13 जनवरी 2025 से होने जा रहे महाकुंभ की तैयारियों के शोर-शराबे के बीच यह सवाल उठता है कि इतने बड़े आयोजन और खर्च से सरकार को आखिर क्या हासिल होता है? श्रद्धालु, जो संगम तट पर स्नान करके स्वयं को पवित्र मानते हैं, क्या यह जानते हैं कि प्रयागराज में संगम का पानी कितना स्वच्छ है? गंगा-यमुना का वह पानी क्या स्नान और आचमन के योग्य है?
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के किनारे रेतीली ज़मीन पर बसने वाले अस्थायी महाकुंभ की तैयारियों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि इस पूरी व्यवस्था के लिए सरकार ने अरबों रुपये खर्च किए होंगे। 13 जनवरी 2025 से होने जा रहे महाकुंभ की तैयारियों के शोर-शराबे के बीच यह सवाल उठता है कि इतने बड़े आयोजन और खर्च से सरकार को आखिर क्या हासिल होता है? श्रद्धालु, जो संगम तट पर स्नान करके स्वयं को पवित्र मानते हैं, क्या यह जानते हैं कि प्रयागराज में संगम का पानी कितना स्वच्छ है? गंगा-यमुना का वह पानी क्या स्नान और आचमन के योग्य है?
हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन सवालों पर योगी सरकार से जवाब मांगा, तो कई बातें उजागर हुईं। यह स्पष्ट हुआ कि महाकुंभ 2025 के दौरान प्रयागराज में गंगा और यमुना का पानी आचमन तो दूर, स्नान के योग्य भी नहीं रहेगा। एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 6 नवंबर 2024 को दिए आदेश में कहा कि प्रयागराज में गंगा का जल अब आचमन योग्य नहीं रह गया है। यह भी कहा जा सकता है कि गंगा की सफाई के लिए चलाई जा रही ‘नमामि गंगे’ परियोजना विफल साबित हो रही है और नदी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
गंगा-यमुना की स्थिति और आंकड़े
एनजीटी की विशेष पीठ ने गंगा के प्रदूषण और उसकी सफाई पर समीक्षा करते हुए पाया कि प्रयागराज में करीब 128.28 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) मलजल बिना उपचार के सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। शहर से प्रतिदिन 468.28 एमएलडी सीवेज निकलता है, जबकि उपचार की क्षमता सिर्फ 340 एमएलडी है। 25 खुले नाले गंगा और 15 खुले नाले यमुना में सीवेज का गंदा पानी गिरा रहे हैं।
एनजीटी ने पाया कि प्रयागराज में सीवेज शोधन की 128 एमएलडी की कमी है। इस स्थिति में, महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने वाले श्रद्धालु अनजाने में प्रदूषित जल में स्नान करेंगे। पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने इस पर असंतोष प्रकट किया। सरकारी वकीलों से कहा गया कि गंगा-यमुना का जल न स्नान के योग्य है, न आचमन के योग्य। लेकिन इस जानकारी को जनता तक पहुंचाने के लिए न तो कोई नोटिस चस्पा किया गया और न ही अखबारों में प्रकाशित किया गया।
पिछली सुनवाई में एनजीटी ने गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक्शन प्लान मांगा था। लेकिन न तो कोई संतोषजनक जवाब दिया गया और न ही ठोस योजना प्रस्तुत की गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय अधिकारी ने बताया कि नगर निगम प्रयागराज पर 9 अगस्त को 129 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। हालांकि, जब एनजीटी ने पूछा कि यह जुर्माना वसूला गया या नहीं, तो इस पर कोई जवाब नहीं मिला।
चौंकाने वाले तथ्य
एनजीटी की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज के 25 अनटैप्ड नालों से 128.28 एमएलडी मलजल गंगा में और 15 अनटैप्ड नालों से यमुना में बहाया जा रहा है। शहर के 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से केवल 9 चालू हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश जल उपचार मानकों का पालन नहीं कर रहे।
गंगा किनारे 11 जिलों के 16 कस्बों में कुल 41 एसटीपी डिज़ाइन किए गए हैं, जिनमें से 6 अब तक चालू नहीं हो सके हैं। 35 एसटीपी में से भी अधिकांश मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं।
एनजीटी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम है, लेकिन 13 एसटीपी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर में बनियापुर का 15 एमएलडी क्षमता वाला एसटीपी तीन साल से तैयार होने के बावजूद चालू नहीं किया गया है। यह कानपुर के सीवेज उपचार में बड़ी बाधा है। फर्रुखाबाद के दो एसटीपी पूरी तरह से बंद हैं, जिससे वहां का मलजल भी सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है।
गंगा किनारे डिज़ाइन की गई कुल क्षमता 1337.96 एमएलडी है, लेकिन उपलब्ध उपयोगिता क्षमता सिर्फ 1116.24 एमएलडी (85.8 फीसदी) है। इसका मतलब है कि सीवेज उपचार में 221.72 एमएलडी का बड़ा अंतर बना हुआ है।
एनजीटी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 41 एसटीपी में से 23 एसटीपी फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं। इन एसटीपी से उपचारित पानी में बैक्टीरिया की संख्या अनुमत सीमा से अधिक है, जो जल की गुणवत्ता के लिए घातक है। केवल 12 एसटीपी ही ऐसे हैं जो फीकल कॉलिफॉर्म मानकों का पालन कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम (क्लोरीनेशन) मौजूद है, जो जल को बैक्टीरिया मुक्त करता है। लेकिन 13 एसटीपी अपनी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
गंगा सफाई पर संशय बरकरार?
एनजीटी के समक्ष पेश की गई सरकार की रिपोर्ट बताती है कि निर्माणाधीन और परीक्षणाधीन 11 एसटीपी के चालू होने से सीवेज उपचार की क्षमता में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन यह कब तक होगा, इस पर संशय है। गंगा की स्वच्छता के लिए एसटीपी की गुणवत्ता सुधारना, अनटैप्ड नालों को रोकना और सभी सीवेज का उपचार सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल 326 नालों में से 247 नाले अब भी अविकसित (अनटैप्ड) हैं। ये नाले प्रतिदिन 3513.16 एमएलडी गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल गंगा के प्रदूषण को बढ़ा रही है, बल्कि पूरे नदी तंत्र की जैव विविधता और जल गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचा रही है।
एनजीटी ने 6 नवंबर 2024 की सुनवाई में यह भी पाया था कि अयोध्या में भी सीवेज प्रबंधन की स्थिति बेहद खराब है। गंगा के प्रदूषण से जूझ रहे अन्य जिलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। बिना उपचारित सीवेज और अविकसित नालों की समस्या इन क्षेत्रों में गंगा और सहायक नदियों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही है।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक जिले के नालों की स्थिति, उनसे उत्पन्न सीवेज की मात्रा और इन्हें सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़ने की योजनाओं का विवरण एक शपथ पत्र के रूप में प्रस्तुत करें। इस शपथ पत्र में निम्नलिखित विवरण मांगे गए हैं:
1- प्रत्येक जिले में मौजूद नालों की वर्तमान स्थिति।
2- नालों से उत्पन्न सीवेज की दैनिक मात्रा।
3- सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़े जाने वाले नालों की योजनाएं।
4- इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भूमि आवंटन, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, और समयसीमा।
इस गंभीर स्थिति को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह के भीतर इस समस्या से निपटने के फौरी उपायों के साथ हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी, 2025 को तय की गई है।
एनजीटी ने यूपी सरकार को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि शपथ पत्र में सीवेज उपचार संयंत्रों के निर्माण और संचालन की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाएं। साथ ही, यह भी बताया जाए कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
एनजीटी ने कहा कि गंगा और यमुना में सीवेज का प्रवाह पूरी तरह से बंद होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नदी का जल न केवल स्नान योग्य बल्कि पीने योग्य भी हो। इसके अलावा, स्नान घाटों पर नदी की जल गुणवत्ता को डिस्प्ले बोर्ड के जरिए श्रद्धालुओं को दिखाया और सूचित करना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए। महाकुंभ जैसे आयोजन से पहले यह कदम श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य और धार्मिक विश्वास की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
बढ़ता प्रदूषण, चिंता का सबब
गंगा और यमुना नदियों से भले ही करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है, लेकिन उनकी सहायक नदियों में लाखों लीटर गंदा पानी हर दिन प्रवाहित हो रहा है, जो अंततः गंगा और यमुना को प्रदूषित कर रहा है। जो श्रद्धालु गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र समझते हैं, वे शायद यह नहीं जानते कि उसी शहर का मल-जल बगैर शोधन के इस नदी में समाहित हो रहा है। गंगा का जल आचमन लायक भी नहीं बचा है।
प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती नदी का संगम होता है, जिसे कुंभ मेले के दौरान लाखों लोग देखने और स्नान करने आते हैं। हिंदू मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने आते हैं और इसके पवित्र जल को बोतलों और डिब्बों में भरकर ले जाते हैं। हालांकि, बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंता है, लेकिन आस्थावानों के लिए गंगा का हर रूप पवित्र ही है।
महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा। यह आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाकुंभ के दौरान गंगा, यमुना और पौराणिक गाथाओं में वर्णित सरस्वती के संगम पर करोड़ों श्रद्धालु स्नान करेंगे। हिंदुओं का मानना है कि ऐसा करने से वे अपने पापों को धो देंगे और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाते हुए इस स्नान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में मदद मिलेगी।
प्रयागराज के कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 साल पर होता है। हर छह साल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। 2019 में मेला क्षेत्र 3200 हेक्टेयर में फैला था, जबकि इस बार इसका विस्तार 4000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में किया जाएगा।
गंगा की स्वच्छता और पुनर्जीवन से जुड़ा मुद्दा भारत की सबसे बड़ी पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियों में से एक है। आंकड़ों के आधार पर अगर स्थिति का आकलन किया जाए, तो गंगा की वर्तमान स्थिति कई मोर्चों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। गंगा के तट पर बसे 97 शहरों में लगभग 45 करोड़ लोग निवास करते हैं। इन शहरों से हर दिन 3,000 मिलियन लीटर प्रदूषित जल गंगा में गिराया जाता है। जबकि गंगा को साफ करने के लिए स्थापित जल शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल 1,200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इसका मतलब है कि गंगा में गिरने वाले गंदे पानी का 60 प्रतिशत हिस्सा बिना शोधन के सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
दावा: नहाने लायक है गंगा का पानी
गंगा निर्मलीकरण के मामले में एक तरफ जहां एनजीटी ने सरकार की नीति और नीयत पर ढेरों सवाल खड़े किए हैं, वहीं यूपी के प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने दावा किया है कि गंगा का पानी नहाने लायक है। विभाग के अनुसार, गंगा का अधिकांश भाग स्नान योग्य जल के मानकों पर खरा उतरता है। इसमें पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) और फीकल स्ट्रेप्टोकोकी (एफएस) जैसे बुनियादी मानक शामिल हैं। हालांकि, फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर और कन्नौज से कानपुर के बीच गंगा का जल इन मानकों को पूरा नहीं कर पा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यह जानकारी अपनी 22 अक्टूबर, 2024 की रिपोर्ट में दी है, जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 13 सितंबर, 2024 को दिए गए निर्देश के आधार पर तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में उठाए गए कदमों की स्थिति स्पष्ट करती है।
सीपीसीबी ने 7 अगस्त, 2024 को एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गंगा बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के मानकों को पूरा नहीं करती। रिपोर्ट में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया, जिसमें यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 114 में से 97 स्थान और बिहार में 96 में से सभी स्थान जल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते।
बरेली में तीन नाले रामगंगा में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 31.14 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 18.8 टन प्रतिदिन (टीपीडी) दर्ज किया गया।
बुलंदशहर में बारह नाले काली नदी में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 12.9 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 20.7 टीपीडी पाया गया।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थिति
उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच सीपीसीबी की निगरानी में यह पाया गया कि इनमें से केवल 35 एसटीपी सक्रिय थे, जबकि 6 एसटीपी चालू नहीं थे।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह कुंभ मेले के दौरान गंगा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध प्रयास तेज करे। यह भी कहा गया कि गंगा और यमुना में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सीवेज की रोकथाम और जल गुणवत्ता सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। गंगा का जल केवल श्रद्धालुओं के स्नान के लिए नहीं, बल्कि पीने के लिए भी उपयोग में आता है। ऐसे में सीवेज प्रबंधन और जल शुद्धिकरण के लिए प्रभावी योजनाएं लागू करना नितांत आवश्यक है।
एनजीटी ने यह भी कहा है कि गंगा के बिना भारत की सांस्कृतिक विरासत अधूरी है। गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है और यह अपनी बाढ़भूमि पर निवास करने वाले देश की एक तिहाई जनसंख्या का जीवन-आधार है। गंगा हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र नदी है और इसे "मां गंगा" के रूप में पूजा जाता है। यह नदी हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है। ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी जैसे कई धार्मिक नगर इसके किनारे बसे हुए हैं। गंगा की स्वच्छता सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और स्वास्थ्य का प्रश्न भी है।
मोदी सरकार की चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद गंगा की सफाई को अपनी प्राथमिकता घोषित किया। उन्होंने "नमामि गंगे" परियोजना के तहत 5 वर्षों में $3 बिलियन (₹25,000 करोड़) खर्च करने का लक्ष्य रखा। यह योजना न केवल गंगा की सफाई का प्रयास है, बल्कि भारत को गरीबी से निकालकर एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के प्रतीक के रूप में भी प्रस्तुत की गई। हालांकि, गंगा की सफाई को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों ने भी प्रयास किए हैं। 1980 के दशक में राजीव गांधी सरकार ने गंगा एक्शन प्लान के तहत बड़े पैमाने पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए थे। लेकिन समय के साथ गंगा का प्रदूषण बढ़ता ही गया।
गंगा का उद्गम हिमालय की ऊंची बर्फीली चोटियों में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से होता है। यहां "गौमुख" नामक स्थान से निकलने वाली शीतल और स्वच्छ जलधारा को देखकर सहज ही समझा जा सकता है कि क्यों इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। जैसे-जैसे यह धारा नीचे की ओर बढ़ती है, इसमें हिमालय की अन्य छोटी धाराओं का जल भी मिल जाता है, जिससे यह एक विशाल नदी का रूप ले लेती है। लेकिन शोध बताते हैं कि अब हिमालय में भी गंगा का जल प्रदूषित होने लगा है, और नीचे उतरते ही स्थिति और गंभीर हो जाती है। कानपुर, जो भारत के विशाल चमड़ा उद्योग का केंद्र है, गंगा के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक है।
गंगा का पानी सिंचाई और पीने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। गंगा बेसिन भारत के कुल क्षेत्रफल का 10 लाख वर्ग किलोमीटर (3.9 लाख वर्ग मील) कवर करता है और इसमें देश की 40% आबादी निवास करती है। खेती के लिए गंगा का अंधाधुंध दोहन भी एक बड़ी समस्या है। किसान बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग करते हैं, जिससे भूमिगत जलस्तर तेजी से गिर रहा है। कुछ क्षेत्रों में गंगा की सहायक नदियां सूखने लगी हैं और नदी के कुछ हिस्से शुष्क मौसम में खुले नाले जैसे दिखने लगे हैं।
‘नमामि गंगे’ परियोजना का सच
गंगा सफाई के लिए 2014 में ‘नमामि गंगे’ परियोजना शुरू की गई, जिसमें अब तक लगभग 40,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 450 से अधिक परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें सीवेज व्यवस्था को दुरुस्त करना, जल शोधन संयंत्र स्थापित करना, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को संरक्षित करना और गंगा घाटों की सफाई जैसे कार्य शामिल थे। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद गंगा की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।
'नमामि गंगे' परियोजना के तहत गंगा किनारे बसे 1,604 गांवों में 3,88,340 शौचालयों का निर्माण किया गया और इन्हें खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त, गंगा के किनारे 1.3 करोड़ पौधों का रोपण किया गया। 170 सीवेज परियोजनाओं पर काम जारी है, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में हैं। हालांकि, इनमें से केवल 56 परियोजनाएं पूरी हो सकी हैं, जो कुल का मात्र 33% है।
गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले 1,109 औद्योगिक इकाइयों की पहचान की गई है। इनमें से केवल 29% इकाइयों को दंडित किया गया है। गंगा में हर दिन औद्योगिक कचरे के रूप में 500 मिलियन लीटर जहरीला पानी गिराया जा रहा है। 2023 में हुई जांच में पाया गया कि कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों में चमड़ा और रसायन उद्योग गंगा प्रदूषण के मुख्य स्रोत बने हुए हैं।
गंगा को साफ करने के लिए 2014 से अब तक 37,000 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है। इस राशि में से लगभग 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन परिणामस्वरूप गंगा के पानी की गुणवत्ता में केवल 20% सुधार दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की रिपोर्ट के अनुसार, नदी के कई हिस्सों में अब भी जैविक ऑक्सीजन की मांग (BOD) का स्तर मानक से चार गुना अधिक है।
गंगा किनारे बसे गांवों में 60% लोगों की आजीविका सीधे या परोक्ष रूप से नदी पर निर्भर है। स्वच्छता अभियानों के कारण 50,000 से अधिक परिवारों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है। लेकिन अब तक इनका पुनर्वास सुनियोजित तरीके से नहीं हो पाया है।
हाल ही में आई रिपोर्टों के अनुसार, गंगा के कई हिस्सों में पानी की गुणवत्ता में आंशिक सुधार हुआ है। दिल्ली के आसपास की नदियों में गिरने वाले गंदे पानी के लिए 15 नई परियोजनाओं की शुरुआत की गई है। हालांकि, गंगा में जहरीले कचरे की मात्रा में केवल 12% की कमी आई है। गंगा की सफाई के लिए 'स्वच्छ गंगा कोष' के माध्यम से स्थानीय नागरिकों और प्रवासी भारतीयों ने 500 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी स्मृति चिह्नों की नीलामी से मिले 16.53 करोड़ रुपये इसी कोष में जमा किए।
आंकड़े बताते हैं कि गंगा को बचाने के प्रयास अभी भी पर्याप्त नहीं हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में धीमी गति, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस समस्या को और जटिल बना रही है। गंगा की सफाई केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है। हर भारतीय को जागरूक होकर गंगा की रक्षा में अपनी भूमिका निभानी होगी। जब तक प्रदूषण के स्रोतों को जड़ से समाप्त नहीं किया जाता और जल शोधन संयंत्रों की क्षमता में वृद्धि नहीं होती, तब तक गंगा का पुनर्जीवन अधूरा रहेगा। गंगा को फिर से जीवनदायिनी बनाने के लिए सभी को भगीरथ प्रयास करने की आवश्यकता है।
कैसी चल रही हैं महाकुंभ की तैयारियां?
प्रयागराज शहर के भीतर प्रवेश करते ही चाहे जिस दिशा में जाइए, आपका सामना टूटी-फूटी सड़कों, सड़कों के किनारे टूटे-फूटे मकानों और दुकानों, आस-पास बेतरतीब बिखरे पड़े मलबे और ऊपर उड़ते धूल के गुबार से होगा। तमाम इलाक़ों को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे यहां हाल-फिलहाल में भूकंप जैसी कोई बड़ी आपदा आई हो। सड़कों के किनारे ‘सब कुछ उजड़ जाने’ का ग़म मनाते और उस पर चर्चा करते लोग भी मिलेंगे। शहर के लोग यह दृश्य पिछले एक साल से देख रहे हैं।
जिस तरह इलाहाबाद अब प्रयागराज हो गया है, उसी तरह 12 साल के अंतराल पर आने वाला कुंभ बदलकर महाकुंभ हो गया है। लेकिन शहर को सुंदर बनाने के लिए तोड़-फोड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 30 नवंबर की डेडलाइन ख़त्म होने के बावजूद अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है। गंगा किनारे ‘तंबुओं का शहर’ बसना शुरू हो गया है, लेकिन रेतीली धरती पर बने उस अस्थायी शहर को प्राणवायु देने वाले इस स्थायी शहर की सांस जैसे धूल के गुबार में अटकी हुई है।
प्रयागराज शहर का कोई इलाक़ा, कोई मोहल्ला, कोई मुख्य सड़क ऐसी नहीं है जहां तोड़-फोड़ न हुई हो। बैरहना, रामबाग, लीडर रोड, हिम्मतगंज, करैली, ख़ुल्दाबाद, तेलियरगंज जैसे कई इलाक़ों में तोड़-फोड़ का आलम यह है कि इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे यहां भूकंप आया हो और उसकी वजह से तबाही मची हो। सुंदरीकरण के इस कार्य में विकास प्राधिकरण, नगर निगम समेत कई विभाग लगे हुए हैं और बताया यह भी जा रहा है कि इनके बीच तालमेल न होने के कारण भी काम में देरी हो रही है।
वहीं प्रयागराज के सांसद नीरज त्रिपाठी कहते हैं, "इस पूरी प्रक्रिया में जनप्रतिनिधियों की घोर उपेक्षा की गई है। महाकुंभ तक यह सारे काम पूरे हो जाएं, यह तो असंभव दिख रहा है।"
प्रयागराज में 12 किलोमीटर लंबे गंगा रिवर फ्रंट के निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। दावा किया जा रहा है कि यह परियोजना प्रयागराज के रसूलाबाद घाट से नागवासुकी मंदिर, सूरदास से छतनाग और कर्जन ब्रिज के समीप महावीर पुरी तक फैलेगी। इसके निर्माण का उद्देश्य न केवल तीर्थयात्रियों के लिए कुंभ जैसे भव्य आयोजनों तक पहुंच को आसान बनाना है, बल्कि प्रयागराज को एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना भी है।
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता (बाढ़ नियंत्रण) डीएन शुक्ल ने बताया कि यह परियोजना बाहरी यातायात को शहर में प्रवेश किए बिना कुंभ मेला स्थल तक पहुंचाने में मदद करेगी। इससे तीर्थयात्रियों को शहर के अंदर के भारी ट्रैफिक जाम से बचने में सहूलियत होगी। यह रिवर फ्रंट लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर बनाया जा रहा है। इसे आधुनिक तकनीकों जैसे इंटरलॉकिंग, बोल्डर क्रेट और स्लोप पिचिंग का उपयोग कर तैयार किया जा रहा है। यह रिवर फ्रंट न केवल एक आदर्श सड़क होगी, बल्कि इसे खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जाएगा। किनारे बेंच, आकर्षक सेल्फी प्वाइंट और मनोरम स्थलों का निर्माण किया जाएगा, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।
‘मोदी और गंगा की सफाई का वादा’
‘गंगा के तीरे’ नामक चर्चित पुस्तक के लेखक और पूर्वांचल की माटी से जुड़े दिल्ली के जाने-माने पत्रकार अमरेंद्र राय महाकुंभ मेले की तैयारियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं, विदेशों में भी चर्चा हो रही है। लेकिन यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे, तो यह देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं देगा। सवाल यह भी उठेगा कि इतनी महत्वाकांक्षी और भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को स्वच्छ बनाने में हम अब तक क्यों असफल रहे हैं।"
आखिर गंगा को प्रदूषित करने के असली गुनहगार कौन हैं? अमरेंद्र राय कहते हैं, "सरकारों को समझना होगा कि गंगा को केवल साफ करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसकी निर्मलता और अविरलता बनाए रखने के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना भी जरूरी है। इससे देश की अन्य नदियों को भी प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं। गंगा की सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन स्थिति जस की तस है। इसके लिए सभी पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकारें जिम्मेदार हैं।"
वे आगे कहते हैं, "महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन के नजदीक आने के बावजूद गंगा की स्वच्छता के सवाल अब भी अनसुलझे हैं। यह न केवल पर्यावरण, बल्कि श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था और स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौती है। गंगा को बचाने की जिम्मेदारी अब सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। यह समय है कि नदी को बचाने के लिए ठोस और समग्र प्रयास किए जाएं। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था और जीवन रेखा है। मेला-ठेला नहीं, गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। ये मेले बीजेपी को लाभ पहुंचाते हैं, इसीलिए इस बार महाकुंभ की इतनी धूम है।"
‘गंगा और मोदी का वादा’
"महाकुंभ जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन पर सरकार भले ही लाभ को ध्यान में रखकर न ख़र्च करती हो, लेकिन अगर सरकारी आंकड़े ख़र्च की तुलना में आय ज़्यादा दिखाते हैं, तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार के दोनों हाथ में लड्डू होंगे।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान गंगा को साफ करने का वादा किया था। उनकी सरकार ने इसे तीन वर्षों में पूरा करने का "महत्वाकांक्षी" लक्ष्य भी तय किया था। हालांकि, जमीनी स्तर पर स्थिति बहुत अधिक नहीं बदली है। गंगा अब भी भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बनी हुई है।
नदी विशेषज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता सौरभ सिंह कहते हैं, "गंगा को लेकर यह भ्रम है कि वह केवल पापों को नहीं, बल्कि प्रदूषण और कचरे को भी शुद्ध कर सकती है। गंगा हमारे पापों को तो शुद्ध कर सकती है, लेकिन हमारे कचरे और प्रदूषण को नहीं। गंगा को स्नान कराने से पहले हमें खुद गंगा को स्नान कराना होगा। भारत के पास गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए संसाधन, तकनीक और विशेषज्ञता है। जो चीज कमी है, वह है ईमानदारी और समर्पण।"
वे आगे कहते हैं, "सरकार ने कई फैक्ट्रियों को बंद कराया है और प्रदूषण नियंत्रण नियमों को सख्त किया है। फिर भी, गंगा का प्रदूषण भयावह बना हुआ है। महाकुंभ से पहले सरकार को चाहिए कि वह ऐसा इंतजाम करे कि जो श्रद्धालु डुबकी लगाने आएं, वो मलजल में नहीं, साफ पानी में स्नान करें।"
दुनिया का सबसे बड़ा मेला
प्रयागराज के संगम स्थल का हाल यह है कि यहां जो भी निर्माण कार्य चल रहा है, उसकी गुणवत्ता काफी घटिया है। अभी तक आधे-अधूरे काम हो पाए हैं। जगह-जगह मिट्टी के ढेर लगे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है, "दिसंबर से पहले ही सभी काम पूरे कर लिए जाएंगे। महाकुंभ के दौरान सफाई के लिए 10,000 कर्मचारियों की तैनाती की जाएगी। मेला क्षेत्र में 1.5 लाख से अधिक शौचालय बनाए जाएंगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 7,000 से अधिक बसें चलाई जाएंगी।"
"मेला क्षेत्र में तीन पुलिस लाइन, तीन महिला थाने और 10 पुलिस चौकियां स्थापित की जाएंगी। एयरपोर्ट से लेकर मेला क्षेत्र तक वीवीआईपी कॉरिडोर बनाया जाएगा। विशेष स्नान पर्वों के दौरान कोई वीआईपी मूवमेंट नहीं होगा, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। महाकुंभ के दौरान उत्तर प्रदेश में बिजनौर से बलिया तक जीरो डिस्चार्ज नीति लागू की जाएगी, जिससे नदियों में किसी भी प्रकार का प्रदूषण न फैले। इस दौरान उद्योगों को किसी भी स्थिति में अपना अपशिष्ट गंगा-यमुना में प्रवाहित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
महाकुंभ के मेला अधिकारी विजय किरण आनंद के मुताबिक, "प्रयागराज का सुंदरीकरण किया जा रहा है, जिसमें 38 प्रमुख मार्गों पर लैंडस्केपिंग, हॉर्टिकल्चर और थीमैटिक डेवलपमेंट का कार्य शामिल है। शहर के 40 चौराहों की री-डिजाइनिंग की जा रही है, और 67.5 किलोमीटर के मार्ग पर थीमैटिक लाइटिंग लगाई जा रही है। इसके अतिरिक्त, लगभग 374 पार्कों का जीर्णोद्धार, 316 किलोमीटर सड़क मार्गों का नवीनीकरण, और 2.71 लाख पौधारोपण की योजना है। शहर की शोभा बढ़ाने के लिए चार प्रमुख मार्गों पर थीमैटिक गेट्स और लगभग 1,470 साइनेज लगाए जाएंगे।"
"इस बार महाकुंभ मेला क्षेत्र को 4,000 हेक्टेयर में विस्तार किया जा रहा है, और 1,800 हेक्टेयर में पार्किंग की व्यवस्था होगी। मेला क्षेत्र को 25 सेक्टरों में बांटते हुए 30 पंटून ब्रिज, फूड जोन, थीमैटिक लाइटिंग और कई सांस्कृतिक स्थलों जैसे ज्योर्तिर्लिंग पार्क, स्टेट पवेलियन और कन्वेंशन हॉल का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए 1.5 लाख टॉयलेट्स और यूरिनल्स लगाए जाएंगे, जिनकी सफाई के लिए 10,000 से अधिक सफाई कर्मचारी तैनात रहेंगे। आईसीटी आधारित मॉनिटरिंग से पूरे मेला क्षेत्र की सफाई व्यवस्था पर नजर रखी जाएगी। गंगा स्नान पर्वों के मद्देनजर संगम स्थल पर रिवर फ्रंट का निर्माण किया जा रहा है।"
गंगा और यमुना नदी के इन घाटों का कायाकल्प जल निगम के कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन डिवीजन द्वारा किया जा रहा है। परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर रोहित कुमार राणा के अनुसार, "गंगा घाटों के निर्माण कार्य पर 11.01 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। गंगा और यमुना नदी के जिन सात घाटों का पुनरोद्धार किया जा रहा है, उनमें बलुआ घाट, कालीघाट, रसूलाबाद घाट, छतनाग घाट (झूंसी), नागेश्वर घाट (झूंसी), मौजगिरी घाट और पुराना अरैल घाट शामिल हैं। 30 नवंबर 2024 तक इन सभी घाटों पर सौंदर्यीकरण और सुविधाओं का विस्तार कार्य पूरा कर लिया जाएगा।"
स्नान की प्रमुख तारीखें
14 जनवरी: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
29 जनवरी: मौनी अमावस्या (दूसरा शाही स्नान)
03 फरवरी: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
अन्य महत्वपूर्ण स्नान पर्व:
13 जनवरी: पौष पूर्णिमा
12 फरवरी: माघी पूर्णिमा
26 फरवरी: महाशिवरात्रि
(विजय विनीत, बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रयागराज से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के किनारे रेतीली ज़मीन पर बसने वाले अस्थायी महाकुंभ की तैयारियों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि इस पूरी व्यवस्था के लिए सरकार ने अरबों रुपये खर्च किए होंगे। 13 जनवरी 2025 से होने जा रहे महाकुंभ की तैयारियों के शोर-शराबे के बीच यह सवाल उठता है कि इतने बड़े आयोजन और खर्च से सरकार को आखिर क्या हासिल होता है? श्रद्धालु, जो संगम तट पर स्नान करके स्वयं को पवित्र मानते हैं, क्या यह जानते हैं कि प्रयागराज में संगम का पानी कितना स्वच्छ है? गंगा-यमुना का वह पानी क्या स्नान और आचमन के योग्य है?
हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन सवालों पर योगी सरकार से जवाब मांगा, तो कई बातें उजागर हुईं। यह स्पष्ट हुआ कि महाकुंभ 2025 के दौरान प्रयागराज में गंगा और यमुना का पानी आचमन तो दूर, स्नान के योग्य भी नहीं रहेगा। एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 6 नवंबर 2024 को दिए आदेश में कहा कि प्रयागराज में गंगा का जल अब आचमन योग्य नहीं रह गया है। यह भी कहा जा सकता है कि गंगा की सफाई के लिए चलाई जा रही ‘नमामि गंगे’ परियोजना विफल साबित हो रही है और नदी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
गंगा-यमुना की स्थिति और आंकड़े
एनजीटी की विशेष पीठ ने गंगा के प्रदूषण और उसकी सफाई पर समीक्षा करते हुए पाया कि प्रयागराज में करीब 128.28 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) मलजल बिना उपचार के सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। शहर से प्रतिदिन 468.28 एमएलडी सीवेज निकलता है, जबकि उपचार की क्षमता सिर्फ 340 एमएलडी है। 25 खुले नाले गंगा और 15 खुले नाले यमुना में सीवेज का गंदा पानी गिरा रहे हैं।
एनजीटी ने पाया कि प्रयागराज में सीवेज शोधन की 128 एमएलडी की कमी है। इस स्थिति में, महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने वाले श्रद्धालु अनजाने में प्रदूषित जल में स्नान करेंगे। पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने इस पर असंतोष प्रकट किया। सरकारी वकीलों से कहा गया कि गंगा-यमुना का जल न स्नान के योग्य है, न आचमन के योग्य। लेकिन इस जानकारी को जनता तक पहुंचाने के लिए न तो कोई नोटिस चस्पा किया गया और न ही अखबारों में प्रकाशित किया गया।
पिछली सुनवाई में एनजीटी ने गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक्शन प्लान मांगा था। लेकिन न तो कोई संतोषजनक जवाब दिया गया और न ही ठोस योजना प्रस्तुत की गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय अधिकारी ने बताया कि नगर निगम प्रयागराज पर 9 अगस्त को 129 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। हालांकि, जब एनजीटी ने पूछा कि यह जुर्माना वसूला गया या नहीं, तो इस पर कोई जवाब नहीं मिला।
चौंकाने वाले तथ्य
एनजीटी की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज के 25 अनटैप्ड नालों से 128.28 एमएलडी मलजल गंगा में और 15 अनटैप्ड नालों से यमुना में बहाया जा रहा है। शहर के 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से केवल 9 चालू हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश जल उपचार मानकों का पालन नहीं कर रहे।
गंगा किनारे 11 जिलों के 16 कस्बों में कुल 41 एसटीपी डिज़ाइन किए गए हैं, जिनमें से 6 अब तक चालू नहीं हो सके हैं। 35 एसटीपी में से भी अधिकांश मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं।
एनजीटी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम है, लेकिन 13 एसटीपी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कानपुर में बनियापुर का 15 एमएलडी क्षमता वाला एसटीपी तीन साल से तैयार होने के बावजूद चालू नहीं किया गया है। यह कानपुर के सीवेज उपचार में बड़ी बाधा है। फर्रुखाबाद के दो एसटीपी पूरी तरह से बंद हैं, जिससे वहां का मलजल भी सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है।
गंगा किनारे डिज़ाइन की गई कुल क्षमता 1337.96 एमएलडी है, लेकिन उपलब्ध उपयोगिता क्षमता सिर्फ 1116.24 एमएलडी (85.8 फीसदी) है। इसका मतलब है कि सीवेज उपचार में 221.72 एमएलडी का बड़ा अंतर बना हुआ है।
एनजीटी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 41 एसटीपी में से 23 एसटीपी फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं। इन एसटीपी से उपचारित पानी में बैक्टीरिया की संख्या अनुमत सीमा से अधिक है, जो जल की गुणवत्ता के लिए घातक है। केवल 12 एसटीपी ही ऐसे हैं जो फीकल कॉलिफॉर्म मानकों का पालन कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 34 एसटीपी में डिसइन्फेक्शन सिस्टम (क्लोरीनेशन) मौजूद है, जो जल को बैक्टीरिया मुक्त करता है। लेकिन 13 एसटीपी अपनी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है।
गंगा सफाई पर संशय बरकरार?
एनजीटी के समक्ष पेश की गई सरकार की रिपोर्ट बताती है कि निर्माणाधीन और परीक्षणाधीन 11 एसटीपी के चालू होने से सीवेज उपचार की क्षमता में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन यह कब तक होगा, इस पर संशय है। गंगा की स्वच्छता के लिए एसटीपी की गुणवत्ता सुधारना, अनटैप्ड नालों को रोकना और सभी सीवेज का उपचार सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल 326 नालों में से 247 नाले अब भी अविकसित (अनटैप्ड) हैं। ये नाले प्रतिदिन 3513.16 एमएलडी गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल गंगा के प्रदूषण को बढ़ा रही है, बल्कि पूरे नदी तंत्र की जैव विविधता और जल गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचा रही है।
एनजीटी ने 6 नवंबर 2024 की सुनवाई में यह भी पाया था कि अयोध्या में भी सीवेज प्रबंधन की स्थिति बेहद खराब है। गंगा के प्रदूषण से जूझ रहे अन्य जिलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। बिना उपचारित सीवेज और अविकसित नालों की समस्या इन क्षेत्रों में गंगा और सहायक नदियों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही है।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक जिले के नालों की स्थिति, उनसे उत्पन्न सीवेज की मात्रा और इन्हें सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़ने की योजनाओं का विवरण एक शपथ पत्र के रूप में प्रस्तुत करें। इस शपथ पत्र में निम्नलिखित विवरण मांगे गए हैं:
1- प्रत्येक जिले में मौजूद नालों की वर्तमान स्थिति।
2- नालों से उत्पन्न सीवेज की दैनिक मात्रा।
3- सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़े जाने वाले नालों की योजनाएं।
4- इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भूमि आवंटन, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, और समयसीमा।
इस गंभीर स्थिति को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह के भीतर इस समस्या से निपटने के फौरी उपायों के साथ हलफनामा दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी, 2025 को तय की गई है।
एनजीटी ने यूपी सरकार को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि शपथ पत्र में सीवेज उपचार संयंत्रों के निर्माण और संचालन की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाएं। साथ ही, यह भी बताया जाए कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
एनजीटी ने कहा कि गंगा और यमुना में सीवेज का प्रवाह पूरी तरह से बंद होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नदी का जल न केवल स्नान योग्य बल्कि पीने योग्य भी हो। इसके अलावा, स्नान घाटों पर नदी की जल गुणवत्ता को डिस्प्ले बोर्ड के जरिए श्रद्धालुओं को दिखाया और सूचित करना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए। महाकुंभ जैसे आयोजन से पहले यह कदम श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य और धार्मिक विश्वास की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
बढ़ता प्रदूषण, चिंता का सबब
गंगा और यमुना नदियों से भले ही करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है, लेकिन उनकी सहायक नदियों में लाखों लीटर गंदा पानी हर दिन प्रवाहित हो रहा है, जो अंततः गंगा और यमुना को प्रदूषित कर रहा है। जो श्रद्धालु गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र समझते हैं, वे शायद यह नहीं जानते कि उसी शहर का मल-जल बगैर शोधन के इस नदी में समाहित हो रहा है। गंगा का जल आचमन लायक भी नहीं बचा है।
प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती नदी का संगम होता है, जिसे कुंभ मेले के दौरान लाखों लोग देखने और स्नान करने आते हैं। हिंदू मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने आते हैं और इसके पवित्र जल को बोतलों और डिब्बों में भरकर ले जाते हैं। हालांकि, बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंता है, लेकिन आस्थावानों के लिए गंगा का हर रूप पवित्र ही है।
महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा। यह आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। महाकुंभ के दौरान गंगा, यमुना और पौराणिक गाथाओं में वर्णित सरस्वती के संगम पर करोड़ों श्रद्धालु स्नान करेंगे। हिंदुओं का मानना है कि ऐसा करने से वे अपने पापों को धो देंगे और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाते हुए इस स्नान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में मदद मिलेगी।
प्रयागराज के कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 साल पर होता है। हर छह साल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। 2019 में मेला क्षेत्र 3200 हेक्टेयर में फैला था, जबकि इस बार इसका विस्तार 4000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में किया जाएगा।
गंगा की स्वच्छता और पुनर्जीवन से जुड़ा मुद्दा भारत की सबसे बड़ी पर्यावरणीय और सांस्कृतिक चुनौतियों में से एक है। आंकड़ों के आधार पर अगर स्थिति का आकलन किया जाए, तो गंगा की वर्तमान स्थिति कई मोर्चों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। गंगा के तट पर बसे 97 शहरों में लगभग 45 करोड़ लोग निवास करते हैं। इन शहरों से हर दिन 3,000 मिलियन लीटर प्रदूषित जल गंगा में गिराया जाता है। जबकि गंगा को साफ करने के लिए स्थापित जल शोधन संयंत्रों की क्षमता केवल 1,200 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। इसका मतलब है कि गंगा में गिरने वाले गंदे पानी का 60 प्रतिशत हिस्सा बिना शोधन के सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
दावा: नहाने लायक है गंगा का पानी
गंगा निर्मलीकरण के मामले में एक तरफ जहां एनजीटी ने सरकार की नीति और नीयत पर ढेरों सवाल खड़े किए हैं, वहीं यूपी के प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने दावा किया है कि गंगा का पानी नहाने लायक है। विभाग के अनुसार, गंगा का अधिकांश भाग स्नान योग्य जल के मानकों पर खरा उतरता है। इसमें पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), फीकल कॉलिफॉर्म (एफसी) और फीकल स्ट्रेप्टोकोकी (एफएस) जैसे बुनियादी मानक शामिल हैं। हालांकि, फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर और कन्नौज से कानपुर के बीच गंगा का जल इन मानकों को पूरा नहीं कर पा रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यह जानकारी अपनी 22 अक्टूबर, 2024 की रिपोर्ट में दी है, जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 13 सितंबर, 2024 को दिए गए निर्देश के आधार पर तैयार की गई थी। यह रिपोर्ट गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में उठाए गए कदमों की स्थिति स्पष्ट करती है।
सीपीसीबी ने 7 अगस्त, 2024 को एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गंगा बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के मानकों को पूरा नहीं करती। रिपोर्ट में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया, जिसमें यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 114 में से 97 स्थान और बिहार में 96 में से सभी स्थान जल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते।
बरेली में तीन नाले रामगंगा में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 31.14 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 18.8 टन प्रतिदिन (टीपीडी) दर्ज किया गया।
बुलंदशहर में बारह नाले काली नदी में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 12.9 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 20.7 टीपीडी पाया गया।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थिति
उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच सीपीसीबी की निगरानी में यह पाया गया कि इनमें से केवल 35 एसटीपी सक्रिय थे, जबकि 6 एसटीपी चालू नहीं थे।
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह कुंभ मेले के दौरान गंगा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध प्रयास तेज करे। यह भी कहा गया कि गंगा और यमुना में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सीवेज की रोकथाम और जल गुणवत्ता सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। गंगा का जल केवल श्रद्धालुओं के स्नान के लिए नहीं, बल्कि पीने के लिए भी उपयोग में आता है। ऐसे में सीवेज प्रबंधन और जल शुद्धिकरण के लिए प्रभावी योजनाएं लागू करना नितांत आवश्यक है।
एनजीटी ने यह भी कहा है कि गंगा के बिना भारत की सांस्कृतिक विरासत अधूरी है। गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है और यह अपनी बाढ़भूमि पर निवास करने वाले देश की एक तिहाई जनसंख्या का जीवन-आधार है। गंगा हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र नदी है और इसे "मां गंगा" के रूप में पूजा जाता है। यह नदी हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है। ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद और वाराणसी जैसे कई धार्मिक नगर इसके किनारे बसे हुए हैं। गंगा की स्वच्छता सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और स्वास्थ्य का प्रश्न भी है।
मोदी सरकार की चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद गंगा की सफाई को अपनी प्राथमिकता घोषित किया। उन्होंने "नमामि गंगे" परियोजना के तहत 5 वर्षों में $3 बिलियन (₹25,000 करोड़) खर्च करने का लक्ष्य रखा। यह योजना न केवल गंगा की सफाई का प्रयास है, बल्कि भारत को गरीबी से निकालकर एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के प्रतीक के रूप में भी प्रस्तुत की गई। हालांकि, गंगा की सफाई को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों ने भी प्रयास किए हैं। 1980 के दशक में राजीव गांधी सरकार ने गंगा एक्शन प्लान के तहत बड़े पैमाने पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए थे। लेकिन समय के साथ गंगा का प्रदूषण बढ़ता ही गया।
गंगा का उद्गम हिमालय की ऊंची बर्फीली चोटियों में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से होता है। यहां "गौमुख" नामक स्थान से निकलने वाली शीतल और स्वच्छ जलधारा को देखकर सहज ही समझा जा सकता है कि क्यों इसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। जैसे-जैसे यह धारा नीचे की ओर बढ़ती है, इसमें हिमालय की अन्य छोटी धाराओं का जल भी मिल जाता है, जिससे यह एक विशाल नदी का रूप ले लेती है। लेकिन शोध बताते हैं कि अब हिमालय में भी गंगा का जल प्रदूषित होने लगा है, और नीचे उतरते ही स्थिति और गंभीर हो जाती है। कानपुर, जो भारत के विशाल चमड़ा उद्योग का केंद्र है, गंगा के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक है।
गंगा का पानी सिंचाई और पीने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। गंगा बेसिन भारत के कुल क्षेत्रफल का 10 लाख वर्ग किलोमीटर (3.9 लाख वर्ग मील) कवर करता है और इसमें देश की 40% आबादी निवास करती है। खेती के लिए गंगा का अंधाधुंध दोहन भी एक बड़ी समस्या है। किसान बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग करते हैं, जिससे भूमिगत जलस्तर तेजी से गिर रहा है। कुछ क्षेत्रों में गंगा की सहायक नदियां सूखने लगी हैं और नदी के कुछ हिस्से शुष्क मौसम में खुले नाले जैसे दिखने लगे हैं।
‘नमामि गंगे’ परियोजना का सच
गंगा सफाई के लिए 2014 में ‘नमामि गंगे’ परियोजना शुरू की गई, जिसमें अब तक लगभग 40,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 450 से अधिक परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें सीवेज व्यवस्था को दुरुस्त करना, जल शोधन संयंत्र स्थापित करना, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को संरक्षित करना और गंगा घाटों की सफाई जैसे कार्य शामिल थे। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद गंगा की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।
'नमामि गंगे' परियोजना के तहत गंगा किनारे बसे 1,604 गांवों में 3,88,340 शौचालयों का निर्माण किया गया और इन्हें खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त, गंगा के किनारे 1.3 करोड़ पौधों का रोपण किया गया। 170 सीवेज परियोजनाओं पर काम जारी है, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में हैं। हालांकि, इनमें से केवल 56 परियोजनाएं पूरी हो सकी हैं, जो कुल का मात्र 33% है।
गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले 1,109 औद्योगिक इकाइयों की पहचान की गई है। इनमें से केवल 29% इकाइयों को दंडित किया गया है। गंगा में हर दिन औद्योगिक कचरे के रूप में 500 मिलियन लीटर जहरीला पानी गिराया जा रहा है। 2023 में हुई जांच में पाया गया कि कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों में चमड़ा और रसायन उद्योग गंगा प्रदूषण के मुख्य स्रोत बने हुए हैं।
गंगा को साफ करने के लिए 2014 से अब तक 37,000 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है। इस राशि में से लगभग 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन परिणामस्वरूप गंगा के पानी की गुणवत्ता में केवल 20% सुधार दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की रिपोर्ट के अनुसार, नदी के कई हिस्सों में अब भी जैविक ऑक्सीजन की मांग (BOD) का स्तर मानक से चार गुना अधिक है।
गंगा किनारे बसे गांवों में 60% लोगों की आजीविका सीधे या परोक्ष रूप से नदी पर निर्भर है। स्वच्छता अभियानों के कारण 50,000 से अधिक परिवारों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है। लेकिन अब तक इनका पुनर्वास सुनियोजित तरीके से नहीं हो पाया है।
हाल ही में आई रिपोर्टों के अनुसार, गंगा के कई हिस्सों में पानी की गुणवत्ता में आंशिक सुधार हुआ है। दिल्ली के आसपास की नदियों में गिरने वाले गंदे पानी के लिए 15 नई परियोजनाओं की शुरुआत की गई है। हालांकि, गंगा में जहरीले कचरे की मात्रा में केवल 12% की कमी आई है। गंगा की सफाई के लिए 'स्वच्छ गंगा कोष' के माध्यम से स्थानीय नागरिकों और प्रवासी भारतीयों ने 500 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी स्मृति चिह्नों की नीलामी से मिले 16.53 करोड़ रुपये इसी कोष में जमा किए।
आंकड़े बताते हैं कि गंगा को बचाने के प्रयास अभी भी पर्याप्त नहीं हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में धीमी गति, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस समस्या को और जटिल बना रही है। गंगा की सफाई केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है। हर भारतीय को जागरूक होकर गंगा की रक्षा में अपनी भूमिका निभानी होगी। जब तक प्रदूषण के स्रोतों को जड़ से समाप्त नहीं किया जाता और जल शोधन संयंत्रों की क्षमता में वृद्धि नहीं होती, तब तक गंगा का पुनर्जीवन अधूरा रहेगा। गंगा को फिर से जीवनदायिनी बनाने के लिए सभी को भगीरथ प्रयास करने की आवश्यकता है।
कैसी चल रही हैं महाकुंभ की तैयारियां?
प्रयागराज शहर के भीतर प्रवेश करते ही चाहे जिस दिशा में जाइए, आपका सामना टूटी-फूटी सड़कों, सड़कों के किनारे टूटे-फूटे मकानों और दुकानों, आस-पास बेतरतीब बिखरे पड़े मलबे और ऊपर उड़ते धूल के गुबार से होगा। तमाम इलाक़ों को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे यहां हाल-फिलहाल में भूकंप जैसी कोई बड़ी आपदा आई हो। सड़कों के किनारे ‘सब कुछ उजड़ जाने’ का ग़म मनाते और उस पर चर्चा करते लोग भी मिलेंगे। शहर के लोग यह दृश्य पिछले एक साल से देख रहे हैं।
जिस तरह इलाहाबाद अब प्रयागराज हो गया है, उसी तरह 12 साल के अंतराल पर आने वाला कुंभ बदलकर महाकुंभ हो गया है। लेकिन शहर को सुंदर बनाने के लिए तोड़-फोड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 30 नवंबर की डेडलाइन ख़त्म होने के बावजूद अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है। गंगा किनारे ‘तंबुओं का शहर’ बसना शुरू हो गया है, लेकिन रेतीली धरती पर बने उस अस्थायी शहर को प्राणवायु देने वाले इस स्थायी शहर की सांस जैसे धूल के गुबार में अटकी हुई है।
प्रयागराज शहर का कोई इलाक़ा, कोई मोहल्ला, कोई मुख्य सड़क ऐसी नहीं है जहां तोड़-फोड़ न हुई हो। बैरहना, रामबाग, लीडर रोड, हिम्मतगंज, करैली, ख़ुल्दाबाद, तेलियरगंज जैसे कई इलाक़ों में तोड़-फोड़ का आलम यह है कि इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे यहां भूकंप आया हो और उसकी वजह से तबाही मची हो। सुंदरीकरण के इस कार्य में विकास प्राधिकरण, नगर निगम समेत कई विभाग लगे हुए हैं और बताया यह भी जा रहा है कि इनके बीच तालमेल न होने के कारण भी काम में देरी हो रही है।
वहीं प्रयागराज के सांसद नीरज त्रिपाठी कहते हैं, "इस पूरी प्रक्रिया में जनप्रतिनिधियों की घोर उपेक्षा की गई है। महाकुंभ तक यह सारे काम पूरे हो जाएं, यह तो असंभव दिख रहा है।"
प्रयागराज में 12 किलोमीटर लंबे गंगा रिवर फ्रंट के निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। दावा किया जा रहा है कि यह परियोजना प्रयागराज के रसूलाबाद घाट से नागवासुकी मंदिर, सूरदास से छतनाग और कर्जन ब्रिज के समीप महावीर पुरी तक फैलेगी। इसके निर्माण का उद्देश्य न केवल तीर्थयात्रियों के लिए कुंभ जैसे भव्य आयोजनों तक पहुंच को आसान बनाना है, बल्कि प्रयागराज को एक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना भी है।
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता (बाढ़ नियंत्रण) डीएन शुक्ल ने बताया कि यह परियोजना बाहरी यातायात को शहर में प्रवेश किए बिना कुंभ मेला स्थल तक पहुंचाने में मदद करेगी। इससे तीर्थयात्रियों को शहर के अंदर के भारी ट्रैफिक जाम से बचने में सहूलियत होगी। यह रिवर फ्रंट लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर बनाया जा रहा है। इसे आधुनिक तकनीकों जैसे इंटरलॉकिंग, बोल्डर क्रेट और स्लोप पिचिंग का उपयोग कर तैयार किया जा रहा है। यह रिवर फ्रंट न केवल एक आदर्श सड़क होगी, बल्कि इसे खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जाएगा। किनारे बेंच, आकर्षक सेल्फी प्वाइंट और मनोरम स्थलों का निर्माण किया जाएगा, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।
‘मोदी और गंगा की सफाई का वादा’
‘गंगा के तीरे’ नामक चर्चित पुस्तक के लेखक और पूर्वांचल की माटी से जुड़े दिल्ली के जाने-माने पत्रकार अमरेंद्र राय महाकुंभ मेले की तैयारियों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं, विदेशों में भी चर्चा हो रही है। लेकिन यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे, तो यह देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं देगा। सवाल यह भी उठेगा कि इतनी महत्वाकांक्षी और भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को स्वच्छ बनाने में हम अब तक क्यों असफल रहे हैं।"
आखिर गंगा को प्रदूषित करने के असली गुनहगार कौन हैं? अमरेंद्र राय कहते हैं, "सरकारों को समझना होगा कि गंगा को केवल साफ करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसकी निर्मलता और अविरलता बनाए रखने के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना भी जरूरी है। इससे देश की अन्य नदियों को भी प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं। गंगा की सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन स्थिति जस की तस है। इसके लिए सभी पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकारें जिम्मेदार हैं।"
वे आगे कहते हैं, "महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन के नजदीक आने के बावजूद गंगा की स्वच्छता के सवाल अब भी अनसुलझे हैं। यह न केवल पर्यावरण, बल्कि श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था और स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौती है। गंगा को बचाने की जिम्मेदारी अब सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। यह समय है कि नदी को बचाने के लिए ठोस और समग्र प्रयास किए जाएं। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था और जीवन रेखा है। मेला-ठेला नहीं, गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। ये मेले बीजेपी को लाभ पहुंचाते हैं, इसीलिए इस बार महाकुंभ की इतनी धूम है।"
‘गंगा और मोदी का वादा’
"महाकुंभ जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन पर सरकार भले ही लाभ को ध्यान में रखकर न ख़र्च करती हो, लेकिन अगर सरकारी आंकड़े ख़र्च की तुलना में आय ज़्यादा दिखाते हैं, तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार के दोनों हाथ में लड्डू होंगे।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान गंगा को साफ करने का वादा किया था। उनकी सरकार ने इसे तीन वर्षों में पूरा करने का "महत्वाकांक्षी" लक्ष्य भी तय किया था। हालांकि, जमीनी स्तर पर स्थिति बहुत अधिक नहीं बदली है। गंगा अब भी भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बनी हुई है।
नदी विशेषज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता सौरभ सिंह कहते हैं, "गंगा को लेकर यह भ्रम है कि वह केवल पापों को नहीं, बल्कि प्रदूषण और कचरे को भी शुद्ध कर सकती है। गंगा हमारे पापों को तो शुद्ध कर सकती है, लेकिन हमारे कचरे और प्रदूषण को नहीं। गंगा को स्नान कराने से पहले हमें खुद गंगा को स्नान कराना होगा। भारत के पास गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए संसाधन, तकनीक और विशेषज्ञता है। जो चीज कमी है, वह है ईमानदारी और समर्पण।"
वे आगे कहते हैं, "सरकार ने कई फैक्ट्रियों को बंद कराया है और प्रदूषण नियंत्रण नियमों को सख्त किया है। फिर भी, गंगा का प्रदूषण भयावह बना हुआ है। महाकुंभ से पहले सरकार को चाहिए कि वह ऐसा इंतजाम करे कि जो श्रद्धालु डुबकी लगाने आएं, वो मलजल में नहीं, साफ पानी में स्नान करें।"
दुनिया का सबसे बड़ा मेला
प्रयागराज के संगम स्थल का हाल यह है कि यहां जो भी निर्माण कार्य चल रहा है, उसकी गुणवत्ता काफी घटिया है। अभी तक आधे-अधूरे काम हो पाए हैं। जगह-जगह मिट्टी के ढेर लगे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है, "दिसंबर से पहले ही सभी काम पूरे कर लिए जाएंगे। महाकुंभ के दौरान सफाई के लिए 10,000 कर्मचारियों की तैनाती की जाएगी। मेला क्षेत्र में 1.5 लाख से अधिक शौचालय बनाए जाएंगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 7,000 से अधिक बसें चलाई जाएंगी।"
"मेला क्षेत्र में तीन पुलिस लाइन, तीन महिला थाने और 10 पुलिस चौकियां स्थापित की जाएंगी। एयरपोर्ट से लेकर मेला क्षेत्र तक वीवीआईपी कॉरिडोर बनाया जाएगा। विशेष स्नान पर्वों के दौरान कोई वीआईपी मूवमेंट नहीं होगा, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। महाकुंभ के दौरान उत्तर प्रदेश में बिजनौर से बलिया तक जीरो डिस्चार्ज नीति लागू की जाएगी, जिससे नदियों में किसी भी प्रकार का प्रदूषण न फैले। इस दौरान उद्योगों को किसी भी स्थिति में अपना अपशिष्ट गंगा-यमुना में प्रवाहित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
महाकुंभ के मेला अधिकारी विजय किरण आनंद के मुताबिक, "प्रयागराज का सुंदरीकरण किया जा रहा है, जिसमें 38 प्रमुख मार्गों पर लैंडस्केपिंग, हॉर्टिकल्चर और थीमैटिक डेवलपमेंट का कार्य शामिल है। शहर के 40 चौराहों की री-डिजाइनिंग की जा रही है, और 67.5 किलोमीटर के मार्ग पर थीमैटिक लाइटिंग लगाई जा रही है। इसके अतिरिक्त, लगभग 374 पार्कों का जीर्णोद्धार, 316 किलोमीटर सड़क मार्गों का नवीनीकरण, और 2.71 लाख पौधारोपण की योजना है। शहर की शोभा बढ़ाने के लिए चार प्रमुख मार्गों पर थीमैटिक गेट्स और लगभग 1,470 साइनेज लगाए जाएंगे।"
"इस बार महाकुंभ मेला क्षेत्र को 4,000 हेक्टेयर में विस्तार किया जा रहा है, और 1,800 हेक्टेयर में पार्किंग की व्यवस्था होगी। मेला क्षेत्र को 25 सेक्टरों में बांटते हुए 30 पंटून ब्रिज, फूड जोन, थीमैटिक लाइटिंग और कई सांस्कृतिक स्थलों जैसे ज्योर्तिर्लिंग पार्क, स्टेट पवेलियन और कन्वेंशन हॉल का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा, स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए 1.5 लाख टॉयलेट्स और यूरिनल्स लगाए जाएंगे, जिनकी सफाई के लिए 10,000 से अधिक सफाई कर्मचारी तैनात रहेंगे। आईसीटी आधारित मॉनिटरिंग से पूरे मेला क्षेत्र की सफाई व्यवस्था पर नजर रखी जाएगी। गंगा स्नान पर्वों के मद्देनजर संगम स्थल पर रिवर फ्रंट का निर्माण किया जा रहा है।"
गंगा और यमुना नदी के इन घाटों का कायाकल्प जल निगम के कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन डिवीजन द्वारा किया जा रहा है। परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर रोहित कुमार राणा के अनुसार, "गंगा घाटों के निर्माण कार्य पर 11.01 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। गंगा और यमुना नदी के जिन सात घाटों का पुनरोद्धार किया जा रहा है, उनमें बलुआ घाट, कालीघाट, रसूलाबाद घाट, छतनाग घाट (झूंसी), नागेश्वर घाट (झूंसी), मौजगिरी घाट और पुराना अरैल घाट शामिल हैं। 30 नवंबर 2024 तक इन सभी घाटों पर सौंदर्यीकरण और सुविधाओं का विस्तार कार्य पूरा कर लिया जाएगा।"
स्नान की प्रमुख तारीखें
14 जनवरी: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
29 जनवरी: मौनी अमावस्या (दूसरा शाही स्नान)
03 फरवरी: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
अन्य महत्वपूर्ण स्नान पर्व:
13 जनवरी: पौष पूर्णिमा
12 फरवरी: माघी पूर्णिमा
26 फरवरी: महाशिवरात्रि
(विजय विनीत, बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रयागराज से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)