इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए SBI ने 5 महीने का समय मांगा, कांग्रेस ने भाजपा को घेरा

Written by Navnish Kumar | Published on: March 6, 2024
भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है और योजना के तहत राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का खुलासा करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए SC ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया SBI को आदेश दिए थे कि वो 6 मार्च तक चंदे का पूरा ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपे और उसे 13 मार्च तक सार्वजनिक किया जाए।


Image: Newsclick

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फ़ैसले का पूरे देश ने बढ़ चढ़कर स्वागत किया था और इसे चुनाव में कालेधन के उपयोग और सत्ता में पूंजीपतियों की ग़ैर क़ानूनी हिस्सेदारी के खिलाफ सबसे बड़ा कदम माना जा रहा था। लेकिन जिस तरह SBI चंदे का ब्योरा देने में असमर्थता जता रहा है और SC से 30 जून यानी चुनाव बाद तक का समय मांग रहा है, उससे ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड से लिए दिए गए चंदे का हिसाब नहीं मिलेगा! इससे जहां डिजिटल भारत में सबसे बड़े बैंक SBI की क्षमता पर सवाल उठे हैं वहीं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से सांठगांठ या उसके किसी दबाव को लेकर भी कयासबाजी और अटकलों का बाजार गर्म हो उठा है। यही नहीं, पूरे मामले से SC के लिए भी अग्निपरीक्षा जैसी स्थिति बन गई है।

सत्ताधारी भाजपा चंदे की सबसे बड़ी लाभार्थी

अब यह तो सबको पता है कि साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए का चंदा चुनावी बॉन्ड के जरिए दिया गया है, जिसमें से साढ़े छह हजार करोड़ रुपए से ज्यादा अकेले भाजपा को मिला है। अगर इसके आंकड़े जारी होंगे तो पता चलेगा कि भाजपा को किस कंपनी या किस व्यक्ति ने सबसे ज्यादा चंदा दिया है और फिर यह भी हिसाब निकाला जाएगा कि उस कंपनी या व्यक्ति का कारोबार कितना फला-फूला है या मुकदमों से कितनी राहत मिली है। लेकिन इसमें पेंच यही है कि देश के सबसे बड़े बड़े बैंक SBI ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह 6 मार्च तक आंकड़े जारी करने में सक्षम नहीं है। बैंक ने 30 जून तक का समय मांगा है। इसका मतलब है कि चुनाव से पहले या चुनाव के बीच यह आंकड़ा सार्वजनिक नहीं हो सकता है। इसी से स्टेट बैंक ने जैसे ही सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दी, विपक्ष ने इसकी मंशा पर सवाल उठा दिए हैं। 

कांग्रेस आदि विपक्ष का कहना है कि सरकार नहीं चाहती कि चंदे का हिसाब किताब चुनाव से पहले सामने आए। कांग्रेस इसके लिए आज देश भर में SBI के सामने प्रदर्शन भी कर रही है। दरअसल असल सवाल स्टेट बैंक की कार्यक्षमता पर है। उसे तो अपने रेपुटेशन का ख्याल रखना चाहिए। उसके पास 40 करोड़ से ज्यादा खाते हैं और हजारों कर्मचारी हैं। उसे अगर करीब 23 हजार चुनावी बॉन्ड का हिसाब देने में 4-5 महीने का समय लगेगा तो उससे कैसे उम्मीद की जाएगी कि वह अपने उपभोक्ताओं को समय से सेवा दे पाएगी? इससे तो उसकी कार्य कुशलता और साख पर बड़ा सवाल खड़ा होगा।

विपक्षी आरोपों की बात करें तो सत्ताधारी बीजेपी, जो कि चुनावी बॉन्ड योजना की इकलौती सबसे बड़ी लाभार्थी है, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से बेचैन है। बीजेपी को डर है कि उसके चंदा देने वाले मित्रों की जानकारी सार्वजनिक होते ही उसकी बेईमानी का भंडाफोड़ हो जायेगा। मसलन चंदा कौन दे रहा था, उसके बदले उसको क्या मिला, उनके फ़ायदे के लिए कौन से क़ानून बनाये गये, क्या चंदा देने वालों के ख़िलाफ़ जांच बंद की गई या फिर क्या चंदा लेने के लिए जांच की धमकी दी गईं, सब पता चल जाएगा।

क्या सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया जा रहा?

जानकारों के अनुसार, देश के सबसे बड़े पूर्णत: कंप्यूटरीकृत बैंक को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 3 माह का समय और क्यों चाहिए? जबकि संपूर्ण जानकारी एक क्लिक से 5 मिनट में निकाली जा सकती है। फिर स्टेट बैंक ने समय की मांग जानकारी देने की अंतिम तिथि के एक दिन पहले ही क्यों की? क्या कितना समय लगेगा, इसकी गणना करने के लिए भी एक माह का समय लग गया? सवाल है कि क्या देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भी अब सरकार की आर्थिक अनियमितता और कालेधन के स्रोत को छिपाने का ज़रिया बन रहा है? क्या एक राजनीतिक दल और एक सरकारी बैंक मिलकर देश की उच्चतम अदालत के फ़ैसले को ठेंगा दिखा रहे हैं? क्या लोकसभा चुनाव के पहले देश की जनता को सही जानकारी प्राप्त कर मतदान में सही निर्णय लेने का हक़ नहीं है? आदि सवालों के बीच अब सुप्रीम कोर्ट के लिए यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।

जी हां, भारतीय स्टेट बैंक ने इलेक्ट्रॉल बॉन्ड संबंधी याचिका देकर सुप्रीम कोर्ट के सामने भी अग्निपरीक्षा जैसी स्थिति खड़ी कर दी है। कोर्ट के सामने अब अपने निर्णय की प्रभावशीलता के साथ अपनी साख की रक्षा करने की भी चुनौती है। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से इलेक्ट्रॉल बॉन्ड संबंधी सूचना देने की समय सीमा बढ़ाने की गुजारिश की है। उचित ही इस पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। सवाल सीधे केंद्र सरकार की मंशा पर हैं। यह मानने का तो कोई आधार नहीं है कि याचिका देने का फैसला स्टेट बैंक ने स्वायत्त रूप से और व्यावहारिक कारणों से लिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स संबंधी मामले पर सुनवाई के दौरान खुद स्टेट बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि चंदा-दाताओं का विवरण सील किए लिफाफे में स्टेट बैंक की तयशुदा शाखाओं में रखा गया है।

उसने बताया था कि जब इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स को भुनाया जाएगा, तब उनका पे-इन स्लिप भी सील्ड कवर में रखा जाएगा और उसे स्टेट बैंक की मुंबई शाखा को भेज दिया जाएगा। इसलिए यह तर्क नहीं टिकता कि स्टेट बैंक को चंदादाताओं की सूची तैयार करने और उसका मिलान करने के लिए और तीन महीने और चाहिए। आम समझ है कि यह ब्योरा पेश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने बैंक को पर्याप्त समय दिया है।

चुनावी मुद्दा न बने, इसलिए टाला जा रहा खुलासा?

मुद्दा इसलिए गरमा गया है, क्योंकि स्टेट बैंक ने यह सूचना देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा है। उसके पहले देश में आम चुनाव निपट चुका होगा। जबकि कोर्ट की तरफ से दी गई समय सीमा यानी इसी महीने जानकारी सामने आने पर संबंधित सूचना चुनाव के दौरान चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन सकती है। आखिर इससे पता चलेगा कि किस कारोबारी घराने ने किसे कितना चंदा दिया। उसके बाद सिविल सोसायटी उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक यह आकलन करने की स्थिति में होगी कि क्या भाजपा को चंदा देने वालों को केंद्र ने कोई खास लाभ पहुंचाया है। इस तरह इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स को लेकर उठे कथित लेन-देन के संदेह का निवारण हो सकेगा। अगर सरकार का दामन पाक-साफ है, तो उसे ये सूचना यथाशीघ्र सार्वजनिक करनी चाहिए। वरना, इस योजना से संबंधित संदेह और गहराएंगे। दरअसल, स्टेट बैंक ने यह याचिका देकर सुप्रीम कोर्ट के सामने भी अग्निपरीक्षा जैसी स्थिति खड़ी कर दी है। कोर्ट के सामने अब अपने निर्णय की प्रभावशीलता के साथ-साथ अपनी साख की रक्षा करने की भी चुनौती है!

कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा

कांग्रेस ने BJP पर लोकसभा चुनाव के बाद तक असंवैधानिक इलेक्टोरल बॉन्ड पर डेटा को सीक्रेट रखने की कोशिश का भी आरोप लगाया है। कांग्रेस के ऑफिशियल X हैंडल से पोस्ट किया गया, "इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च तक का वक्त दिया, लेकिन SBI ने 30 जून तक का वक्त मांगा है। 30 जून का मतलब- लोकसभा चुनाव के बाद जानकारी दी जाएगी। आखिर SBI ये जानकारी लोकसभा चुनाव से पहले क्यों नहीं दे रहा? महालूट के सौदागर को बचाने में SBI क्यों लगा है?" इसके अलावा राहुल गांधी ने भी निशाना साधा है। 




सुप्रिया श्रीनेत का बीजेपी पर हमला

कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने मंगलवार को पूछा, "अप्रत्याशित रूप से नहीं, बल्कि बेहद चौंकाने वाले और बेशर्म तरीके से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और 30 जून तक का समय मांगा है। SBI न सिर्फ भारत का सबसे बड़ा ऋणदाता है, बल्कि यह पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड बैंक है। यह 48 करोड़ बैंक अकाउंट ऑपरेट करती है।  66,000 ATM, पूरे देश और भारत से बाहर इसकी लगभग 23,000 ब्रांच हैं। SBI को सिर्फ 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड पर डेटा देने के लिए 5 महीने की जरूरत है। एक क्लिक में डेटा निकाल सकता है। BJP इन नामों के सामने आने से इतनी डरी हुई क्यों है?




 
सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि 2017 और 2023 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए से पार्टियों द्वारा करीब 12,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किए गए। उसमें से दो-तिहाई या लगभग 6,500 करोड़ रुपये अकेले बीजेपी को मिले। कांग्रेस को सिर्फ 9% मिला। सुप्रिया श्रीनेत ने आरोप लगाया, "क्या इस लोकतंत्र में लोगों को यह जानने का अधिकार नहीं है कि कौन किस पार्टी को कितना और किस समय चंदा दे रहा है? SBI 20-25 दिनों के बाद जागा और उसे एहसास हुआ कि उसे अतिरिक्त समय की जरूरत है। SBI और भारत सरकार द्वारा डोनर्स के नाम छिपाने की साफ कोशिश की जा रही है।"

Related:

बाकी ख़बरें