झारखंड में तबरेज़ अंसारी की भीड़ द्वारा की गयी ह्त्या को लेकर जिले के डुमरियागंज में आयोजित कैंडल मार्च को पुलिस-प्रशासन ने रोक दिया। उपजिलाधिकारी ने कहा कि किसी भी क़ीमत पर मार्च का आयोजन नहीं होने दिया जाएगा। जो मार्च निकालने की कोशिश करेंगे, उन्हें गिरफ्तार कर सख्त कार्रवाई की जाएगी। तर्क दिया कि इस आयोजन से सौहार्द बिगड़ेगा। कैंडल मार्च के आयोजकों ने इस रोक को तानाशाही और उसके पीछे के तर्क को फूहड़ करार दिया।
आयोजकों ने कहा कि एक के बाद एक मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। इस कड़ी में तबरेज़ अंसारी की ह्त्या ताजा घटना है। दूसरी तमाम घटनाओं की तरह इस मामले में भी भीड़ ने उसका धर्म जान कर उसे गुनाहगार माना और उसकी ह्त्या की। लेकिन हत्यारी भीड़ पर किसी तरह की कोई लगाम नहीं कसी गयी जो क़ानून ताक पर रख कर आपसी सौहार्द को दहशत के हवाले करती जा रही है। भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री अलीमुद्दीन अंसारी के लिंचिंग में शामिल रहे लोगों को माला पहना कर सम्मानित किया लेकिन इसे आपसी सौहार्द के लिए खतरा नहीं माना गया। यह सरकारी असंवेनशीलता की निशानी है कि आपसी सौहार्द के लिए उन्हें खतरा माना जा रहा है जो अंधी नफ़रत के चलते मारे गए बेक़सूर को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं।
आयोजकों ने इस स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण कार्यक्रम को आपसी सौहार्द बिगाड़ने से जोड़ना और उसे रोक देना लोकतंत्र के लिए भयावह है। कैंडल मार्च पर मनाही के बावत उपजिलाधिकारी ने ऊपर से आये हाई अलर्ट का भी हवाला दिया हालांकि इसका खुलासा नहीं किया कि यह हाई अलर्ट कितने ऊपर से आया। अगर श्रद्धांजलि जैसे कार्यक्रम की भी इजाजत न मिले तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
नागरिक समाज की तरफ से महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन उपजिलाधिकारी को सौंपा गया। इस दौरान शाहरुख अहमद, डॉ वासिफ़, डॉ बख़्तियार, काज़ी इमरान लतीफ़, अज़ीमुश्शान, उसामा खान, प्रशांत पुरषोत्तम पांडेय, सरताज, शादाब, इमरान, जमील खान, अख़्तर, इरफान मिर्ज़ा, परवेज़, अशरफ, शकील, शरीक, ताहिर, सुबराती, रिंकू, अर्जुन कनौजिया, इशराक आदि सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे।
राष्ट्रपति को भेजे गए पांच सूत्री ज्ञापन में कहा गया कि मॉब लिंचिंग के शिकार परिवार का पुर्नवास किया जाए, मॉब लिंचिंग में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, दोषियों को सजा दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए, मॉब लिंचिंग करने वालों पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाया जाए, कानून बनने तक राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करके अब तक देश में हुई मॉब लिंचिंग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कम से कम तीन जजों की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया जाए।
आयोजकों ने कहा कि एक के बाद एक मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। इस कड़ी में तबरेज़ अंसारी की ह्त्या ताजा घटना है। दूसरी तमाम घटनाओं की तरह इस मामले में भी भीड़ ने उसका धर्म जान कर उसे गुनाहगार माना और उसकी ह्त्या की। लेकिन हत्यारी भीड़ पर किसी तरह की कोई लगाम नहीं कसी गयी जो क़ानून ताक पर रख कर आपसी सौहार्द को दहशत के हवाले करती जा रही है। भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री अलीमुद्दीन अंसारी के लिंचिंग में शामिल रहे लोगों को माला पहना कर सम्मानित किया लेकिन इसे आपसी सौहार्द के लिए खतरा नहीं माना गया। यह सरकारी असंवेनशीलता की निशानी है कि आपसी सौहार्द के लिए उन्हें खतरा माना जा रहा है जो अंधी नफ़रत के चलते मारे गए बेक़सूर को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं।
आयोजकों ने इस स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण कार्यक्रम को आपसी सौहार्द बिगाड़ने से जोड़ना और उसे रोक देना लोकतंत्र के लिए भयावह है। कैंडल मार्च पर मनाही के बावत उपजिलाधिकारी ने ऊपर से आये हाई अलर्ट का भी हवाला दिया हालांकि इसका खुलासा नहीं किया कि यह हाई अलर्ट कितने ऊपर से आया। अगर श्रद्धांजलि जैसे कार्यक्रम की भी इजाजत न मिले तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।
नागरिक समाज की तरफ से महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन उपजिलाधिकारी को सौंपा गया। इस दौरान शाहरुख अहमद, डॉ वासिफ़, डॉ बख़्तियार, काज़ी इमरान लतीफ़, अज़ीमुश्शान, उसामा खान, प्रशांत पुरषोत्तम पांडेय, सरताज, शादाब, इमरान, जमील खान, अख़्तर, इरफान मिर्ज़ा, परवेज़, अशरफ, शकील, शरीक, ताहिर, सुबराती, रिंकू, अर्जुन कनौजिया, इशराक आदि सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे।
राष्ट्रपति को भेजे गए पांच सूत्री ज्ञापन में कहा गया कि मॉब लिंचिंग के शिकार परिवार का पुर्नवास किया जाए, मॉब लिंचिंग में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, दोषियों को सजा दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए, मॉब लिंचिंग करने वालों पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाया जाए, कानून बनने तक राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करके अब तक देश में हुई मॉब लिंचिंग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कम से कम तीन जजों की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया जाए।