संघ की भगवाधारी नीति को सामाजिक न्याय की नीति ही हरा सकती है

Written by राम करन निर्मल | Published on: June 6, 2017


भारतीय समाज मे जातीय व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिस पर हिन्दू समाज का भवन खड़ा है। इस जर्जर भवन का आधार जातीय असमानता, भेदभाव, उच्च नीच, छुआ छूत,पवित्रता,अपवित्रता और महिलायों का शोषण है।इस असमानता और अन्याय को खत्म करने के लिये समय समय पर तमाम महापुरूषों ने जन्म लियाऔर समानता और मानवता के लिये अन्याय और शोषण के विरोध में सामंती ताकतों से लड़ाई लड़ी और समता मूलक समाज बनाने की नींव डाली।जैसे संत कबीर, संत रविदास, संत तुकाराम, संत गाडगे, नारायणा गुरु, पेरियार रामास्वामी, पेरियार ललई यादव, ज्योतिबा फूले, सावित्री बाई फूले, छत्रपत्ति साहू जी महराज और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर आदि।ज्यादातर समाज सुधारक पिछड़े समुदाय के ही थे लेकिन उन्होंने दलितों ,पिछडो और महिलायों के हक के लिये हिंदूवादी व्यवस्था के  खिलाफ समाजिक न्याय की प्राप्ति के लिये आजीवन लड़ाई लड़ी।बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने तो भारतीय संविधान का निर्माण कर मनुस्मृति में किये गये समाजिक अन्याय को कचरे के डिब्बे मे फेकने जैसा काम किया है और समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व का उपबंध कर मानवता को अग्रसर किया ,भारतीय संविधान का अनुच्छेद14 समता के अधिकार को प्रदान करती है जो कि अनुच्छेद15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करती है और अनुच्छेद17 अस्पृश्यता का अंत कर समाज मे चली आ रही जातीय छुआछूत को जड़ से खत्म कर नये भारत का निर्माण करते हुए दिख रही है लेकिन वर्तमान समय मे जब हम वर्तमान परिस्थितियों की ओर देखते है तो पाते है कि देश दो ग्रंथों के आधार पर चलता है।

1.मनुस्मृति 
2.भारतीय संविधान
 
वर्तमान समय मे समाज और सरकार मनुस्मृति के उपबंधों को समाज के वंचित तबकों पर लागू करना चाहती है और उनके मूलभूत अधिकारों को खत्म करना चाहती है। जब हम कुछ हिंसक घटनाओ पर नजर डालते है तो पाते है कि ना तो समाज ने ना तो वर्तमान सरकारो ने संविधान उपबंधों को आत्मसात किया है। देश के अंदर दलितों पर हुए अत्याचार की कुछ घटनाओं को देखकर तो यही लगता है जैसे:-

1.मिर्चपुर नरसंहार
2.मोहाना नरसंहार
3.बथानी टोला नरसंहार
4.लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार
5.ख़िरलांची नरसंहार
6.राजस्थान डांगावास नरसंहार
7.किल्वेमनी नरसंहार
8.धनकौर नरसंहार
9.रोहित वेमुला हत्याकांड और अब सहारनपुर नरसंहार इन सब घटनायों को देखते हहुए बाबासाहेब का कथन याद आता है कि भारत राष्ट्र नही बल्कि यह राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है क्योंकि जिस देश की धरती पर 6000 जातियां हो वह एक राष्ट्र कैसे हो सकता है क्योंकि जातियां तो आपसी वैमनस्य, जलन, नफरतऔर भेदभाव को जन्म देती हैइसलिए जातीयता देश विरोधी है। जे. एस. मिल के अनुसार राष्ट्र का  निर्माण तभी हो सकता है जब सबको बराबर का अधिकार हो, समान अवसर हो और आपसी भाईचारा हो।भारतीय संविधान के भाग तीन और भाग चार में समान अवसर पाने के लिये अनेक अनुच्छेदो का उपबंध किया गया है जैसे: अनुच्छेद 39 क के अनुसार पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।

अनुच्छेद 39 घ पुरषो और स्त्रियों के दोनों के लिए समान कार्य के लिये समान वेतन।

अनुच्छेद 39 क समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता

अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियो और अन्य दुर्बल वर्गो के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि करेगा। आजादी के 70 सालो बाद भी इन सब उपबंधों के होते हुए भी क्या समान अवसरऔर समान न्याय सभी को मिल पाया ह।
 
यह एक विचारणीय तथ्य है।लेकिन वर्तमान कि केंद्र और राज्य की सरकारें गाय की रक्षा कर और अल्पसंख्यको ,दलितों की हत्या कर राम राज्य स्थापित करने का सपना देख रही है क्या भीम राज (संविधान राज्य) में यह संभव हो पायेगा।सहारनपुर की घटना जिस तरह दलितों की हत्या की गई और उनके घर जलाये गये क्या ये राम राज्य की ओर बढ़ता ये कदम है लेकिन भीम सेना ने भी इनके रामराज्य के उलट जाकर नन्द राज्य की याद दिलायी है जिसका मतलब हजारो साल के इस सिद्धांत को तोड़ा है कि दलित हमेशा पीड़ित नही रहेगा बल्कि यह मजबूती से जातीय हिंसा को उसी की भाषा मे ही जबाब देगा। चन्द्रशेखर जैसे पढे लिखे युवाओ ने समाज मे एक नई चेतना पैदा की है और ये संदेश देने की कोशिश की है यदि हमें सताया गया तो हम भी चुप नही बैठेगे और इट का जबाब पत्थर से देगे। 21 मई2017 को दिल्ली के जंतर मंतर उसके समर्थन में देश  विदेश के तमाम सामाजिक संगठनों ने इकठ्ठा होकर सरकार को बताने की कोशिश की है कि चंद्रशेखर जैसे लोग अब अकेले नही है हम भी उनके साथ अन्याय की लड़ाई में खड़े है।और उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए 31 मई  2017 को joint action committee ने GPO लखनऊ बाबासाहेब मूर्ती से विधान सभा मार्च का आवाहन वर्तमान संघी सरकार के खिलाफ किया।इस joint action committee के निर्माण में jnu के research scholar दिलीप यादव, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के research scholar राम करन निर्मल लखनऊ के अमिक जामिया, फ्रैंक हुजूर और यादवेन्द्र यादव की महती भूमिका रही।विधान सभा मार्च में आये यादव, मौर्या, कुशवाहा, पटेल जैसे सरनेम लगें पिछड़े समाज के छात्रों ने लाठियां खाई और ये संदेश दिया कि ये लड़ाई सिर्फ दलितों की ही नही हम सब की है।ये कदम एक नए युग की शुरुआत है या यूं कहें की ये दलित ,पिछडो और अल्पसंख्यको की एकता की ओर बढता कदम है।इस मार्च की सबसे बड़ी खूबसूरती यह थी कि जो लोग इसमे शामिल हुए थे उन्होंने अपने हाथों में दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक जाती में जन्मे तमाम महापुरुषो की तस्वीरें अपने हाथ मे ले रखी थी।सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र अमिक जामिया के हाथों मे वीरांगना फूलन देवी की तस्वीर थी जो एक तस्वीर ही नही बल्कि एक महिला सशक्तिकरण की एक मिशाल है और अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करती हुई महिला की कहानी है जो अपने ऊपर हुए अत्याचारो पर विषम परिस्थितियों में भी घबड़ाई नही और अपने अपमान का बदला लेकर भरतीय समाज की जातीय सामंतशाही सत्ता को ध्वस्त होने का संदेश दिया था और महिलायों को अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस प्रदान किया था।
 
दूसरी सबसे बड़ी खूबसूरती ये रही कि नीला और लाल झंडा एक साथ दिखाई दिये, समजवादी पार्टी के नौजवान कार्यकर्ता लाल टोपी लगाये अपने हाथ मे बाबा साहेब के तस्वीरों को अपने हाथ मे ले रखा था और ये नारा लगा रहे थे कि 

1.एकता का राज चलेगा दलित पिछड़ा साथ चलेगा
२.युवा अब जाग गये है मनुवादी सब भाग गये है
3.सामाजिक न्याय जिंदाबाद
4.ब्राह्मणवाद की छाती पर बिरसा, फुले अम्बेडकर
5.ब्राह्मणवाद हो बर्बाद, मनुवाद हो बर्बाद
6.समाजवादियों ने बंधी गाँठ सौ में पिछड़ा पावे साठ
7.महिलायों के द्वारा आजादी के नारे लगाये जा रहे थे बाप से आजादी, खाप से आजादी,
8.जय भीम जय मंडल के नारों से पूरा विधान सभा मार्ग गूंज रहा था ।
 
और लाल और नीले झंडो से सड़के पटी पड़ी थी रोड पर चलने वाली भीड़ झंडो के रंग को देखकर अनुमान लगा रहे थे कि अब देश मे समानता आने से कोई नही रोक सकता।

नीला झंडा सामाजिक समानता का सूचक है तो लाल झंडा आर्थिक समानता का।

जिस प्रकार अम्बर औऱ समंदर नीला है कोई भेदभाव नही है उसी प्रकार समाज का निर्माण ये युवा पीढ़ी करना चाहती है जहाँ पर न तो जाति, धर्म के नाम पर भेदभाव हो और न लिंग के आधार पर।
 
लाल रंग आर्थिक समानता के साथ साथ प्यार, बहादुरी,साहस और क्रांति का सूचक है।आर्थिक समानता के को पाने के लिए भारतीय संविधान में अनेक अनुच्छेदो का उपबंध किया गया है जैसे अनुछेद38(२)कहता है कि राज्य आय की असमानता को कम करने का प्रयास करेगा

अनुछेद 39ख राज्य समुदाय क्व भौतिक संसाधनों का का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार करेगा जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से प्रयोग किया जाय।

मेरा मानना है कि संघ की भगवाधारी नीति को सामाजिक न्याय की नीति ही हरा सकती है जिस प्रकार राम आंदोलन की धार को मंडल आंदोलन ने कमजोर किया था।

(राम करन निर्मल विधि शोध छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद)

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