दिलीप सरोज को हिंदू-ब्राह्मण-व्यवस्था के नियम के मुताबिक मार डाला गया! इस व्यवस्था के मुताबिक दलित दिलीप का पांव गलती से ऊंच कही जाने वाली जात के विजय शंकर सिंह (राजपूत ..!!!) के पांव से छू गया तो वह 'अपवित्र' हो गया... उसकी इज्जत चली गई..!
इस पंडा-व्यवस्था के गुलाम विजय शंकर सिंह ने स्वाभाविक प्रतिक्रिया दी और दिलीप को डंडा-ईंट-पत्थरों से मार-मार कर मार डाला..! इस ब्राह्मण-व्यवस्था के मुताबिक यही नियम है!
ऊंच कही जाने वाली जात के लोग इस घटना पर गर्व करें! लेकिन सच यही है कि यह हत्या असभ्य और अविकसित बीमार दिमाग वालों की बर्बरता का नतीजा है! हिंदू धर्म यही है... इसकी व्यवस्था यही है..! जहां यह नहीं हो रहा है, वहां होगा, क्योंकि इसी व्यवस्था को बहाल करने के लिए इस पूरे तंत्र को लगा दिया गया है..! इसलिए अब यह खुल कर हो रहा है!
रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या से चलते हुए यह सफर महज किसी दलित से पांव छू जाने भर के एवज उसे सार्वजनिक रूप से मार डाले जाने तक पहुंच चुका है..! संघियों-भाजपाइयों और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसके सिरे से जुड़ी हर राजनीति के सपनों का समाज यही है!
यह केवल कोई सामान्य आपराधिक घटना या हत्या भर नहीं है! अब देखना है कि इस राजनीति के खिलाफ राजनीति के किन खेमों में बगावत की आग फूटती है या नहीं..! अगर इसे भी पचा जाने का इंतजाम होने दिया जाता है तो समझ लीजिए कि उन तमाम लोगों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी, जिनसे पांव छू जाने से भी कोई 'अपवित्र' हो जाता है, किसी की इज्जत चली जाती है!
आज भी इस हकीकत के बावजूद अगर कोई दलितों की सख्त प्रतिक्रिया को अतिवादी कहता है, राजनीतिक रूप से खारिज करता है तो समझिए कि वह भी उसी पंडा व्यवस्था का दलाल है, जिसमें कोई राजपूत या ब्राह्मण या कोई भी ऊंच कही जाने वाली जात का आदमी सोच और बर्ताव के स्तर पर इस कदर सामंती और बर्बर है... असभ्य और अविकसित दिमाग की हालत में जी रहा है!
एक सवाल यह भी है कि ऊंच कही जाने वाली जात वालों का यह रास्ता गृहयुद्ध की भी जमीन तैयार कर रहा है..?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
इस पंडा-व्यवस्था के गुलाम विजय शंकर सिंह ने स्वाभाविक प्रतिक्रिया दी और दिलीप को डंडा-ईंट-पत्थरों से मार-मार कर मार डाला..! इस ब्राह्मण-व्यवस्था के मुताबिक यही नियम है!
ऊंच कही जाने वाली जात के लोग इस घटना पर गर्व करें! लेकिन सच यही है कि यह हत्या असभ्य और अविकसित बीमार दिमाग वालों की बर्बरता का नतीजा है! हिंदू धर्म यही है... इसकी व्यवस्था यही है..! जहां यह नहीं हो रहा है, वहां होगा, क्योंकि इसी व्यवस्था को बहाल करने के लिए इस पूरे तंत्र को लगा दिया गया है..! इसलिए अब यह खुल कर हो रहा है!
रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या से चलते हुए यह सफर महज किसी दलित से पांव छू जाने भर के एवज उसे सार्वजनिक रूप से मार डाले जाने तक पहुंच चुका है..! संघियों-भाजपाइयों और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसके सिरे से जुड़ी हर राजनीति के सपनों का समाज यही है!
यह केवल कोई सामान्य आपराधिक घटना या हत्या भर नहीं है! अब देखना है कि इस राजनीति के खिलाफ राजनीति के किन खेमों में बगावत की आग फूटती है या नहीं..! अगर इसे भी पचा जाने का इंतजाम होने दिया जाता है तो समझ लीजिए कि उन तमाम लोगों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी, जिनसे पांव छू जाने से भी कोई 'अपवित्र' हो जाता है, किसी की इज्जत चली जाती है!
आज भी इस हकीकत के बावजूद अगर कोई दलितों की सख्त प्रतिक्रिया को अतिवादी कहता है, राजनीतिक रूप से खारिज करता है तो समझिए कि वह भी उसी पंडा व्यवस्था का दलाल है, जिसमें कोई राजपूत या ब्राह्मण या कोई भी ऊंच कही जाने वाली जात का आदमी सोच और बर्ताव के स्तर पर इस कदर सामंती और बर्बर है... असभ्य और अविकसित दिमाग की हालत में जी रहा है!
एक सवाल यह भी है कि ऊंच कही जाने वाली जात वालों का यह रास्ता गृहयुद्ध की भी जमीन तैयार कर रहा है..?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)