उत्पीडन की संस्कृति के विकल्प की जरुरत

Written by Vidya Bhushan Rawat | Published on: July 6, 2018
पिछले दो हफ्तों में तीन बड़ी घटनाएं हुई है जिनपर जैसी चर्चा होनी चाहिए वैसे नहीं दिखाई दी क्योंकि गत चार वर्षो में हमारे देश के मीडिया ने मुद्दों से ध्यान भटकाने की ‘कला’ में जो महारत हासिल की है वो दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा होगी.



पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी मार्शल लॉ, या राजसत्ता के समय मीडिया ने विरोध दर्ज किया और सत्ता पर सवाल खड़े किये लेकिन भारत में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषक इस समय पूरी कोशिश कर रहे है के देश से विपक्ष और विरोध दोनों ही ख़त्म कर दिए जाएँ ताकि वे अपनी मर्जी का मनुवादी राज्य हमारे उपर थोप सके. जब मीडिया सार्थक बहस से बचता है तो हमारा कर्त्तव्य है उन प्रश्नों को उठाये जो भाड़े के तंत्र इन जानबूझकर छुपा दिए हैं. उन घटनाओं को समझने की कोशिश की जाए तो देश पर मंडराते खतरे दिखाई देते है जो किसी भी तथाकथित दुशमन सी ज्यादा खतरनाक और भयावह है. पहले घटनाक्रमों को देख ले और फिर उनसे अपने नतीजे निकाले.

सर्वप्रथम, भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की दो प्रख्यात मंदिरों में हुई यात्राओ के दौरान उनके साथ हुई बदसलूकी पर देश के किसी भी नेता खासकर जो सरकार में है, एक भी बयान नहीं आया. देश के राष्ट्रपति को इन मंदिरों में उनकी जाति की याद दिलाई गयी और जब भारत का प्रथम नागरिक इन स्थानों में सुरक्षित नहीं है तो देश के लाखो गैर द्विज इनमे अपना सम्मान प्राप्त करेंगे. देश में समरसता की बात करने वाला संघ परिवार इस मामले में चुप है. देश के नामी गिरामी बाबा जो देश के संस्कृति का बखान करते रहते है अचानक से चुप है, आखिर क्यों ? जो कहते है के देश से जाति ख़त्म हो गयी है, छुआछूत मिट चुकी है वे सभी चुप है या मज़े ले रहे है.

दूसरी घटना उत्तराखंड की राजधानी में मुख्यमंत्री के जनता दरबार में हुई जहा एक महिला प्राध्यापक अपने स्थानांतरण के सिलसिले में उनसे मिलने आई थी. मुख्यमंत्री महोदय उस महिला के सवाल पूछने से इतने खफा हुए के उन्होंने महिला को तुरंत निलंबित करने और उसकी गिरफ़्तारी के आदेश दे दिये. मुख्यमंत्री का कहना था के उनके जनता दरबार में सरकारी लोगो के स्थानांतरण से सम्बंधित कोई बात नहीं होनी चाहिए और इसके सम्बन्ध में एक निति बनेगी. बिलकुल बात सही है इन कहानियो के पीछे की कहानी क्या है ये भी हमें नहीं पता हालाँकि ये भी विदित है कि इन्ही महिला को एक और भाजपाई मुख्यमंत्री ने जो कुम्भ के मेले में खूब कमाई के लिए बिख्यात हुए, ने निलंबित किया था. 

दोनों मुख्यमंत्रियों की पत्निया भी अध्यापिकाएं है और वर्तमान मुख्यमंत्री की पत्नी देहरादून में पिछले 17 वर्षो से कार्यरत है और उनका कोई स्थानांतरण कभी नहीं हुआ. वैसे इतने पूरे वर्षो में तो भाजपा की सरकार नहीं थी लेकिन नेताओं की आपसी रिश्तेदारी तो सबको पता है उनके कोई काम नहीं रुकते. तकनीक तौर पर ट्रान्सफर क्यों नहीं हुआ या महिला पहले भी निलंबित हुई या मुख्यमंत्री या अन्य नेताओं की बीवियों के तबादले क्यों नहीं हुए इन पर तो अवश्य चर्चा होनी चाहिए और मीडिया को इनका पर्दाफाश भी करना चाहिए लेकिन जो एक बात मुख्यमंत्री के दरबार से दिखाई दिया वो है हमारा सामंती चरित्र. क्योंकि ऊँची आवाज में बोलना हमारे नेताओं को अखरता है और वह भी जब एक महिला आँख में आँख डाले सवाल पूछे तो अपने आप ही ‘चरित्रहीन’ हो जाती है. वैसे भी संघ की आदर्श महिला वो है जो नौकरी भी करे तो पहले पत्नी, बहु, बेटी की भूमिका ढंग से निभाये और महीने के आखिर में सैलरी घर पर थमा दे, रोज ऑफिस से आये तो सीधे किचन में घुसे और बिना ऊफ के काम शुरू कर दे ताकि ‘परिवार’ खुश रह सके.

अब तीसरी घटना को देखिये जहाँ आपको संघी मानसिकता के दर्शन मिलते है. सुषमा स्वराज जी संघ परिवार की डिक्शनरी की आदर्श महिला है. अभी भी परम्पराओं में ‘पूरी’ तरह से ढली हुई, सुष्माजी ने तो कर्वाचोथ के व्रत को रोमांटिक बनाकर बहुत पोपुलर बना दिया. तीज पर उनका झूला झूलना और देश भर में हो रहे महिलाओं के अत्याचारों पर बिलकुल चुप्पी साधकर बैठना ये संघ के अवसरवाद के उदहारण है.

जब हिंदुत्व के संगठन जम्मू में कठुआ कांड के आरोपियों को बचाने के लिए सड़क पर आ रहे थे और एक मासूम लड़की के पक्ष में लड़ रही एक बहादुर महिला को बायकाट करने की धमकी दे रहे थे तब भी वह चुप थी लेकिन पाकिस्तान के कुछ बीमार बच्चो को और लखनऊ में एक हिन्दू मुस्लिम जोड़े को पासपोर्ट बनाने के मामले में जो त्वरित कार्यवाही उन्होंने की उस पर उनकी पार्टी के ऑनलाइन भक्तो ने उन्हें ही ट्रोल करना शुरू कर दिया. सुषमा जी जैसे महिला जिसने हिंदुत्व के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान किया हो आज उनके ऑनलाइन गुंडों की गालिया खा रही है. 


अगर उनके ट्विटर हैंडल पर गालिया देखे तो उनके पति स्वराज कौशल को लिखा जा रहा है कि अपनी पत्नी की जमकर पिटाई करें, लेकिन सिवाय राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के एक भी मंत्री ने उनके बचाव में एक शब्द नहीं कहा है उसमे भी नितिन गडकरी ने केवल येही कहा के सुषमा जी तो भारत में थी ही नहीं जब ये निर्णय लिया गया. मतलब ये के इन्टरनेट के गुंडों को कुछ भी कहने से डर रहे भारत सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता क्योंकि येही अब उसके काडर है और इन्ही की लगातार क्लास अमित शाह लेते है. अभी तक इतनी मोब लिंचिंग की घटनाएं हुई है जिसमे इतने मासूम मारे गए है महाराष्ट्र से लेकर त्रिपुरा, बिहार, बंगाल, तेलंगाना, आंध्र और ओडिशा तक, लेकिन भारत सरकार का मौन है.

जब पिछले एक हफ्ते में करीब 21 लोग भीड़ ही हिंसा का शिकार हो गए जिसमे पांच लोग महाराष्ट्र के धुले में बच्चा उठाने के आरोप में मारे गए तो दुनिया भर में बदनामी से डरने के लिए सरकार के मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा के व्हात्सप्प को कुछ करना चाहिए. व्हात्सप्प या ट्विटर तो कोई भी काम करेंगे अगर सरकार चाहे तो और उससे ज्यादा जो लम्पट काडर है, जिसको सारे नेता आशीर्वाद दे रहे है क्योंकि भाजपा ये मान चुकी है कि सोशल मीडिया का ये लम्पट काडर ही चुनावो में उसकी नैय्या पार लगाएगा.

राजनीती में मतभेद होते है लेकिन मन्भेद  नहीं होने चाहिए ये अटल जी के शब्द है परन्तु आज जिस तरीके से विरोधियो और आपसे मतभेद रखने वालो से निपटने के तरीके ढूंढें गए है वे निहायत निंदनीय और देश को खतरे में डालने वाले है. अगर इन घटिया हरकतों के लिए कोई पार्टी अपने कार्यकर्ताओ के खिलाफ कार्यवाही नहीं करती या उसके नेताओं के पास उसकी निंदा के शब्द नहीं है तो इसका साफ़ मतलब है के ये जानबूझकर प्रोत्साहित किये जा रहे है. अभी एक महारथी ने जिनके ट्विटर हैंडल पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की धनुर्धारी तस्वीर थी, उन्होंने कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की बेटी से बलात्कार कर डालने की धमकी खुले तौर उन्हें दे डाली. प्रियंका ने पुलिस में रिपोर्ट करवाई है लेकिन अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है लेकिन अभी तक सरकारी और संस्कारी पार्टी के एक भी नेता ने इस पर कुछ नहीं बोला है. भारत में हिन्दुओ का नेतृत्व करने वाले संघ की चुप्पी तो हम सबको पता है के जिंदगी भर उन्होंने कभी भी जातिप्रथा के खिलाफ बात नहीं की और न ही कभी महिला हिंसा पर कुछ बोला . मुझे इन शब्दों को लिखने में भी अफ़सोस होता है लेकिन क्या करें यदि हम सब इस दौर में चुप रहे और अन्याय के खिलाफ नहीं बोले तो ये देश किसी का नहीं रहेगा.

देश भर में बलात्कार की बढती घटनाओं का भी भाजपा और संघ परिवार ने संप्रदायीकरण किया. कठुआ हुआ तो गुंडों के पक्ष में नारे लगवाए. मंदसौर में क्योंकि अपराधी मुसलमान है तो भाजपाई उसे तुरंत फांसी पर लटकाने के लिए कहते है और आरोप लगाते है के ‘सेक्युलर’ लोग अब कैंडल लाइट मार्च क्यों नहीं निकालते. मंदसौर की घटना को वे कठुआ की काट मानकर लगे हुए है लेकिन मै तो उनके नेताओं से सवाल करना चाहता हूँ के उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर अपनी ही राजपूत जाति की लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा और एक भी नेता कुछ नहीं बोला. शर्मनाक बात तो ये के नेता के समर्थन में लोग सडको पे आये. राजपूतो को फर्जी विषयो में तो अपने समुदाय की इज्जत याद आती लेकिन अपने समाज की एक गरीब लड़की का विधायक द्वारा किया गया शोषण उनके समाज के लिए कोई सवाल नहीं बना. उन्नाव की घटना को इसलिए दबाया गया है क्योंकि ये हिंदुत्व के राष्ट्रवाद की पोल खोल सकती है. कठुआ और मंदसौर सेकुलरो और हिन्दुत्ववादियो के अपने अजेंडे में फिक्स होने वाली कहानिया है इसलिए शोर है. सवाल है के उन्नाव को लेकर क्यों है संघ को और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कटघरे में खडा किया गया जिसने अपराधी को बचाने की पूरी कोशिश की.

मेरे एक मित्र ने बरसो पहले आर एस एस का मतलब रयुमर स्प्रेअडिंग सोसाइटी रख दिया लेकिन आज हम जो स्वरूप देख रहे है वो बेहद भयावह और डरावना है. व्हात्सप्प पर कोई भी कहानी बनाकर आप किसी के खिलाफ ही जो भीड़ तंत्र के न्याय को केवल अपनी राजनितिक रोटिया सेंकने के लिए जो आगे बढ़ा रहे हो वो देश के तानें बाने को नष्ट कर देगा जो आज़ादी के बाद बेहद मुश्किलों के बाद हमने बनाया था. इतने बड़े देश में व्यापक धार्मिक, भाषाई और जातीय विविधताओं को स्वीकारते हुए हमने सबके लिए एक कानून बनाया ताकि देश एक रहे. आजदी के वक़्त जवाहर लाल नेहरु का प्रदेश और जाति बिलकुल ऐसी थी के अगर वह चाहते तो भारत को हिन्दू राष्ट्र बना सकते थे लेकिन उन्हें पता था के इसके कितने खतरनाक नतीजे हो सकते है.

आज सत्ता में रहने वाले लोग पिछले चार वर्षो में उनकी सरकार के लगातार असफलताओं को छुपाने के लिए फिर से उन्होई मुद्दों को खडा कर रहे है जो केवल इमोशन पर आधारित है, धर्म और जाति या इतिहास से गड़े मुर्दों को खोद खोद कर निकलकर ये लोग अपने झूठे वादे और विकास की आड़ में मनुवादी संस्कृति थोपकर केवल दो चार गुजराती पूंजीपतियों के हाथ हमारे देश की सम्पति को सौंप देना चाहते है. देश की उर्जा, सम्पति, संशाथान जब इन व्यक्तिगत मुनाफाखोरो के पास जाता है, बैंक जब डूबने को तैयार बैठे हैं लेकिन ये बड़े बड़े चोर फोर्ड की लिस्ट में आते है, मीडिया उनके बच्चो की शादियों को दिखाकर मध्यवर्ग की लालसा को बढाता है लेकिन उनको सवाल करने को नहीं कहता . पत्रकार जब चारण होते है और मालिक का महिमामंडन कर जनता को भ्रमित करते है तो समझ लीजिये के देश पर संकट है.

इस देश में जो आग लगाने का आज षड़यंत्र चल रहा है उसका मुकाबला सभी लोगो को एकता से करना होगा. एक समाज को दुसरे के खिलाफ खड़ा करके, आत्म सम्मान के साथ खड़े लोगो विशेषकर महिलाओं के खिलाफ ऑनलाइन गुंडागर्दी को आगे बढाकर एक सन्देश दिया जा रहा है के या तो चुप रहिये या मार खाइए और यदि आप फिर भी नहीं डरते तो आपकी फिर तंत्र आपको डराएगा.

आजकल उसके भी अनेको तरीके है. भाड़े का मीडिया है, खबरे पकाई जायेंगी, तड़का लगेगा और अन्य कई तरीको से आपकी मौत के इन्तेजाम हैं. ये सब भी झेल लिया तो बदनाम करने के तरीके बहुत से है. स्थिति बहुत गंभीर है और जो लोग आपातकाल चिल्ला रहे है वे आज के दौर को बहुत हलके में ले रहे है. आपातकाल में एक दूरदर्शन था और मीडिया का अशिकंश हिस्सा झुक चूका था लेकिन फिर भी वो इतने बदतमीज नहीं हुए थे जितना आज का मीडिया हो चूका है. हम लोग ऐसे पत्रकारिता को पीत पत्रकारिता कहते है जो चरित्र हनन और सेंसेशन पैदा करते है लेकिन आज के दौर की पत्रकारिता तो पूरी तरीके से गेरुआ हो चुकी है और आकाओ के आग्गे नतमस्तक है.

देश की संस्कृति के ‘रक्षक’ चुप है. वो अपने लोगो को हथियार देकर लड़ना सिखा रहे है. शायद भूल रहे है के बन्दुक से आप न तो कभी लक्ष्य तक पन्हुन्चेंगे और न ही कोई बदलाव कभी आया. दुनिया में हिंसा के कारण बदलाव लाने वाले मिट गए और मिटा दिए गए. बुद्ध, कबीर, नानक, रैदास, आंबेडकर, फुले,भगत सिंह, राहुल संकृत्यायन का देश और संस्कृति सवाल पूछेगी और वैचारिक क्रांति करेगी. देश में आने वाले बदलाव से जिनके तख़्त ताज हिलेंगे वो ही बन्दुक और हिंसा की बात करते है. देश की सत्ता पर काबिज  अल्पसंख्यक आज बहुजन समाज में आ रहे बदलाव और जागरण से घबराये हुए है क्योंकि बाबा साहेब आंबेडकर और तर्क के अन्य योद्धयो के विचारो की पैनी धार से बहुजन समाज आज राजनीतिक तौर अपनी लड़ाई लड़ रहा है और ब्राह्मणवाद का  वैकल्पिक सांस्कृतिक धरातल खड़ा कर रहा है. जिनके पास तर्क नहीं है और दिमाग पर अंधभक्ति का पर्दा पड चुका है वे न कोई बदलाव कर सकते और न ही उसको सहन कर सकते. इसलिए तर्क के योद्धाओं को यथास्थितिवादी, सामंतवादी, पूंजीवादी और पुरोहितवादी पित्र्सत्तातामक ताकतों का जमकर विरोध करना पड़ेगा तभी हम एक नए प्रगतिशील भारत का निर्माण कर पाएंगे.
 

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