सर्व सेवा संघ: आखिर गांधी-जेपी की विरासत को बुलडोजर ने रौंद डाला, बिलखते रहे गांधीवादी

Written by विजय विनीत | Published on: August 12, 2023
"कितनी अजीब बात है कि देश के जिन महापुरुषों का नाम समूची दुनिया में लिया जाता है उनकी विरासत को ही बनारस की सरकार ने अवैध बता दिया।"


Image- samtamarg

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में शनिवार की सुबह बुलडोजरों ने गांधी और जेपी की विरासत को ढहा दिया। कई इमारतें तोड़ दी गई और ध्वस्तीकरण अभियान जारी है। रेलवे और पुलिस प्रशासन की इस कार्रवाई से आक्रोशित गांधी-जेपी के समर्थकों ने प्रदर्शन किया और मुख्य भवन के गेट के सामने सड़क पर लेटकर विरोध प्रदर्शन किया। नारेबाजी और हंगामे के बीच गांधीवादी नेता राम धीरज समेत करीब 20 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सर्व सेवा संघ परिसर में एक डाकघर भी है, जिसे खाली करने के लिए 13 अगस्त 2023 तक का समय दिया गया है। डाक महकमे के लोग अपना सामान शिफ्ट करने में जुटे हैं। गिरफ्तार किए गए लोगों को पुलिस लाइन भेजा गया है।

राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में शनिवार की सुबह पुलिस और प्रशासनिक अफसर रेल महकमे के लोगों के साथ करीब 7.45 बजे पहुंचे। इनके साथ भारी पुलिस फोर्स और आधा दर्जन बुलडोजर थे। आरपीएफ, सिविल पुलिस के अलावा पीएसी के जवानों ने समूचे परिसर को घेर लिया। एक घंटे बाद प्रशासन के आला अफसर भी मौके पर पहुंच गए। आनन-फानन में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी।

करीब दो घंटे के अंदर आठ इमारतों को ढहा दिया गया। मौके पर भारी पुलिस फोर्स तैनात की गई है। गांधी-जेपी की विरासत पर बुलडोजर चलाए जाने से नाराज गांधीवादी नेता और कई महिलाएं रोती-बिलखती रहीं, लेकिन उन्हें परिसर में नहीं घुसने दिया गया। करीब 12.898 एकड़ में फैले सर्व सेवा संघ परिसर में पुलिस, प्रशासन और रेलवे के तमाम अफसर डटे हुए हैं। संघ परिसर में बुलडोजरों के धमकते ही गांधी-विनोबा-जेपी के समर्थकों ने इमोशनल अपील करते हुए कहा कि देशभर के लोग एक अंतिम प्रयास करें और बापू की विरासत बचाने के लिए यहां पर पहुंचे। इस सूचना पर बनारस के तमाम प्रबुद्ध नागरिकों और गांधी के अनुयायियों ने राजघाट की ओर कूच किया, लेकिन ज्यादातर लोगों को भदऊं चुंगी पर रोक दिया गया। किसी को आगे नहीं बढ़ने दिया गया। बुलडोजरों के जरिये ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले परिसर में सर्च ऑपरेशन चलाया गया। अफसरों ने बिल्डिंगों का मुआयना किया।

दूसरी ओर, सूचना पाकर मौके पर पहुंचे गांधीवादी नेताओं ने विरोध प्रदर्शन व नारेबाजी शुरू कर दी। विरोध कर रहे लोगों को परिसर से दूर ले जाया गया। एक घंटे बाद गांधी-विनोबा-जेपी की विरासत को बुलडोजरों ने ढहाना शुरू कर दिया। सुबह ही सुरक्षाकर्मियों ने समूचे परिसर को घेर लिया था। परिसर के अंदर जाने से सभी को रोक दिया गया था। मीडिया को भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कवर करने की छूट नहीं दी गई।

वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ ने ट्वीट किया है: 



धूल-गर्द से पट गया इलाका

ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान समूचा इलाका धूल और गर्द से पट गया। कई कमरों में गांधीवादियों के कई समान मौजूद थे, जिसे रेल प्रशासन ने नहीं निकालने दिया था। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान संघ परिसर में सब कुछ तहस-नहस हो गया। खबर लिखे जाने तक परिसर में मौजूद गांधी और जेपी की प्रतिमाओं पर बुलडोजर नहीं चले थे। बीजेपी सरकार, प्रशासन और रेलवे महकमे के खिलाफ नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन कर रहे गांधीवादी नेता राम धीरज के अलावा एक्टिविस्ट नंदलाल मास्टर, फादर आनंद, अनूप आचार्य, अरविंद कुशवाहा, ध्रुव, अवनीश, जागृति राही, अनूप श्रमिक, तारकेश्वर, आदि को हिरासत में लेकर पुलिस लाइन भेज दिया गया।



वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई दोपहर बाद तक जारी रही। संघ परिसर में बनारस के कई थानों की पुलिस के अलावा आरपीएफ व पीएसी के जवान डटे हुए हैं। यहां गैर-सरकारी लोगों का प्रवेश तभी से प्रतिबंधित कर दिया गया था जब जिला प्रशासन और रेलवे ने सर्व सेवा संघ भवन और परिसर को कब्जा मुक्त कराया था। उसी समय यह आशंका जताई जा रही थी कि किसी दिन गांधी-विनोबा की विरासत पर बुलडोजर चलाजा जा सकता है। सर्व सेवा संघ परिसर में 48 से अधिक आवास और चार संग्रहालय थे।

रेलवे के हवाले कर दी थी संपत्ति

बनारस के जिलाधिकारी एस.राजलिंगम ने संघ परिसर पर गांधी-जेपी के अनुयायियों के हक का दावा खारिज कर दिया था। बाद में प्रशासन ने समूची जमीन रेलवे के हवाले कर दी थी। रेलवे प्रशासन ने जमीन से कब्जा हटाने और इमारतों को ढहाने का जून 2023 में ही नोटिस चस्पा कर दिया था। रेलवे की इस कार्रवाई के खिलाफ गांधी के समर्थकों ने करीब डेढ़ महीने तक सत्याग्रह आंदोलन और प्रदर्शन किया।

इस बीच यह मामला हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। शीर्ष अदालत में जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सर्व सेवा संघ की ओर से पैरवी की। उन्होंने भवन के गांधी, जेपी और बिनोवा से जुड़े इतिहास से बारे में जानकारी देते हुए ध्वस्तीकरण रोकने का आग्रह किया और अदालत में दलील दी, "महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने साल 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी। करीब 63 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारतों प्रशासन ढहाने की कोशिश कर रहा है। "सुप्रीम कोर्ट में तमाम दलीलों के बावजूद सर्व सेवा संघ को कोई राहत नहीं मिल सकी। शीर्ष अदालत ने वादी पक्ष को निचली अदालत में रिवीजन याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया था।

गांधी-जेपी के समर्थकों के लाख प्रयास के बावजूद प्रशासन और रेलवे के अधिकारियों ने 22 जुलाई 2023 को सामान बाहर निकलवा दिया था। वहां रह रहे लोगों को जबरिया बेदखल कर दिया गया। लाइब्रेरी और दफ्तरों को खाली करा लिया गया। बाद में रेलवे ने वहां अपना बैनर लगा दिया था। संघ सेवा संघ परिसर में एक पोस्ट ऑफिस भी थी, जिसे गिराने के लिए दो दिन की मोहलत दी गई है। लाइब्रेरी की काफी किताबें बाहर फेंक दी गईं थीं। उस समय आठ लोगों को हिरासत में लिया गया था।



टिकैत ने भी किया था विरोध

रेल प्रशासन की नींद तब उड़ गई थी जब 10 अगस्त 2023 को गांधी-जेपी समर्थकों ने बनारस के शास्त्रीघाट पर शक्ति प्रदर्शन किया। गांधी की विरासत को बचाने के लिए किसान नेता राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव और मेधा पाटेकर भी बनारस पहुंचे और मोदी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। किसान नेता राकेश टिकैत ने अल्टीमेटम दिया था, "अगर सरकार ने बुलडोजर चलाया तो अपने ट्रैक्टर हम दिल्ली के आगे बनारस भी मोड़ सकते हैं। "शक्ति प्रदर्शन के बाद गांधीवादी नेता राम धीरज और एक्टिविस्ट जागृति राही किसान नेता राकेश टिकैत को लेकर सर्व सेवा संघ के बाहर पहुंचे थे। 10 अगस्त तो जागृति ने परिसर में घुसने की कोशिश भी की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। इस दौरान उनकी मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों से झड़प भी हुई थी।

गांधी की विरासत को बचाने के लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, अपना दल के संजय सिंह, जदयू के केसी त्यागी समेत विपक्ष के सभी नेताओं ने सरकार और रेलवे की कार्रवाई की कड़ी भर्त्सना की थी। सर्व सेवा संघ की संपत्ति मामला अभी बनारस के सिविल कोर्ट में विचाराधीन है।

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद रेलवे ने अपनी परियोजनाओं के लिए राजघाट पर जमीन तलाश रही थी। सर्व सेवा संघ की जमीन सरकार और रेलवे के निशाने पर तब आई जब राजघाट में बना नमो घाट चर्चा का विषय बना। इसी के बाद रेल अफसरों ने अपनी परियोजनाओं के लिए पहले दलितों की बस्ती किला कोहना को ढहाया और शनिवार को सर्व सेवा संघ पर बुलडोजर चलवा दिया।

जानी-मानी हस्तियों के माथे पर कलंक

सर्व सेवा संघ की संपत्ति का विवाद तब सुर्खियों में आया जब एक कथित व्यक्ति की शिकायत के आधार पर रेलवे ने सर्व सेवा संघ की जमीन पर अपना दावा ठोका। बाद में डीएम ने सर्व सेवा संघ के निर्माण को अवैध बताते हुए समूची संपत्ति का फैसला उत्तर रेलवे के पक्ष में कर दिया। मुकदमे के दौरान उत्तर रेलवे के अफसरों ने कहा था कि साल 1960, 1961 और 1970 में सभी जमीनें कूटरचित दस्तावेजों के जरिये खरीदी गई है।

सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल कहते हैं, "कांग्रेस सरकार की पहल पर राजघाट स्थित परिसर के लिए तीन पंजीकृत सेल डीड के जरिये जमीन खरीदी थी। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद मार्च 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई थी। विनोबा भावे के नेतृत्व में राजघाट पर लगभग 62 साल पहले सर्व सेवा संघ भवन की नींव रखी गई। इसका मकसद महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। साल 1960 में इसी परिसर में गांधी स्टडी सेंटर खोला गया था। समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण की पहल पर इमारतों का पहला हिस्सा साल 1961 में बनाया गया और दूसरा 1962 में बना। परिसर में गांधी विद्या संस्थान की एक विशाल लाइब्रेरी भी है, जिसमें तमाम पुस्तकें मौजूद हैं।"

चंदन यह भी कहते हैं, "आचार्य विनोबा भावे की पहल पर दान के पैसे से सर्व सेवा संघ की जमीनें साल 1960, 1961 और 1970 में उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। डिवीज़नल इंजीनियर नार्दन रेलवे, लखनऊ द्वारा हस्ताक्षरित तीन रजिस्टर्ड सेल डीड मौजूद हैं। करीब 1971 तक यहां निर्माण 3 बार में पूरे हुए। गांधी स्मारक निधि और जयप्रकाश नारायण द्वारा जुटाई गई दान की धनराशि से सर्व सेवा संघ परिसर में सभी निर्माण कार्य कराए गए थे। कितनी अजीब बात है कि देश के जिन महापुरुषों का नाम समूची दुनिया में लिया जाता है उनकी विरासत को ही बनारस की सरकार ने अवैध बता दिया। जमीन खरीदने के लिए कूट-रचित दस्तावेज तैयार कराने का आरोप उन शख्ससियतों के माथे मढ़ा गया, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपने जान की बाजी तक लगा दी थी।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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