यूपी में प्राइवेट मेडिकल कालेजों में पीजी में अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर दिया गया है।सारे पिछड़े/दलित वर्ग के नेता खमोश हैं।बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी की जयंती 14 अप्रैल और मण्डल कमीशन के अध्यक्ष वीपी मण्डल जी की निर्वाण तिथि 13 अप्रैल के अवसर पर इस आरक्षण को यूपी में खत्म कर यह स्पष्ट सन्देश प्रसारित किया गया है कि अब आरक्षण के खात्मे की शुरुवात कर दी गयी है।यह लिटमस टेस्ट है कि आरक्षण के प्रति आम शोषित/वंचित जन या उनके नेता कितने मुखर हो रहे हैं?आखिर अम्बेडकर और मण्डल के वंशज क्यों अपने इन पुरखो के सपनो को टूटते देख रहे हैं और मौन हैं?
दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री विंदेश्वरी प्रसाद मण्डल जी ने अनुच्छेद 15(4),16(4),340 आदि के तहत गठित मण्डल आयोग की रिपोर्ट में देश की 52 प्रतिशत आबादी के लिए कुछ अनुशंसाएं की हैं जिन्हें लागू करने के लिए आज भी किसी बहुजन नायक की तलाश उपेक्षित व वंचित तबकों को है।
1 जनवरी 1979 को तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मधेपुरा के समाजवादी नेता श्री वीपी मण्डल जी की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था।इसके पूर्व 29 जनवरी 1953 को प्रख्यात साहित्यकार काका कालेलकर जी की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी ने किया था जिसने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट दी थी।उक्त कालेलकर आयोग ने तब सिफारिश की थी कि प्रथम श्रेणी नौकरियों में 25%,द्वितीय श्रेणी में 33.5%,तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी में 40% आरक्षण ओबीसी को दिया जाय।चिकित्सा,यांत्रिकी एवं विज्ञान की शिक्षा में पिछड़े वर्गों को 70% आरक्षण का प्राविधान काका कालेलकर ने रखा था।अपनी रिपोर्ट को लेकर जब कालेलकर साहब एक अन्य सदस्य श्री शिवदयाल सिंह चौरसिया जी के साथ पण्डित नेहरू के पास गए और पण्डित नेहरू ने उक्त रिपोर्ट देखी तो वे अपना रिवाल्विंग चेयर मारे गुस्सा के सामने से पीछे घुमा लिए और काका कालेलकर को डांटते हुए इसे अभिजात्य समाज विरोधी रिपोर्ट कहते हुए उक्त समिति के अध्यक्ष से ही इसे खारिज करने की सिफारिश लिखवाक़े रद्दी की टोकरी में डाल दिये।इस कालेलकर आयोग की रिपोर्ट रद्दी की टोकरी में पड़ जाने के कारण दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन हुआ जिसने अथक परिश्रम कर अपनी रिपोर्ट 31 दिसम्बर 1980 को प्रस्तुत कर दिया जिसमें पिछडो को 27 प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण सहित उनके कल्याण हेतु अनेक अनुशंसाएं की गयी थीं।
वीपी मण्डल पिछड़े वर्ग के मनीषी थे।उन्होंने पूरे दो वर्ष देश के प्रत्येक जिले में जाके उस क्षेत्र के सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की सूची बनाई और उन्हें विशेष रियायते व सहूलियतें देने की सिफारिश की।
वीपी मण्डल की पहली सिफारिश 52 प्रतिशत पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की थी जिसे 7 अगस्त 1990 को लागू करने का आदेश देकर प्रभु वर्ग का बैठे-बिठाये विरोध वीपी सिंह ने मोल ले लिया था।मण्डल आयोग की इस पहली संस्तुति के 7 अगस्त 1990 को घोषणा तथा 13 अगस्त 1990 को अधिसूचना जारी होने के साथ ही देश मे मरने-मारने का उपक्रम चालू हो गया।कितनी जबरदस्ती है प्रभु वर्ग की इस देश मे कि वह खुद भले ही भरपेट खाये हुए है पर यदि किसी भूखे को थोड़ा रूखा-सूखा भी दिया गया तो वह बगावत पर उतर आता है।मण्डल कमीशन की केवल पहली संस्तुति लागू किये जाने के बाद वीपी सिंह "राजा नही फकीर है,देश की तकदीर है" से "राजा नही रंक है,देश का कलंक है" हो गए।देश की सम्पत्ति जला दी गयी,खुद को जला लिया गया लेकिन यह भरपूर कोशिश हुई कि किसी तरह से इस मुल्क की 52 प्रतिशत आबादी को उसका संवैधानिक हक न दिया जाय।वीपी सिंह सरकार द्वारा संविधान के विभिन्न आदेशों के तहत जब 31 दिसम्बर 1980 को दिए गए रिपोर्ट को 1990 में अर्थात मण्डल कमीशन द्वारा रिपोर्ट देने के 10 साल बाद तथा देश मे संविधान लागू होने के 40 साल बाद यदि चम्मच बराबर कुछ बेहोश रखे गए संवैधानिक अधिकार दे दिए गए तो हमारे बड़े भाइयों(प्रभु वर्ग) ने आसमान सर पर उठा लिया और रेल-बस फूंकने के बाद सुप्रीम कोर्ट चले गए।सुप्रीम कोर्ट में लालू प्रसाद यादव जी ने रामजेठमलानी जी जैसे वकील रखा।बाबू रामवधेश सिंह यादव जी सहित तमाम विद्वानों ने गहन पैरवी की तब जाकर 16 नवम्बर 1992 को एम एच कानिया जी की बहुसदस्यीय पीठ ने बहुमत से इसे लागू करने का निर्णय क्रीमीलेयर जैसा आर्थिक आधार का मुलम्मा चढा के दिया।
कालांतर में कांग्रेस गवर्नमेंट में केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री अर्जुन सिंह जी ने उच्च शिक्षा में मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को लागू किया जिसका खामियाजा उन्हें कांग्रेस में पदमुक्त होकर भुगतना पड़ा।उच्च शिक्षा में आरक्षण लागू होने से देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत उच्च वर्ग के छात्रों ने फिर बबाल काटा।वीपी सिंह जी की तरह ही अर्जुन सिंह जी को गालियां,अपमान और जिल्लत मिली।
मण्डल कमीशन ने देश के संविधान की आलोक में केवल सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ही 27% आरक्षण की संस्तुति नही की है बल्कि उसने और भी दर्जन भर महत्वपूर्ण चीजे लागू करने की वकालत की है।मण्डल की इन सिफारिशों को लागू करने में हमारे हुक्मरान जितना डरते हैं उतने ही काहिल हम भी हैं कि इन्हें लागू कराने के लिए कुछ भी नही करते हैं।
मण्डल साहब ने अपनी दूसरी संस्तुति में कहा है कि सभी स्तर पर पदोन्नति में पिछडो को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था को ग्राह्य किया जाय।इसे आज तक लागू नही किया गया है।कितना हास्यास्पद है कि इसे लागू करने हेतु खून-पसीना कौन बहाये,उल्टे इस बिल को हम ही संसद में फाड़ डालते हैं तो सड़क पर इसके विरुद्ध बोलते हुए गौरवान्वित होते हैं।
मण्डल साहब ने अपनी तीसरी संस्तुति में कहा है कि न भरे गए आरक्षण कोटा को 3 साल की अवधि तक के लिए जारी रखा जाना चाहिए और उसके बाद अनारक्षित किया जाना चाहिए।मण्डल आयोग में अनुसूचित जाति/जनजाति की तरह आयु सीमा में छूट देने,पदों के प्रत्येक वर्ग के लिए sc/st की तरह रोस्टर प्रणाली अपनाने,राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ-साथ सभी केंद्रीय व राज्य सरकारों के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सभी भर्तियों में लागू करने,निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में कर्मियों की भर्ती में लागू करने,ठेकों में आरक्षण देने,पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को ट्यूशन फीस में छूट,किताबो और वस्त्रो की मुफ्त उपलब्धता करवाने,दोपहर का भोजन देने,विशेष छात्रावास सुविधाएं उपलब्ध करवाने, वजीफा व अन्य शैक्षणिक रियायतें देने,केंद्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे सभी वैज्ञानिक तथा व्यवसायिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए स्थान आरक्षित करने,तकनीकी व व्यवसायिक संस्थानों में विशेष कोचिंग सुविधा उपलब्ध कराने, व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त पिछड़े वर्गों को अपना उद्योग लगाने हेतु वित्तीय व तकनीकी सहायता देने और इस निमित्त पृथक वित्तीय व तकनीकी संस्थाए स्थापित करने,व्यवसायिक ग्रुपो की सहकारी समितियां बनाने,फालतू भूमि का एक भाग अन्य पिछड़े वर्ग के भूमिहीन मजदूरों में वितरित करने,पिछड़ा वर्ग विकास निगम स्थापित करने,राज्य व केंद्र स्तर पर अलग पिछड़ा वर्ग मंत्रालय स्थापित करने,केंद्रीय सरकार द्वारा अलग से धन देने आदि की सिफारिश सन्निहित है।
आज भी मण्डल कमीशन की संस्तुतियां पूर्णतः लागू नही है।देश का अभिजात्य समाज हमे हमारा हक देने की बजाय हमारे खुद के बीच झगड़ा खड़ा कर देने में सफलता प्राप्त कर ले रहा है।हम शेष मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को लागू करने का आंदोलन खड़ा करने की बजाय 27% नौकरियों के प्राप्त आरक्षण के अधिकार में तू अधिक-तू अधिक के विवाद में लड़ते हुए उनकी तरफ आंख मूंद लिए है जो सब कुछ डकार रहे हैं या डकार चुके हैं।
मण्डल साहब 13 अप्रैल 1982 को हम सबको मण्डल आयोग जैसा खजाना देकर चले गए जिसे हमलोग आज भी पूर्णतः लागू नही करा सके हैं।हम मण्डल कमीशन के अपने संवैधानिक हक को हासिल कर पाने में नाकाम हैं।हमारे रहनुमाओ की इसे लागू करने या इसे लागू करने की मांग करने में घिग्घी बंधी हुई है।पता नही मण्डल से ये पिछड़े/दलित समाज के रहनुमा लोग डरते क्यो हैं?वर्तमान दौर बड़ा भयावह है।संविधान समीक्षा से लेकर आरक्षण खात्मे की बातें चल रही हैं।यूपी में प्राइवेट मेडिकल कालेजों की पीजी सीटों में आरक्षण खत्म कर दिया गया है।कितना गजब संयोग है कि जिस दिन वीपी मण्डल जी का इस दुनिया से अंत हुआ उसी दिन प्राइवेट मेडिकल कालेजों से पोस्ट ग्रेजुएशन में आरक्षण का अंत किया गया।
साम्प्रदायिकता का खेल जोरो पर है।धार्मिक उन्माद में प्रायः सारे ज्वलन्त मुद्दे गुम होते जा रहे हैं ऐसे दुरूह समय मे गांव-गांव "मण्डल आयोग चेतना" गोष्ठियां,सम्मेलन आयोजित करने होंगे।पिछड़े/दलित समर्थक दलो को मण्डल कमीशन और आरक्षण पर खुला और स्पष्ट स्टैंड लेना होगा।हिन्दू ध्रुवीकरण के समानांतर आरक्षित वर्गो का ध्रुवीकरण ही साम्प्रदायिकता का एकमात्र विकल्प है।
मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को पूर्णतः लागू करने का संकल्प ही कम्युनल पोलराइजेशन का विकल्प है।जब तक स्पष्ट तौर पर मण्डल कमीशन पर निर्णायक संघर्ष का शंखनाद नही होगा तब तक धर्म के झांसे में फंसे पिछड़े वहां से निकलने वाले नही हैं।बहुत स्पष्ट है कि मण्डल कमीशन,जातिवार जनगणना एवं पिछड़े,दलित वर्ग की महिलाओं का कोटा निर्धारित करते हुए महिला आरक्षण विल के सवाल पर निचले स्तर से संघर्ष और जागरूकता रैलियां नही होंगी तब तक रास्ता कठिन ही रहेगा।
मण्डल साहब को उनकी पुण्यतिथि पर हमारी पुण्यस्मृति यही होगी कि हम उनकी सम्पूर्ण संस्तुतियों को लागू करने हेतु कमर कस के आंदोलित हो जाय।आरक्षण से होने वाले किसी भी प्रकार के झेड़झाड के प्रति सतर्क होकर हम सभी आरक्षण ,सामाजिक न्याय,समता,बन्धुता,धर्मनिर्पे क्षता के लिए सम्पूर्ण बहुजन समाज को एकजुट कर अम्बेडकर व मण्डल की धारा को मजबूत बनाएं।
दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री विंदेश्वरी प्रसाद मण्डल जी ने अनुच्छेद 15(4),16(4),340 आदि के तहत गठित मण्डल आयोग की रिपोर्ट में देश की 52 प्रतिशत आबादी के लिए कुछ अनुशंसाएं की हैं जिन्हें लागू करने के लिए आज भी किसी बहुजन नायक की तलाश उपेक्षित व वंचित तबकों को है।
1 जनवरी 1979 को तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मधेपुरा के समाजवादी नेता श्री वीपी मण्डल जी की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था।इसके पूर्व 29 जनवरी 1953 को प्रख्यात साहित्यकार काका कालेलकर जी की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी ने किया था जिसने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट दी थी।उक्त कालेलकर आयोग ने तब सिफारिश की थी कि प्रथम श्रेणी नौकरियों में 25%,द्वितीय श्रेणी में 33.5%,तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी में 40% आरक्षण ओबीसी को दिया जाय।चिकित्सा,यांत्रिकी एवं विज्ञान की शिक्षा में पिछड़े वर्गों को 70% आरक्षण का प्राविधान काका कालेलकर ने रखा था।अपनी रिपोर्ट को लेकर जब कालेलकर साहब एक अन्य सदस्य श्री शिवदयाल सिंह चौरसिया जी के साथ पण्डित नेहरू के पास गए और पण्डित नेहरू ने उक्त रिपोर्ट देखी तो वे अपना रिवाल्विंग चेयर मारे गुस्सा के सामने से पीछे घुमा लिए और काका कालेलकर को डांटते हुए इसे अभिजात्य समाज विरोधी रिपोर्ट कहते हुए उक्त समिति के अध्यक्ष से ही इसे खारिज करने की सिफारिश लिखवाक़े रद्दी की टोकरी में डाल दिये।इस कालेलकर आयोग की रिपोर्ट रद्दी की टोकरी में पड़ जाने के कारण दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन हुआ जिसने अथक परिश्रम कर अपनी रिपोर्ट 31 दिसम्बर 1980 को प्रस्तुत कर दिया जिसमें पिछडो को 27 प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण सहित उनके कल्याण हेतु अनेक अनुशंसाएं की गयी थीं।
वीपी मण्डल पिछड़े वर्ग के मनीषी थे।उन्होंने पूरे दो वर्ष देश के प्रत्येक जिले में जाके उस क्षेत्र के सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की सूची बनाई और उन्हें विशेष रियायते व सहूलियतें देने की सिफारिश की।
वीपी मण्डल की पहली सिफारिश 52 प्रतिशत पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की थी जिसे 7 अगस्त 1990 को लागू करने का आदेश देकर प्रभु वर्ग का बैठे-बिठाये विरोध वीपी सिंह ने मोल ले लिया था।मण्डल आयोग की इस पहली संस्तुति के 7 अगस्त 1990 को घोषणा तथा 13 अगस्त 1990 को अधिसूचना जारी होने के साथ ही देश मे मरने-मारने का उपक्रम चालू हो गया।कितनी जबरदस्ती है प्रभु वर्ग की इस देश मे कि वह खुद भले ही भरपेट खाये हुए है पर यदि किसी भूखे को थोड़ा रूखा-सूखा भी दिया गया तो वह बगावत पर उतर आता है।मण्डल कमीशन की केवल पहली संस्तुति लागू किये जाने के बाद वीपी सिंह "राजा नही फकीर है,देश की तकदीर है" से "राजा नही रंक है,देश का कलंक है" हो गए।देश की सम्पत्ति जला दी गयी,खुद को जला लिया गया लेकिन यह भरपूर कोशिश हुई कि किसी तरह से इस मुल्क की 52 प्रतिशत आबादी को उसका संवैधानिक हक न दिया जाय।वीपी सिंह सरकार द्वारा संविधान के विभिन्न आदेशों के तहत जब 31 दिसम्बर 1980 को दिए गए रिपोर्ट को 1990 में अर्थात मण्डल कमीशन द्वारा रिपोर्ट देने के 10 साल बाद तथा देश मे संविधान लागू होने के 40 साल बाद यदि चम्मच बराबर कुछ बेहोश रखे गए संवैधानिक अधिकार दे दिए गए तो हमारे बड़े भाइयों(प्रभु वर्ग) ने आसमान सर पर उठा लिया और रेल-बस फूंकने के बाद सुप्रीम कोर्ट चले गए।सुप्रीम कोर्ट में लालू प्रसाद यादव जी ने रामजेठमलानी जी जैसे वकील रखा।बाबू रामवधेश सिंह यादव जी सहित तमाम विद्वानों ने गहन पैरवी की तब जाकर 16 नवम्बर 1992 को एम एच कानिया जी की बहुसदस्यीय पीठ ने बहुमत से इसे लागू करने का निर्णय क्रीमीलेयर जैसा आर्थिक आधार का मुलम्मा चढा के दिया।
कालांतर में कांग्रेस गवर्नमेंट में केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री अर्जुन सिंह जी ने उच्च शिक्षा में मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को लागू किया जिसका खामियाजा उन्हें कांग्रेस में पदमुक्त होकर भुगतना पड़ा।उच्च शिक्षा में आरक्षण लागू होने से देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत उच्च वर्ग के छात्रों ने फिर बबाल काटा।वीपी सिंह जी की तरह ही अर्जुन सिंह जी को गालियां,अपमान और जिल्लत मिली।
मण्डल कमीशन ने देश के संविधान की आलोक में केवल सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में ही 27% आरक्षण की संस्तुति नही की है बल्कि उसने और भी दर्जन भर महत्वपूर्ण चीजे लागू करने की वकालत की है।मण्डल की इन सिफारिशों को लागू करने में हमारे हुक्मरान जितना डरते हैं उतने ही काहिल हम भी हैं कि इन्हें लागू कराने के लिए कुछ भी नही करते हैं।
मण्डल साहब ने अपनी दूसरी संस्तुति में कहा है कि सभी स्तर पर पदोन्नति में पिछडो को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था को ग्राह्य किया जाय।इसे आज तक लागू नही किया गया है।कितना हास्यास्पद है कि इसे लागू करने हेतु खून-पसीना कौन बहाये,उल्टे इस बिल को हम ही संसद में फाड़ डालते हैं तो सड़क पर इसके विरुद्ध बोलते हुए गौरवान्वित होते हैं।
मण्डल साहब ने अपनी तीसरी संस्तुति में कहा है कि न भरे गए आरक्षण कोटा को 3 साल की अवधि तक के लिए जारी रखा जाना चाहिए और उसके बाद अनारक्षित किया जाना चाहिए।मण्डल आयोग में अनुसूचित जाति/जनजाति की तरह आयु सीमा में छूट देने,पदों के प्रत्येक वर्ग के लिए sc/st की तरह रोस्टर प्रणाली अपनाने,राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ-साथ सभी केंद्रीय व राज्य सरकारों के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सभी भर्तियों में लागू करने,निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में कर्मियों की भर्ती में लागू करने,ठेकों में आरक्षण देने,पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को ट्यूशन फीस में छूट,किताबो और वस्त्रो की मुफ्त उपलब्धता करवाने,दोपहर का भोजन देने,विशेष छात्रावास सुविधाएं उपलब्ध करवाने, वजीफा व अन्य शैक्षणिक रियायतें देने,केंद्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे सभी वैज्ञानिक तथा व्यवसायिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए स्थान आरक्षित करने,तकनीकी व व्यवसायिक संस्थानों में विशेष कोचिंग सुविधा उपलब्ध कराने, व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त पिछड़े वर्गों को अपना उद्योग लगाने हेतु वित्तीय व तकनीकी सहायता देने और इस निमित्त पृथक वित्तीय व तकनीकी संस्थाए स्थापित करने,व्यवसायिक ग्रुपो की सहकारी समितियां बनाने,फालतू भूमि का एक भाग अन्य पिछड़े वर्ग के भूमिहीन मजदूरों में वितरित करने,पिछड़ा वर्ग विकास निगम स्थापित करने,राज्य व केंद्र स्तर पर अलग पिछड़ा वर्ग मंत्रालय स्थापित करने,केंद्रीय सरकार द्वारा अलग से धन देने आदि की सिफारिश सन्निहित है।
आज भी मण्डल कमीशन की संस्तुतियां पूर्णतः लागू नही है।देश का अभिजात्य समाज हमे हमारा हक देने की बजाय हमारे खुद के बीच झगड़ा खड़ा कर देने में सफलता प्राप्त कर ले रहा है।हम शेष मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को लागू करने का आंदोलन खड़ा करने की बजाय 27% नौकरियों के प्राप्त आरक्षण के अधिकार में तू अधिक-तू अधिक के विवाद में लड़ते हुए उनकी तरफ आंख मूंद लिए है जो सब कुछ डकार रहे हैं या डकार चुके हैं।
मण्डल साहब 13 अप्रैल 1982 को हम सबको मण्डल आयोग जैसा खजाना देकर चले गए जिसे हमलोग आज भी पूर्णतः लागू नही करा सके हैं।हम मण्डल कमीशन के अपने संवैधानिक हक को हासिल कर पाने में नाकाम हैं।हमारे रहनुमाओ की इसे लागू करने या इसे लागू करने की मांग करने में घिग्घी बंधी हुई है।पता नही मण्डल से ये पिछड़े/दलित समाज के रहनुमा लोग डरते क्यो हैं?वर्तमान दौर बड़ा भयावह है।संविधान समीक्षा से लेकर आरक्षण खात्मे की बातें चल रही हैं।यूपी में प्राइवेट मेडिकल कालेजों की पीजी सीटों में आरक्षण खत्म कर दिया गया है।कितना गजब संयोग है कि जिस दिन वीपी मण्डल जी का इस दुनिया से अंत हुआ उसी दिन प्राइवेट मेडिकल कालेजों से पोस्ट ग्रेजुएशन में आरक्षण का अंत किया गया।
साम्प्रदायिकता का खेल जोरो पर है।धार्मिक उन्माद में प्रायः सारे ज्वलन्त मुद्दे गुम होते जा रहे हैं ऐसे दुरूह समय मे गांव-गांव "मण्डल आयोग चेतना" गोष्ठियां,सम्मेलन आयोजित करने होंगे।पिछड़े/दलित समर्थक दलो को मण्डल कमीशन और आरक्षण पर खुला और स्पष्ट स्टैंड लेना होगा।हिन्दू ध्रुवीकरण के समानांतर आरक्षित वर्गो का ध्रुवीकरण ही साम्प्रदायिकता का एकमात्र विकल्प है।
मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को पूर्णतः लागू करने का संकल्प ही कम्युनल पोलराइजेशन का विकल्प है।जब तक स्पष्ट तौर पर मण्डल कमीशन पर निर्णायक संघर्ष का शंखनाद नही होगा तब तक धर्म के झांसे में फंसे पिछड़े वहां से निकलने वाले नही हैं।बहुत स्पष्ट है कि मण्डल कमीशन,जातिवार जनगणना एवं पिछड़े,दलित वर्ग की महिलाओं का कोटा निर्धारित करते हुए महिला आरक्षण विल के सवाल पर निचले स्तर से संघर्ष और जागरूकता रैलियां नही होंगी तब तक रास्ता कठिन ही रहेगा।
मण्डल साहब को उनकी पुण्यतिथि पर हमारी पुण्यस्मृति यही होगी कि हम उनकी सम्पूर्ण संस्तुतियों को लागू करने हेतु कमर कस के आंदोलित हो जाय।आरक्षण से होने वाले किसी भी प्रकार के झेड़झाड के प्रति सतर्क होकर हम सभी आरक्षण ,सामाजिक न्याय,समता,बन्धुता,धर्मनिर्पे