भीम ऑटो पर निकल पड़ी है राधिका वेमुला की संघर्ष यात्रा

Written by Subhash Gatade | Published on: March 14, 2017
आदमी की कीमत उसकी फौरी पहचान और नजदीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। एक संख्या तक। उसके साथ एक सोचने-समझने इंसान की तरह व्यवहार नहीं किया गया। लेकिन चमकने वाली चीजें निचले गर्दो-गुबार से ही बनती हैं। हर जगह- पढ़ाई-लिखाई की दुनिया में, गलियों में, राजनीति में, मरने में, जीने में।

Radhika Vemula

 
मेरा जन्म एक घातक दुर्घटना थी। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं सका। अपने उपेक्षित बचपन से मुझे कभी मुक्ति नहीं मिली।
(रोहित वेमुला के सुसाइट नोट का अंश)

इस महीने के मध्य में आंध्र और तेलंगाना की गलियां एक अलग तरह की यात्रा की साक्षी बनीं। इस यात्रा का नेतृत्व न तो कोई हाई-प्रोफाइल लीडर कर रहा था और न इसमें जेड-प्लस सिक्यूरिटी का तामझाम था। और न ही यह आधुनिक सुविधाओं से लैस किसी अल्ट्रामॉर्डन बस से हो रही थी, जिसका इस्तेमाल जनसभा के लिए मंच के तौर पर किया जा सके। 

यह यात्रा एक नीले पिक-अप ट्रक भीम ऑटो पर हो रही थी। और इसका नेतृत्व कर रही थीं रोहित वेमुला की 50 वर्षीय मां राधिका वेमुला। इसमें रोहित वेमुला के लिए न्याय की मांग करते हुए उसका भाई राजा वेमुला भी साथ था।

इस यात्रा के दौरान राधिका का इरादा दोनों राज्यों में एक-एक वेलीवाड़ा (दलित बस्ती) में जाने का है। उन्हें लोगों को यह बताना है कि जातिवादी ताकतें किस कदर कहर बरपाते हुए और दलितों को उनके वाजिब हक से महरूम रख सकती हैं। वह लोगों को यह भी बताएंगी कि किस कदर जातिवादी लोगों की साजिश और उनका तंत्र आत्महत्या कर चुके उनके बेटे को न्याय दिलाने में बाधा खड़ी कर रहा है। (http://nsi-delhi.blogspot.in/search/?q=rohith+vemula)

वह लोगों से केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के रवैये के बारे में भी बात करेंगी। वह दलितों की बेहद खराब हालत के प्रति उपेक्षा का रवैया अपनाए हुए आंध्र और तेलंगाना सरकार के रुख के बारे में भी लोगों को जागरुक करेंगी। वह लोगों को बताएंगी कि उनके बेटे रोहित वेमुला को न्याय से वंचित रखने के लिए किस तरह आंध्र और तेलंगाना सरकार एक हो गई  हैं।

ज्यादा दिन नहीं हुए जब आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा था कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे। फरवरी में आंध्र प्रदेश सरकार ने मांग की थी कि रोहित की मां राधिका 15 दिन के अंदर साबित करें कि वह दलित हैं।

बंगलुरू की एक रैली में राधिका वेमुला ने अपनी भीम यात्रा के बारे में विस्तृत जानकारी दी। राधिका ने बताया- 14 मार्च को मैं राजा (उनका छोटा बेटा) के साथ दलित स्वाभिमान रथ यात्रा शुरू करूंगी। हम पूरे तेलंगाना और आंध्र का एक महीने तक दौरा करेंगे। इस यात्रा का समापन 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के दिन होगा। हम इन दोनों राज्यों के एक-एक दलितवाड़े में जाएंगे। उन्होंने रैली में आए लोगों से कहा कि दलितों की मुक्ति के लिए अंबेडकर के क्रांतिकारी विचारों पर मंथन करें। उनके बेटे रोहित ने हमेशा अंबेडकर के इन विचारों का प्रचार-प्रसार किया। रोहित हमेशा इस दलित मुक्ति की बात करते थे। (http://www.hindustantimes.com/india-news/rohith-vemula-s-mother-announces-dalit-rath-yatra-in-telangana-andhra/story-9uKlANIBSDUVovfS66U67N.html)

दोनों राज्यों की अपनी इस दलित चेतना यात्रा के दौरान राधिका दो मुद्दे उठाएंगी।

पहल- हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर को बर्खास्त किया जाए और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के तहत उन पर मुकदमा चलाया जाए।

दूसरा – शिक्षा संस्थानो में भेद-भाव मिटाने के लिए ‘रोहित एक्ट’ पारित कराया जाए।
 
राधिका वेमुला बिना रुके और थके दलितों के खिलाफ अत्याचार के खिलाफ लड़ रही हैं। दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई की वजह से आज वह घर-घर में पहचानी जाने लगी हैं। आज वह अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए मैदान में उतर पड़ी हैं। इस राधिका को कुछ दिनों पहले तक उनके गांव वालों और पड़ोसियों के सिवा कोई नहीं जानता था। रोहित की मौत के खिलाफ जिस तरह का जनांदोलन हुआ था और बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर उतर आए थे। उस दौरान इस जनसंघर्ष में जिस तरह रोहित की मां राधिका उतर पड़ी थीं, उसने उन्हें दलित प्रतिरोध की प्रतीक के तौर पर स्थापित कर दिया। वह केंद्र की सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध की मुखर आवाज बन गईं।

राधिका वेमुला की चिंता सिर्फ अपनी दिवंगत बेटे को न्याय दिलाने तक ही सीमित नहीं है। वह 15 अगस्त 2016 को उना में उमड़ पड़े हजारों दलितों की रैली में भी शामिल हुईं। रैली का मकसद दलितों को जमीन का हक दिलाना था। राधिका वेमुला जेएनयू से अचानक लापता नजीब अहमद की मां फातिमा नसीम की ओर से अपने बेटे को न्याय दिलाने के संघर्ष में भी शामिल हुईं। नजीब अहमद जेएनयू में एबीवीपी के सदस्यों के साथ झगड़े के बाद गायब हो गए थे। इसके बाद से उनका कोई पता नहीं है। नजीब अहमद का गायब होना बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

रोहित वेमुला के सुसाइड को एक साल हो गया। लेकिन उनके लिए न्याय सुनिश्चत करने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया । हमें मालूम है कि वामपंथी छात्र समूह से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के कार्यकर्ता रोहित वेमुला ने किन परिस्थितियों में सुसाइड का यह कदम उठाया था। हम यह भी जानते हैं कि किस तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित एक विश्वविद्यालय प्रशासन ने दक्षिणपंथी छात्र संगठनों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से मिल कर छात्रों कि जिदंगी पर कहर बरपाया था। किस तरह उसने छात्रों को हॉस्टल से निलंबित किया था। हम यह भी जानते हैं प्रशासन ने किस तरह स्टूडेंट्स की स्कॉलरशिप रोक दी थी। किस तरह इन स्टूडेंट्स को हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी कैंपस में एक अलग तरह के ‘वेलीवाड़ा’ में रहने को मजबूर होना पड़ा।

 हैदराबाद के विवादास्पद वाइस चासंलर पी अप्पाराव को छात्रों के आंदोलन के तुरंत बाद यूनिवर्सिटी छोड़नी पड़ी थी। अप्पाराव को दोबारा हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कमान सौंप दी गई। और अब कैंपस में फिर छात्र-छात्राओं की असहमति की हर आवाज दबाने की कोशिश हो रही है। यूनिवर्सिटी प्रशासन विरोध की किसी भी आवाज दबाने को इतना तत्पर है कि उसने यूनिवर्सिटी के अंदर स्टूडेंट्स की रैली नहीं होने दी। और न ही राधिका वेमुला के नेतृत्व में छात्र-छात्राओं को कैंपस के अंदर रोहित वेमुला की पहली बरसी (17 जनवरी 2017) मनाने दी। शायद यूनिवर्सिटी प्रशासन को यह डर था कि अगर स्टूडेंट्स को कैंपस के अंदर घुसने दिया गया तो पिछले साल कैंपस को हिला कर रख देने वाले जैसा एक और बड़ा आंदोलन खड़ा  हो सकता है।

रोहित को अब तक न्याय नहीं मिला है। राहत की सिर्फ एक बात है कि रोहित के सुसाइड के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति कानून, 1989 के प्रावधानों के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। पता चला है कि पी अप्पाराव और दो केंद्रीय मंत्रियों के नाम एफआईआर में दर्ज हैं। यह अलग बात है कि रोहित को न्याय देने के मामले में अब तक चीजें थोड़ी भी आगे नहीं बढ़ी हैं। इन मंत्रियों और एफआईआर में उल्लिखित लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

सबसे गंभीर बात यह है कि इस पूरे मामले में रोहित के खिलाफ सुनियोजित साजिश चल रही है। आज रोहित की दलित पहचान को अस्वीकार किया जा रहा है और उसे क्रांतिकारी नहीं बल्कि एक धोखेबाज और फर्जी शख्स के तौर पर पेश करने की कोशिश हो रही है।  (http://www.epw.in/journal/2017/9/margin-speak/robbing-rohith-his-dalitness.html).

इसके पीछे की सोच साफ समझ में आती है। रोहित के दलित पहचान को मान्यता देने से एफआईआर में जिन लोगों के खिलाफ नाम दर्ज हैं उनके खिलाफ दलित अत्याचार निरोधक कानून के तहत केस कमजोर हो जाएगा। यूनवर्सिटी प्राधिकरण और अन्य अथॉरिटी ने रोहित के खिलाफ हर दांव आजमाया है। उसे दलित न बता कर बैकवार्ड वडेरा जाति का सदस्य बनाने की कोशिश हो रही है। रोहित की पिता वडेरा जाति के हैं और उन्होंने उनकी मां को काफी पहले छोड़ दिया था। यह भी कहा गया कि रोहित के भाई राजा ने सरकारी लाभ लेने के लिए दलित होने का फर्जी सर्टिफिकेट पेश किया।  

जबकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई के फैसले पर गौर करना जरूरी है। दोनों जजों की बेंच ने कहा था कि अंतर जातीय विवाह में जहां मां-बाप में से एक दलित या आदिवासी हो वहां बच्चे की जाति तथ्य से तय होगी। और यह केस दर केस, सबूतों के आधार पर तय होगा। अगर कोई मां दलित आदिवासी के तौर पर अपने बच्चे की परवरिश करती है तो बच्चा मां की जाति के होने का दावा कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी दलित महिला और अगड़ी जाति के पुरुष के बीच शादी में बच्चा आदिवासी होने का दावा तब कर सकता है, जब वह मां के माहौल में पला बढ़ा हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसी स्थिति में वह रिजर्वेशन का दावा कर सकता है।

इससे पहले के फैसलों में  कहा गया था कि आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच शादियों में महिला को पति की जाति स्वीकार करनी होगी। लेकिन आफताब आलम और रंजना देसाई की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में अब तक के फैसले लागू नहीं होंगे।
जस्टिस आलम ने यह फैसला देते हुए कहा- इस तरह की शादियों से पैदा बच्चों को पिता की जाति देना आगे चल कर गंभीर समस्या पैदा करेगा।
(http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/intercaste-child-can-get-st-status-if-raised-in-mothers-tribal-environs/article2821924.ece)
 

इस फैसले के आलोक में रोहित वेमुला की जाति का मामला सुलझ जाना चाहिए था लेकिन अब तक यह सुलग रहा है।

प्रशासन ने इस तथ्य पर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई कि आखिरकार रोहित ने अपने आखिरी वीडियो में क्या कहा था। रोहित की जाति का सवाल उठाए जाने पर उसके साथियों ने यह वीडियो जारी किया था।

(http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/i-am-a-dalit-says-rohith-vemula-video-before-suicide-3088768/)
रोहित ने इस वीडियो में कहा था-

मेरा नाम रोहित वेमुला है। मैं गुंटुर का रहने वाला दलित हूं। आप सभी को जयभीम। मैं 2010 से हैदराबाद यूनिवर्सिटी का छात्र हूं। मैं  सोशल साइंसेज विभाग में पीएचडी कर रहा हूं। यूनिवर्सिटी ने पांच दलित स्टूडेंट्स को निलंबित करने का फैसला किया है और उन्होंने हम यूनवर्सिटी बिल्डिंग से निकाल दिया है। हमारे खिलाफ भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि सार्वजनिक जगहों, होस्टल की इमारतों और प्रशासनिक भवन में हमारी उपस्थिति आपराधिक गतिविधि मानी जाएगी। मैं एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा हूं। मेरी मां ने मुझे पाला है।,

 इस मामले की जांच करने वाले जस्टिस रूपनवाल कमीशन ने जिस शरारतपूर्ण तरीके से यह घोषित किया कि रोहित दलित नहीं है वह सबके सामने है। साफ है कि यह कमीशन रोहित की दलित पहचान को जानबूझ कर अनदेखा कर रहा था। एक सदस्यीय रूपनवाल कमीशन को दो तथ्यों की पड़ताल का जिम्मा दिया गया था।

- पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियों की जांच करना। उन्हें इस हालत में पहुंचाने की साजिश करने वालों को कठघरे में खड़ा करना।

- यूनिवर्सिटी की शिकायत कमेटी के कामकाज की जांच करना और इसमें सुधार के उपाय सुझाना।

रूपनवाली कमेटी की 12 पेज की जजमेंट रिपोर्ट में पूरे चार पन्ने रोहित वेमुला की जाति बताने में खर्च किए गए। कमेटी पर न तो रोहित की जाति तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी न ही जज यह तय करने वाले सक्षम अधिकारी थे। रिटायर्ड जस्टिस ने इस तथ्य को सिरे से खारिज कर दिया कि गुंटुर के जिलाधिकारी कांतिलाल दांडे पहले ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति को बता  चुके थे कि रोहित दलित हैं। जिलाधिकारी से मिली जानकारी और संबंधित दस्तावेजों को देखने को बाद आयोग ने भी यह घोषित किया था कि रोहित दलित हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग (अत्याचार रोकथाम) के तत्कालीन चेयरमैन पी एल पुनिया ने मांग की कि जिन लोगों ने रोहित को आत्महत्या के लिए मजबूर किया, उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए।

लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस मामले में कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे।

रोहित की जाति निर्धारित से जुड़े विवादों को बढ़ता देख किसी हिंदू संगठन से जुड़े एक दलित व्यक्ति दरसनपू श्रीनिवास को राजा वेमुला के बारे में गुंटुर के जिलाधिकारी से शिकायत करने को कहा गया। दरसनपूर ने गुंटुर  जिलाधिकारी को भेजी अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि राजा वेमुला ने फर्जी तरीके से अपना जाति सर्टिफिकेट हासिल किया है। यह समझना मुश्किल था कि उसी जिलाधिकारी ने जिसने रोहित को दलित बताते हुए अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग को भेजी थी उसी ने राजा के सर्टिफिकेट को फर्जी करार दिया। जिलाधिकारी ने एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने भी कहा कि राजा दलित नहीं था।

यह सब इसलिए किया गया कि इस मामले में सत्ता प्रतिष्ठान के लोगों के ऊपर बड़ा खतरा मंडरा रहा था। उन्हें इस बात का डर था कि अगर रोहित का दलित होना साबित हो गया तो उन्हें अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के तहत कड़ी कार्रवाई का सामना करना होगा। उन दो केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी, जिनके नाम एफआईआर में दर्ज हैं। हालांकि इसकी संभावना नहीं दिखती।

इन तथ्यों पर विचार करने के बाद ऐसा लगता है कि रोहित को दलित साबित करने के लिए अभी कई और वर्षों का इंतजार करना होगा। यह सिर्फ रोहित को दलित होने से नकारने का मामला नहीं है। अगर वह दलित साबित हो गए तो दुनिया के सामने हिंदुत्व का दलित विरोधी रुख जाहिर हो जाएगा। उन मामलों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिनसे उनकी इस राजनीतिक का बार-बार पर्दाफाश हुआ है। इनमें अंबेडकरवादी पेरियार वादी छात्र समूहों को प्रतिबंधित करने से लेकर अंबेडकर भवन में अंबेडकर पेरियार स्टडी ग्रुप पर रोक और दलित किशोरी डेल्टा मेघवाल के बलात्कार पर परदा डालने की कोशिश है। जेएनयू की उस दाखिला प्रक्रिया में भी घालमेल इसी कोशिश के तहत आती है। इस दाखिला प्रक्रिया से वंचित वर्ग के छात्रों को जेएनयू में दाखिले में आसानी हो जाती थी। लेकिन नियमों के घालमेल से इसमें दिक्कत आ गई है। साफ है कि इस कोशिश के मूल में मनुवादी दर्शन है।

 (http://nsi-delhi.blogspot.in/search/?q=ambedkar+periyar+study+circle) (http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/mumbais-ambedkar-bhavan-demolition-from-left-to-right-leaders-join-protest-2924596/) (https://sabrangindia.in/article/real-story-behind-rape-and-killing-dalit-girl-student-delta-meghwal) (https://www.telegraphindia.com/11a70102/jsp/nation/story_128075.jsp#.WL-HlG997IU)

यही वजह है कि मनुवादी ताकतों ने मीडिया के एक वर्ग को साथ लेकर राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया है। वे डॉक्टर्ड वीडियो के जरिये अपनी करतूतों को सामने लाने से नहीं चूके। याद कीजिये की इस तरह की साजिशों के जरिये मनुवाद की कोशिशों के खिलाफ जब बड़ी संख्या में दलित छात्र-छात्राएं और उनसे सहानुभूति रखने वाली ताकतें सड़कों पर उतर आई थीं और सरकार किस कदर रक्षात्मक हो गई थीं। हालांकि रोहित और दलितों के खिलाफ अत्याचार के हर मामले में सरकार न्याय से इनकार पर पूरी तरह मुस्तैद है।

इसके बावजूद दलितों पर अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की जीत हुई है और यह लगातार जारी है। एक चीज निश्चित है कि राधिका वेमुला जिन मूल्यों के लिए लड़ रही हैं और जिस अदम्य तरीके से वह संघर्ष को आगे बढ़ा रही हैं और उन्हें वाम, अंबडेकरवादी और अन्य लोकतंत्र समर्थक संगठनों का जिस तरह का समर्थन हासिल हो रहा है उससे उन्हें एक नैतिक जीत पहले ही मिल चुकी है। उन्हें संवेदनहीन यूनिवर्सिटी प्रशासन, केंद्र की सत्ता में बैठे लोग और हिंसक लंपट लोगों की ब्रिगेड के नापाक गठजोड़ों के खिलाफ पहले ही नैतिक जीत मिल चुकी है। जिस तरह से यह लंपट ब्रिगेड व्यवहार कर रहा है उसने हिटलर के नाजी जमाने के गुंडों की याद दिला दी है।

रोहित आज दुनिया में नहीं हैं लेकिन जिन मूल्यों के लिए वह लड़ रहे थे वे अंजाम तक नहीं पहुंचे हैं। आज सवाल यह है कि रोहित के लिए न्याय की मांग करने वाले छात्र, युवा, अकादमिक जगत के लोग खुद और न्याय के आकांक्षी विचारवान नागरिक खुद कई तरह के हमलों के मुकाबिल हैं। सवाल यह है कि वे इन हालातों में क्या कर सकते हैं।

इन परिस्थितियों में हमें एक चीज याद रखनी होगी। हिंदू वर्चस्ववादी ताकतें आज पहली बार अपनी ताकत के शीर्ष पर भले हों लेकिन वे हमेशा के लिए वहां नहीं रहने वाली हैं। अगर एक साथ मिल कर संघर्ष छेड़ें तो उनकी आवाजों को कमजोर करने में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। रोहित के लिए न्याय का संघर्ष एक बार फिर इस लड़ाई का शुरुआती बिंदु हो सकता है।

आइए इस प्रतिबद्धता के साथ रोहित की याद में एक मशाल जलाएं और इस चीनी कहावत को याद करते हुए संघर्ष के लिए संकल्प ले –

जमीन, जमीन से मिलकर दीवार बनाती है
गरीब, गरीब से मिल कर राज सत्ता को उखाड़ फेंकते हैं।

बाकी ख़बरें