क्यों देश का अमीर आदमी पहला मौका मिलते ही भारत छोड रहा है?
मेहुल भाई एंटीगुआ के नागरिक बन गए है. 14000 करोड के बैंक फर्जीवाडे के आरोपी है. अगले एक महीने में नीरव भाई अजरबाइजान के नागरिक बन जाए, तो चौंकिएगा नहीं. मॉर्गन स्टैनले की रिपोर्ट है. 2014 से अभी तक 23 हजार भारतीय अमीर भारत छोड चुके है. ज्यादातर ने यूके, दुबई और सिंगापुर की नागरिकता ले ली है. इनकी औसत संपत्ति 1 मिलियन डॉलर से अधिक की है. यानी, भारतीय अमीरों का करीब 2.1 फीसदी हिस्सा देश छोड चुका है.
एक और रिपोर्ट है. चीन, रोमानिया और सीरिया के बाद, भारत सबसे बडा देश है, जहां से सिर्फ 2016 में 271503 लोगों ने अन्य देशों के लिए पलायन किया. इसमें नौकरी करने वालों से ले कर बिजनेसमैन तक शामिल है. इस रिपोर्ट की व्याख्या कई तरीकें से की जा सकती है. लेकिन, उपरोक्त दो खबरें ये बताती है कि बीते चार सालों में हजारों अमीर लोगों ने बकायदा भारत से निकल कर दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है.
तो इस सब का मतलब क्या है? मतलब कुछ भी हो सकता है. लेकिन, जो मैं समझ रहा हूं, वो यही कि हमारे देश के मंत्री तक अपने बच्चों को भारत में नहीं विदेशों में पढाना चाहते है. बेहतर इलाज के लिए विदेश जाते हैं. तकरीबन हर करोडपति बिजनेसमैन ने अपने लिए एक सुरक्षित ठिकाना बना लिया है. कल को कोई दिक्कत हो तो पल भर में रफ्फूचक्कर.
एक और बात. यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि इस देश का हर वो आदमी, जिसके पास 50-100 करोड रुपये से अधिक है, वह कम से कम वैसा अन्न, दूध, पानी, सब्जी तो नहीं ही खाता, जो हम-आप जैसे लोग खाते हैं. पुणे में एक डेयरी है. सुना है, वहां से हर रोज मुंबई दूध सप्लाई की जाती है. वह दूध बडे लोगों के पास जाता है. कीमत है, शायद 500 रुपये प्रति लीटर. ये जो आप देश में जैविक खेती की बहार देख रहे है न, वह भी इन्हीं करोडपति लोगों के लिए शुरु की गई है. मतलब, जिनके पास पैसा है, वो न वह दूध या पानी पीते है, जो हम और आप पी रहे हैं. उसका प्रतिबिंब उनके चमचमाते चेहरे है. 60 साल, 70 साल की उमर में भी फिट. यहां 40 के बाद बुढापा कब आ जाता है, पता ही नहीं.
तो क्या सचमुच हम कैटल क्लास है. है. बिना शक. कैटल न होते तो कम से कम अपने बारे में सोचते, अपने बच्चों के बारे में सोचते. ये सोचते कि आखिर हमारे देश को, हमारे देश की आबो-हवा को, यहां की मिट्टी को, पानी को, दूध को, सब्जी को, अनाज को किसने और क्यों खराब कर दिया? क्यों और किसने इसे जहर बना दिया? कौन है जो हमें पहले जहर दे रहा है और फिर बाद में दवा भी बेच रहा है.
सोचिए, क्यों देश का हर अमीर आदमी पहला मौका मिलते ही भारत छोड रहा है... आखिरकार इस देश में तो हमें ही रहना है. फकीर तो झोला उठा कर निकल ही रहे है, आगे भी निकलते रहेंगे....
(यह आर्टिकल शशि शेखर की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सामाजिक मुद्दों पर पैनी नजर रखते हैं.)
मेहुल भाई एंटीगुआ के नागरिक बन गए है. 14000 करोड के बैंक फर्जीवाडे के आरोपी है. अगले एक महीने में नीरव भाई अजरबाइजान के नागरिक बन जाए, तो चौंकिएगा नहीं. मॉर्गन स्टैनले की रिपोर्ट है. 2014 से अभी तक 23 हजार भारतीय अमीर भारत छोड चुके है. ज्यादातर ने यूके, दुबई और सिंगापुर की नागरिकता ले ली है. इनकी औसत संपत्ति 1 मिलियन डॉलर से अधिक की है. यानी, भारतीय अमीरों का करीब 2.1 फीसदी हिस्सा देश छोड चुका है.
एक और रिपोर्ट है. चीन, रोमानिया और सीरिया के बाद, भारत सबसे बडा देश है, जहां से सिर्फ 2016 में 271503 लोगों ने अन्य देशों के लिए पलायन किया. इसमें नौकरी करने वालों से ले कर बिजनेसमैन तक शामिल है. इस रिपोर्ट की व्याख्या कई तरीकें से की जा सकती है. लेकिन, उपरोक्त दो खबरें ये बताती है कि बीते चार सालों में हजारों अमीर लोगों ने बकायदा भारत से निकल कर दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है.
तो इस सब का मतलब क्या है? मतलब कुछ भी हो सकता है. लेकिन, जो मैं समझ रहा हूं, वो यही कि हमारे देश के मंत्री तक अपने बच्चों को भारत में नहीं विदेशों में पढाना चाहते है. बेहतर इलाज के लिए विदेश जाते हैं. तकरीबन हर करोडपति बिजनेसमैन ने अपने लिए एक सुरक्षित ठिकाना बना लिया है. कल को कोई दिक्कत हो तो पल भर में रफ्फूचक्कर.
एक और बात. यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि इस देश का हर वो आदमी, जिसके पास 50-100 करोड रुपये से अधिक है, वह कम से कम वैसा अन्न, दूध, पानी, सब्जी तो नहीं ही खाता, जो हम-आप जैसे लोग खाते हैं. पुणे में एक डेयरी है. सुना है, वहां से हर रोज मुंबई दूध सप्लाई की जाती है. वह दूध बडे लोगों के पास जाता है. कीमत है, शायद 500 रुपये प्रति लीटर. ये जो आप देश में जैविक खेती की बहार देख रहे है न, वह भी इन्हीं करोडपति लोगों के लिए शुरु की गई है. मतलब, जिनके पास पैसा है, वो न वह दूध या पानी पीते है, जो हम और आप पी रहे हैं. उसका प्रतिबिंब उनके चमचमाते चेहरे है. 60 साल, 70 साल की उमर में भी फिट. यहां 40 के बाद बुढापा कब आ जाता है, पता ही नहीं.
तो क्या सचमुच हम कैटल क्लास है. है. बिना शक. कैटल न होते तो कम से कम अपने बारे में सोचते, अपने बच्चों के बारे में सोचते. ये सोचते कि आखिर हमारे देश को, हमारे देश की आबो-हवा को, यहां की मिट्टी को, पानी को, दूध को, सब्जी को, अनाज को किसने और क्यों खराब कर दिया? क्यों और किसने इसे जहर बना दिया? कौन है जो हमें पहले जहर दे रहा है और फिर बाद में दवा भी बेच रहा है.
सोचिए, क्यों देश का हर अमीर आदमी पहला मौका मिलते ही भारत छोड रहा है... आखिरकार इस देश में तो हमें ही रहना है. फकीर तो झोला उठा कर निकल ही रहे है, आगे भी निकलते रहेंगे....
(यह आर्टिकल शशि शेखर की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सामाजिक मुद्दों पर पैनी नजर रखते हैं.)