'जब सैंया भये कोतवाल फिर डर काहे का'

Written by Girish Malviya | Published on: June 27, 2018
आपको याद होगा कि सुब्रमण्यम स्वामी ने कुछ दिनों पहले एक ट्वीट किया था जिसमे उन्होंने कहा था कि "सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे बड़े एनपीए बकाएदार गौतम अडाणी हैं. समय आ गया है कि इसके लिए उनकी जिम्मेदारी तय की जाए, नहीं तो जनहित याचिका दायर की जाएगी."



दरअसल आरबीआई ने फरवरी में बैंकों के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके तहत बड़े कर्जदार के लोन चुकाने में एक दिन की भी देरी होती है तो बैंकों को इसकी जानकारी देनी होगी। साथ ही डिफॉल्ट के मामलों को 180 दिन में निपटाना होगा.

लेकिन पावर सेक्टर की बात ही अलग है,जब उनकी बात आती है तो बैंक वाले अजीब सी खामोशी ओढ़ लेते हैं. आपको जानना चाहिए कि रिजर्व बैंक के डेटा के मुताबिक, भारतीय बैंकों ने पावर सेक्टर को अप्रैल के अंत तक 5.19 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया हुआ था.

उपरोक्त नियम सबसे पहले पावर सेक्टर पर ही लागू होता है, क्योकि देश मे सबसे ज्यादा बेड लोन बिजली कंपनियों पर ही है यह भारत के स्टील सेक्टर से राइट ऑफ किए गए बैड लोन से चार गुने से भी ज्यादा है, भारत की पावर कम्पनियो को जनवरी 2014 से सितम्बर 2017 के बीच 3.79 लाख करोड से भी अधिक का लोन देशी विदेशी बैंकों ने दिया है.

लेकिन इसी महीने के शुरू में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पावर सेक्टर में आरबीआई के एनपीए के सर्कुलर पर रोक लगा दी इस फैसले में कहा गया कि विलफुल डिफॉल्टर को छोड़ किसी भी पावर कंपनी पर कार्रवाई नहीं की जाए.

अब इस केस में अडानी का रोल समझिये, पावर सेक्टर में निजी क्षेत्र के सबसे बड़े खिलाड़ी अडानी पावर है. उन्होंने पिछले साल में अनिल अंबानी की रिलायंस पावर को खरीद कर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.

एसबीआई ने अदानी और टाटा पावर को दिए लोन पर चिंता जताई है ऐसा खुद बिजली मंत्री बता रहे हैं भारतीय स्टेट बैंक, जिसका एनपीए 1.86 लाख करोड़ रुपये है, उसने 56,000 करोड रुपये से भी अधिक इन कम्पनियों मे जनवरी 2014 से सितंबर 2017 के बीच लोन, बॉण्ड, व शेयर के रूप मे लगा दिए हैं.

लेकिन मजाल है जो मोदी जी खासमखास उद्योगपति को कोई तिरछी निगाह से भी देख ले, अडानी पावर ने टाटा पावर जैसी अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर नया पैंतरा फेंका है. उन्होंने प्रस्ताव दिया है कि अगर उनके ऊपर बकाया बैंकों के कर्ज का 70 फीसद तक माफ कर दिया जाए तो वह स्वयं ही ऐसी परियोजनाओं को नए सिरे से चालू कर सकती हैं जो जिन पर काम पूरा हो गया है लेकिन आगे की पूंजी नहीं होने की वजह से इनसे उत्पादन नहीं हो पा रहा है, यह साफ साफ सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश है लेकिन 'जब सैया भये कोतवाल फिर डर काहे का'.

साफ है कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा' की सरकार जम कर देश की जनता की गाढ़ी कमाई के दम पर टिके बैंको से लोन दिलवा कर अडानी अम्बानी जैसे पूंजीपतियों की मदद कर रही है.
 

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