घाटी में कश्मीरी पंडित खुद के साथ विश्वासघात क्यों महसूस कर रहे हैं?

Written by sabrang india | Published on: August 11, 2020
90 के दशक में अपने खिलाफ हिंसा से जहां ज्यादातर कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर विस्थापन को मजबूर हो गए, वहीं कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिकू और 800 परिवार ने कश्मीर में रहना जारी रखा। इस दौरान जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने से लेकर न जाने कितनी हिंसा की घटनाएं सामने आईं लेकिन इन परिवारों ने देश की विविधता को बचा कर रखा।



लगभग तीन दशक बाद भी घाटी में कश्मीरी पंडित अपने साथ क्यों  विश्वासघात महसूस कर हैं? कश्मीरी पंडितों ने किस तरह से मुसीबतों का सामना किया और अब भी मुसीबतों का सामना कर रह रहे हैं। वहां के हालात क्या हैं। इसको लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ ने संजय टिकू से बातचीत की। 

टिकू ने कहा, 'मेरे लिए कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष होने के नाते कश्मीर घाटी में रहने वाले मेरे युवा समुदाय के सदस्यों के सपनों को पूरा करने के लिए आमरण अनशन पर जाने का समय आ गया है।'

उन्होंने जो मांगें रखी हैं उनमें 600 बेरोजगार शिक्षित युवाओं के लिए नौकरी, घाटी में रहने वाले 808 परिवारों के लिए मासिक नकद राहत के साथ-साथ कश्मीर में सभी मंदिरों, अस्थानों, पवित्र झरनों और श्मशान घाटों का संरक्षण, जीर्णोद्धार और नवीनीकरण शामिल है।

जहां तक ​​शिक्षित युवाओं के लिए नौकरियों की बात है, इसकी अनुशंसा समय-समय पर गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गई है और कई याचिकाओं में उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में निर्देश भी जारी किए गए हैं।

टिकू ने कहा कि "हर मतलबी और मध्यस्थ का इस्तेमाल इस प्रक्रिया को तोड़फोड़ करने और गैर-प्रवासी कश्मीरी पंडितों को दीवार पर धकेलने के लिए किया जाता है ताकि हम कश्मीर छोड़ दें, कुछ नफरत वाले राजनीतिक एजेंडे को लागू करें"।

उन्होंने आगे कहा कि आपदा प्रबंधन राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग एक लूट का खेल खेल रहा था और बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करने के लिए तैयार नहीं था।

टिकू ने कहा, "हमें नजरअंदाज कर दिया गया, हमें लगता है कि कोई भी हमारी बात नहीं मान रहा है।"

नीचे लिंक पर क्लिक कर देखें पूरा वर्चुअल संवाद-

बाकी ख़बरें