हसदेव अरण्य खनन परियोजना पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

Written by Navnish Kumar | Published on: December 23, 2022


"सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता वाले हसदेव अरण्य में अदानी समूह द्वारा संचालित और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) के स्वामित्व वाली कोयला खनन परियोजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और कहा कि हम स्पष्ट करते हैं कि इन अपीलों का लंबित रहना परियोजना के रास्ते में नहीं आएगा।" वहीं परियोजना का विरोध कर रहे लोग फिर से एकत्र हो गए। उनके आंदोलन के 275 दिन पूरे हो गए हैं। ग्रामीणों ने सरकार की नीतियों पर रोष जताते हुए आंदोलन तेज करने की बात कही है।"

दरअसल, परसा कोल ब्लॉक के आदिवासी भूविस्थापितों ने शुक्रवार को याचिका दायर की थी। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि, परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं को खनन के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंच ने कहा कि, 'हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस पर बहुत स्पष्ट हैं। हम कानून के तहत आपके अधिकारों का निर्धारण करेंगे लेकिन विकास की कीमत पर नहीं।' कहा कि, 'अंतरिम राहत से इनकार किया जाता है। हम स्पष्ट करते हैं कि इन अपीलों का लंबित रहना परियोजना के रास्ते में नहीं आएगा। कोर्ट अपीलकर्ताओं की ओर से तर्कों में ठोस पाता है तो क्षतिपूर्ति के लिए निर्देशित किया जा सकता है।  

आंदोलनकारी बोले- स्वीकृति रद्द होने तक जारी रहेगा आंदोलन

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर आर्मो ने कहा कि राज्य सरकार ने परसा खदान की वन स्वीकृति को निरस्त करने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को पत्र लिखा है। इसमें जन आक्रोश की बात है, लेकिन फर्जी ग्राम सभा और पर्यावरणीय चिंताओं के कोई उल्लेख नहीं किया। वे स्वयं ही अंतिम वन स्वीकृति निरस्त कर सकते हैं। जब तक सभी खदानें अधिकारिक रूप से निरस्त नहीं की जाती, आंदोलन जारी रहेगा। कहा व्यापक जन समर्थन इस संघर्ष के साथ जुड़ा है। हसदेव अरण्य को बचाने अगले महीने नए साल में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति छत्तीसगढ़ के सभी जनवादी संघर्षों और प्रकृति प्रेमी लोगों से सम्मेलन में शामिल होने का आह्वान करेगी।

राजस्थान की बिजली के लिए हो रहा खनन

हसदेव अरण्य से पेड़ों को काटने का पूरा मामला राजस्थान की बिजली से जुड़ा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान 2012 में आवंटित हुई थी। 2019 में इसके दूसरे फेज का प्रस्ताव आया था। इसमें परियोजना के लिए 348 हेक्टेयर राजस्व भूमि, 1138 हेक्टेयर वन भूमि के अधिग्रहण सहित करीब 4 हजार की आबादी वाले पूरे घाटबर्रा गांव को विस्थापित करने का प्रस्ताव है। इसको लेकर मार्च में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने CM भूपेश बघेल से रायपुर में मुलाकात भी की थी। इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने अप्रैल में मंजूरी दे दी। जबकि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जुलाई 2019 में ही माइंस को मंजूरी दे चुका है। उधर, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और जनजातीय अधिकारों पर खनन गतिविधियों के प्रभाव को लेकर इस क्षेत्र में मूल आदिवासी समुदाय लंबे समय से खनन का विरोध करते रहे हैं। 

क्या है मामला?

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में कोयला खदानों को राज्य सरकार से अनुमति दिए जाने के बाद लगातार आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं। सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर ज़िले में फैला हसदेव अरण्य देश के सबसे विविध और खूबसूरत जंगलों में से एक है। इस इलाक़े में कोयला खादानों में खनन की प्रक्रिया के लिए लाखों पेड़ काटे जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आदिवासियों का कहना है कि कोयले के खनन की वजह से हसदेव अरण्य के करीब 8 लाख पेड़ों को काटा जाना है।

स्थानीय गोंड आदिवासी समाज के लोग बताते हैं कि जब साल 2011 में इस परियोजना को हरी झंडी दी गयी थी, उस समय से ही स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं। उससे पहले वर्ष 2010 तक इस इलाक़े में खनन को प्रतिबंधित रखा गया था। 2011 में 30 गांवों के लोगों ने कुछ सामजिक संगठनों के साथ मिलकर ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ का गठन किया और खनन के खिलाफ संघर्ष करना शुरू कर दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय लोग बताते हैं कि जब 2011 में खनन की इजाजत सरकार और पर्यावरण मंत्रालय ने दी तो ये स्पष्ट किया गया कि इन परियोजनाओं के अलावा इलाक़े में किसी और खनन परियोजना को मंज़ूरी नहीं दी जाएगी। ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ की एक सार्वजनिक घोषणा में आरोप है कि सरकार ने आदिवासियों और जंगल के दूसरे निवासियों की रक्षा करने के बजाय खनन कंपनियों से हाथ मिला लिया है।

दरअसल, अप्रैल 2010 में छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा ईस्ट और कांता बसन (PEKB) में 1,898.328 हेक्टेयर जंगल की ज़मीन के इस्तेमाल की सिफारिश की थी, और उसे राजस्थान राज्य विद्युत उत्पाद निगम लिमिटेड (RRVUNL) को सौंप दिया था। जून 2011 में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन की फॉरेस्ट पैनल ने इस इलाके को इकोलॉजिकल तौर पर अहम मानते हुए यहां खनन पर रोक लगा दी। लेकिन आरोप है उस वक्त के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस फ़ैसले को नज़रअंदाज करते हुए राज्य सरकार की सिफारिश को माना और जो इलाके कम घने और जहां जैव-विविधता कम है, वहां खनन की अनुमति दे दी। इस निर्णय को 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में चुनौती दी गई और आदेश के बाद RRVUNL द्वारा किए जा रहे खनन को स्थगित कर दिया गया।

एनजीटी के 2014 के आदेश के तहत ICFRE का एक स्टडी यहां होना था लेकिन 2019 तक यह काम शुरू नहीं हुआ। मई 2019 में संस्था ने ज़मीन पर काम शुरू किया जो कि फरवरी 2021 में ख़त्म हुआ है।

आंदोलनकारी क्या कहते हैं

हसदेव बचाओ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आलोक शुक्ला आदि कहते हैं कि हसदेव के मामले में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अड़ानी के साथ खड़े हुए हैं। उनका कहना था कि कोई भी राजनीतिक दल चाहे वो बीजेपी है या फिर कांग्रेस करोड़ों के कॉरपोरेट चंदे और भ्रष्टाचार से मिलने वाले पैसे को नहीं छोड़ना चाहती है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार हसदेव के मामले पर केन्द्र सरकार को लिप्त बता कर ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती है। वो कहते हैं कि माना कि बीजेपी की केन्द्र सरकार कॉरपोरेट के साथ खड़ी है। इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी बिलकुल खुल कर उनके साथ हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी तो अपने आपको आदिवासी हितैषी पार्टी कहती है। उसने तो चुनाव से पहले वादा किया था कि जंगल की कटाई, कॉरपोरेट लूट और आदिवासियों के शोषण को ख़त्म किया जाएगा। 

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह तर्क कि कोयला तो केन्द्र का विषय है तो फिर वो यह भी बताए की ज़मीन किसका विषय है। क्या बिना ज़मीन अधिग्रहण और जंगल काटे जाने की अनुमति के केन्द्र सरकार किसी से कोयला निकलवा सकती है। वो कहते हैं कि दरअसल इस पूरे मामले में कांग्रेस अपने वादे से पीछे हट रही है। अपनी वादा खिलाफ़ी को छुपाने के लिए तर्क गढ़ रही है।

हसदेव अरण्य की ख़ासियत

हसदेव जंगल 170,000 हेक्टेयर इलाक़े में फैला है और देश में सबसे बड़े अनछुए जंगलों में से एक है। हसदेव जंगल गोंड, उरांव, लोहार, कुंवर और दूसरे क़रीब 10 हज़ार आदिवासियों का घर भी है। यह भारत के सबसे समृद्ध और सबसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। केंद्र सरकार इलाक़े में नई कोयला खदानों को खोलने की योजना को तेज़ी से बढ़ावा दे रही हैं। लेकिन अगर खदानें आगे बढ़ती हैं तो जंगल और उसके लोग नष्ट हो जाएंगे।

हसदेव अरण्य में 18 कोयला ब्लॉक चिन्हित किए गए हैं। यह जंगल हाथियों का घर है। दरअसल इस जंगल के बड़े हिस्से को एलिफ़ेंट कोरिडोर घोषित करने पर भी लगातार कई साल से चर्चा हुई है। इसके अलावा यह इलाका हसदेव बांगो बांध का ‘कैचमेंट एरिया’ भी है, जिससे लगभग तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दो फसली सिंचाई होती रही है। यही नहीं, हसदेव अरण्य की जैव विविधता और उच्च पारिस्थितिक के कारण कोयला मंत्रालय और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में एक संयुक्त अध्ययन के बाद, इस इलाके को किसी भी तरह के खनन के लिए प्रतिबंधित करते हुए इसे ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था।

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