सुकमा में फर्जी मुठभेड़, ग्रामीण बोले- गोली मारने के बाद महिला को वर्दी पहना रहे थे जवान

Written by Anuj Shrivastava | Published on: February 5, 2019
रायपुर। छत्तीसगढ़ में सुकमा ज़िले के पोलमपल्ली थानांतर्गत गोदेलगुड़ा गांव में मातम और आक्रोश का माहौल है। मामला शनिवार 2 फ़रवरी का है। गांव की एक महिला पोड़ियाम सुक्की की सीआरपीएफ के जवानों की गोली से मौत हो गई। एक और महिला कलमु देवे घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती है। पुलिस इन महिलाओं को माओवादी बता रही है जबकि ग्रामीणों का कहना है कि यहां कोई मुठभेड़ नहीं हुई। 

ग्रामीणों का आरोप है कि CRPF के जवानों ने जानबूझकर महिलाओं पर गोलियां चलाईं। एक महिला को मारने के बाद जबरन वर्दी पहनाने की कोशिश करने लगे। पुलिस इस मामले को नक्सलियों के साथ मुठभेड़ दिखाना चाह रही है जबकि एकतरफा गोली पुलिस की तरफ से ही चलाई गई है। 
 
पुलिस का पक्ष
इस मामले पर एसपी जितेन्द्र शुक्ला ने रविवार को प्रेसवार्ता में अपना पक्ष रखते हुए कहा, “जंगल में जवानों और नक्सलियों के बीच लगभग 10 मिनट तक मुठभेड़ चली। मुठभेड़ स्थल से एक भरमार बन्दूक, पिट्ठू, 9058 रुपए नकद, कोरडेक्स वायर, डेटोनेटर, जिलेटिन स्टिक समेत अन्य सामग्री बरामद की गई हैं। मुठभेड़ के दौरान दोनों महिलाएं एनकाउंटर स्थल से कुछ ही दूरी पर जंगल में लकड़ियां इकठ्ठा कर रही थीं। फायरिंग की आवाज़ सुनकर दोनों हड़बड़ाहट में गोलीबारी की दिशा की तरफ ही भागीं और पोड़ियाम सुक्की के पेट में गोली लगी। एक गोली कलमु देवे की जांघ पर लगी।” सुकमा एसपी ने ये भी कहा कि महिला की मौत के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है और मजिस्ट्रियल जांच की जा रही है।

ग्रामीण
चश्मदीद गवाह का बयान
घटना के बाद अखबार दैनिक भास्कर के पत्रकार नीरज भदौरिया ने अपनी ख़बर में इस घटना की चश्मदीद गवाह पोड़ियाम हूँगी का बयान प्रकाशित किया है। अपने बयान में पोड़ियाम हूँगी बताया कि:-

“मैं, पोड़ियाम सुक्की और कलमु देवे सुबह 7 बजे गांव के पास के जंगल से लकड़ियां लेने एक साथ निकले थे। हम तीनों के हांथ में कुल्हाड़ी थी। हम गांव से पांच या छः सौ मीटर की दूरी पर ही पहुंचे थे कि अचानक हमें जवान नज़र आए, जवानों को देखने के बाद हम वापस गांव की ओर लौटने लगे। हम जैसे ही पीछे मुड़े एक गोली की आवाज़ आई। इसके बाद हम चिल्लाने लगे कि हम लकड़ी लेने आए हैं। मैं सबसे पीछे थी, मेरे आगे पोड़ियाम सुक्की और कलमु थी। इसके बाद एक गोली पोड़ियाम सुक्की को पीछे से ही लगी और वो गिर पड़ी इसके बाद एक गोली कलमु देवे को लगी। कलमु को सहारा देकर मैं उसे गांव के पास लेकर आई। इस बीच पोड़ियाम सुक्की पानी-पानी चिल्ला रही थी। 

जब हम पोड़ियाम सुक्की के लिए पानी लेकर वापस गए तो कुछ जवान उसे वर्दी पहनाने की कोशिश कर रहे थे। गांव वालों ने इसका विरोध किया तो जवानों ने उसे अस्पताल ले जाने की बात कही। इस दौरान भी सुक्की पानी मांग रही थी और हांथ हिला रही थी। फिर जवानों ने उसे झिल्ली (प्लास्टिक बैग) में बांधना शुरू किया तो हमने कहा कि झिल्ली में तो उसकी सांस रुक जाएगी। इस पूरी घटना के दौरान सिर्फ़ तीन गोलियां चली थीं, मुठभेड़ जैसी कोई बात नहीं हुई थी।”

मौकास्थल से बरामद कुल्हाड़ी

घटना का जायज़ा लेने गांव पहुंचीं सोनी सोरी
आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी 15 सदस्यीय जाँच दल के साथ घटना के दूसरे दिन रविवार को गोदेलगुड़ा गांव पहुँचीं। सोनी सोरी ने ग्रामीणों से बात की। गांव वालों ने उन्हें बताया कि सीआरपीएफ के जवान जिसे मुठभेड़ बता रहे हैं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जवानों ने गांव में पहुंचकर पोड़ियाम सुक्की पर फायरिंग की। उन्होंने तीन गोलियां चलाई, इसके बाद जवानों ने उसे नक्सली वर्दी पहना दिया, ग्रामीणों ने इसका विरोध किया लेकिन उन्होंने एक न सुनी। जांच के दौरान सोनी सोरी की टीम को मौके पर तीन कुल्हाड़ी भी मिलीं। सोनी सोरी का कहना है कि ग्रामीणों के बयान और घटना स्थल का हाल पुलिस द्वारा बताई कहानी पर सवालिया निशान लगाते हैं। सोनी सोरी ने पूरे मामले की निष्पक्ष जाँच कराने और दोषियों पर तत्काल कार्रवाई करने की मांग की है।

घटना के विरोध में सुकमा बंद का आह्वान
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बयान जारी करते हुए कहा है कि “पुलिस का ये कहना कि क्रॉस फायरिंग में महिलाओं को गोली लगी है सरासर झूठ है। गांव में किसी प्रकार की मुठभेड़ नहीं हुई। पुलिस की गोली से ही महिलाओं की जान गई है।” सर्व आदिवासी समाज ने दोषी पुलिसवालों पर हत्या का मामला दर्ज करने की मांग करते हुए आज सुकमा बंद का आह्वान किया है।

एनकाउंटर पर ख़ुद-ब-ख़ुद सवाल खड़े हो जाते हैं
पुलिस ने घटना की जो कहानी बताई है उसमें इतने झोल हैं कि वो ख़ुद ही ग़लत साबित होती जा रही है। अखबार ने लिखा है कि “हमारी टीम ने घटना स्थल का मुआयना किया। जिस स्थान पर महिलाओं को गोली लगी, वहां घना जंगल नहीं है। एक तरफ़ मैदान है तो दूसरी तरफ़ तालाब है। देखकर समझा जा सकता है कि मुठभेड़ के दौरान यहां छिपने या छिपकर फायरिंग करने की कोई जगह मौजूद ही नहीं है। घटना स्थल को देखने के बाद एनकाउंटर पर ख़ुद-ब-ख़ुद सवाल खड़े हो जाते हैं।”

गोदेलगुड़ा में गोलीबारी होने के दो दिन बाद तक महिलाओं की कुल्हाड़ी और अन्य सामान घटना स्थल पर ही पड़े हुए हैं। मगर घटना स्थल से खून के धब्बे के निशान ग़ायब हैं। सामजिक कार्यकर्ताओं, आदिवासी समाज व ग्रामीणों का कहना है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ व मामले की जाँच में गड़बड़ी की जा रही है।

15 साल तक चली भाजपा सरकार में ऐसे अनेकों मामले सामने आए। कई में तो पुलिस दोषी भी साबित हुई पर कभी किसी पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। नई बनी कांग्रेस सरकार में ये ऐसा पहला मामला है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नक्सली होने के शक पर ग्रामीणों पर अत्याचार के दर्ज मामलों पर नए सिरे से जांच करने की बात कही थी। अब देखना होगा कि गोदेलगुड़ा की इस घटना पर बघेल सरकार कितनी संवेदनशीलता दिखाती है। 

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