अपमान के दस्तावेज़- महिलाओं और पुरूषों के वस्त्र उतरवाने के अपराध का अर्थ और पहलू

Written by MARIYAM USMANI | Published on: August 26, 2023
किसी के वस्त्र उतरवाकर उसकी मानवीय अस्मिता को नष्ट करने की घटनाओं के रिकार्ड, उदाहरण, अर्थ और राजनीति  


Image Courtesy: Deccan Chronicle

अभी हाल ही में हिंसक भीड़ के बीच दो कुकी औरतों को नग्न कर परेड कराने के जारी वीडियो पर देश की जनता ने गहरा ग़ुस्सा जताया है. मई शुरूआत की इस घटना का वीडियो 19 जुलाई को सामने आया था. लेकिन इसके कुछ अरसे के अंदर ही जाधवपुर विश्वविद्यालय में एक दूसरी ऐसी चौंकाने वाली घटना सामने आई है जिसमें एक स्नातक स्टूडेंट तक़रीबन इसी ढंग से सीनियर्स द्वारा लैंगिक उत्पीड़न का शिकार हुआ है. 

ये दो बिल्कुल अलग फिर भी एक जैसी घटनाएं जुर्म के ताने-बाने और ज़ंगआलूद गांठों पर रौशनी डालती हैं. कपड़े उतारकर प्रताड़ित करने का ये तरीक़ा लक्षित प्रताड़ना का एक प्रचलित औज़ार है जिसका इस्तेमाल औरतों और कभी कभी पुरूषों को प्रताड़ित करने के लिए किया जाता रहा है. 

अगर हम विभाजन के रिकार्डस को देखें तो सांप्रदायिक हिंसा, शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग की घटनाओं के अलावा अनेक ऐसी छिटपुट आपराधिक घटनाएं भी इस फ़ेहरिस्त में शामिल हैं जिनकी शिनाख़्त नहीं हो सकी है. भारत के खाते में अनेक ऐसी आपराधिक घटनाएं हैं जिसमें कपड़े उतारकर एक व्यक्ति को शर्मिंदगी और अपमान के खोह में धकेला गया है. 

अगर हम सामाजिक, राजनीतिक और क़ानूनी पैमानों पर इन घटनाओं को तौलें तो ये भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मानवीय अस्मिता, जीवन और निजता के बुनियादी हक़ का हनन है जो आर्टिकल 14,15,16, 17 और 18 के साथ मिलकर हर क़िस्म के भेदभाव के ख़िलाफ़ सुरक्षा सुनिश्चित करता है. 

क्या इस प्रकार की आपराधिक हरकत के पीछे मुख्य वजह, मनोवैज्ञानिक भेद और राजनीति है?

सबसे पहले हमें एक ठोस और मानीख़ेज़ नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ आपराधिक उदाहरणों को देखना होगा. 

बेशर्मी की शर्मनाक घटनाओं का लेखाजोखा- 

1.    23 अगस्त, 2023 को जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्नातक के एक छात्र के कपड़े जबरन उतरवाकर हॉस्टल कॉरिडोर में घुमाने की घटना सामने आई है. किशोर विद्यार्थी की दुखद मौत के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. रिपोर्ट के मुताबिक़ इस मामले में हॉस्टल सीनियर्स शामिल थे.

2.    हाल ही में दो कुकी महिलाओं को नग्न घुमाने के वीडियो ने सबका ध्यान बटोरा है जिसके बाद अवाम में इस बेशर्म जुर्म के ख़िलाफ़ क्रोध, चर्चा और ख़िलाफ़त का दौर तेज़ हुआ है. 4 मई, 2023 को मणिपुर हिंसा के शुरूआती चरण में इंटरनेट-बंदी के दौरान इन महिलाओं का उत्पीड़न और बलात्कार किया गया था. लेकिन क्या इस घटना ने सचमुच हमारी संवेदना और सामूहिक चेतना को जगाया है या अभी महिला सुरक्षा के सवाल पर उठती चिंताओं के मद्देनज़र हमें एक लंबा रास्ता तय करना है?

3.    6 जुलाई, 2021 को एक दूसरे ऐसे वीडियो ने भी सोशल मीडिया पर लोगों को ध्यान खींचा है जिसमें एक आदिवासी महिला अपने प्रेमी के साथ भागने के कारण पति द्वारा प्रताड़ित की जा रही है. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक़ कि ये घटना दाहोड़, गुजरात के एक आदिवासी इलाक़े की है जहां इस महिला को ग्रामवासियों के सामने नंगा करके घुमाया गया था. 

4.    इसी तर्ज़ पर दिसंबर, 2020 के दौरान राजकोट, गुजरात में एक 38 वर्षीय पुरूष को एक आक्रमक फ़ेसबुक लाइव के बाद कपड़े उतारकर 45 मिनट तक सड़क पर घुमाया गया.  आभासी असहिष्णुता ने एक ख़तरनाक जुर्म की शक्ल अख़्तियार कर ली जब इस पुरूष ने कथित रूप से कुछ जाने माने लोगों पर क्रिकेट में बूटलेगिंग का इल्ज़ाम लगाया. 

5.    10 जून, 2018 को दलित समुदाय के दो नाबालिग़ बच्चों को भी कथित तौर पर कपड़े उतारकर घुमाने और पीटने की घटना सामने आई है. सूचना के मुताबिक़ ऊंची जाति के कुछ कट्टर धर्मांध लोगों ने उनके समुदाय के लिए प्रतिबंधित कुएं से पानी लेने के लिए उन्हें प्रताड़ित किया. हिंसा की ये घटना जलगांव, महाराष्ट्र की है जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर भी मौजूद था. 

6.     दस्यु देवी के नाम से मशहूर लोकनायिका फूलन देवी के भाग्य में भी कुछ ऐसा ही लिखा था हालंकि उन्होंने जाति आधारित हिंसा, अपमान और निर्ममता का पूरी ज़िंदादिली से सामना किया था. कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के बेहमई गांव में ठाकुरों के एक गिरोह ने उनके कपड़े उतारकर पूरे गांव में नंगा घुमाया था. 
 
7.    भारतीय उपमहादीप के विभाजन की कहानियों में सांप्रदायिक दंगों की अनेक ऐसी गाथाएं हैं जिसमें महिलाओं को लक्षित हिंसा से गुज़रना पड़ा है. लैंगिक हिंसा की घटनाओं में बड़े उछाल के बीच इस विभीजन जनित हिंसा क नतीजे में अनेक सिख, मुसलमान और हिंदू स्त्रियों के कपड़े उतारवाकर अपमानित करने के अलावा बलात्कार और हत्या भी घटनाएं हुईं. अपहरण, बलपूर्वक धर्मांतरण और जबरन विवाह की घटनाएं भी जुर्म के रिकार्ड में शामिल हैं. 

इस तरह के नफ़रती अपराधों का हमेशा एक ख़ास मक़सद होता है. इसे किसी को अपमानित करने या किसी धर्म, जाति या लिंग पर प्रभुत्व क़ायम करने के लिए अंजाम दिया जाता है, हालांकि अक्सर इस अपराध की छिटपुट तस्वीर अलग भी हो सकती है.

वोययूरिज़्म की शक्ल में वस्त्र उतरवाने का अपराध
इंडियन पीनल कोड (IPC) के प्रावधानों के तहत किसी के वस्त्र उतारना वोययूरिज़्म में शुमार किया जाता है जिसके तहत कपड़ा उतरवाना, ऐसी घटना या सेक्शुअल एक्टिविटी को देखना या फैलाना जुर्म क़रार दिया गया है. इसमें तस्वीरें लेना, वीडियो बनाना या ऐसे कंटेट को रिकार्ड करने के लिए हिडेन कैमरे का इस्तेमाल भी शामिल है. IPC के तहत ऐसे अपराध को अंजाम देने के लिए कम से कम 1 साल की जेल का प्रावधान है जिसकी मियाद 3 साल तक बढ़ाई जा सकती है और इसमें फ़ाइन भी जोड़ी जा सकती है. ये भी क़ाबिलेग़ौर है कि वोययूरिज़्म के साथ बलात्कार और हत्या की घटनाएं होने से अपराध की फ़ितरत बदल जाती है. 

मानवीय अस्मिता पर हमला करने का औज़ार
कपड़े मूल ज़रूरतों में गिने जाते हैं इसलिए बदन से लिबास खींचना मानवीय अस्मिता के बुनियादी भाव को तहस-नहस करने का एक अश्लील प्रयास है. मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में ये हादसा किसा के आत्मसम्मान को तबाह कर सकता है. नतीजे में ऐसी घटना के संज्ञान के बाद, क़ानूनी और पुलिस की कारवाई के बाद भी प्रताड़ित इंसान अपमानित महसूस करता है जबकि अपराधी को इस अनुपात में सज़ा या शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ता है. इस तरह के अपराध के बाद प्रताड़ित इंसान की मानसिक यातना, नुक़सान और व्यक्तिगत-सामाजिक ख़ामियाज़े की भरपाई नहीं की जा सकती है.

सामाजिक बहिष्कार का मनोविज्ञान
पहले प्रभावशाली समूह सामाजिक बहिष्कार के तरीक़े को सज़ा देने के लिए इस्तेमाल करते थे. किसी को सरेआम नंगा करना उसपर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर ख़ारिज करने का ही एक दूसरा तरीक़ा है. इससे गुज़र रहा इंसान आत्महंता बन सकता है या आत्महत्या भी कर सकता है.

मानव स्वभाव के साथ प्रयोग 
भीड़ कभी किसी बात की ज़िम्मेदारी नहीं लेती है. मारिना एब्रामोविक नामी इंक़लाबी स्टेज पर्फ़ार्मर ने एक बार सामाजिक व्यवहार के पैटर्न को समझने के लिए अपने शरीर के साथ अनोखा प्रयोग किया था. इस प्रयोग में वो टेबल पर 72 अलग-अलग कोमल और हिंसक वस्तुओं के साथ 6 घंटे तक लगातार खड़ी थीं. इस दौरान उन्होंने पब्लिक को किसी भी वस्तु को उठाने और मनचाहा आरचण करने की छूट भी दी. इसका एक चौंकाने वाला नतीजा सामने आया. लोगों ने उनके कपड़े उतारे, उनकी त्वचा को काटा और उनकी इंद्रियों को जांचने के लिए हाथों में बंदूक़ थमा दी. ये यक़ीनन ख़तरनाक और बीमार अपराधियों जैसा सलूक था. 

इसके विपरीत रूसो प्राकृतिक दशा में मानव जाति के मूल रूप से अच्छे स्वाभाव में विश्वास करता है. लेकिन इस समय हम आधुनिक 21वीं सदी की सख़्त ज़मीन पर बसर कर रहे हैं, जहां हिंसक वीडियो गेम्स, सनसनीख़ेज़ कार्यक्रम, नक़ली ख़बरें, नफ़रती बयान, प्रोपगैंडा, अफ़वाहें और औसत दर्जे की भड़काऊ फ़िल्में समय की तस्वीर को तय करती हैं. इससे पहचान में न आने की आज़ादी मिलने से बड़े पैमाने पर लोगों को क्रूरता के उपभोग की आज़ादी मिल जाती है. इन अपराधों की योजना बनाने या इन्हें भड़काने में शामिल अनेक लोग कभी भीड़ में पहचाने नहीं जाते हैं. ऐसे नफ़रती अपराधों के लिए एक विकसित लोकचेतना, उत्तरदायी प्रशासनिक व्यवस्था और क़ानूनी उपायों का होना निहायत ज़रूरी है जिससे सामूहिक संवेदना की दिशा तय की जा सके और इस तरह की हिंसा पर क़ाबू पाया जा सके. 

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