सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने न्यायपालिका पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए ‘सुधार’ नहीं ‘क्रांति' की जरूरत है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, न्यायमूर्ति गोगोई ने साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय रहना होगा.
जस्टिस गोगोई ने तीन मूर्ति भवन में ‘न्याय की दृष्टि’ विषय पर तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में कहा कि न्यायपालिका उम्मीद की आखिरी किरण है और वह महान संवैधानिक दृष्टि पर गर्व करने वाला, उसका संरक्षक है. इस पर समाज का काफी भरोसा है.
न्यायमूर्ति गोगोई ने न्यायपालिका के लिए कहा, "केवल सुधार नहीं, बल्कि एक क्रांति की जरूरत है जो इसे जमीन पर चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होने और इस संस्था को आम आदमी के सेवा योग्य और देश के लिए प्रासंगिक रखने के लिए."
उन्होंने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में ‘ हाउ डेमोक्रेसी डाइज’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा करने वाली अग्रिम पंक्ति हैं.’’
उन्होंने न्याय देने की धीमी प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक चुनौती रही है. उन्होंने कहा कि इसे सभी स्तरों पर, कानूनों की व्याख्या के मामलों में और अधिक गतिशील बनने की जरूरत है.
गौरतलब है कि जस्टिस रंजन गोगोई समेत चार जजों ने इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके कामकाज पर सवाल उठाए थे. चारों जजों ने संवदेनशील प्रकृति वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई के लिये आवंटन सहित अनेक गंभीर आरोप लगाये थे. इसके बाद प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने 16 जनवरी को इन चारों न्यायाधीशों से मुलाकात की थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, न्यायमूर्ति गोगोई ने साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय रहना होगा.
जस्टिस गोगोई ने तीन मूर्ति भवन में ‘न्याय की दृष्टि’ विषय पर तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में कहा कि न्यायपालिका उम्मीद की आखिरी किरण है और वह महान संवैधानिक दृष्टि पर गर्व करने वाला, उसका संरक्षक है. इस पर समाज का काफी भरोसा है.
न्यायमूर्ति गोगोई ने न्यायपालिका के लिए कहा, "केवल सुधार नहीं, बल्कि एक क्रांति की जरूरत है जो इसे जमीन पर चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होने और इस संस्था को आम आदमी के सेवा योग्य और देश के लिए प्रासंगिक रखने के लिए."
उन्होंने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में ‘ हाउ डेमोक्रेसी डाइज’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा करने वाली अग्रिम पंक्ति हैं.’’
उन्होंने न्याय देने की धीमी प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक चुनौती रही है. उन्होंने कहा कि इसे सभी स्तरों पर, कानूनों की व्याख्या के मामलों में और अधिक गतिशील बनने की जरूरत है.
गौरतलब है कि जस्टिस रंजन गोगोई समेत चार जजों ने इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके कामकाज पर सवाल उठाए थे. चारों जजों ने संवदेनशील प्रकृति वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई के लिये आवंटन सहित अनेक गंभीर आरोप लगाये थे. इसके बाद प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने 16 जनवरी को इन चारों न्यायाधीशों से मुलाकात की थी.