NRC Assam: डिटेंशन कैंपों में बंदियों को दिया जा रहा आधा भोजन !

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 13, 2020
CJP असम में एनआरसी से बाहर किए गए लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता देने के साथ ही 3 साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने वाले लोगों की सुरक्षित रिहाई में मदद कर रहा है, यहां से खबर आ रही है कि प्रशासन डिटेंशन कैंप में बंद लोगों को उचित पोषण नहीं दे रहा है।



असम के डिटेंशन कैंपों में तीन साल से ज्यादा समय से रह रहे लोगों को मई 2019 में कुछ राहत दी गई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जिन लोगों ने तीन साल से अधिक समय कैद में बिताया है, उन्हें कुछ शर्तों और 100,000 रुपये के बॉन्ड पर रिहा कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश असम में डिटेंशन कैंपों की स्थिति पर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिया था। इस फैसले के समय असम में छह डिटेंशन कैंपों में कुल 1,136 लोग थे, उनमें से 376 लोग तीन साल से कैद में हैं।

इस फैसले को पारित हुए नौ महीने हो गए हैं, लेकिन तब से तीन साल से ज्यादा समय तक कैद में रहने वालों की संख्या 500 हो गई है। यह बहुत ही चिंता की बात है कि आधे से अधिक सक्षम प्रतिनिधि की अनुपस्थिति और असम राज्य के गृह विभाग व असम सरकार की संदिग्ध प्रतिक्रियाओं के कारण रिहा नहीं हो पा रहे हैं। गृह विभाग जमानत आवेदनों को एकमुश्त खारिज कर रहा है या वहां लंबित हैं। CJP असम एनआरसी से बाहर किए गए लोगों की नागरिकता दिलवाने व डिटेंशन कैंप में बंद लोगों की रिहाई के लिए लगातार प्रयासरत है। CJP की आर्थिक मदद के लिए इस लिंक पर क्लिक करें....

अब जब अंतिम NRC प्रकाशित हो गया है और 19,06,657 लोगों को अंतिम सूची से बाहर कर दिया गया है, CJP का अभियान और भी ज्यादा केंद्रित हो गया है। अब हमारा उद्देश्य इन बहिष्कृत लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स के समक्ष उनकी नागरिकता की रक्षा करने में मदद करना है। इसके लिए CJP ने पहले ही एफटी में लोगों की सहायता के लिए पैरालीगल को प्रशिक्षित करने के लिए कार्यशालाओं की एक श्रृंखला शुरू की है। CJP एक मल्टी-मीडिया प्रशिक्षण मैनुअल भी प्रकाशित करेगा, जिसमें कानूनी प्रक्रिया, प्रमाणिक नियम और न्यायिक मिसाल के सरलीकृत पहलू शामिल होंगे, जो यह सुनिश्चित करेगा कि एफटी में NRC अपवर्जन के खिलाफ दायर अपील वास्तव और कानून दोनों में व्यापक और ठोस है।   

यह कानूनी मोर्चे पर हो रहा है। इसके साथ ही जेलों के विभिन्न अधीक्षकों की रिपोर्ट भी आई है जो कथित तौर पर कैद में रहने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे तीन साल से कैद अपने परिजनों को रिहा कराने के लिए त्वरित कार्रवाई करें।

निचले असम के CJP के स्वयंसेवक प्रेरक, नंदू घोष ने बताया कि इन निरोध शिविरों में बंदियों की स्थिति दयनीय है। जेल अधीक्षकों ने उनसे कहा है कि कानून के अनुसार, इन बंदियों को रिहा किया जाना चाहिए और इसीलिए सरकार ने उनके भोजन पर होने वाले खर्च में कटौती (गैरकानूनी) की है। मानवीय आधार पर वे (जेल अधीक्षक उन्हें मूल रूप से मिलने वाले भोजन की मात्रा का आधा हिस्सा परोस रहे हैं)। यहां बंद लोगों के परिवार के सदस्य बहुत चिंतित हैं। प्रक्रिया की महंगी प्रकृति के कारण कई परिवार के सदस्य अक्सर प्रतिनिधित्व प्रदान करने में विफल रहते हैं। कुछ मामलों को मामूली तकनीकी कारणों के कारण खारिज कर दिया गया है।

अहम सवाल यह है कि अगर गृह विभाग जो इन बंदियों को तकनीकी आधार पर रिहा करने की अनुमति नहीं देता है, तो वे कैसे एक ही समय में उन्हें न्यूनतम भोजन देने से मना कर सकते हैं? CJP की टीम असम में बंदियों के परिवार के सदस्यों की मदद करने की कोशिश कर रही है, ताकि उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जा सके, लेकिन वहां गरीबी, अशिक्षा और जानकारी की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है। बहुत से लोग प्रक्रिया की जटिलता और प्रक्रियाओं का पालन करने के बारे में नहीं समझते हैं। कुछ परिवार पैसे की कमी के कारण अपनी आजीविका के लिए काम करते हैं और उनके पास इस कानूनी प्रक्रिया के लिए समय नहीं है।

असम में CJP की टीम ने सभी मोर्चों पर अपना काम तेज कर दिया है। NRC से बाहर रखे गए सभी लोगों के डेटा संग्रह की प्रक्रिया जारी है। नौगांव, मोरीगांव और कार्बी आंग्लोंग जिले के लिए सीजेपी के प्रेरक स्वयंसेवक फारुक अहमद काम कर रहे हैं, दर्रांग जिले, चिरांग जिले, बोंगईगांव जिले, बारपेटा जिले, कामरूप जिले, गोलपारा जिले में जॉयनल आबेदिन, अबुल कलाम आजाद, प्रणय तरफदार, मजफदार, माजिददार भुइयन और रश्मिनारा बेगम सीजेपी के वॉलंटियर के तौर पर दिन रात काम कर उन सभी लोगों का डेटा एकत्र करने के लिए काम कर रहे हैं, जिन्हें एनआरसी की फाइनल लिस्ट से बाहर रखा गया है। ताकि CJP की कानूनी टीम भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले को लेकर जा सके।

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