विश्वनाथ कॉरिडोर जिसके जरिए काशी के वजूद को मिटाने की साजिश रची जा रही है। जिस परियोजना के चलते पुरानी काशी का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है। अब तो बीती रात ही सीएम आदित्यनाथ की लग्जरी कार भी मंदिर परिसर तक पहुंच गई थी। बताया जा रहा है कि यह देख कर मुख्यमंत्री काफी खुश हुए थे। यह बीती रात (10 जनवरी 2019) की घटना है। लेकिन यह जान कर लोगों को आश्चर्य होगा कि इस परियोजना की बुनियाद जब आज से 42 साल पहले रखी गई और इसकी जानकारी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हुई तो वह गुस्से से लाल हो गई थीं। उन्होंने अपना विशेष दूत काशी भेजा और सारी जानकारी हासिल की।
पूरी जानकारी मिलते ही उन्होंने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को दिल्ली तलब किया। तिवारी और इंदिरा जी के बीच तल्ख बातचीत हुई और इंदिरा गांधी ने सख्त निर्देश दिया कि इस परियोजना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए और जिसने भी इसकी रूपरेखा तय की है उसे दंडित किया जाए। तब जा कर यह परियोजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। लेकिन तब भी इसके कर्णधार एक कमिश्नर थे, लिहाजा वह फाइल कहीं कमिश्नरी में दबी रही जिसे झाड़ पोंछ कर 2015 में फिर से निकाला गया और मौजूदा प्रधानमंत्री व वाराणसी के सांसद को उसकी जानकारी दी गई और वह परियोजना पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट बन गई।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सहयोगी मंडल की सदस्य पुपुल जयकर ने इस विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना का पूरा वृतांत अपनी पुस्तक, "Indira Gandhi A Biography" में लिखा है। पेग्विन ब्लू इसके मुद्रक व प्रकाशक हैं। यह पुस्तक पहली बार 1992 में आई थी बाजार में उसके बाद 1993 फिर 1995 में इसका अंतिम प्रकाशन हुआ। इस पुस्तक के चैप्टर-04 में जयकर ने 1976 की गर्मियों का जिक्र करते हुए लिखा है कि, इंदिरा जी को कहीं से यह पता चला कि काशी में व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ की जा रही है। ऐसे में उन्होंने मुझे बुलाया और काशी जा कर वस्तुस्थिति की जानकारी ले कर उन्हें अवगत कराने का निर्देश दिया।
उनके कहने पर मैं बनारस आई और काशी विश्वनाथ मंदिर जाने के लिए छत्ताद्वार के तरफ से जैसे ही अंदर जाने की कोशिश की तो वहां कुछ तोड़फोड़ दिखा। इस पर मैने तत्कालीन कमिश्नर से जानकारी चाही तो वह उन्होंने कहा कि यूपी के राज्यपाल की इच्छा है कि ज्ञानवापी से कार सीधे विश्वनाथ गर्भ गृह तक चली जाए। इस पर मैने कमिश्नर से सवाल किया कि यह कैसे संभव है, गली में कार कैसे जाएगी, तो कमिश्नर ने कहा कि छत्ता द्वार से विश्वनाथ मंदिर तक रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों, भवनों को गिरा दिया जाएगा। विग्रह हटा दिए जाएंगे और रास्ता सुगम हो जाएगा। इस पर मैने गहरी आपत्ति जताई कहा कि यह तो काशी की हजारों साल पुरानी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और वास्तु से खिलवाड़ होगा इसे तत्काल रोक दिया जाए।
इस पर कमिश्नर ने कहा कि यह नहीं हो सकता क्योंकि यह राज्यपाल का निर्देश है। ऊपर से हम सभी पर दबाव है। इस पर मैने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुझे बनारस भेजा है और जब तक मैं दिल्ली जा कर पूरे घटनाक्रम से अवगत नहीं करा देती और उनका कोई निर्देश जारी नहीं होता तब तक काम रोक दिया जाए। अब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम सुन कर कमिश्नर ने कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया।
ऐसी गलियां जिसके साथ सदियों से नहीं हुई छेड़छाड़
पुपुल जयकर लिखती हैं कि इंदिरा जी के कहने पर जब 1976 की गर्मियों में बनारस आई थी तो मुझे यहां के लोगों ने बताया था कि सदियों से ये गलियां इसी तरह हैं। इसके साथ कभी किसी ने छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं। इन गलियों में ऐसे भी स्थान हैं जहां कभी सूर्य की किरणें तक नहीं पहुंचतीं। ऐसी काशी के प्राचीन स्वरूप को तहस-नहस करने की बात जान कर इंदिरा जी ने माथा पकड़ लिया वह गहरी चिंता में डूब गईं। काफी दुःखी हुई थीं।
परियोजना के नेपथ्य में संजय गांधी!
दरअसल यह घटना उस वक्त की है जब इंदिरा जी के छोटे बेटे संजय गांधी का वर्चस्व था। उन्हीं के कहने पर पुरानी दिल्ली, आगरा और काशी में व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ की योजना बनी थी। पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के आसपास के इलाके पर जमकर तोड़फोड़ हुई थी। बनारस में काशी विश्वनाथ परिक्षेत्र के साथ ही पूरी काशी का नक्शा ठीक उसी तरह से बदलने की तैयारी थी जैसे आज हो रही है। इसी के तहत कमच्छा तिराहा (रथयात्रा-कमच्छा मार्ग, बीटीएस स्कूल) के पास पहली बार बनारस में बुल्डोजर गरजा था और किनारे के भवन को इस कदर गिराया गया मानों वहां बमबारी हुई हो। पूरी चहारदीवारी गिरा दी गई। उनका ड्राइंग रूम सड़क से दिखने लगा था। इसकी शिकायत भी तत्कालीन प्रधानमंत्री से की गई थी।
एक वो पीएम जिसने काशी को समझ कर रद की परियोजना, अब सरकार ही नष्ट कर रही काशी
इस पूरे घटनाक्रम पर काशी को नजदीक से जानने वाले संकटमोचन मंदिर के महंत और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विश्वंर नाथ मिश्र ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि यह सही है कि 1976 में ऐसा कुछ घटनाक्म हुआ था जिसका उल्लेख जयकर की किताब में मिलता है। उन्होंने कहा कि काशी तो गलियों का शहर है ही। इन गलियों की खूबसूरती को ही देखने देश विदेश से लोग आते रहे हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द के मंदिर और घरों में बसे देव विग्रहों का संबंध बाबा विश्वाथ जो भक्त बाबा दरबार तक नहीं जा पाते थे वो इन देव विग्रहों का ही दर्शन कर धन्य हो लेते थे।
इतना ही नहीं चाहे श्री गणेश का मंदिर हो या हनुमान जी का या अन्य किसी अन्य देव का वो सब एक दूसरे से जुड़े हैं। इसीलिए तो काशी को गलियों और मंदिरों का शहर कहा गया। इस चीज को देश की सबसे बड़ी तानाशाह कही जाने वाली लौह महिला ने समझा था। काशी के महात्म्य को उन्होंने समझा था तब उन्होंने उसे रोकवा दिया। हालांकि तब यह सरकारी परियोजना नहीं थी। संजय गांधी कहीं से अधिकृत नहीं थे। लेकिन अब तो सरकार ही सब कुछ जानते हुए काशी को, काशी की संस्कृति, सभ्यता को नष्ट करने पर तुली है तो अब बाबा विश्वनाथ ही न्याय करेंगे।
डॉ. अजय चतुर्वेदी द्वारा संपादित यह खबर पत्रिका से साभार ली गई है।
पूरी जानकारी मिलते ही उन्होंने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को दिल्ली तलब किया। तिवारी और इंदिरा जी के बीच तल्ख बातचीत हुई और इंदिरा गांधी ने सख्त निर्देश दिया कि इस परियोजना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए और जिसने भी इसकी रूपरेखा तय की है उसे दंडित किया जाए। तब जा कर यह परियोजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। लेकिन तब भी इसके कर्णधार एक कमिश्नर थे, लिहाजा वह फाइल कहीं कमिश्नरी में दबी रही जिसे झाड़ पोंछ कर 2015 में फिर से निकाला गया और मौजूदा प्रधानमंत्री व वाराणसी के सांसद को उसकी जानकारी दी गई और वह परियोजना पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट बन गई।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सहयोगी मंडल की सदस्य पुपुल जयकर ने इस विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना का पूरा वृतांत अपनी पुस्तक, "Indira Gandhi A Biography" में लिखा है। पेग्विन ब्लू इसके मुद्रक व प्रकाशक हैं। यह पुस्तक पहली बार 1992 में आई थी बाजार में उसके बाद 1993 फिर 1995 में इसका अंतिम प्रकाशन हुआ। इस पुस्तक के चैप्टर-04 में जयकर ने 1976 की गर्मियों का जिक्र करते हुए लिखा है कि, इंदिरा जी को कहीं से यह पता चला कि काशी में व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ की जा रही है। ऐसे में उन्होंने मुझे बुलाया और काशी जा कर वस्तुस्थिति की जानकारी ले कर उन्हें अवगत कराने का निर्देश दिया।
उनके कहने पर मैं बनारस आई और काशी विश्वनाथ मंदिर जाने के लिए छत्ताद्वार के तरफ से जैसे ही अंदर जाने की कोशिश की तो वहां कुछ तोड़फोड़ दिखा। इस पर मैने तत्कालीन कमिश्नर से जानकारी चाही तो वह उन्होंने कहा कि यूपी के राज्यपाल की इच्छा है कि ज्ञानवापी से कार सीधे विश्वनाथ गर्भ गृह तक चली जाए। इस पर मैने कमिश्नर से सवाल किया कि यह कैसे संभव है, गली में कार कैसे जाएगी, तो कमिश्नर ने कहा कि छत्ता द्वार से विश्वनाथ मंदिर तक रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों, भवनों को गिरा दिया जाएगा। विग्रह हटा दिए जाएंगे और रास्ता सुगम हो जाएगा। इस पर मैने गहरी आपत्ति जताई कहा कि यह तो काशी की हजारों साल पुरानी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और वास्तु से खिलवाड़ होगा इसे तत्काल रोक दिया जाए।
इस पर कमिश्नर ने कहा कि यह नहीं हो सकता क्योंकि यह राज्यपाल का निर्देश है। ऊपर से हम सभी पर दबाव है। इस पर मैने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुझे बनारस भेजा है और जब तक मैं दिल्ली जा कर पूरे घटनाक्रम से अवगत नहीं करा देती और उनका कोई निर्देश जारी नहीं होता तब तक काम रोक दिया जाए। अब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम सुन कर कमिश्नर ने कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया।
ऐसी गलियां जिसके साथ सदियों से नहीं हुई छेड़छाड़
पुपुल जयकर लिखती हैं कि इंदिरा जी के कहने पर जब 1976 की गर्मियों में बनारस आई थी तो मुझे यहां के लोगों ने बताया था कि सदियों से ये गलियां इसी तरह हैं। इसके साथ कभी किसी ने छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं। इन गलियों में ऐसे भी स्थान हैं जहां कभी सूर्य की किरणें तक नहीं पहुंचतीं। ऐसी काशी के प्राचीन स्वरूप को तहस-नहस करने की बात जान कर इंदिरा जी ने माथा पकड़ लिया वह गहरी चिंता में डूब गईं। काफी दुःखी हुई थीं।
परियोजना के नेपथ्य में संजय गांधी!
दरअसल यह घटना उस वक्त की है जब इंदिरा जी के छोटे बेटे संजय गांधी का वर्चस्व था। उन्हीं के कहने पर पुरानी दिल्ली, आगरा और काशी में व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ की योजना बनी थी। पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के आसपास के इलाके पर जमकर तोड़फोड़ हुई थी। बनारस में काशी विश्वनाथ परिक्षेत्र के साथ ही पूरी काशी का नक्शा ठीक उसी तरह से बदलने की तैयारी थी जैसे आज हो रही है। इसी के तहत कमच्छा तिराहा (रथयात्रा-कमच्छा मार्ग, बीटीएस स्कूल) के पास पहली बार बनारस में बुल्डोजर गरजा था और किनारे के भवन को इस कदर गिराया गया मानों वहां बमबारी हुई हो। पूरी चहारदीवारी गिरा दी गई। उनका ड्राइंग रूम सड़क से दिखने लगा था। इसकी शिकायत भी तत्कालीन प्रधानमंत्री से की गई थी।
एक वो पीएम जिसने काशी को समझ कर रद की परियोजना, अब सरकार ही नष्ट कर रही काशी
इस पूरे घटनाक्रम पर काशी को नजदीक से जानने वाले संकटमोचन मंदिर के महंत और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विश्वंर नाथ मिश्र ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि यह सही है कि 1976 में ऐसा कुछ घटनाक्म हुआ था जिसका उल्लेख जयकर की किताब में मिलता है। उन्होंने कहा कि काशी तो गलियों का शहर है ही। इन गलियों की खूबसूरती को ही देखने देश विदेश से लोग आते रहे हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द के मंदिर और घरों में बसे देव विग्रहों का संबंध बाबा विश्वाथ जो भक्त बाबा दरबार तक नहीं जा पाते थे वो इन देव विग्रहों का ही दर्शन कर धन्य हो लेते थे।
इतना ही नहीं चाहे श्री गणेश का मंदिर हो या हनुमान जी का या अन्य किसी अन्य देव का वो सब एक दूसरे से जुड़े हैं। इसीलिए तो काशी को गलियों और मंदिरों का शहर कहा गया। इस चीज को देश की सबसे बड़ी तानाशाह कही जाने वाली लौह महिला ने समझा था। काशी के महात्म्य को उन्होंने समझा था तब उन्होंने उसे रोकवा दिया। हालांकि तब यह सरकारी परियोजना नहीं थी। संजय गांधी कहीं से अधिकृत नहीं थे। लेकिन अब तो सरकार ही सब कुछ जानते हुए काशी को, काशी की संस्कृति, सभ्यता को नष्ट करने पर तुली है तो अब बाबा विश्वनाथ ही न्याय करेंगे।
डॉ. अजय चतुर्वेदी द्वारा संपादित यह खबर पत्रिका से साभार ली गई है।