असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का अंतिम मसौदा 30 जुलाई 2018 को जारी किया गया था. 40 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें इस अंतिम सूची में जगह नहीं मिल पाई. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि 30 जुलाई को प्रकाशित नामों की ये सूची केवल एक मसौदा है, ये अंतिम निर्णय नहीं है. असम के लोगों को ये आश्वासन दिया गया है कि उन्हें दावों और आपत्तियों को दर्ज कराने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाएगा.
सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि अंतिम NRC का प्रकाशन सभी दावों और आपत्तियों का निपटारा करने के बाद ही किया जाएगा. और ये भी कहा गया है कि जिनका भी नाम फिलहाल NRC में शामिल नहीं हो पाया है उनके साथ किसी विदेशी की तरह व्यवहार नहीं किया जाएगा. हालांकि, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटीजन रजिस्ट्रेशन ने एक अधिसूचना जारी कर कहा है कि NRC के अपडेशन को पूरा करने का कार्य 31 दिसंबर 2018 तक जरी रखा जाएगा. लेकिन वास्तव में अंतिम तारिख के बारे में कवल सर्वोच्च न्यायलय ही निर्णय ले सकती है.
दावा और आपत्तियां कैसे दर्ज करें
NRC की वेबसाईट www.nrcassam.nic.in में दावा और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए फॉर्म उपलब्ध कराया जाएगा जिसे 7 अगस्त से डाउनलोड किया जा सकता हैं. ये आवेदन पत्र स्थानीय नागरिक सेवा केंद्रों से भी प्राप्त किए जा सकते हैं. असम में कुल 2500 नागरिक सेवा केंद्र हैं. जो लोग पूर्व में दावा या आपत्ति प्रस्तुत कर चुके हैं उनके लिए ये आवश्यक होगा कि वे अपने संबंधित नागरिक सेवा केंद्र से ही पुनः आवेदन करें.
पुराने आवेदन पर आपत्तियां और नए दावे 28 सितंबर तक प्रस्तुत किए जा सकते हैं. यहां उनके आवेदन स्वीकार किए जाएंगे जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में दर्ज नहीं हो पाए हैं जिन्हें इसका आख़िरी मौका नहीं मिल पाया है. हालांकि एन आर सी की अंतिम सूची जारी करने के लिए 31 दिसंबर 2018 की तिथि तय की गई है परंतु इतनी बड़ी संख्या में दावों का निपटारा इतने कम समय में हो पाना थोड़े आश्चर्य की बात लगती है.
NRC से बहिष्कृत लोगों की संख्या अनुमान से कहीं बड़ी है
NRC से 40 लाख लोगों को बाहर रखा गया है, यह संख्या अब तक किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता या मानवाधिकार समूह द्वारा लगाए गए अनुमान से कहीं अधिक है. फॉरेनार्स ट्रिब्यूनल में इन लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अमन वदूद ने इस साल की शुरुआत में अनुमान लगाया था कि NRC से बाहर किए जाने वाले लोगों की संख्या 20 लाख के करीब होगी. हालांकि, बाद में उन्होंने इस आंकड़े को वापस ले लिया था. पत्रकार और कार्यकर्ता ज़मसेर अली इसी आंकड़े पर कायम थे. परन्तु NRC की घोषणा के बाद जो आंकड़ा सामने आया वो आश्चर्यजनक रूप से अनुमान से दोगुना निकला.
घोषित विदेशियों के परिवार व सम्बन्धियों को लेकर आदेश
NRC के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला द्वारा 2 मई को दिए गए आदेश के बाद बहुत से लोगों का ये मानना है कि जिन लोगों के भाई बहन और परिवार के सदस्य पूर्व में विदेशी घोषित किए गए थे उन सभी के नाम NRC से बाहर कर दिए गए हैं इसीलिए सूची से बाहर रह गए लोगों की संख्या इतनी बड़ी नज़र आ रही है. राज्य के अधिकारीयों का ये भी कहना है कि NRC के निर्णय पर बाल की खाल निकालने जैसी प्रतिक्रिया सामने आ रही है. NRC के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला की तरफ़ से बाद में ये स्पष्ट किया गया कि इसका उचित संदर्भ फारेनेर्स ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत किया जाएगा, हालांकि भ्रम और डर की स्थिति अभी भी बनी हुई है. इस बीच NRC के इस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसे गुआहाटी उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था .
इस साल के जून महीने में जब हमने श्री हजेला से मुलाकात की तो उन्होंने कहा कि 73,000 घोषित विदेशियों में से केवल 4,300 का ही अब तक पता लग पाया है. मान लीजिए कि एक घोषित विदेशी 4 अन्य लोगों की नागरिकता को प्रभावित करता है, तो भी इस स्थिति में NRC से बाहर किए लोगों की संख्या लगभग 20000 के आसपास होनी चाहिए थी. परन्तु NRC में तो 40 लाख लोगों बाहर कर दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा व्यक्त की गई चिंताएं
11 जून 2018 को संयुक्त राष्ट्र के चार विशेष अधिकारियों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को असम में संभावित मानवीय संकट के बारे में चिंता ज़ाहिर करते हुए पत्र लिखा.
यह पत्र फर्नांड डी वारेनेस (अल्पसंख्यक मुद्दों पर विशेष संवाददाता), ई. टेंडाई आचुमी (नस्लवाद व नस्लीय भेदभाव के समकालीन रूपों पर विशेष संवाददाता), डेविड काय (पदोन्नति, अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार और सुरक्षा पर विशेष संवाददाता) और अहमद शहीद (धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता पर विशेष संवाददाता) द्वारा लिखा गया था.
पत्र ने उन लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए जिन्हें सूची से बाहर रखा जाएगा और साथ ही साथ बड़ी संख्या में बंगाली मुस्लिमों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर भी चिंता जताई. संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों ने ये भी बताया कि विदेशी घोषित किए जाने वाले लोगों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है. पत्र में विदेशियों के फारेनर्स ट्रिब्यूनल के कामकाज के बारे में भी चिंतायें व्यक्त की गई है.
फारेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए जाने वाले लोगों की बढ़ती संख्या ट्रिब्यूनल के कार्यान्वयन के बारे में चिंताओं को और बढ़ा देती है. 1985 और 2016 के बीच ट्रिब्यूनल में कुल 468,934 संदर्भों में से 80,194 लोगों को विदेशी घोषित किया गया था. 2017 में यह आंकड़ा काफ़ी बढ़ गया और सिर्फ़ ग्यारह महीनों में 13,434 पहुंच गया. इस संदर्भ में ये देखा गया है कि असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सदस्यों पर राज्य के अधिकारियों द्वारा ये दबाव बनाया जा रहा है कि वे अधिक से अधिक लोगों को विदेशी घोषित करें.
21 जून 2017 को असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के 19 सदस्यों को पिछले दो वर्षों में उनके प्रदर्शन के आधार पर बर्ख़ास्त कर दिया गया था. अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए 15 से अधिक अतिरिक्त ट्रिब्यूनल सदस्यों को सख्त चेतावनी भी दी जा चुकी है. यह देखते हुए कि ट्रिब्यूनल के सदस्य दो साल के लिए संविदात्मक आधार पर कार्य करते हैं, जिन्हें जरूरतों और प्रदर्शन के आधार पर बढ़ाया जा सकता है, ऐसे में इन सदस्यों को बर्ख़ास्त करना और चेतावनी देना एक तरह से उन्हें डराना और दबाव बनाना ही कहा जाएगा.
विचार करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
40 लाख, कुल NRC आवेदकों की संख्या (3.29 करोड़) का 12.1 प्रतिशत है.
जून 2018 में असम की हमारी यात्रा के दौरान और हमारे लौटने के बाद भी हमें राज्य निर्वाचन आयोग के नेतृत्व वाली ‘संदिग्ध मतदाता निर्धारण प्रक्रिया’ के बारे में, सीमा सुरक्षा बल द्वारा इस सम्बन्ध जो सुझाव दिए जाते हैं उस प्रक्रिया के बारे में, फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के कार्य करने की शैली के बारे में तथा हिरासत शिविरों में उनके साथ जैसा व्यवहार किया जाता है उस बारे में भी कई शिकायतें प्राप्त हुईं.
1 मई 2018 को NRC के राज्य समन्वयक द्वारा पारित आदेश में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज को ‘कमजोर’ घोषित कर उसे सबूत के रूप में अस्वीकार्य कर दिया गया. सूत्रों का कहना है कि NRC से बाहर इन 40 लाख लोगों में से 55% महिलाएं हैं.
NRC द्वारा दिया गया 2 मई 2018 का वो आदेश भी बड़ी आशंका पैदा करता है, जो ‘घोषित विदेशियों’ के भाई-बहनों और परिवार के सदस्यों के नाम विचाराधीन बनाए रखने की मांग करता है.
कुछ महत्वपूर्ण सवाल
यदि NRC को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया माना जाता है तो फिर इसका कार्य राज्य के स्तर पर चलने वाली दूसरी उन विदेशी पहचान प्रक्रियाओं के साथ उलझा हुआ क्यों नज़र आता है, जो व्यापक रूप से अनुचित हैं. NRC के विशाल महत्त्व को देखते हुए और उस बड़ी आबादी को देखते हुए जो इससे प्रभावित होती है क्या सम्बंधित अधिकारियों को NRC के साथ अधिक सावधानी नहीं बरतनी चाहिए? श्री प्रतीक हजेला के फैसलों के बारे में अधिक पूछताछ करने या उन्हें उत्तरदायित्व का बोध कराने जैसी बातों को दबाने की कोशिश क्यों की जाती है? इन सब कारणों के चलते पिछले कुछ महीनों से NRC की कार्य प्रक्रिया बेहद संदिग्ध सी नज़र आ रही है. ये किसकी ग़लती है?
अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव
साभार- सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस
सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि अंतिम NRC का प्रकाशन सभी दावों और आपत्तियों का निपटारा करने के बाद ही किया जाएगा. और ये भी कहा गया है कि जिनका भी नाम फिलहाल NRC में शामिल नहीं हो पाया है उनके साथ किसी विदेशी की तरह व्यवहार नहीं किया जाएगा. हालांकि, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटीजन रजिस्ट्रेशन ने एक अधिसूचना जारी कर कहा है कि NRC के अपडेशन को पूरा करने का कार्य 31 दिसंबर 2018 तक जरी रखा जाएगा. लेकिन वास्तव में अंतिम तारिख के बारे में कवल सर्वोच्च न्यायलय ही निर्णय ले सकती है.
दावा और आपत्तियां कैसे दर्ज करें
NRC की वेबसाईट www.nrcassam.nic.in में दावा और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए फॉर्म उपलब्ध कराया जाएगा जिसे 7 अगस्त से डाउनलोड किया जा सकता हैं. ये आवेदन पत्र स्थानीय नागरिक सेवा केंद्रों से भी प्राप्त किए जा सकते हैं. असम में कुल 2500 नागरिक सेवा केंद्र हैं. जो लोग पूर्व में दावा या आपत्ति प्रस्तुत कर चुके हैं उनके लिए ये आवश्यक होगा कि वे अपने संबंधित नागरिक सेवा केंद्र से ही पुनः आवेदन करें.
पुराने आवेदन पर आपत्तियां और नए दावे 28 सितंबर तक प्रस्तुत किए जा सकते हैं. यहां उनके आवेदन स्वीकार किए जाएंगे जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में दर्ज नहीं हो पाए हैं जिन्हें इसका आख़िरी मौका नहीं मिल पाया है. हालांकि एन आर सी की अंतिम सूची जारी करने के लिए 31 दिसंबर 2018 की तिथि तय की गई है परंतु इतनी बड़ी संख्या में दावों का निपटारा इतने कम समय में हो पाना थोड़े आश्चर्य की बात लगती है.
NRC से बहिष्कृत लोगों की संख्या अनुमान से कहीं बड़ी है
NRC से 40 लाख लोगों को बाहर रखा गया है, यह संख्या अब तक किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता या मानवाधिकार समूह द्वारा लगाए गए अनुमान से कहीं अधिक है. फॉरेनार्स ट्रिब्यूनल में इन लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अमन वदूद ने इस साल की शुरुआत में अनुमान लगाया था कि NRC से बाहर किए जाने वाले लोगों की संख्या 20 लाख के करीब होगी. हालांकि, बाद में उन्होंने इस आंकड़े को वापस ले लिया था. पत्रकार और कार्यकर्ता ज़मसेर अली इसी आंकड़े पर कायम थे. परन्तु NRC की घोषणा के बाद जो आंकड़ा सामने आया वो आश्चर्यजनक रूप से अनुमान से दोगुना निकला.
घोषित विदेशियों के परिवार व सम्बन्धियों को लेकर आदेश
NRC के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला द्वारा 2 मई को दिए गए आदेश के बाद बहुत से लोगों का ये मानना है कि जिन लोगों के भाई बहन और परिवार के सदस्य पूर्व में विदेशी घोषित किए गए थे उन सभी के नाम NRC से बाहर कर दिए गए हैं इसीलिए सूची से बाहर रह गए लोगों की संख्या इतनी बड़ी नज़र आ रही है. राज्य के अधिकारीयों का ये भी कहना है कि NRC के निर्णय पर बाल की खाल निकालने जैसी प्रतिक्रिया सामने आ रही है. NRC के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला की तरफ़ से बाद में ये स्पष्ट किया गया कि इसका उचित संदर्भ फारेनेर्स ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत किया जाएगा, हालांकि भ्रम और डर की स्थिति अभी भी बनी हुई है. इस बीच NRC के इस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसे गुआहाटी उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था .
इस साल के जून महीने में जब हमने श्री हजेला से मुलाकात की तो उन्होंने कहा कि 73,000 घोषित विदेशियों में से केवल 4,300 का ही अब तक पता लग पाया है. मान लीजिए कि एक घोषित विदेशी 4 अन्य लोगों की नागरिकता को प्रभावित करता है, तो भी इस स्थिति में NRC से बाहर किए लोगों की संख्या लगभग 20000 के आसपास होनी चाहिए थी. परन्तु NRC में तो 40 लाख लोगों बाहर कर दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा व्यक्त की गई चिंताएं
11 जून 2018 को संयुक्त राष्ट्र के चार विशेष अधिकारियों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को असम में संभावित मानवीय संकट के बारे में चिंता ज़ाहिर करते हुए पत्र लिखा.
यह पत्र फर्नांड डी वारेनेस (अल्पसंख्यक मुद्दों पर विशेष संवाददाता), ई. टेंडाई आचुमी (नस्लवाद व नस्लीय भेदभाव के समकालीन रूपों पर विशेष संवाददाता), डेविड काय (पदोन्नति, अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार और सुरक्षा पर विशेष संवाददाता) और अहमद शहीद (धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता पर विशेष संवाददाता) द्वारा लिखा गया था.
पत्र ने उन लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए जिन्हें सूची से बाहर रखा जाएगा और साथ ही साथ बड़ी संख्या में बंगाली मुस्लिमों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर भी चिंता जताई. संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों ने ये भी बताया कि विदेशी घोषित किए जाने वाले लोगों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है. पत्र में विदेशियों के फारेनर्स ट्रिब्यूनल के कामकाज के बारे में भी चिंतायें व्यक्त की गई है.
फारेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए जाने वाले लोगों की बढ़ती संख्या ट्रिब्यूनल के कार्यान्वयन के बारे में चिंताओं को और बढ़ा देती है. 1985 और 2016 के बीच ट्रिब्यूनल में कुल 468,934 संदर्भों में से 80,194 लोगों को विदेशी घोषित किया गया था. 2017 में यह आंकड़ा काफ़ी बढ़ गया और सिर्फ़ ग्यारह महीनों में 13,434 पहुंच गया. इस संदर्भ में ये देखा गया है कि असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सदस्यों पर राज्य के अधिकारियों द्वारा ये दबाव बनाया जा रहा है कि वे अधिक से अधिक लोगों को विदेशी घोषित करें.
21 जून 2017 को असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के 19 सदस्यों को पिछले दो वर्षों में उनके प्रदर्शन के आधार पर बर्ख़ास्त कर दिया गया था. अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए 15 से अधिक अतिरिक्त ट्रिब्यूनल सदस्यों को सख्त चेतावनी भी दी जा चुकी है. यह देखते हुए कि ट्रिब्यूनल के सदस्य दो साल के लिए संविदात्मक आधार पर कार्य करते हैं, जिन्हें जरूरतों और प्रदर्शन के आधार पर बढ़ाया जा सकता है, ऐसे में इन सदस्यों को बर्ख़ास्त करना और चेतावनी देना एक तरह से उन्हें डराना और दबाव बनाना ही कहा जाएगा.
विचार करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
40 लाख, कुल NRC आवेदकों की संख्या (3.29 करोड़) का 12.1 प्रतिशत है.
जून 2018 में असम की हमारी यात्रा के दौरान और हमारे लौटने के बाद भी हमें राज्य निर्वाचन आयोग के नेतृत्व वाली ‘संदिग्ध मतदाता निर्धारण प्रक्रिया’ के बारे में, सीमा सुरक्षा बल द्वारा इस सम्बन्ध जो सुझाव दिए जाते हैं उस प्रक्रिया के बारे में, फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के कार्य करने की शैली के बारे में तथा हिरासत शिविरों में उनके साथ जैसा व्यवहार किया जाता है उस बारे में भी कई शिकायतें प्राप्त हुईं.
1 मई 2018 को NRC के राज्य समन्वयक द्वारा पारित आदेश में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज को ‘कमजोर’ घोषित कर उसे सबूत के रूप में अस्वीकार्य कर दिया गया. सूत्रों का कहना है कि NRC से बाहर इन 40 लाख लोगों में से 55% महिलाएं हैं.
NRC द्वारा दिया गया 2 मई 2018 का वो आदेश भी बड़ी आशंका पैदा करता है, जो ‘घोषित विदेशियों’ के भाई-बहनों और परिवार के सदस्यों के नाम विचाराधीन बनाए रखने की मांग करता है.
कुछ महत्वपूर्ण सवाल
यदि NRC को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया माना जाता है तो फिर इसका कार्य राज्य के स्तर पर चलने वाली दूसरी उन विदेशी पहचान प्रक्रियाओं के साथ उलझा हुआ क्यों नज़र आता है, जो व्यापक रूप से अनुचित हैं. NRC के विशाल महत्त्व को देखते हुए और उस बड़ी आबादी को देखते हुए जो इससे प्रभावित होती है क्या सम्बंधित अधिकारियों को NRC के साथ अधिक सावधानी नहीं बरतनी चाहिए? श्री प्रतीक हजेला के फैसलों के बारे में अधिक पूछताछ करने या उन्हें उत्तरदायित्व का बोध कराने जैसी बातों को दबाने की कोशिश क्यों की जाती है? इन सब कारणों के चलते पिछले कुछ महीनों से NRC की कार्य प्रक्रिया बेहद संदिग्ध सी नज़र आ रही है. ये किसकी ग़लती है?
अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव
साभार- सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस