हमारे बीच दैदीप्यमान विचारकों के रूप में जीवित हैं कबीर

Written by Uttam Kumar | Published on: June 29, 2018
पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।



उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए कहा था कि पत्थर से बने बूत पूजने से यदि ईश्वर मिल जाता है तो मैं पहाड़ पूजने लगूं क्योंकि उससे बने चाकी से समस्त दुनिया गेंहू अथवा अन्य चीजों को पिस कर अपना पेट भरता है. आप हिन्दू धर्म व इस्लाम के आलोचक थे. उन्होंने यज्ञोपवीत और ख़तना को बेमतलब क़रार दिया और इन जैसी धार्मिक प्रथाओं की सख़्त आलोचना की थी. उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी. आज वे होते तो किसी जेल में आतंकवादी, उग्रवादी या नक्सलवादी के रूप में सड़ रहे होते. कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे-

#'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ.'

उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुंह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया. आप कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे.

आज भी सच को जाहीर करने के लिए कबीर हमारा मार्गदाता हैं. अंधविश्वास, भेदभाव, सम्प्रदायवाद, जातिप्रथा के घोर विरोधी कबीर संविधान निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर के तीन गुरूओं में से एक थे. सच, अन्याय जैसे तमाम कुरूतियों के खिलाफ कबीर के बताए गए बातों पर चल कर ही हमारा देश सच में लोकतांत्रिक भारत बन सकता है. हां आज भी कबीर हमारे बीच दैदीप्यमान विचारकों के रूप में जीवित हैं.

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