मोदी सरकार और एससी-एसटी-ओबीसी को सवर्णों का गुलाम बनाए रखने की साजिश

Written by Arvind Shesh | Published on: June 27, 2018
मोदी सरकार ने देश को किस गर्त में पहुंचा दिया है, गरीब तबकों यानी एससी-एसटी-ओबीसी को कैसे अनपढ़ बने बने रहने और इस तरह सवर्णों का गुलाम बने रहने का इंतजाम किया है, यह हकीकत आपको गाय-गोबर या मेंढ़क के ब्याह या हत्या की साजिश टाइप के हड़बोंग और नाटक में नहीं दिखेगा!



ऐसे तो पता नहीं कितने उदाहरण होंगे, दिल्ली विवि के प्राध्यापक दीपक भास्कर की टिप्पणी पढ़िए और अफसोस कीजिए कि आपकी सरकार ही आपको आपके अधिकारों से वंचित कर रही है-

"आज दुखी हूं, कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे. दो बच्चे ने आज ही एड्मिसन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16,000 सुना और होस्टल फीस लगभग 1,20,000 सुनकर एड्मिसन कैंसिल करने को कहा. गार्डियन ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि सर! मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते मे, इसलिए आ गए थे. मैन रोकने की कोशिश भी की लेकिन अंत में एडमिशन कैंसिल ही करा लिया.

बैठ कर ये सोच रहा था कि एक तरफ जहां लोग सस्ती शिक्षा चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार कह रही है कि 30 प्रतिशत खुद जेनेरेट कीजिये. ऑटोनोमी के नाम पर निजीकरण हो रहा है.

सोचिये दिल्ली विश्विद्यालय के चारो तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटी का जाल बिछ रहा है. जो लोग 15000 की फीस नही दे पा रहे वो लाखों की फीस प्राइवेट यूनिवर्सिटी को कहां से देंगे लगभग ऐसे कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एड्मिसन कैंसिल कराते होंगे.

इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी. ये उस देश मे हो रहा है जहां के प्रधानमंत्री ओबीसी क्लेम कर रहे हैं, ये उस देश में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री चाय बेचने का ढोंग करते हैं. अरे भाई आप गरीब है तो इनके लिए ही कुछ कर देते. कॉलेज में कई तरह की स्कालरशिप तो हैं लेकिन फीस भरने के लिए काफी नही, होस्टल फीस भरने लायक तो कतई नही. PG में रेंट पर रहना तो अच्छी आर्थिक व्ययवस्था वाले लोगों के भी वश का नही. शिक्षक एक कार्पस फण्ड बनाने की बात कर रहे हैं ताकि ऐसे बच्चों की मदद किया जा सके. लेकिन इससे एक दो लोगों की मदद तो हो सकती है लेकिन सर्व कल्याण तो सरकार की नीतियों से ही होगा.

लेकिन प्रधान मंत्री को खुद बचा रहना है और बाकी मंत्रालयों को उनको बचाये रखना है तो गरीब मजदूर क्या करें.

लेकिन दुखी हूं 95 प्रतिशत का कटऑफ और बच्चे के पास 95 प्रतिशत लेकिन इसके बावजूद भी गरीब बच्चे क्या करेंगे. गांव गोद लिए जा रहे हैं और लोग गरीब हुए जा रहे हैं. 'बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ' का नारा कितना फेक लगता है. गर्ल्स कॉलेज बेटियों को उच्च शिक्षा देने के लिए ही बना था लेकिन आज एक गरीब की बेटी उसी से मरहूम हो गई.

विश्वविद्यालय अपने यूनिवर्सिटी होने का चरित्र खो रही है. बाकी फर्स्ट कट ऑफ का एड्मिसन खत्म हो गया है. दूसरे और तमाम कटऑफ में भी शायद ऐसे कितने बच्चे आएंगे और वापस चले जायेंगे. ये सालों से हो रहा होगा लेकिन जब भारत बदल रहा था तो शायद ये भीं बदल जाता. बाकी अब कुछ नहीं.

MHRD रोज एक नया फरमान ला रहा है. उस गार्डियन ने कहा कि सुना था कि JNU की फीस कम है उसी से सोच लिए थे कि यहां भी कम होगी. अब आप समझे JNU को खत्म क्यों किया जा रहा है."

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