रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा पर अमेरिका ने स्टैंड बदला, भारत पीछे क्यों?

Written by सबरंगइंडिया स्टाफ | Published on: November 23, 2017


मोदी सरकार जिस ट्रंप प्रशासन की पिछलग्गू बनी हुई है, उसने म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के लोगों के कत्लेआम को जातीय सफाया करार दिया है. और कहा है कि वह म्यांमार सरकार के खिलाफ टारगेटेड प्रतिबंध लगा सकता है.

अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा है उपलब्ध तथ्यों से यह साफ हो गया कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को टारगेट बनाया गया. यह जातीय सफाया था. हालांकि टिलरसन जब पिछले सप्ताह म्यांमार की यात्रा से लौटे थे तो उन्होंने म्यांमार सरकार के खिलाफ ऐसा कुछ नहीं कहा था. लेकिन एक सप्ताह बाद म्यांमार में हिंसा को जातीय सफाया करार देने का मतलब यह है कि यहां के हालात पर ट्रंप प्रशासन का नजरिया बदल चुका है.

टिलरसन ने कहा है कि म्यांमार में सेना और कुछ विजिलेंट समूहों ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की और बड़ी तादाद में लोगों को वहां से पलायन करना पड़ा. छह लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान यहां के राखाइन प्रांत से भाग कर बांग्लादेश पहुंचे थे. अब जबकि ट्रंप प्रशासन ने वहां जातीय हिंसा की बात स्वीकार की है तो म्यांमार शासन को कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. नवंबर में अमेरिकी सांसदों ने म्यांमार के सैन्य अधिकारियों पर यात्रा प्रतिबंध और सरकार के खिलाफ टारगेटेड प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया था.

अब जबकि अमेरिका ने भी म्यांमार में हिंसा पर स्टैंड बदल कर उसके खिलाफ कदम उठाने का इरादा जताया है तो भारत को भी रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हुई हिंसा पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है. भारत को अपने पड़ोसी देश के शासन पर रोहिंग्या मुद्दे पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है. साथ ही भारत में आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों प्रति भी उसे सहिष्णु होना होगा. बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के प्रति मोदी सरकार का रुख कड़ा रहा है. लेकिन म्यांमार में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और मानवाधिकार हनन के खिलाफ उसका रुख लचर रहा है. उल्टे उसके मंत्री यहां रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हुए हैं.
 

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