PM मोदी की क्या मजबूरियां रही कि सबसे बड़े अधिकारी को Paytm का सलाहकार बनने की अनुमति दे दी?

Written by Girish Malviya | Published on: June 23, 2018
नोटबन्दी के ठीक दूसरे दिन हर बड़े अखबार में छपे पेटीएम के फुल पेज एड आपको याद है ? जब नोटबन्दी का फैसला लिया गया उस वक्त रामा गाँधी रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे, अब उन्ही रामा गाँधी को पेटीएम ने अपने सलाहकार के पद पर अपॉइंट कर लिया.



शायद पहले अनऑफिशियल होंगे ? लेकिन अब ऑफिशियल हो गए हैं.

राज्यसभा टीवी के पूर्व सीईओ रहे फेसबुक मित्र Gurdeep Singh Sappal पूछ रहे हैं कि 'आमतौर पर उच्च सरकारी पदों पर रहे लोगों के लिए दो साल का कूलिंग ऑफ़ पिरीयड होता है। यानि, वे लोग पद छोड़ने के बाद सम्बंधित क्षेत्र से जुड़ी निजी कम्पनियों में नौकरी नहीं कर सकते। इस शर्त को केवल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ही माफ़ कर सकती है

तो सवाल उठता है कि नोटबंदी से जुड़े इस दूसरे सबसे बड़े अफ़सर को दो साल के कूलिंग ऑफ़ से छूट क्यों मिली? क्यों नहीं रामा गांधी पर शर्त लगाई गई कि नोटबंदी से सबसे ज़्यादा फ़ायदा पाने वाली, या कहें कि फ़ायदा पाने वाली अकेली कम्पनी को वे ज्वाइन नहीं कर सकते ?

और प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी रही कि रामा गांधी पर वो रोक नहीं लगा पाए? या फिर सब उनकी सहमति या इशारे से ही हुआ है?

या कहें कि देश में अब खुला खेल फ़र्रुख़ाबादी चल रहा है। पर्दे की भी फ़िक्र नहीं बची, ज़्यादातर संस्थाएँ सरेंडर कर चुकी हैं और बहुत से लोग अब जागरूक नागरिक नहीं, भक्त बन गए हैं। तो सवाल कौन पूछेगा?

बाकी ख़बरें