दलित उत्पीड़न पर सख्त : भिंड पेशाब कांड में हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका ठुकराई

Written by sabrang india | Published on: November 8, 2025
न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की एकलपीठ ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह फैसला सुनाया।


साभार : ईटीवी भारत

मध्य प्रदेश के भिंड जिले में हुए अमानवीय पेशाब कांड के आरोपी आलोक शर्मा की जमानत याचिका को ग्वालियर हाईकोर्ट ने 6 नवंबर को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की एकलपीठ ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध की गंभीरता को देखते हुए यह फैसला सुनाया। अदालत का यह निर्णय दलित समुदाय के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक सशक्त संदेश के रूप में माना जा रहा है।

आदेश की प्रति सोशल मीडिया पर साझा करते हुए मध्य प्रदेश में भीम आर्मी के पूर्व अध्यक्ष सुनील अस्तेय ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “न्याय की जीत – मनुवाद की हार, ग्वालियर हाईकोर्ट ने भिंड पेशाब कांड के आरोपियों की जमानत रद्द कर दी।, जातिवादी वकील अनिल मिश्रा जैसे लोगों की पैरवी के बावजूद सच्चाई ने जीत हासिल की है।, यह वही मामला है, जिसमें इंसानियत को शर्मसार किया गया था और आज अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि दलितों का अपमान करने वालों को न्याय से कोई राहत नहीं मिलेगी।, न्यायपालिका को सलाम जिन्होंने इंसानियत की आवाज को दबने नहीं दिया।”

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना 20 अक्टूबर को भिंड जिले के सुरपुरा थाना क्षेत्र में घटी, जो अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से ताल्लुक रखने वाले युवक के साथ हुई। पूर्व फोन विवाद के कारण नाराजगी में अलोक शर्मा और उसके दो साथी (सोनू उर्फ सोनू बरुआ और छोटू) दोपहर 2-3 बजे पीड़ित के घर पहुंचे। उन्होंने जातिगत गालियां देते हुए उसे घर से घसीटकर बाहर निकाला और बोलेरो वाहन में बंद करके अपहरण कर लिया। रास्ते में सेमरपुरा रोड पर चलते वाहन के अंदर ही आरोपियों ने लोहे की रॉड से पीटाई की। फिर, सोनू, अलोक और छोटू ने बारी-बारी से पीड़ित को अपना मूत्र पिलाया, जो जातिगत बदला लेने का अमानवीय तरीका था। 

इसके बाद पीड़ित को सोनू बरुआ के खेत पर ले जाकर और भी क्रूरता से पीटा, जातिगत अपशब्दों से अपमानित किया और जान से मारने की धमकी दी। स्थानीय लोगों केदार और चरण सिंह ने हस्तक्षेप कर पीड़ित को बचाया। घायल पीड़ित ने 21 अक्टूबर को (लगभग 6 घंटे की देरी से) एफआईआर दर्ज कराई। चिकित्सा रिपोर्ट में साधारण चोटें बताई गईं, लेकिन मनोवैज्ञानिक आघात गहरा है। पीड़ित और गवाह पिंकी जाटव के बयान (बीएनएसएस की धारा 183 के तहत) ने घटना की पुष्टि की। यह मामला मध्य प्रदेश में हाल के दिनों में दूसरे ऐसे पेशाब-पिलाने वाले अत्याचार का उदाहरण है, जिसने दलित संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया।

मामले में तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। आलोक शर्मा को 21 अक्टूबर को हिरासत में लिया गया। उसने भिंड के विशेष न्यायाधीश (अत्याचार निवारण अधिनियम) की अदालत में नियमित जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे 29 अक्टूबर को खारिज कर दिया गया। इसके बाद उसने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 14-ए(2) के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की।

अभियोजन पक्ष के वकील अनिल कुमार मिश्रा ने दलील दी कि शर्मा निर्दोष हैं और उन पर राजनीतिक दबाव में झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि गवाह पक्षपाती हैं, एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई, जांच लगभग पूरी हो चुकी है, कोई एफएसएल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है और शर्मा स्थानीय निवासी हैं।

वहीं, राज्य की ओर से लोक अभियोजक मोहन शिवहरे ने अपराध की गंभीरता पर जोर देते हुए जमानत का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोपी को राहत देने से समाज में सौहार्द भंग हो सकता है। पीड़ित पक्ष के वकील अनिल कुमार ने भी जमानत याचिका खारिज करने की मांग की।

केस डायरी, एफआईआर और गवाहों के बयानों की समीक्षा के बाद न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने कहा, “केस डायरी से स्पष्ट है कि जांच अभी लंबित है और अपीलकर्ता का नाम एफआईआर में दर्ज है। एफआईआर की पुष्टि पीड़ित और पिंकी जाटव के बयानों से होती है, इसलिए इस स्तर पर जमानत याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।”

इस आधार पर अपील को खारिज कर दिया गया। अदालत के इस फैसले का दलित अधिकार संगठनों ने “पीड़ितों के लिए जीत” के रूप में स्वागत किया है। भीम आर्मी सहित कई समूहों ने अब तेज़ ट्रायल, पीड़ित को मुआवजा और पुनर्वास की मांग उठाई है।

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