UP: वनाधिकार कानून लागू करने को मिर्जापुर में आदिवासियों का प्रदर्शन, उत्पीड़न के आरोप लगाए

Written by Abdul Alim Jafri | Published on: February 1, 2023
"मिर्जापुर में वन अधिकार कानून (FRA) लागू कराने को लेकर आदिवासियों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया। सीपीआई (M) करीब 6 वर्षों से क्षेत्र में एफआरए लागू करने के लिए काम कर रही है। डीएम कार्यालय पर धरने के दौरान आदिवासियों ने वनाधिकार कानून की आड़ में अधिकारियों पर उत्पीड़न और अवैध धन उगाही के आरोप भी लगाए।"


Special Arrangement 

मिर्जापुर जिले की मरिहान तहसील की राजापुर ग्राम पंचायत के ढेकवाह गांव के सघन वन क्षेत्रों में सोमवार को सैकड़ों की संख्या में आदिवासी इकट्ठा हुए और स्वाधीनता, स्वतंत्रता और अधिकारों के नारों के साथ रैली निकाली। आदिवासियों ने वनाधिकार कानून को लागू करने के साथ ही, उनके खिलाफ दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग की। 

झरीनगरी नाले के किनारे पथरीली चट्टानों' से मार्च करते हुए, प्रदर्शनकारियों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत जॉब कार्ड बनाने, मजदूरी बढ़ाकर प्रतिदिन 600 रुपये करने के साथ ही साल भर में कम से कम 200 दिन काम दिए जाने की भी मांग की।

ठंडी बर्फीली हवाओं से तापमान में आई गिरावट के बावजूद, मरिहान तहसील के कम से कम सात गांवों के लोगों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। यह विरोध प्रदर्शन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के बैनर तले हो रहा है, जो लगभग छह वर्षों से इस क्षेत्र में एफआरए को लागू करने के लिए काम कर रही है।

एफआरए एक ऐसा कानून है जिसे 2006 में संसद द्वारा लाया गया था और जो आजीविका के लिए वन भूमि पर निर्भर लोगों के अधिकारों को मान्यता देता है। वन संरक्षण संबंधी कानूनों ने, उचित वन एवं राजस्व निपटान प्रक्रिया की कमी के कारण, लोगों को वन भूमि पर उनके अधिकारों से वंचित करने का काम किया। एफआरए उन आदिवासियों और वनाश्रित समुदायों को भूमि पर मालिकाना अधिकार प्रदान करता है जो वर्षों से भूमि पर काबिज काश्त चले आ रहे हैं।

"महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर, लगभग 300 आदिवासी, महिला और पुरुष, लंबे समय से लंबित मांगों को उठाने के लिए सीपीआई (एम) के बैनर तले इकट्ठा हुए। जंगल की भूमि सामंती भू-माफियाओं और तथाकथित धार्मिक बाबाओं के नियंत्रण में है। ऐसे माफिया फर्जी दस्तावेजों और पुलिस और सरकार के  साथ मिलकर आदिवासियों की जमीन को हड़प रहे थे। हम वन विभाग द्वारा एफआरए का उचित कार्यान्वयन चाहते हैं," विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे सीपीआई (एम) के जिलाध्यक्ष राजनाथ यादव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उपजाऊ भूमि से अवैध कब्जों को हटाया जाना चाहिए और उसे भूमिहीन आदिवासियों के बीच वितरित किया जाना चाहिए।



कथित तौर से स्थानीय पुलिस पर अवैध तरीकों से आदिवासियों को वन भूमि से दूर रखने के आरोप लगाते हुए यादव ने कहा, "वन अधिकारी उन्हें अपनी भूमि को जोतने से रोक रहे हैं। जब वे इन कृत्यों का विरोध करते हैं और अपना दावा ठोंकते हैं, तो उन्हें झूठे मामलों में फंसाने और गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है।" हालांकि, धार्मिक बाबा जय गुरुदेव ने लगभग 650 बीघा जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है और करीब चार महीने पहले उन्हें नोटिस दिए जाने के बावजूद कुछ नहीं हुआ।'

वे आगे कहते हैं, "मरिहान के पूर्व विधायक ललितेश पति त्रिपाठी ने भी कलवारी के पास करीब 6500 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था, जो क्षेत्र के आदिवासियों की है। उन्हें भी नोटिस दिया गया था। एक और बाबा स्वामी अग्रानंद महाराज भी सक्तेशगढ़ में जमीन हड़पने को लेकर चर्चा में हैं। डराना-धमकाना, बेदखली के नोटिस और फर्जी मामले केवल गरीब आदिवासियों के लिए हैं, लेकिन इन भू-माफियाओं पर लागू नहीं होते हैं।"

माकपा नेता ने आरोप लगाया कि ढेकवाह, दरीराम, राजापुर, मरिहान, अटारी, पटेरी और पटेहरा गांवों में आदिवासी लोगों को कांटेदार पौधे लगाकर, खेती करने से रोक रहे हैं ताकि वे अपने जीवन यापन के लिए फसल नहीं उगा सकें।

यही नहीं, प्रदेश में FRA लागू कराने को लेकर मुखर रहने वाले यादव कहते हैं, "जनजातीय क्षेत्रों में सालों से आदिवासियों को मनरेगा और FRA के तहत, उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। हम कई सालों से अधिकारों की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।"

इस दौरान, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम करने वाले श्रमिकों ने, रोजगार दिवसों की संख्या  वर्तमान 100 से बढ़ाकर 200 करने और दैनिक मजदूरी 600 रुपये करने की मांग की है।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राज्य महासचिव दिनकर कपूर, जो एफआरए में एक याचिकाकर्ता भी हैं, ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "93,430 भूमि शीर्षक दावे एफआरए के तहत दायर किए गए थे, जिनमें से 74,538 को तत्कालीन बहुजन समाजवादी पार्टी की अगुवाई वाली मायावती सरकार ने 2011 में खारिज कर दिया था। फिर हमने 2013 में आदिवासी वनवासी महासभा के बैनर तले इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने पुन: समीक्षा का आदेश दिया, लेकिन पिछली अखिलेश सरकार ने ऐसा नहीं किया। 2017 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता में आई, और समीक्षा करने के बजाय, योगी आदित्यनाथ सरकार ने तुरंत वनभूमि खाली करने के लिए बेदखली नोटिस देना शुरू कर दिया। बेदखली के नोटिस न केवल मिर्जापुर में जारी किए गए, बल्कि आदिवासियों को परेशान करने के लिए सोनभद्र, चंदौली और बुंदेलखंड में भी दिए गए।"

आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहे कपूर सोनभद्र के रहने वाले है। उन्होंने कहा, "2017 में, हमने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की, और अदालत ने बेदखली पर रोक लगा दी और 11 अक्टूबर, 2018 को 18 सप्ताह में समीक्षा का आदेश दिया। समीक्षा प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन कोविड-19 ने सब कुछ रोक दिया। आरोप है कि महामारी के बाद यह फिर से शुरू हो गया, लेकिन उत्पीड़न जारी रहा।"

15 नवंबर, 2022 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोनभद्र का दौरा किया और आदिवासियों को जमीन का टाइटल देने का वादा किया, लेकिन धरातल पर कुछ भी होता नजर नहीं आया।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट भूमि अधिकार अभियान शुरू करेगा, जहां वे एफआरए को लागू करने के लिए मिर्जापुर और सोनभद्र में घर-घर जाकर प्रचार करेंगे।

बुंदेलखंड के चित्रकूट में मानिकपुर ब्लॉक के राजहौआ जंगल में 22 पंचायतों में फैले 52 गांवों के लगभग 45,000 आदिवासियों को बेदखली का नोटिस दिया गया है, क्योंकि उनके गांव रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य (बिहार में कैमूर वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा) में स्थित हैं।, जो 1980 में अस्तित्व में आया था। न्यूज़क्लिक ने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान ज़मीनी स्तर पर रिपोर्टिंग की थी।

Courtesy: Newsclick

Translation: Navnish Kumar

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