अल्पसंख्यकों से वित्तीय सहायता वापस लेना भेदभावपूर्ण क्यों है?

यह हिंदुत्व के समर्थकों द्वारा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम छात्रों की सीमित शैक्षिक विकास पर एक खुला हमला है।


प्रतीकात्मक तस्वीर।

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने 8 दिसंबर को संसद को बताया कि सरकार शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से अल्पसंख्यकों के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद राष्ट्रीय फ़ेलोशिप (एमएएनएफ़) को बंद कर रही है। मंत्री ने कहा कि एमएएनएफ़ मौजूद अन्य छात्रवृत्ति के साथ ओवरलैप करता है। मंत्री ने इससे पहले नवंबर में यह भी घोषणा की थी कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति अब कक्षा पहली से आठवीं तक के छात्रों पर लागू नहीं होगी क्योंकि उन्हें शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत आठवीं कक्षा तक मुफ़्त शिक्षा देने का प्रावधान है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने जस्टिस सच्चर समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से मुसलमानों) की मदद करने के लिए इन दोनों छात्रवृत्तियों को लागू किया था। इसलिए इस छात्रवृत्ति को बंद करना भेदभावपूर्ण है।

स्कॉलरशिप क्यों ज़रूरी है

साल 2006 में यूपीए सरकार ने भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट करने के लिए न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया था। यद्यपि सभी मामलों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व भारत में उसकी जनसंख्या के अनुपात से कम है, फिर भी वे शिक्षा में ख़ास तौर से पीछे हैं।

सच्चर समिति ने 2006 में रिपोर्ट सौंपी। इसमें बताया गया कि शिक्षा में राष्ट्रीय औसत 64.8% के मुक़ाबले मुसलमानों में साक्षरता दर 59.1% थी। इसके अलावा, 20 वर्ष और उससे अधिक आयु की लगभग 7% आबादी की तुलना में 4% से कम मुसलमान स्नातक या डिप्लोमा किए हुए थे। यूपीए सरकार ने सामाजिक आर्थिक गतिशीलता प्राप्त करने के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों की मदद करने की आवश्यकता को महसूस करने के बाद कई नई छात्रवृत्तियां शुरू कीं।

साल 2009 में शुरू किए गए एमएएनएफ़ ने हज़ारों अल्पसंख्यक छात्रों को प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में पीएचडी करने के लायक़ बनाया। 2009-10 से 2017-18 तक सालाना 756 एमएएनएफ छात्रवृत्तियां दी जाती थीं। 2018-19 में इसे बढ़ाकर 1,000 कर दिया गया। 2009-10 से 2020-21 तक 9,650 से अधिक छात्रों ने एमएएनएफ़ का लाभ उठाया है। 2018-19 तक कुल 7,800 लाभार्थियों में, मुसलमानों में 5,507, ईसाई 1,051, सिख 772, बौद्ध 358, पारसी 64, जैन 46 और दो ट्रांसजेंडर छात्र शामिल थे (धर्म के आधार पर आंकड़ा केवल 2018-19 तक ही उपलब्ध है)।

हालांकि उच्च शिक्षा और शोध में मुस्लिम महिलाओं का अनुपात सबसे कम है ऐसे में एमएएनएफ़ ने शोध करने वाली मुस्लिम महिलाओं को बहुत प्रभावित किया है। एक नीति के रूप में एमएएनएफ़ का 30% महिला छात्रों के लिए आरक्षित था। 2015-16 और 2018-19 के बीच, 50% से अधिक लाभार्थी (3,268 में से 1,720) महिलाएं थीं। (लिंग के आधार पर डेटा केवल 2015-16 से 2018-19 तक उपलब्ध है)।

शिक्षा को आसान बनाना

यूपीए सरकार ने मुस्लिम छात्रों को अपनी शिक्षा जारी रखने को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए प्री-मैट्रिक (2008), पोस्ट-मैट्रिक (2007) और मेरिट-कम-मीन्स (2007) छात्रवृत्ति जैसी नई योजनाएं शुरू कीं। इसने बाद में इन योजनाओं का लाभ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे सिखों, ईसाइयों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों (पारसियों) को दिया। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा बताया गया कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना, स्कूली शिक्षा पर वित्तीय बोझ को हल्का करना और अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा पूरा करने के लिए उनके प्रयासों को जारी रखना शामिल था। इसके अनुसार, "यह योजना उनकी शिक्षा हासिल करने के लिए नींव डालने का काम करेगी और प्रतिस्पर्धी रोज़गार क्षेत्र में एक समान अवसर प्रदान करेगी।"

केंद्र सरकार ने यह नहीं माना है कि सभी शैक्षिक स्तरों पर मुसलमानों का कुल उपस्थिति अनुपात बहुत कम है। 2017-18 में किए गए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 75वें राउंड के अनुसार, मुसलमानों में युवाओं का उच्चतम अनुपात (17% पुरुष और 22% महिलाएं) था, जिन्होंने कभी भी औपचारिक शैक्षिक कार्यक्रमों में दाख़िला नहीं लिया था। कुछ भी हो, आज मुस्लिम युवाओं की शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता का विस्तार करने का मामला है।

दोषपूर्ण तर्क

मंत्री स्मृति ईरानी का यह दावा कि एमएएनएफ़ अन्य फ़ेलोशिप के साथ ओवरलैप करता है, तार्किक रूप से असंगत है। कोई भी छात्र एक साथ एक से अधिक फ़ेलोशिप का लाभ नहीं उठा सकता है, क्योंकि ये सभी फ़ेलोशिप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एक केंद्रीकृत प्रणाली के ज़रिए वितरित की जाती हैं।

एमएएनएफ़ को बंद करने से अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप का हिस्सा कम हो जाएगा। प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति जैसी कल्याणकारी योजनाएं मुख्य रूप से माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए दी जाती हैं। वित्तीय सहायता को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

हिंदुत्व एजेंडा

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ भेदभाव करने के लिए एक संगठित अभियान चला रही है। नागरिकता संशोधन अधिनियम के साथ साथ एमएएनएफ़ को बंद करने और प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, मुसलमानों की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या करने वालों की माफ़ी, हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग और जम्मू-कश्मीर को एकीकृत करने की एकतरफ़ा कार्रवाई में हिंदुत्व मानसिकता और राष्ट्रीयता स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की बू आती है।

अरुण कुमार बेंगलुरु स्थित जीआईटीएएम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं और किशोरकुमार सूर्यप्रकाश अमेरिका के एमहर्स्ट स्थित मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के डॉक्टरेट स्कॉलर हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

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