खुलासाः मोदी सरकार से कहीं बेहतर थी मनमोहन सरकार की राफेल डील

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 14, 2019
राफेल डील पर एक के बाद एक नए खुलासे सामने आ रहे हैं। द हिन्‍दू की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए शासनकाल में राफेल विमान को लेकर की गई डील मोदी सरकार में की गई डील से कहीं बेहतर थी।  इसके अलावा विमानों की कीमत और निर्धारित समयसीमा के अंदर जेट को मुहैया कराने के मामले में भी मनमोहन सिंह सरकार के दौरान किया गया करार एनडीए सरकार द्वारा किए गए समझौते से बेहतर था।




रिपोर्ट में 7 सदस्‍यीय भारतीय वार्ताकार दल के तीन सदस्‍यों की आधिकारिक टिप्‍पणी का हवाला दिया गया है। रक्षा मंत्रालय के ये तीनों वरिष्‍ठ अधिकारी टीम में बतौर डोमेन एक्‍सपर्ट (किसी खास क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाला) के तौर पर शामिल थे। इनका निष्‍कर्ष सीधा और स्‍पष्‍ट था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जिन शर्तों पर रफाल करार किया वह दसॉ एविएशन की ओर से यूपीए सरकार को 126 लड़ाकू विमान की खरीद को लेकर दिए गए प्रस्‍ताव से कतई बेहतर नहीं है।

साथ ही तीनों अधिकारियों ने यह भी कहा था कि 36 में से 18 फ्लाईअवे (उड़ान भरने को तैयार) विमान को तुलनात्‍मक रूप से पहले के मुकाबले ज्‍यादा समय में भारत को मुहैया कराया जाएगा। इस बीच, संसद में रफाल डील को लेकर CAG की रिपोर्ट पेश की गई है, जिसमें कहा गया है कि यूपीए के मुकाबले मोदी सरकार ने 2.8 फीसद तक कम कीमत पर रफाल विमान खरीद सौदा किया है।

राफेल डील पर आपत्ति जताने वाले भारतीय वार्ताकार दल का हिस्‍सा रहे तीन सदस्‍यों में एमपी सिंह (कीमत मामलों के सलाहकार, इंडियन कॉस्‍ट अकाउंट्स सर्विस में संयुक्‍त सचिव स्‍तर के अधिकारी), एआर. सुले (फायनेंशियल मैनेजर, एयर) और राजीव वर्मा (संयुक्‍त सचिव एवं खरीद मामलों के प्रबंधक, एयर) थे। तीनों अधिकारियों ने 1 जून, 2016 को डिसेंट नोट दिया था।

रफाल फाइटर जेट की बेंचमार्क कीमत पर भी सवाल उठते रहे हैं। लड़ाकू विमानों की कीमतों से जुड़े मसलों पर प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने विचार किया था। बेंचमार्क प्राइस के तहत एक यूनिट की कीमत तय की जाती है।

तीनों अधिकारियों ने अपने नोट में लिखा कि डिफेंस प्रोक्‍योरमेंट प्रोसीजर (रक्षा खरीद प्रक्रिया) के तहत सभी मामलों में यह तय किया गया कि कांट्रैक्‍ट नेगोशिएटिंग कमेटी कमर्शियल ऑफर से पहले आंतरिक बैठक में बेंचमार्क प्राइस तय करेगी। इस मामले में रक्षा खरीद परिषद  ने 28 अगस्‍त और 1 सितंबर, 2015 को निर्देश दिया था कि कीमतों पर बातचीत से पहले भारतीय वार्ताकार दल फाइटर जेट की खरीद के लिए बेंचमार्क प्राइस तय करने के साथ ही उसे अंतिम रूप भी देगा। तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए बेंचमार्क प्राइस 5.06 बिलियन यूरो (40,507 करोड़ रुपए) तय किया गया था। हालांकि, राफेल फाइटर जेट की अंतिम कीमत 7.87 बिलियन यूरो (63,003) तक पहुंच गई। तीनों अधिकारियों ने इसको लेकर भी महत्‍वपूर्ण जानकारी दी है।

उन्‍होंने बताया कि शुरुआत में फ्रांस की ओर से फिक्‍स्‍ड प्राइस पर कमर्शियल ऑफर दिया गया था, जिसे बाद में बातचीत के दौरान इस्‍कलेशन फार्मूला (एक समय अवधि में संबंधित अर्थव्‍यवस्‍था (देश) में वस्‍तुओं या सेवाओं की कीमत में बदलाव पर आधारित) में तब्‍दील कर दिया गया था। द हिन्‍दू की रिपोर्ट में कहा गया है कि बदले फॉर्मूले के तहत फ्रांस सरकार की ओर से बेंचमार्क प्राइस से 55.6 फीसद ज्‍यादा कीमत पर प्राइस ऑफर किया गया। विमान की डिलीवरी के समय को देखते हुए इसमें और वृद्धि की संभावना जताई गई है।

यूपीए के शासनकाल में रफाल के अलावा यूरोफाइटर टाइफून की निर्माता कंपनी ईएडीएस भी डील हासिल करने की होड़ में शामिल थी। मनमोहन सरकार के समय टाइफून का भी ट्रायल किया गया था।

तीनों अधिकारियों ने अपने नोट में ईएडीएस की ओर से (बिना किसी इस्‍कलेशन फैक्‍टर के) दिए गए प्रस्‍ताव का भी उल्‍लेख किया। उन्‍होंने बताया कि वार्ताकार का दल जब बेंचमार्क प्राइसिंग पर चर्चा कर रही थी तो यूरोफाइटर टाइफून की बात भी उठी थी। यूरोफाइटर टाइफून की निर्माता कंपनी ईएडीएस ने इस्‍कलेशन फैक्‍टर के बिना 20 फीसद की छूट देने का ऑफर दिया था। वार्ताकार दल की ओर से 5 फीसद के अतिरिक्‍त छूट को जोड़ने पर कुल डिस्‍काउंट 25 फीसद तक पहुंच गई थी जो रफाल से कहीं सस्‍ता था।

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