दक्षिणपंथी भी मानते हैं एबीवीपी ने रामजस में गलत किया

Written by रोहन वेंकटरामकृष्णन | Published on: March 7, 2017

रामजस कॉलेज में एबीवीपी और उसके अराजक तत्वों ने जो किया, उसे दक्षिणपंथ की समर्थक टिप्पणीकार और विश्लेषक भी नहीं पचा पा रहे हैं।


ABVP ramjas
 
दिल्ली के रामजस कॉलेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसा पर गृह राज्य मंत्री भी बचाव की मुद्रा में है। अमूमन भड़काऊ बयान के लिए कुख्यात गृह राज्य मंत्री किरन रिजुजू ने ही रामजस कॉलेज विवाद की आग भड़काई थी। रिजुजू ने ही अपने ट्वीट में सवाल किया था युवा छात्र-छात्राओं (गुरमेहर कौर के मामले में) के दिमाग को कौन प्रदूषित कर रहा है। लेकिन भारी विरोध के बाद उन्हें पीछे हटना पड़ा और यह स्वीकार करना पड़ा कि उन्हें नहीं मालूम की उन्होंने क्या ट्वीट किया था।
 
सिर्फ रिजुजू ने ही नहीं बल्कि दक्षिणपंथ के समर्थक कई टिप्पणीकारों और विश्लेषकों ने रामजस कॉलेज विवाद में सतर्क टिप्पणी की है। रामजस में हिंसा और फिर गुरमेहर के ट्वीट, दोनों पर उन्होंने उग्र अख्तियार करने से बचने की कोशिश की है।
 
पिछले साल जेएनयू में उमर खालिद और कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था। इस साल रामजस कॉलेज में अभिव्यिक्त की आजादी पर आयोजित होने वाले सेमिनार में एबीवीपी और दिल्ली पुलिस ने मिलकर हंगामा किया और हिंसा फैलाई। इस घटना के दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट्स और एक शहीद आर्मी ऑफिसर की बेटी का वीडियो आया जिसमें उन्होंने शांति की अपील करते हुए कहा था कि उनके पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा था।
 
रामजस कॉलेज में एबीवीपी और उसके अराजक तत्वों ने जो किया, उसे दक्षिणपंथ की समर्थक टिप्पणीकार और विश्लेषक भी नहीं पचा पा रहे हैं। खुद को तार्किक और लिबरल राइट-सेंटर की आधिकारिक आवाज बताने वाली पत्रिका स्वराज्य के एडोटिरयल डायरेक्टर आर. जगन्नाथन ने लिखा कि दक्षिणपंथियों को सोच-समझ मुद्दे चुनने चाहिए।( pick its battles better)  
 
आर जगन्नाथन ने लिखा- रामजस विवाद का अहम सबक यह है कि दक्षिणपंथ को यह फैसला करना आना चाहिए कि कहां टकराव लेना है और कहां नहीं। एक युवा और संभवतः आदर्शवादी महिला (गुरमेहर कौर) को निशाने पर लेकर आपको कोई अहम बढ़त नहीं हासिल होने वाली। भले ही वह 100 फीसदी गलत क्यों न हो। उस पर ध्यान न देना ही सबसे अच्छा विकल्प हो सकता था।
 
जेएनयू के प्रोफेसर मकरंद परांजपे ने ट्वीटर पर लिखा है कि संघी कहे जाने पर वह खुश हैं। उन्होंने जगन्नाथन से एक कदम आगे बढ़ कर रामजस विवाद को एक तरह का फंदा करार दिया, जिसमें एबीवीपी फंस गई। इस घटना ने एबीवीपी को हिंसा के लिए उकसाया। इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिख कर परांजपे ने माना कि एबीवीपी ने जो हिंसा की उससे उसका कोई भला नहीं हुआ।
 
इंडियन एक्सप्रेस में परांजपे ने लिखा –
 
उमर खालिद और शेहला राशिद भड़काने वाले एजेंटों के तौर पर आदर्श उदाहरण हैं। इस तरह के लोग अपने दुश्मनों को गलती करने के लिए भड़काते हैं। ताकि वे गैरकानूनी कदम उठा कर अपने हितों के साथ समझौता कर बैठें। इस बार जो हुआ, उससे पूरे एबीवीपी को एक संगठन के तौर पर बदनामी मिली।
 
लेकिन क्या इससे एबीवीपी बरी हो गई। आखिरकार वह यह कब समझेगी कि लोगों की सहानभूति हासिल करने के लिए कानून हाथ में लेना या हिंसा फैलाना सबसे खराब रणनीति है। मेरा मानना है कि इस तरह की लड़ाइयों को लड़ने के सैकड़ों तरीके हो सकते हैं। सबसे अच्छा तरीका अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को खुली बहस के लिए आमंत्रण देना है।
 
रविवार को तवलीन सिंह को इंडियन एक्सप्रेस में बिल्कुल अलग रुख अख्तियार किया। अपने कॉलम में अक्सर वह पीएम नरेंद्र मोदी का पक्ष लेती हैं। लेकिन इस बार उन्होंने अपने कॉलम में जगन्नाथन और परांजपे से अलग रुख अख्तियार करते हुए लिखा कि एबीवीपी ने रामजस में हिंसा कर मुद्दे का कचूमर निकाल दिया।
 
तवलीन ने एक कदम आगे बढ़ कर सवाल किया क्या एबीवीपी को किसी और राष्ट्रवाद पर सवाल करने का हक है। क्या देशभक्ति हिंसा के जरिये थोपी जा सकती है।
 
राष्ट्रवाद इस तरह की जोर-जबरदस्ती से नहीं थोपी जा सकती। यह साफ समझ में आ जानी चाहिए। लेकिन कुछ वजहें ऐसी हैं, जिससे यह समझ जल्दी नहीं आने वाली है। जब से नरेंद्र मोदी पीएम बने हैं तब से कई बीजेपी नेताओं के मन में यह बात घर कर गई है कि राष्ट्रवाद जोर-जबरदस्ती कर थोपा जा सकता है। खास कर मंत्रियों को इस संबंध में सावधान रहना चाहिए और उन्हें लोगों को देशद्रोही कहने से बचना चाहिए। लेकिन हम हर दिन देख रहे हैं कि बीजेपी के मंत्री भारत के खिलाफ बोलने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहे हैं। हाल में हरियाणा के एक मंत्री ने जो बेवकूफाना बयान दिया वह यहां दोहराने लायक भी नहीं है।
 
दुर्भाग्य से बीजेपी में एक नहीं कई नेता हैं, जो रामजस विवाद में शामिल छात्र-छात्राओं के एक दल को राष्ट्रवादी और दूसरे को राष्ट्रद्रोही मान कर बयान दे रहे हैं। मेरी नजर में किसी को भी यह फैसला करने का अधिकार नहीं है कि कौन देशभक्त है और कौन नहीं। मैं साफ कर दूं कि असहमति की आवाज और यूनिवर्सिटी कैंपस में अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने वाला ही राष्ट्रद्रोही है।
 
यह लेख सबसे पहले  Scroll.in पर प्रकाशित हुआ था।
 
 

बाकी ख़बरें