छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सरकारी अस्पताल में नसबंदी ऑपरेशन के दौरान 13 महिलाओं की मौत वाले चर्चित नसबंदी कांड में अब न्याय की उम्मीद की मुरझाने लगी है।

नईदुनिया के मुताबिक, नवंबर 2014 में पेंडारी के कैंसर अस्पताल में हुए इस कांड के अब साढ़े तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं, और अब विभागीय जांच में जिम्मेदार पाए गए डॉक्टर को हाईकोर्ट ने बहाल करने का भी आदेश दे दिया है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से अब यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि नसबंदी कांड ज़हरीली दवा सिप्रोसीन के कारण हुआ था। इसके बाद डॉ प्रमोद तिवारी ने अपने निलंबन को हाईकोर्ट में चुनौती दी जिस पर हाईकोर्ट ने उनकी बहाली का आदेश दिया, लेकिन शासन ने अब तक उस दवा की सप्लाई की जांच के बारे में कुछ नहीं कहा है जिसे कोर्ट ने 13 मौतों का जिम्मेदार माना है।
पूरे मामले में सरकार की नियत दवा कंपनी को बचाने की ही रही है। नसबंदी कराने वाली महिलाओं को जो सिप्रोसिन और आईबूप्रोफेन दवा दी गई थी, उसे ड्रग एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ निजी लैब में जांच के लिए दिल्ली और नागपुर भेजा गया था। बाद में दवाओं के सैंपल सेंट्रल ड्रग लेबोरेट्री, कोलकाता भी भेजने पड़े थे।
लोगों के दबाव के कारण तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने बिना जांच रिपोर्ट आए ही सिप्रोसिन में चूहामार दवा जिंक फॉस्पेट पाया जाना बता दिया था। इसके बाद भी दवा कंपनी पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई।

नईदुनिया के मुताबिक, नवंबर 2014 में पेंडारी के कैंसर अस्पताल में हुए इस कांड के अब साढ़े तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं, और अब विभागीय जांच में जिम्मेदार पाए गए डॉक्टर को हाईकोर्ट ने बहाल करने का भी आदेश दे दिया है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से अब यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि नसबंदी कांड ज़हरीली दवा सिप्रोसीन के कारण हुआ था। इसके बाद डॉ प्रमोद तिवारी ने अपने निलंबन को हाईकोर्ट में चुनौती दी जिस पर हाईकोर्ट ने उनकी बहाली का आदेश दिया, लेकिन शासन ने अब तक उस दवा की सप्लाई की जांच के बारे में कुछ नहीं कहा है जिसे कोर्ट ने 13 मौतों का जिम्मेदार माना है।
पूरे मामले में सरकार की नियत दवा कंपनी को बचाने की ही रही है। नसबंदी कराने वाली महिलाओं को जो सिप्रोसिन और आईबूप्रोफेन दवा दी गई थी, उसे ड्रग एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ निजी लैब में जांच के लिए दिल्ली और नागपुर भेजा गया था। बाद में दवाओं के सैंपल सेंट्रल ड्रग लेबोरेट्री, कोलकाता भी भेजने पड़े थे।
लोगों के दबाव के कारण तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने बिना जांच रिपोर्ट आए ही सिप्रोसिन में चूहामार दवा जिंक फॉस्पेट पाया जाना बता दिया था। इसके बाद भी दवा कंपनी पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई।