इस घटना के बाद स्थानीय दलित लोगों ने तत्काल गिरफ्तारी और प्रतिमा को फिर से स्थापित करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया।
साभार : द ऑब्जर्वर पोस्ट (स्क्रीनशॉट)
गोंडा के समरूपुर गांव में भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर की प्रतिमा को हाल में तोड़े जाने घटना ने उत्तर प्रदेश में व्यापक विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है। 16 नवंबर की रात को हुई यह घटना पिछले दो महीनों में राज्य में अंबेडकर की प्रतिमाओं को तोड़ने की पांचवीं घटना है। इससे दलित समुदाय को निशाना बनाकर की जा रही नफरती घटनाओं के बढ़ने की चिंता बढ़ गई है।
द ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में 25 साल से अधिक समय से दलित समुदाय के लिए गौरव का प्रतीक बनी अंबेडकर की प्रतिमा को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इस घटना के बाद स्थानीय दलित लोगों ने तत्काल गिरफ्तारी और प्रतिमा को फिर से स्थापित करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया।
भीम आर्मी के कार्यकर्ता दीपक गौतम ने इस बर्बरता की निंदा करते हुए इसे समानता और सशक्तिकरण के मूल्यों पर सीधा हमला बताया, जिसके लिए डॉ. अंबेडकर लड़े थे। गौतम ने कहा, "भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता की प्रतिमा को तोड़ने की घटना बेहद निंदनीय है।" उन्होंने आगे कहा, “सामंती तत्वों ने हमारे समुदाय के लिए समानता और सशक्तिकरण के प्रतीक बाबासाहेब की प्रतिमा को बार-बार निशाना बनाया है। यह अस्वीकार्य है।”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों ने इस घटना को लेकर नाराजगी जाहिर की है। यूजर्स ने इस हमले की निंदा की और राज्य सरकार से अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। कई लोगों ने जिम्मेदार लोगों की तत्काल गिरफ्तारी और मूर्ति को जल्द से जल्द स्थापित करने की मांग की।
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस हमले को उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के तहत “नफरत की राजनीति” से जोड़ा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम ने बताया कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले दो महीनों में पूरे राज्य में इसी तरह के पांच घटनाएं हुई हैं।
आलम ने कहा, “ये कृत्य एक बड़े एजेंडे का हिस्सा हैं।” “भाजपा की विभाजनकारी राजनीति से उत्साहित होकर, सामंती तत्व दलितों के प्रतीकों और स्वाभिमान को कुचलना चाहते हैं। यह समाज को उत्पीड़न का संदेश देने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।”
दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. अंबेडकर की मूर्तियों पर हमलों की बढ़ती संख्या ने दलित समुदाय में चिंता पैदा कर दी है।
साभार : द ऑब्जर्वर पोस्ट (स्क्रीनशॉट)
गोंडा के समरूपुर गांव में भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीम राव अंबेडकर की प्रतिमा को हाल में तोड़े जाने घटना ने उत्तर प्रदेश में व्यापक विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है। 16 नवंबर की रात को हुई यह घटना पिछले दो महीनों में राज्य में अंबेडकर की प्रतिमाओं को तोड़ने की पांचवीं घटना है। इससे दलित समुदाय को निशाना बनाकर की जा रही नफरती घटनाओं के बढ़ने की चिंता बढ़ गई है।
द ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में 25 साल से अधिक समय से दलित समुदाय के लिए गौरव का प्रतीक बनी अंबेडकर की प्रतिमा को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इस घटना के बाद स्थानीय दलित लोगों ने तत्काल गिरफ्तारी और प्रतिमा को फिर से स्थापित करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया।
भीम आर्मी के कार्यकर्ता दीपक गौतम ने इस बर्बरता की निंदा करते हुए इसे समानता और सशक्तिकरण के मूल्यों पर सीधा हमला बताया, जिसके लिए डॉ. अंबेडकर लड़े थे। गौतम ने कहा, "भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता की प्रतिमा को तोड़ने की घटना बेहद निंदनीय है।" उन्होंने आगे कहा, “सामंती तत्वों ने हमारे समुदाय के लिए समानता और सशक्तिकरण के प्रतीक बाबासाहेब की प्रतिमा को बार-बार निशाना बनाया है। यह अस्वीकार्य है।”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों ने इस घटना को लेकर नाराजगी जाहिर की है। यूजर्स ने इस हमले की निंदा की और राज्य सरकार से अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। कई लोगों ने जिम्मेदार लोगों की तत्काल गिरफ्तारी और मूर्ति को जल्द से जल्द स्थापित करने की मांग की।
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने इस हमले को उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के तहत “नफरत की राजनीति” से जोड़ा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम ने बताया कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले दो महीनों में पूरे राज्य में इसी तरह के पांच घटनाएं हुई हैं।
आलम ने कहा, “ये कृत्य एक बड़े एजेंडे का हिस्सा हैं।” “भाजपा की विभाजनकारी राजनीति से उत्साहित होकर, सामंती तत्व दलितों के प्रतीकों और स्वाभिमान को कुचलना चाहते हैं। यह समाज को उत्पीड़न का संदेश देने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।”
दलितों और हाशिए के समुदायों के अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. अंबेडकर की मूर्तियों पर हमलों की बढ़ती संख्या ने दलित समुदाय में चिंता पैदा कर दी है।