प्रवासी मजदूरों की मजबूरी और राजनीति

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: May 20, 2020
प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश में एक हजार बसें चलाने की अनुमति प्रियंका गांधी को नहीं मिली और मजदूर पहले की ही तरह मजबूर हैं। टाइम्स नाऊ की एक खबर के अनुसार प्रियंका गांधी के सचिव संदीप सिंह और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। इनपर पुलिस और लोक सेवकों के कार्य में बाधा डालने तथा सरकार और एजेंसियों को भ्रमित करने के आरोप हैं। बसें चलाने की अनुमति के लिए लखनऊ में बसें और अन्य दस्तावेज पेश करने की मांग पर प्रदेश अध्यक्ष संभवतः लखनऊ जाना चाहते थे और रोक दिए जाने पर ऊंचा नंगला में आगरा-राजस्थाना सीमा पर धरना दिया था। उन्हें वहां से हटा दिया गया पर गिरफ्तार नहीं किया गया।



सरकारी आदेशों, अपेक्षाओं और कार्रवाइयों से अब यह लगभग साफ हो गया है कि भाजपा को उम्मीद नहीं थी कि प्रियंका गांधी वाकई 1000 बसें दे देंगी और संभवतः इसी लिए सबसे पहले इस सूची में बसों की जगह ऑटो और स्कूटर होने की अफवाह उड़ाई गई जो संबित पात्रा के ट्वीटर हैंडल से ट्वीट भी हुई। इसमें बाकायदा गाड़ियों के नंबर लिखकर कहा गया था कि यह बस नहीं ऑटो या एम्बुलेंस है जो स्वत्रंत्र जांच में गलत पाया गया (लिंक कमेंट बॉक्स में)। अगर यह ट्वीट संबित पात्रा के स्तर से नहीं हुआ होता तो आप इसे नजरअंदाज कर सकते थे पर संबित पात्रा को गलत जानकारी ट्वीट करने की जरूरत पड़ी यह पार्टी की घबराहट बताने के लिए अपने आप में पर्याप्त है। गिरफ्तारी और एफआईआर राजनीति की औपचारिकताएं हैं उन्हें अगर गंभीर नहीं भी माना जाए तो यह तय है कि करीब 850 बसें ठीक हैं। हालांकि 70 वाहनों का विवरण नहीं है। आखिरी कॉलम देखें।

एम्बुलेंस, ऑटो, निजी कार आदि बसों की सूची में होना निश्चित रूप से गलत है पर इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया गया होता, लीक या सार्वजनिक नहीं किया गया होता तो माना जा सकता था कि कार्रवाई विधिवत हो रही थी। आप तरीके से सहमत होते या नहीं। पर 850 बसें उपलब्ध हैं, मजदूर परेशान हैं, पैदल चले जा रहे हैं या रास्तों में रोक दिए गए हैं और केंद्रीय वित्त मंत्री कह चुकी हैं कि मजदूरों का समय खराब नहीं किया जाना चाहिए तो कोई कारण नहीं है कि जो बसें उपलब्ध और ठीक थीं उनसे लोगों को नहीं भेजा जाता। 1000 बसें देने का प्रस्ताव प्रियंका गांधी का था और यह कोई शर्त नहीं थी कि इससे कम बसों को अनुमति नहीं दी जाएगी या यह बसें कम होने की स्थिति में जो उपलब्ध हैं उनका भी उपयोग नहीं किया जाएगा। ऑटो या एम्बुलेंस से इस अवधि में मजदूरों को जाने देने में कोई बुराई नहीं है खासकर तब जब ट्रक से लाश और घायल को एक साथ भेजा जा चुका है।

फिर भी बसों का उपयोग नहीं होने से मोदी सरकार पर जो आरोप लगने थे लगे पर सरकार इससे बेपरवाह है। यह खास बात है और यही राजनीति है। अगर मकसद मजदूरों या पैदल जाने वालों को राहत पहुंचाना होता तो यह स्थिति भी क्यों आने दी जाती। विशेष परिस्थिति में तमाम विशेष कदम उठाए जा सकते हैं और उठाए जाने चाहिए। अगर यह टकराव ही है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि खत्म हार जीत से होता है या मजदूरों को कुछ लाभ भी मिलता है। फिलहाल मामला निपटता नहीं लगता है। सोशल मीडिया पर लखनऊ के आरटीओ और अपर पुलिस आयुक्त (यातायात) के नाम और दस्तखत से एक पत्र शेयर हो रहा है जो लखनऊ के पुलिस आयुक्त को संबोधित है। यह पत्र 19.05.20 को हस्ताक्षरित है और इसमें कहा गया है, एक हजार बस (वाहनों) की सूची प्राप्त हुई थी जिनका विश्लेषण एनआईसी के वाहन डाटा बेस द्वारा सत्यापन कराया गया। सत्यापन के उपरांत प्राप्त विवरण निम्नवत है - कुल वाहन 1049 एक का नंबर दो बार है इसलिए 1048 इनमें 879 बसें हैं, 31 ऑटो थ्रीव्हीलर हैं और 69 अन्य वाहन हैं।

कुल मिलाकर 979 यानी 70 वाहनों का विवरण इसमें भी नहीं है। सूची में जो 69 अन्य वाहन की श्रेणी है उनमें एम्बुलेंस, स्कूल बस, ट्रक, डीसीएम, मैजिक और टाटा एस हैं। अगर इस सूची को सही मानें तो 31 ऑटो और थ्री व्हीलर के अलावा स्कूटर या ऐसे वाहन नहीं हैं। हालांकि वो बाकी के 70 में हो सकते हैं। जो अन्य वाहन एम्बुलेंस, ट्रक या स्कूल बस हैं वो बस की श्रेणी में ही हैं। फिर भी 31 थ्रीव्हीलर नहीं होने चाहिए थे और 69 में अगर कोई बस नहीं है तो वह भी गलत है। हालांकि यह भी संभव है कि 70 वाहनों का भी हिसाब मिले तो बसें 1000 पूरी हों। इस सार्वजनिक तथ्य और रहस्य के मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार आज दिन में राज्य के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने आरोप लगाया था कि बसों में स्कूटर, तिपहिए और मालवाहकों के नंबर हैं। मुझे सूची में स्कूटर नहीं दिखा। अगर 1000 बसों में 31 थ्रीव्हीलर होना गलत है तो एक स्कूटर में एक भी नहीं होना प्रतिशत के हिसाब से ज्यादा बड़ा मामला है और यह भी क्यों होना चाहिए?

वैसे भी, क्या यह किसी वरिष्ठ मंत्री का काम है कि इस तरह की जांच करें और (गलत) आरोप लगाएं। अधिकारियों को कह दिया जाना चाहिए था कि आवश्यक संयोजन कर जो सर्वश्रेष्ठ हो वह किया जाए। निश्चित रूप से उसके अलावा सब राजनीति है और यह कांग्रेस की तरफ से कम, भाजपा की तरफ से ज्यादा दिखाई दे रही है। इस तरह के प्रयास से लग रहा है कि भाजपा पचा नहीं पाई कि कांग्रेस ने वाकई करीब 1000 बसों की सूची दे दी। जाहिर है, सरकार ने तय ही नहीं किया है कि उसे क्या करना है और वह कोई फैसला नहीं ले पाई। अफवाह फैलाकर बचने की कोशिश की गई जो नुकसानदेह ही रहा।

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