बैजापुर के निर्भया कांड के खुलासे पर सवाल, पुलिस कप्तान ने किया था फर्ज़ीवाड़ा

Written by sabrang india | Published on: October 10, 2019
सुल्तानपुर जनपद के बैजापुर गांव में 10 सितंबर को एक घटना सामने आई जिसमें दिल्ली के निर्भया कांड से भी दो कदम आगे हैवानियत एक युवती के साथ की गई। बैजापुर में एक युवती का शव पेड़ पर टंगा मिला था जिसके गुप्तांगों में डंडा घुसाया हुआ था। इस मामले को पुलिस ने साधारण हत्या का मामला दर्शाया हुआ था। अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है। गिरफ्तार आरोपितों के परिजनों ने सीएम को पत्र लिखकर पुलिस द्वारा किए गए खुलासे को फर्जी करार देते हुए वास्तविकता की पड़ताल के डीएनए टेस्ट कराए जाने की मांग की है। इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री पोर्टल से शिकायत संयुक्त सचिव को जांच के लिए सौंप दी गई है। इस मामले की जानकारी लगातार फॉलोअप कर रहे जागरण के पत्रकार धर्मेंद्र मिश्रा ने अपने फेसबुक वॉल पर शेयर की है जो इस प्रकार है.....





सुलतानपुर के (बैजापुर)-हैवानियत व हत्याकांड में  पीड़िता को न्याय दिलाने के जागरण के अभियान के आगे पुलिस ने घुटने टेके ​​​​​​। घटना केकरीब 25 दिन बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर केस को सुलझाने का दावा किया है, लेकिन कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। पुलिस ने मजबूरी में जागरण में पूर्व में छपे कई तथ्यों को स्वीकार किया है, बाकी तथ्यों को जल्द ही स्वीकार करने वाले हैं....

जागरण द्वारा लगातार इंसाफ के लिए आवाज़ उठाए जाने के बाद 09 सितंबर को बैजापुर में हुई युवती की हत्या व हैवानियत मामले में पुलिस ने शव के शिनाख्त व आरोपियों को आज गिरफ्तार करने का दावा किया है। इस दौरान अब यह भी मान लिया है कि युवती की लाश उन्हें निर्वस्त्र मिली थी। जबकि अबतक पुलिस ने इसे नहीं माना था। हालांकि अभी भी कई सवालों का उत्तर मिलना बाकी है।

नंबर 1.
पुलिस के अनुसार 10 सितंबर को उसी युवती की हत्या हुई, जिसके मिसिंग की एफआईआर 10 जुलाई को धम्मौर थाने में दर्ज़ थी। अगर ऐसा था तो 72 घंटे तक युवती के शव को जब पहचान के लिए रखा गया था, तब इस परिवार से संपर्क साधना जरूरी क्यों नहीं समझा गया? अगर परिवार आया तो उस दौरान पहचान न हो पाने की वजह क्या थी?


नंबर 2. 10 जुलाई को दर्ज़ एफआईआर में अपहरण की तारीख 01 जुलाई 2019 बताई गई है। तीन आरोपी नामज़द थे।  एक जुलाई की घटना की एफआईआर दर्ज करने में पुलिस ने 10 दिन क्यों लगा दिया?

3. नामजद आरोपियों के ख़िलाफ़ शिकायत के बावजूद पुलिस ने बेहद मामूली धारा में मुकदमा क्यों दर्ज किया? नामज़द आरोपियों तक क्यों नहीं पहुंच सकी? जबकि एफआईआर में घर वालों ने लिखाया था कि आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए तो उनकी बेटी की हत्या, दुष्कर्म इत्यादि कुछ भी हो सकता है।

4. इसका मतलब है कि अग़र पुलिस ने उसी वक़्त सक्रियता दिखाई होती तो हैवानियत व दुष्कर्म की वारदात को रोका जा सकता था। पुलिस तंत्र की निष्क्रियता व लापरवाही से दरिंदे इस जघन्य अपराध को अंजाम देने में सफ़ल रहे। ऐसे में क्या पुलिस ईमानदारी से अपने फेलियर होने का जिम्मा लेने की हिम्मत जुटा पाएगी? 


5. पुलिस ने शव को 72 घंटे तक शिनाख्त के नाम पर रखा। दुष्कर्म के सुबूत को नष्ट कराने का गुनाह किया। बावजूद अपने ही जिले के एक थाने में दर्ज़ गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने वाले परिवार को क्या जानबूझकर उस वक़्त नहीं बुलाया? इसके पीछे की वजह क्या थी?

6. अग़र पुलिस को गुमशुदगी व अपहरण दर्ज कराने वाले परिवारों को बुलाने का ध्यान नहीं था तो शव की शिनाख्त के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने में भी 09 दिन बाद फैसला क्यों लिया गया?

7. जो परिवार बेटी के अपहरण की एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस की चौखट का चक्कर काटता रहा। वह इसी जिले में रहने के बावजूद 23 दिन की देरी भला कैसे कर सकता है?... पुलिस की यह थ्योरी अब भी गले नहीं उतर रही।

8. अभी दो दिन पहले पुलिस ने बताया कि परिवार ने बेटी की पहचान उसके कपड़े के आधार पर की। जबकि घटना स्थल पर कपड़े मिले ही नहीं थे? नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी आज हुई। पुलिस आज बता रही है कि अरोपी बता रहे हैं कि कपड़े उन्होंने नदी में फेंक दिए थे। पुलिस ने अभी भी यह क्लीयर नहीं किया कि नदी में फेंके कपड़े कहाँ गए? अग़र वह कपड़े पुलिस को मिल गए तो कब और कैसे मिले? क्योंकि आरोपियों के पकड़े जाने के बाद कपड़े नदी में फेंके जाने की बात उज़ागर हुई है। ऐसे में सवाल ये है कि आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले परिवारजनों व पुलिस को कपड़े कैसे मिल गए, जिसके आधार पर युवती के पहचान का दावा किया जा रहा है?


9. इस मामले में पुलिस के बयानों में विरोधाभास है। अग़र आरोपियों ने अब बताया कि कपड़े नदी में फेंके थे तो उनके पकड़े जाने के पहले किस कपड़े को दिखाकर पुलिस ने युवती की पहचान कराई?


10. सितंबर महीने में बारिश की वजह से नदी पूरे उफान पर है। ऐसे में 09 सितंबर की रात नदी में फेंके गए कपड़े बह जाने चाहिए थे। बॉडी 10 को सुबह बरामद हुई। घटना और बॉडी की बरामदगी में कई घंटे का गैप हो चुका था। ऐसे में नदी में फेंके कपड़े पुलिस को कब और कैसे मिले?


11. पुलिस के अनुसार युवती की सिर्फ हत्या हुई। हैवानियत नहीं हुई। फिर बॉडी को निर्वस्त्र करने, आसपास शराब की बोतलें व गिलास मिलने, उसके प्राइवेट पार्ट में जख्म, गालों, नाक, आंख, मत्थे पर चोट के निशान मिलने की वजह क्या थी?

12. पुलिस ने 10 सितंबर की जिस एफआईआर को रामराज वर्मा के नाम पर दर्ज कराई है। वह घटनास्थल पर थे ही नहीं। बॉडी चले जाने के बाद पहुंचे। उनका कहना है कि उन्होंने कोई शिकायत भी नहीं दी। पुलिस ने अपने आप एफआईआर लिखकर उनसे साइन करवा लिया। यह सब करने के पीछे की रणनीति क्या थी?

13. एक दो प्रत्यक्षदर्शी ही नहीं,बल्कि दर्जनों ग्रामीण बता रहे हैं कि पुलिस ने भी युवती के प्राइवेट पार्ट में घातक वस्तु को पड़े देखा था। एसपी इस मामले पर पर्दा क्यों डाल रहे हैं?

14. दो महीने तक आरोपियों ने क्या युवती को अपने ही जिले में रखा? अग़र हां तो पुलिस उन्हें ट्रैस क्यों नहीं कर सकी। अग़र वह दूसरे जिले में रहे तो अचानक हत्या के लिए इतने पास कैसे आए?

15. आज आरोपियों की गिरफ्तारी भी सुबह 3.50 पर तड़के पयागीपुर ब्रिज के पास लक्ष्मण पुर की ओर दिखाई गई है। 10 सितंबर की घटना के बाद भला यह कैसे हो सकता है कि आज शहर से मात्र 3-4 किलोमीटर की दूरी पर घूम रहे थे? क्या उन्हें 25 दिन में कहीं भागने का मौका नहीं मिला?

नोट- यह जानकारी जागरण के पत्रकार धर्मेंद्र मिश्रा ने अपने फेसबुक वॉल पर शेयर की है। धर्मेंद्र मिश्रा इस केस को घटना के बाद से ही फॉलो कर रहे हैं।)

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