अयोध्या में 26 अक्टूबर को 14 जगहों पर 5.51 लाख दीप जलाकर एक रिकॉर्ड बनाया गया. इस मौके पर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी दीपक जलाए. इस दौरान पूरे अयोध्या को भव्य तरीके से सजाया गया. राम की पैड़ी पर लेजर शो भी आयोजित किया गया. आतिशबाजी का कार्यक्रम भी हुआ.
अयोध्या में 'दीपोत्सव' का पूरा खर्च यूपी सरकार ने वहन किया. राज्य सरकार ने इस साल के ‘दीपोत्सव’ के लिए 133 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की. इस बीच सोशल मीडिया पर इस दीपोत्सव कार्यक्रम के बारे में सवाल तेजी से वायरल हो रहे हैं। वे सवाल हैं कि क्या खुद को राम भक्त कहने वाले महंत जी ने दीयों में ही घोटाला कर दिया।
पहली खबर है कि 133 करोड़ रुपए खर्च कर चार लाख दीए जलाए गए, जबकि दूसरी खबर है कि 131 करोड़ रुपए खर्च कर साढ़े पांच लाख दीए जलाए गए। पहली खबर के अनुसार प्रति दीए की कीमत 3325 रूपए, और दूसरी खबर के अनुसार प्रति दीए की कीमत 2418 रूपए थी। खैर, दोनों में से जो भी सही हो, पर दीए की कीमत साबित करती है कि यह दीपक घोटाले का मामला है।
कुछ भी हो, एक दीए की कीमत इतनी कैसे हो सकती है ? अगर दीए किसी विशेष धातु के बने हुए थे, तो वे दीए महोत्सव खत्म होने के बाद गए कहां ? क्या वे सभी दीए सरकारी खजाने में जमा हुए, या यूं ही फेंक दिए गए या दर्शकों के बीच बांट दिए गए ? दर्शकों के बीच बंटने की कोई खबर नहीं है, तो आखिर वे सारे दीए गए कहां ? स्पष्ट है कि राम की नगरी अयोध्या में राम के आगमन के अवसर पर जलाए गए दीपों की खरीद में भी आखिर घोटाला हो ही गया।
मतलब राम के सामने ही रामभक्त ने घोटाला कर लिया और राम को पता भी नहीं चला। वाह रे राम , और वाह रे रामभक्त। बोलो, जय श्रीराम।
अयोध्या में 'दीपोत्सव' का पूरा खर्च यूपी सरकार ने वहन किया. राज्य सरकार ने इस साल के ‘दीपोत्सव’ के लिए 133 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की. इस बीच सोशल मीडिया पर इस दीपोत्सव कार्यक्रम के बारे में सवाल तेजी से वायरल हो रहे हैं। वे सवाल हैं कि क्या खुद को राम भक्त कहने वाले महंत जी ने दीयों में ही घोटाला कर दिया।
पहली खबर है कि 133 करोड़ रुपए खर्च कर चार लाख दीए जलाए गए, जबकि दूसरी खबर है कि 131 करोड़ रुपए खर्च कर साढ़े पांच लाख दीए जलाए गए। पहली खबर के अनुसार प्रति दीए की कीमत 3325 रूपए, और दूसरी खबर के अनुसार प्रति दीए की कीमत 2418 रूपए थी। खैर, दोनों में से जो भी सही हो, पर दीए की कीमत साबित करती है कि यह दीपक घोटाले का मामला है।
कुछ भी हो, एक दीए की कीमत इतनी कैसे हो सकती है ? अगर दीए किसी विशेष धातु के बने हुए थे, तो वे दीए महोत्सव खत्म होने के बाद गए कहां ? क्या वे सभी दीए सरकारी खजाने में जमा हुए, या यूं ही फेंक दिए गए या दर्शकों के बीच बांट दिए गए ? दर्शकों के बीच बंटने की कोई खबर नहीं है, तो आखिर वे सारे दीए गए कहां ? स्पष्ट है कि राम की नगरी अयोध्या में राम के आगमन के अवसर पर जलाए गए दीपों की खरीद में भी आखिर घोटाला हो ही गया।
मतलब राम के सामने ही रामभक्त ने घोटाला कर लिया और राम को पता भी नहीं चला। वाह रे राम , और वाह रे रामभक्त। बोलो, जय श्रीराम।