लखनऊ। रिहाई मंच ने अनुसूचित जाति/जनजाति के अभ्यर्थियों को प्रमोशन में आरक्षण को राज्य सरकार के विवेकाधिकार पर छोड़ने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। मंच का मानना है कि जिन कारणों से आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की गई थी वे अब भी मौजूद हैं इसलिए माननीय उच्च न्यायालय के फैसले से सहमत होने का कोई कारण नहीं है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि संघ और भाजपा समाज के एक छोटे और अति समृद्ध वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। पदोन्नति में आरक्षण को चुनौती उत्तराखंड की भाजपा सरकार द्वारा दी जाती है तो भाजपा की केंद्र सरकार क्रीमी लेयर के बहाने से 2017 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बावजूद 30 ओबीसी अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी जाती है।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति के प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ उत्तराखंड की भाजपा सरकार की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रहतोगी और उत्तराखंड सरकार के एडवोकेट ऑन रिकार्ड वंशजा शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय में सरकार का पक्ष रखते हुए आरक्षण का विरोध किया था। इसलिए मोदी सरकार इसे न्यायालय का फैसला कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकती।
राजीव यादव ने आरोप लगाया कि सरकार दबाव डालकर न्यायालय के फैसलों को प्रभावित कर रही है। देश में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिन पर न्यायालय का रवैया बहुत उदासीन रहा है। उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि पूरी कश्मीर घाटी को खुले जेल में तब्दील कर दिया गया और इंटरनेट व मोबाइल फोन सेवा बाधित कर नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए थे तब भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए लम्बी तारीख दी थी।
इसी तरह नागरिकता विधेयक के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई के लिए भी एक महीने से अधिक की तारीख दी गई। जबकि इसको लेकर पुलिस की कार्रवाई में करीब तीन दर्जन लोगों की मौत हो गई थी और देश भर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हज़ारों लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेलों में बंद कर दिया गया है। देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंटा जा रहा है। लेकिन आरक्षण के मामले में न केवल तुरंत सुनवाई की गई बल्कि आरक्षण को राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ देने का फैसला भी सुना दिया गया। एससीएसटी एक्ट को कमज़ोर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले के खिलाफ अप्रैल 2018 में भारत बंद के दौरान 13 दलितों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अब देश के सामने फिर एक बार वैसी ही स्थिति आती हुई प्रतीत होती है। इसलिए केंद्र सरकार को आरक्षण में पक्ष में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से जातीय हिंसा और उसकी तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे में मंच का स्पष्ट मत है जब तक जाति और जाति आधिारित भेदभाव समाप्त नहीं हो जाता आरक्षण मौलिक अधिकार के रूप में ज़रूरी है। अगर सरकार उचित कदम नहीं उठाती है तो जनता सड़कों पर आने को बाध्य होगी। रिहाई मंच आरक्षण के पक्ष में चलने वाले ऐसे सभी प्रतिवादों और आंदोलनों के साथ है।
द्वारा-
राजीव यादव
रिहाई मंच
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि संघ और भाजपा समाज के एक छोटे और अति समृद्ध वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। पदोन्नति में आरक्षण को चुनौती उत्तराखंड की भाजपा सरकार द्वारा दी जाती है तो भाजपा की केंद्र सरकार क्रीमी लेयर के बहाने से 2017 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बावजूद 30 ओबीसी अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी जाती है।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति के प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ उत्तराखंड की भाजपा सरकार की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रहतोगी और उत्तराखंड सरकार के एडवोकेट ऑन रिकार्ड वंशजा शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय में सरकार का पक्ष रखते हुए आरक्षण का विरोध किया था। इसलिए मोदी सरकार इसे न्यायालय का फैसला कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकती।
राजीव यादव ने आरोप लगाया कि सरकार दबाव डालकर न्यायालय के फैसलों को प्रभावित कर रही है। देश में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिन पर न्यायालय का रवैया बहुत उदासीन रहा है। उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि पूरी कश्मीर घाटी को खुले जेल में तब्दील कर दिया गया और इंटरनेट व मोबाइल फोन सेवा बाधित कर नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए थे तब भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए लम्बी तारीख दी थी।
इसी तरह नागरिकता विधेयक के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई के लिए भी एक महीने से अधिक की तारीख दी गई। जबकि इसको लेकर पुलिस की कार्रवाई में करीब तीन दर्जन लोगों की मौत हो गई थी और देश भर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हज़ारों लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेलों में बंद कर दिया गया है। देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंटा जा रहा है। लेकिन आरक्षण के मामले में न केवल तुरंत सुनवाई की गई बल्कि आरक्षण को राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ देने का फैसला भी सुना दिया गया। एससीएसटी एक्ट को कमज़ोर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले के खिलाफ अप्रैल 2018 में भारत बंद के दौरान 13 दलितों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अब देश के सामने फिर एक बार वैसी ही स्थिति आती हुई प्रतीत होती है। इसलिए केंद्र सरकार को आरक्षण में पक्ष में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से जातीय हिंसा और उसकी तीव्रता में बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे में मंच का स्पष्ट मत है जब तक जाति और जाति आधिारित भेदभाव समाप्त नहीं हो जाता आरक्षण मौलिक अधिकार के रूप में ज़रूरी है। अगर सरकार उचित कदम नहीं उठाती है तो जनता सड़कों पर आने को बाध्य होगी। रिहाई मंच आरक्षण के पक्ष में चलने वाले ऐसे सभी प्रतिवादों और आंदोलनों के साथ है।
द्वारा-
राजीव यादव
रिहाई मंच