प्रचारकों ने तो भ्रष्टाचार खत्म कर दिया पर 13 सैनिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए- खबर दिखी क्या?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: July 16, 2019
आज के अखबारों में भाजपा विधायक की बेटी और उसके पति के साथ कल इलाहाबाद हाईकोर्ट में धक्का मुक्की और उसके पति को पीटे जाने की खबर है। पर साक्षी और अजितेश की पिटाई की खबर को उतनी प्रमुखता नहीं मिली है जितनी मुझे उम्मीद थी। ना ही इसके कारणों पर चिन्ता या पश्चाताप है। इसका कारण यह हो सकता है कल ही ऐसे ही एक जोड़े के अपहरण से साक्षी ने अपने बचाव में जो किया वह सही साबित हुआ और मीडिया ने इसे लेकर जो शोर मचाया और इसमें आदर्श ढूंढ़ने या बताने की जो कोशिशें हुईं वह कल की दूसरी घटना से बेमतलब साबित हो गई है। यही नहीं, पिटाई को सही मानने वालों के लिए यह वैसे भी खबर नहीं है। इसलिए भी यह खबर पिट गई होगी। हालांकि, यह तो तय है कि अखबारों ने खूब शोर मचाया।

आज हिन्दुतान टाइम्स में शिक्षा की हालत से जुड़ी एक खबर दिखी जिसे महत्व दिया जाना चाहिए था। खासकर इसलिए भी कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन वाली सरकार है तब यह हालत है – स्कूल की, सुरक्षा की, बैठने की व्यवस्था की आदि आदि। सिंगल कॉलम की इस खबर का शीर्षक है, स्कूल के अंदर बिजली की तार गिरने से 51 बच्चे बीमार। गोरखपुर डेटलाइन से हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता की यह खबर बलरामपुर के नया नगर प्राइमरी स्कूल की है। इसके मुताबिक सोमवार को बिजली का झटका लगने के कारण 51 बच्चों को अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा। हाई टेंशन वाली बिजली की तार स्कूल परिसर के पेड़ों के संपर्क में आने से यह हादसा हुआ और निश्चित रूप से इसका कारण समय रहते सुरक्षा और बचाव के उपाय नहीं किया जाना है। खबर कहती है कि बच्चों ने बैठने के लिए मिली बोरियों पर बैठने के लिए जूते खोले तो उन्हें करंट लगा। इससे बच्चे बेहोश हो गए पर शिक्षक बच गए क्योंकि उन्हें जूते नहीं उतारने थे। बच्चों की स्थिति स्थिर बताई गई है।

इसके अलावा शिक्षा से संबंधित और भी मामले व खबरें हें देखिए उनकी स्थिति क्या है। कल फेसबुक पर एक पोस्ट थी जिसमें एक व्यक्ति ने अजितेश को (बिना नाम लिए) पीटने का दावा किया है। आज अखबारों में जो खबर है उससे लगता है कि अदालत ने दंपति को सुरक्षा देने का आदेश दिया उसके बाद पिटाई की गई। यह सीधे-सीधे कानून व्यवस्था को नहीं मानने का मामला है और इसका संबंध शिक्षा से है। कुल मिलाकर, स्थिति यह हो गई है कि अदालतों में काला कोट पहने हुड़दंगी पहुंच जाते हैं और जिसे चाहे पीट लेते हैं। ये पढ़े लिखे होते हैं और फिर भी पीटते हैं इसलिए मामला शिक्षा से ही जुड़ा है। वरना पढ़ा लिखा आदमी पीटने जैसा काम क्यों करेगा। हो यह रहा है कि मीडिया किसी को अपराधी बना देता है और उसकी पिटाई अदालत में ही हो रही है जो न्याय का मंदिर है। यह स्थिति चिन्ताजनक है पर अखबारों में वैसी चिन्ता नहीं दिख रही है। पर जिन बच्चों के स्कूल में पेड़ से होकर करंट आ जाए वो क्या सीखेंगे?

ऐसा नहीं है कि देश में ज्यादातर बच्चों को दी जा रही स्कूली शिक्षा ही पर्याप्त या उपयुक्त नहीं है। सच यह है कि मीडिया को अपने पाठकों-दर्शकों को जो शिक्षा देनी चाहिए वह भी नहीं हो रहा है। मुख्य रूप से उसका कारण राजनीति है पर राजनीतिक खबरों के अलावा भी पाठकों को कई मामलों में शिक्षित करने का काम अखबारों को करना चाहिए जो आम तौर पर अखबार नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता मेट्रो के दरवाजे में हाथ फंसने से ट्रेन के साथ घिसट कर एक व्यक्ति की मौत के बाद से द टेलीग्राफ में आज लगातार तीसरे दिन पहले पन्ने पर मेट्रो से जुड़ी खबरें हैं। कल बताया गया था कि दुर्घटना के बाद यह जांच की गई कि मेट्रो के दरवाजे में उंगली हथेली और कलाई फंसने की स्थिति में क्या मानेंगे।

आज बताया गया है कि देश भर के मेट्रो में होने पर भी बंद माने जाएंगे जबकि कलाई फंसी हो तभी दरवाजों के बीच 15 मिली मीटर के अंतर को ठीक माना जाता है पर कोलकाता मेट्रो ने इसे पिछले दिनों 19 मिमी कर दिया था - बिना बताए, आवश्यक प्रचार किए बगैर। अभी यह तय नहीं है कि पिछली दुर्घटना 19 मिमी किए जाने के कारण ही हुई या नहीं पर पाठकों को जानकारी तो दी जा रही है। यह खबर हर उस शहर के लिए महत्वपूर्ण है जहां मेट्रो है। पर दिल्ली के अखबारों में इस खबर को महत्व मिल रहा हो ऐसा नहीं है। शिक्षा से ही संबंधित एक खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में है।

इसके मुताबिक, 2014 की यूपीएससी टॉपर और दिल्ली के केशवपुरम जोन की डिप्टी कमिश्नर ईरा सिंघल को इंस्टाग्राम पर एक फॉलोअर ने उनकी शारीरिक स्थिति स्कोलियोसिस (रीढ़ का टेढ़ापन) के हवाले से ट्रोल करने की कोशिश की। सिंघल ने इस बारे में फेसबुक पर भी लिखा है और परेशान किए जाने पर केंद्रित होने की बजाय बताया है कि ऐसे लोगों को स्कूल स्तर पर संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोग हर जगह हैं। हर रूप में हैं। आज जब विधायक की बेटी द्वारा खुद शादी कर लिए जाने का मामला सुर्खियों में है और कुछ लोग उसे सही तथा कुछ लोग गलत बता रहे हैं तभी एक घटना कल ही इलाहाबाद में ही हुई। खबर के लिहाज से यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है पर पता नहीं आपके अखबार में है कि नहीं।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे साक्षी और अजितेश की पिटाई की खबर के साथ छापा है। इसके मुताबिक दूसरे मामले में अमरोहा की 24 साल की लड़की और उसका प्रेमी जो अमरोहा का ही है और दोनों अल्पसंख्य समुदाय के हैं - का छह लोगों ने अदालत के पास से अपहरण कर लिया। ये लोग साथ रहने के लिए सुरक्षा देने की अपील दाखिल करने हाईकोर्ट आए थे। पर लड़की के पिता भाई और परिवार के दूसरे लोग इस संबंध के खिलाफ हैं। इन्हीं लोगों पर अपहरण का आरोप है। उधर लड़की को अवयस्क बताकर अपहरण का केस भी दाखिल किया गया है। कहने का मतलब यह है कि कानून को हाथ में लेने का काम कोई भी कर रहा है जबकि ऐसा ही चलता रहा तो कानून-व्यवस्था संभलना मुश्किल हो जाएगा। कानून का पालन उसके भय के लिए नहीं, उसका सम्मान किए जाने के कारण किया जाना चाहिए। पर इसे लोगों को समझाएगा कौन। खासकर तब जब कानून के दुरुपयोग के मामले हों और उससे साफ इनकार कर दिए जाने के मामले भी हों। पर ना दुरुपयोग का मामला लोगों को बताया जाए ना उससे इनकार किए जाने को गलत साबित किया जाए।

एनआईए कानून पर संसद में चर्चा के दौरान जो हुआ उसकी बात नहीं कर मैं एक साधारण मामले की बात करूंगा जो इंडियन एक्सप्रेस में है। इस खबर के मुताबिक, बिहार पबलिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) की प्रवेश परीक्षा (मेन्स) रविवार को हुई। इसमें एक सवाल था, राज्यों की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिए। क्या वे महज कठपुतली हैं। इसपर राज्य में हंगामा मचा हुआ है और प्रश्नपत्र बनाने वाले को प्रतिबंधित कर दिया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि राज्यपाल अपनी भूमिका के कारण चर्चा में रहते रहे हैं। बिहार भी कोई अपवाद नहीं है। पर क्या इसके लिए इसपर बात ही न की जाए। या बात करने के लिए कहने वाला गलत हो गया। गलत को अपना काम ठीक से नहीं करने वाला होगा पर यहां मामला बिल्कुल अलग है। और निश्चित रूप से यह राजनीति के कारण है। ऐसे में कहा जा सकता है कि राजनीति का असर शिक्षा पर पड़ा है और पड़ रहा है।

इसके बावजूद आज यह खबर है कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में निजी सुरक्षाकर्मी की नौकरी करने वाले गार्ड रामजल मीणा को विश्वविद्यालय में रूसी भाषा में बीए की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया है। द टेलीग्राफ ने इसे पहले पन्ने पर छापा है जबकि हिन्दुस्तान ने पहले पन्ने पर खबर छापी है कि इंजीनियरिंग के आधे छात्रों की प्लेसमेंट नहीं। इसके मुताबिक, इंजीनियरिंग संस्थानों से पास हो रहे आधे से अधिक छात्रों का प्लेसमेंट नहीं हो पा रहा है। वहीं आईआईटी, एनआईटी और ट्रिपल आईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के भी 23% छात्रों को पढ़ाई के दौरान नौकरी नहीं मिली। मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को एक सवाल के जवाब में लोकसभा में यह जानकारी दी। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017-18 में गैर एलीट संस्थानों से पाठ्यक्रम पूरा करने वाले 7.93 लाख छात्रों में केवल 3.59 लाख छात्रों का ही प्लेसमेंट हो पाया। यही स्थिति वर्ष 2018-19 में भी रही। निशंक ने बताया कि इसी साल आईआईटी, एनआईटी और ट्रिपल आईटी से पास आउट होने वाले कुल 23,298 छात्रों में 5,352 छात्र बिना प्लेसमेंट के रहे। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अगले सत्र में रोजगार की कम संभावना वाले पाठ्यक्रमों को अनुमति नहीं देगा। और ऐसे में लोग कहते हैं कि सबसे ज्यादा बच्चे वकालत की पढ़ाई कर रहे हैं।

मुझे नहीं पता पूरे देश की मौजूदा स्थिति को कैसे देखा जाए पर प्रचारकों ने यह यकीन दिला दिया है कि देश में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है और सेना से पंगा लेने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। घुसकर मारा जाएगा। इसके बावजूद आज कई अखबारों ने सोलन में रेस्त्रां की इमारत गिरने से 13 सैनिकों के मरने की खबर को प्रमुखता नहीं मिली है। खबर है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद बताया कि इमारत नियमानुसार नहीं बनी थी। मैजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट मिलने पर कार्रवाई की जाएगी। (नवभारत टाइम्स) मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के कारण इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों के मरने का यह अनूठा मामला है और इसकी खबर को विशेष प्राथमिकता मिलने के साथ-साथ कार्रवाई भी गंभीरता से होनी चाहिए। पर ऐसा कुछ होगा इसका आश्वासन मुझे कहीं दिख नहीं रहा है। इमारत गिरने से एक आम नागरिक की मौत हुई है जबकि घायल हुए 28 लोगों में सेना के 17 जवान हैं। एक घायल सैनिक के मुताबिक, रविवार को 30 सैन्यकर्मी इस इमारत में बने रेस्तरां में गए थे, उसी दौरान बिल्डिंग गिर गई। उस वक्त 42 लोग वहां थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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