योगी सरकार पर अदालत का डंडा, ब्लास्ट केस में रिहा हुए वानी को दे 16 साल का हर्जाना

Published on: May 24, 2017

गुलजार अहमद वानी को जब 2001 में साबरमती एक्सप्रेस में विस्फोट कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तो वह एएमयू से अरबी साहित्य में पीएचडी कर रहे थे। उनके सामने सुनहरा भविष्य था। लेकिन उन्हें झूठे केस में फंसा कर 16 साल तक जेल में बंद रखा गया।


Gulzar Ahmad wani

मुस्लिम युवकों को आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के झूठे आरोपों में फंसा कर सालों-साल जेल में सड़ा देने वाली सरकारों को अंदाजा नहीं होता कि वे उनसे क्या छीन लेती हैं। ऐसे मामलों में जेल में बंद युवाओं के परिवार बर्बाद हो जाते हैं। मां-बाप औलाद की राह देखते हुए मर जाते हैं। जलालत और गद्दारी के आरोप झेलने पड़ते हैं। सामाजिक बहिष्कार हो जाता है।

ऐसे लोगों का मान-सम्मान और बेहतर भविष्य की संभावनाएं सरकार किसी भी तरह से लौटा नहीं सकती और न ही वह इस दिशा में कोई कोशिश करती दिखती है। बस, अदालत से ही थोड़ी-बहुत उम्मीद बची होती है। साबरमती एक्सप्रेस बम विस्फोट में गलत ढंग से फंसाए जाने के बाद 16 साल जेल में रहे और अब रिहा हुए एएमयू के पीएचडी स्कॉलर गुलजार अहमद वानी के लिए बारांबकी कोर्ट ने उम्मीद की यह किरण दिखाई है।

 कोर्ट ने कहा है कि वह बानी को इन सोलह सालों में मिलने वाले वेतन के हिसाब से आर्थिक हर्जाना दे। उनकी शैक्षणिक योग्यता को देखते हुए वह औसत हिसाब लगा कर वानी को सारा पैसा अदा करे। कोर्ट ने योगी सरकार से कहा है कि वह यह हिसाब लगाए कि अपनी एजुकेशन क्वालिफिकेशन के हिसाब से वानी अगर नौकरी करते तो वह 16 साल में कितना पैसा कमाते। उन्हें इसी हिसाब से हर्जाना दिया जाए। अगर बारांबकी अदालत के आदेश पर सरकार यह नहीं करती है तो वानी के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खुला है।

वानी को जब 2001 में साबरमती एक्सप्रेस में विस्फोट कराने के आरोप में  गिरफ्तार किया गया तो वह एएमयू से अरबी साहित्य में पीएचडी कर रहे थे। उनके सामने सुनहरा भविष्य था। लेकिन उन्हें झूठे केस में फंसा कर जेल में डाल दिया गया।

बारांबकी अदालत ने कहा कि जिन पुलिस अधिकारियों ने वानी के खिलाफ मुकदमा बनाया और चार्जशीट दाखिल की उन्होंने इसके लिए आला अफसरों से इजाजत नहीं ली। उन्होंने पूरी तरह अपनी कर्तव्य की अवहेलना की और वानी की शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता को चोट पहुंचाई। बम ब्लास्ट केस में वानी पर 11 मुकदमे थोपे गए थे। लेकिन अदालत ने इन सारे मुकदमों में उन्हें बरी कर दिया।

बाराबंकी अदालत के अतिरिक्त सेशन जज एम ए खान ने अपने फैसले में कहा कि सरकार चाहे तो वानी का दिया जाने वाला हर्जाना उन पुलिसवालों से वसूल सकती है जिन्होंने वानी के खिलाफ गलत ढंग से जांच की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने भी वानी को झूठे आरोपों में 16 साल जेल में बंद रखने के लिए दिल्ली और यूपी पुलिस की खिंचाई की थी और उन्हें ट्रायल कोर्ट की शर्तों पर रिहा करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वानी को रिहा किया जाए, भले ही उनके खुलाफ अदालती कार्यवाही पूरी हो या नहीं।

बाराबंकी कोर्ट ने वानी के खिलाफ पुलिस जांच में लापरवाही की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि इस मामले में आरोपी के खिलाफ न कोई सबूत जुटाया और न ही इसकी कोशिश की गई । अदालत ने उन्हें फंसाने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
 

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