकी कविता ' अकाल के बाद'
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
अपने आप में एक उपन्यास सा प्रतीत होता है। अकाल के बाद कि स्थिति घर आंगन में हलचल, घर के अगल बगल रहने वाले जंतुओं में हलचल यह सब अपने आप मे बहुत कुछ कह जाते हैं।
उनकी कविताओं में आजादी के बाद के उत्तर भारत का दर्शन मिलता है। आजादी के पहले भुखमरी, यातनाओं संघर्षों में जी रही जनता को लगा कि आजादी के बाद देश के नेता उनके दुख दर्द को समझेंगे उसे दूर करेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। नेहरू के समर्थक रहे बाबा नागार्जुन जब उनसे खिन्न हुए तो 1961 में रानी एलिजाबेथ द्वितीय के भारत आगमन पर उनका गुस्सा 'आओ रानी' कविता में झलकता है। वे लिखते हैं-
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी।
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी।
बाबा नागार्जुन की कविताएं देश की राजनीति पर कटाक्ष थीं। ये कटाक्ष यूं ही नहीं निकले थे। यह उनका देखा हुआ, भोगा हुआ यथार्थ था। उन्हें लगता था आजाद के बाद शिक्षा का प्रचार प्रसार होगा , जनता स्वावलंबी हो जाएगी पर शिक्षा के क्षेत्र में जो दुर्दशा उन्होंने देखी उससे वे बहुत निराश हुए। 'दुखरन मास्टर' नाम की यह कविता उसका जीवंत उदाहरण है-
घुन खाये शहतीरों पर की बारहखड़ी विधाता बाँचे
फटी भीत है छत चूती है आले पर बिस्तुईया नाचे
बरसा कर बेबस बच्चों पर मिनट मिनट में पाँच तमाचे
इसी तरह से दुखरन मास्टर गढ़ता है आदम के साँचे।
कुछ चीजों को छोड़ दिया जाए तो आज भी हालत उतने नहीं सुधरे हैं जितना सुधरना चाहिए था। वे गांव जो शहर से कटे हैं या फिर आदिवासी इलाकों में हैं उनका यही हाल है। कहीं शिक्षक नहीं तो छत नहीं।
हिंदी साहित्य में बाबा नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहा जाता है। कबीर की ही तरह बाबा नागार्जुन ने अपने समय की समस्याओं, कुरीतियों पर अपनी कविताओं से प्रहार किया। उनकी कविताएं, लेख किसी से प्रेरित नहीं लगते। यह उनके भोगे हुए यथार्थ हैं जो कविताओं के माध्यम से लेखों के माध्यम से सामने आते हैं।
बाबा नागार्जुन का सपना था हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधाएं मिलें। इसके लिए उन्होंने किसी भी पंथ से परहेज नहीं किया। कभी वे कट्टरपंथी विचारधारा नक्सलवाद के साथ खड़े नजर आए तो कभी जय प्रकाश के आंदोलन में। इस कारण उनकी आलोचनाएं भी होती रहीं। एक तरफ जहां उन्होंने इंद्रा गांधी को बाघिन कहा और चिड़ियाघर में कैद हो जाने की बात कही वहीं दूसरी तरह उन्होंने इमरजेंसी के दौरानही इंद्रा के लिए कहा-
इंदुजी, इंदुजी क्या हुआ आपको?तार दिया बेटे को, बोर दिया बाप को।
कहते हैं - जहां न पहुँचे रवि वहां पहुँचे कवि।
इसी कहावत को चरितार्थ करती उनकी यह लाइन जो उन्होंने इंदिरा शासन के वक्त कही थी-
शेर के दांत, भालू के नाखून मर्कट का फोटा
हमेशा हमेशा राह करेगा मेरा पोता
यह बात राहुल गांधी पर कुछ हद तक सटीक बैठती है। यह परिवारवाद पर व्यंग था।
ऐसे दूरदर्शी, जनता के कवि बाबा नागार्जुन को पुण्यतिथि पर नमन।