पडरछ: आदिवासियों को मिला जनजाति विकास विभाग का साथ, DM से वनाधिकार दावों के निस्तारण को कहा

Written by Navnish Kumar | Published on: November 21, 2020
पडरछ (सोनभद्र) के आदिवासियों द्वारा वनाधिकार के तहत दावा की गई जमीन (वन भूमि) पर वन विभाग द्वारा जबरिया गड्ढे खोदने और वृक्षारोपण की आड़ में आदिवासियों की काश्त की जमीनों को छीनने व बस्ती उजाड़ने की कोशिशों के खिलाफ आदिवासियों को उप्र जनजाति विकास विभाग का साथ मिला है। पडरछ ग्राम वनाधिकार समिति की शिकायत को जनजाति विकास विभाग ने अत्यंत गंभीरता से लेते हुए, डीएम को पत्र लिखा है और पडरछ के वनाधिकार दावो के प्राथमिकता से निस्तारण को कहा है।



मामला वनाधिकार कानून के खिलाफ वन विभाग की दादागिरी का है। वन विभाग द्वारा आदिवासियों की दावा की गई काश्त की जमीनों पर, बोई खड़ी फसल में, जबरन गड्ढे खोदे जा रहे हैं और आदिवासियों को बस्ती छोड़कर भाग जाने की धमकी दी जा रही है। 

वन विभाग की इसी दादागिरी के खिलाफ पडरछ ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष महेंद्र सिंह चेरो ने जनजाति विभाग को चिट्ठी लिखी थी। अध्यक्ष महेंद्र सिंह चेरो ने यह चिट्ठी ग्राम वनाधिकार समिति के लेटर हेड पर लिखी थी जिसका व्यापक असर हुआ है और जनजाति विभाग ने इसे अत्यंत गम्भीरता से लेते हुए, डीएम को वनाधिकार कानून का पालन कराने को कहा है। 


वनाधिकार समिति अध्यक्ष महेंद्र सिंह चेरो का शिकायती पत्र

जनजाति विकास विभाग के डायरेक्टर द्वारा जिलाधिकारी को सम्बोधित पत्र में स्पष्ट तौर से कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी के वनाधिकारों (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम 2006, नियम 2008 संशोधित नियम 2012 में किए गए प्रावधानों के तहत पडरछ के आदिवासी ग्रामीणों की समस्या का नियमानुसार निवारण किया जाए। वन अधिकार कानून के तहत प्रक्रिया पूर्ण करने के जनजाति विकास विभाग के निर्देशों को खासा अहम माना जा रहा है और इसे वनाश्रित समुदायों की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। 


जनजाति विभाग का पत्र

पडरछ ग्राम वनाधिकार समिति के अध्यक्ष महेंद्र सिंह चेरो व सचिव सरिता द्वारा चिट्ठी में अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा गया था कि वह ग्राम सभा पडरछ थाना कोन जिला सोनभद्र के आदिवासी समुदाय के लोग हैं। सभी लोग ग्राम सभा पडरछ में वनाधिकार कानून के तहत पडरछ की वनभूमि संख्या 3604, 3637 जो पता उपरोक्त के खाता खतौनी में वनभूनि की धारा-20 में दर्ज है, पर अरसे से काबिज काश्त चले आ रहे हैं और सभी ने वनाधिकार कानून 2006 के तहत उक्त वन भूमि पर अपने दावे भी कर रखे हैं। 

उन्होंने कहा कि उक्त वन भूमि पर वह आदिवासी समुदाय के लोग बाप-दादे के जमाने से खेती-बाडी करते आ रहे हैं लेकिन प्रभागीय वनाधिकारी प्रभाग ओबरा के आदेश पर स्थानीय वनकर्मियों द्वारा प्रार्थीगण/आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों की उक्त वन अधिभोग की दावा की गई भूमि पर, जबरिया जेसीबी मशीन की मदद से पौधारोपण का बहाना बनाकर, बोई खड़ी फसल को क्षतिग्रस्त करते हुए, गड्ढे खुुदवाये जा रहे है तथा आदिवासी समुदाय के लोगों की पुश्तैनी बस्ती को उजाड़कर बर्बाद कर देने व पूरी बस्ती को छोड़कर भाग जाने की धमकी दी जा रही है। 

महेंद्र सिंह चेरो कहते हैं कि उन लोगों द्वारा वनकर्मियों को बताया गया कि इस संबंधित वन भूमि के अधिभोग के लिये वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत उन आदिवासियों द्वारा दावे फार्म भरे गए हैं तथा मामले में अभी समुचित तौर पर सत्यापन की प्रक्रिया पूरी होनी है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली द्वारा किसी भी तरह की बेदखली पर स्टे आर्डर कर रखा है। कहा कि इस सब आधार पर आप लोग बस्ती को उजाडकर हम लोगों की क्षति नहीं कर सकते हैं। मौके पर उपस्थित वनकर्मियों में डीएल तिवारी फारेस्ट गार्ड सतीश (वाचर) आदि लोगों द्वारा गाली-गलौच देकर तमाम तरह से जान माल की धमकियां दी जा रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि प्रार्थीगण काफी परेशान एवं हताश हैं क्योंकि उक्त वनकर्मियों द्वारा यदि आदिवासी समुदाय की पुश्तैनी रिहायशी बस्तियों को उजाडकर बर्बाद कर दिया गया तो उनकी अपूर्णनीय क्षति होगी। वह सब लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों एवं महिलाओ के साथ खुले आसमान तले रहने के लिए बाध्य हो जायेंगे। 

अतः श्रीमान जी से प्रार्थना है कि उन प्रार्थीगण के प्रार्थना पत्र पर विचार करते हुए ग्राम पड़रछ के आदिवासियों के रहन-सहन एवं हित को दृष्टिगत रखते हुये डीएल तिवारी फारेस्ट गार्ड एवं सतीश (वाचर) एवं उनके गोलबंद अन्य वनकर्मियों द्वारा किए जाने वाले उत्पीड़न को रोका जाए और हल्का थाने में कानूनी कार्यवाही किये जाने का आदेश प्रदान करने की कृपा की जाए। यदि इस पर कोई कार्यवाही नही की जाती है तो ग्राम वनाधिकार समिति स्वयं कार्यवाही करने हेतु बाध्य होगी।

चेरो कहते हैं कि चिट्ठी के बाद गड्ढे खोदने बंद कर दिए गए हैं। लेकिन धमकियां अभी भी लगातार आ रही हैं। महिलाओं को धमकाया जा रहा है कि इस बार महिला पुलिस बुलाकर उन्हें भी देखा जाएगा। सभी पर कार्रवाई की जाएगी। 

पूरे भारत मे वनाधिकार कानून की लड़ाई को लड़ रही अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय उप महासचिव रोमा इसे उत्साहवर्धन करने वाली बात बताते हुए कहती हैं कि जहां जहां ग्राम वनाधिकार समिति का गठन हो गया है वह सब तरह का पत्राचार वनाधिकार समिति के लेटर हेड पर ही करें। इससे सामुहिक शक्ति का भान मिलता है और आधी लड़ाई पहले ही जीत ली जाती है। इस लिए हर गांव में जहां पर वनाधिकार समिति बन चुकी है वहां पर साथी हर काम ग्राम वनाधिकार समिति के माध्यम से करें जिसका नतीजा काफी अच्छा रहेगा।

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