पश्चिम बंगाल, असम चुनाव व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बांग्लादेश दौरा

Written by हसन पाशा | Published on: March 24, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 और 27 मार्च को बांग्लादेश के दो दिवसीय दौरे पर जाएंगे। बांग्लादेश अपने राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की 100वीं जन्मजयंती और आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा ऐतिहासिक रहेगा। बांग्लादेश को लेकर ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतवंशी हसन पाशा आपबीती लिख रहे हैं, जिसपर गौर किया जाना जरुरी है। 



हसन पाशा लिखते हैं....
सन 2021 में बांग्लादेश युद्ध को 50 साल हो रहे हैं। ये बंगालियों पर पाकिस्तान सरकार के अत्याचार का अंत था। पूर्वी पाकिस्तान से लोग भाग-भाग कर भारत आ रहे थे। इन शरणार्थियों की तादाद लाखों तक पहुँच चुकी थी। ऐसी स्थिति में भारत सरकार का हस्ताक्षेप ज़रूरी हो चुका था। नतीजा था पूर्वी पाकिस्तान में भारत-पाकिस्तान का युद्ध।

पाकिस्तान की हार हुई और पूर्वी पाकिस्तान का नया नाम बांग्लादेश पड़ा। 

पाकिस्तान के प्रति बांग्लादेश की जनता और लीडरों की नफरत नाजायज़ नहीं थी। बांग्लादेश पाकिस्तान के लिए महज़ कमाई का एक ज़रिया बन गया था। बांग्लादेश की मुख्य उपज जूट का निर्यात पाकिस्तान की आमदनी के मुख्य साधनों में से एक था। इस कमाई से पाकिस्तान में निर्माण और विकास के काम हो रहे थे, बांग्लादेश को पूरी तरह उपेक्षित किया जा रहा था। पाकिस्तान के जनरल, नेता और नौकरशाह उनके पैसों से ऐश कर रहे थे और वो भूख और बदहाली झेल रहे थे। 

इस अन्याय के ख़िलाफ़ बांग्लादेश का ग़ुस्सा और आक्रोश स्वाभाविक था। जब उन्होंने आवाज़ बुलंद करना शुरू किया तो पाकिस्तान की पंजाबी बहुल सेना का अत्याचार आख़िरी हदें छूने लगा। लाखों औरतों को उसने अपनी हवस का शिकार बनाया। बच्चों और बूढ़ों तक को छोड़ा नहीं गया। उनके सामने उनकी भाषा और संस्कृति का मज़ाक उड़ाया जाता था। त्रस्त और भयभीत लोग अपना देश छोड़ कर भारत भागने लगे। 

मेरे अब्बा 71 के युद्ध से कुछ ही समय पहले फ़ौज से रिटायर्ड हुए थे। मुझे अच्छी तरह याद है, वो फ़ौज द्वारा आपातकालीन सेवा के लिए बुलाये जाने का इंतज़ार कर रहे थे। वो पूरी तरह अपनी वर्दी समेत सीमा पर जाने के लिए तैयार बैठे थे। 

पाकिस्तान के ज़ुल्म ने बांग्लादेश के आम आदमी के दिल में पाकिस्तान के लिए ऐसी नफ़रत भर दी जो भाषाओं तक पहुँच गयी। मालूम नहीं कि वर्तमान समय में बांग्लादेशी पाकिस्तान के प्रति कितने सहज या असहज हैं लेकिन 10 -12 साल पहले इस नफरत की एक झलक मैंने सीधे तौर पर देखा। एक बांग्ला देशी डेलिगेशन से एक मौक़े पर मेरी मुलाक़ात उसके कुछ लोगों से हुई तो मैंने पाकिस्तान -बांग्लादेश सम्बन्ध पर एक सवाल पूछा। 

उनका जवाब ये था : "हमें पाकिस्तान से नफ़रत है और हमें उर्दू से नफरत है।" सत्तर साल पहले एक पाकिस्तान समर्थक नेता ने कहा था: "इस्लाम के झंडे तले सारे मुसलमान एक हैं।" सोचने की बात है।

एक बात और। पाक-भारत का ये युद्ध अगर आज हुआ होता तो क़तई ताज्जुब नहीं कि इसे हिन्दू बनाम मुसलमान बना दिया जाता।
 

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