कामगारों के लिए मोदी सरकार के तीन साल बेहद असुरक्षित रहे हैं। कॉरपोरेट लॉबी की ओर से श्रम कानूनों को और उदार करने की मांग बढ़ने के साथ ही सरकार भी लगातार उन पर गाज गिरा रही है। पीएफ और इससे जुड़े सामाजिक स्कीमों में अंशदान कम करने का मंसूबा बांधे सरकार अब कर्मचारियों का और ज्यादा पैसा शेयर बाजार के अनिश्चतताओं के हवाले करने जा रही है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने पीएफ समेत अन्य सामाजिक सुरक्षा स्कीमों में कर्मचारियों का अंशदान 12 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी करने की सिफारिश करने का मंसूबा बनाया है। पीएफ में कर्मचारी और नियोक्ता का बराबर योगदान होता है। यानी दोनों ओर से 12-12 फीसदी। अगर ईपीएफओ बोर्ड में योगदान घटाने पर सहमति बन जाती है तो भले ही कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी बढ़ जाएगा। लेकिन कंपनियों को फायदा होगा। उन्हें कर्मचारियों के पीएफ फंड में दो फीसदी रकम कम देनी होगी। इतना ही नहीं, पीएफ अंशधारकों के हितों के खिलाफ सरकार एक और मंसूबा बांध रही है। ईपीएफओ ने अब एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश की सीमा बढ़ाने जा रहा है। इस साल इसमें 20,000 करोड़ रुपये डालेगी। यानी कर्मचारियों के पीएफ का ज्यादा पैसा अब शेयर बाजार की अनिश्चतताओं के हवाले होगा।
दरअसल मोदी सरकार के आते ही शेयरों और शेयर आधारित निवेश योजनाओं में निवेश की सीमा 5 से बढ़ा कर 15 फीसदी कर दी गई। ईपीएफओ ने अगस्त 2015 से ही ईटीएफ में ऐसी स्कीमों के निर्धारित पांच फीसदी रकम निवेश करना शुरू कर दिया था। वित्त वर्ष 2015-16 में ईपीएफओ की तरफ से ईटीएफ में 6,577 करोड़ रुपये निवेश किए गए। जबकि 2016-17 में यह रकम बढ़ कर 14,982 करोड़ रुपये हो गई। श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि ईटीएफ में रिटर्न पर 13.8 फीसदी का रिटर्न मिला। इस निवेश पर 235 करोड़ रुपये का लाभांश हासिल हुआ। लेकिन इसका लाभ कर्मचारियों को मिलने वाले ब्ययाज दरों पर नहीं दिख रहा है। ईपीएफओ न तो पीएफ अंशदान में ब्याज बढ़ा रहा है और न ही इससे जुड़ी सामाजिक सुरक्षा स्कीमों का विस्तार कर रहा है। श्रमिक संगठनों की ओर से पीएफ में अंशदान पर लगातार 9 फीसदी या इससे ज्यादा ब्याज दर की मांग की जा रही है। लेकिन ईपीएफओ साढ़े आठ फीसदी से ज्यादा बढ़ने को तैयार नहीं है। इस बार 8.65 फीसदी ब्याज दर है। ऐसे वक्त में जब स्मॉल सेविंग स्कीम में जब सरकार लगातार ब्याज दर घटा रही तो पीएफ अंशदान में ब्याज दर बढ़ाना और जरूरी है। लेकिन उल्टे वह अंशदान का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा शेयर बाजार के हवाले कर कर्मचारियों के भविष्य की सुरक्षा में सेंध लगा रहा है। सरकार ईटीएफ और शेयर आधारित निवेश स्कीमों में निवेश बढ़ा कर कमाई तो कर रही है। लेकिन पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाने को तैयार नहीं है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने पीएफ समेत अन्य सामाजिक सुरक्षा स्कीमों में कर्मचारियों का अंशदान 12 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी करने की सिफारिश करने का मंसूबा बनाया है। पीएफ में कर्मचारी और नियोक्ता का बराबर योगदान होता है। यानी दोनों ओर से 12-12 फीसदी। अगर ईपीएफओ बोर्ड में योगदान घटाने पर सहमति बन जाती है तो भले ही कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी बढ़ जाएगा। लेकिन कंपनियों को फायदा होगा। उन्हें कर्मचारियों के पीएफ फंड में दो फीसदी रकम कम देनी होगी। इतना ही नहीं, पीएफ अंशधारकों के हितों के खिलाफ सरकार एक और मंसूबा बांध रही है। ईपीएफओ ने अब एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश की सीमा बढ़ाने जा रहा है। इस साल इसमें 20,000 करोड़ रुपये डालेगी। यानी कर्मचारियों के पीएफ का ज्यादा पैसा अब शेयर बाजार की अनिश्चतताओं के हवाले होगा।
दरअसल मोदी सरकार के आते ही शेयरों और शेयर आधारित निवेश योजनाओं में निवेश की सीमा 5 से बढ़ा कर 15 फीसदी कर दी गई। ईपीएफओ ने अगस्त 2015 से ही ईटीएफ में ऐसी स्कीमों के निर्धारित पांच फीसदी रकम निवेश करना शुरू कर दिया था। वित्त वर्ष 2015-16 में ईपीएफओ की तरफ से ईटीएफ में 6,577 करोड़ रुपये निवेश किए गए। जबकि 2016-17 में यह रकम बढ़ कर 14,982 करोड़ रुपये हो गई। श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि ईटीएफ में रिटर्न पर 13.8 फीसदी का रिटर्न मिला। इस निवेश पर 235 करोड़ रुपये का लाभांश हासिल हुआ। लेकिन इसका लाभ कर्मचारियों को मिलने वाले ब्ययाज दरों पर नहीं दिख रहा है। ईपीएफओ न तो पीएफ अंशदान में ब्याज बढ़ा रहा है और न ही इससे जुड़ी सामाजिक सुरक्षा स्कीमों का विस्तार कर रहा है। श्रमिक संगठनों की ओर से पीएफ में अंशदान पर लगातार 9 फीसदी या इससे ज्यादा ब्याज दर की मांग की जा रही है। लेकिन ईपीएफओ साढ़े आठ फीसदी से ज्यादा बढ़ने को तैयार नहीं है। इस बार 8.65 फीसदी ब्याज दर है। ऐसे वक्त में जब स्मॉल सेविंग स्कीम में जब सरकार लगातार ब्याज दर घटा रही तो पीएफ अंशदान में ब्याज दर बढ़ाना और जरूरी है। लेकिन उल्टे वह अंशदान का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा शेयर बाजार के हवाले कर कर्मचारियों के भविष्य की सुरक्षा में सेंध लगा रहा है। सरकार ईटीएफ और शेयर आधारित निवेश स्कीमों में निवेश बढ़ा कर कमाई तो कर रही है। लेकिन पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाने को तैयार नहीं है।