संसद नहीं, सड़क का अविश्वास प्रस्ताव मोदी को महंगा पड़ेगा

Written by पुरुषोत्तम शर्मा | Published on: July 22, 2018
20 जुलाई को संसद के अन्दर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार विपक्ष के प्रस्ताव को गिराकर भारी मतों से विश्वास हासिल करने में कामयाब हो गई। संसद के अन्दर के इस गणित और नतीजे को सत्ताधारी, विपक्ष और देश तथा दुनिया के सारे लोग पहले से जानते थे। इसीलिए सबकी दिलचस्पी सरकार के रहने या न रहने में नहीं बल्कि इस बात में थी कि 2019 के अगले आम चुनावों का एजेंडा क्या होगा जिस पर सभी पार्टियां सदन में बोलने वाली थीं। पर सदन के बाहर भी संसद मार्ग की सड़क पर देश भर से आए हजारों किसानों का हुजूम चिल्ला– चिल्ला कर इस किसान विरोधी–जन विरोधी धोखेबाज सरकार के प्रति अपना अविश्वास दोहरा रहा था। किसानों ने सरकार से कहा कि “संसद में तुम भले अविश्वास प्रस्ताव को गिरा दोगे पर सड़क पर पास किया गया हमारा यह अविश्वास प्रस्ताव 2019 में तुम्हें इस गद्दी से उखाड़ फेंकेगा”।



अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले लगभग 200 किसान संगठनों ने पिछले एक साल से देश भर में लगातार किसान आन्दोलन की अलख जगा रखी है। इस आन्दोलन का दबाव ही है कि आज किसानों की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसान कर्ज मुक्ति देश की राजनीति के एजेंडे में सामने आ गए हैं। इसीलिए संसद के अन्दर का गणित तो जगजाहिर था परन्तु सड़क पर पास हुए किसानों के अविश्वास प्रस्ताव के गणित का न तो सत्ताधारियों को कोई भान है और न राजनीतिक विश्लेषकों को।

संसद के अन्दर इस बहस में लगभग हर पार्टी के नेता ने किसानों के सवाल को उठाया पर सड़क के बाहर भी आज हजारों किसान इस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास किए हैं। इस बात का उल्लेख बाहर चल रहे किसान आन्दोलन के प्रतिनिधि और महाराष्ट्र के निर्दलीय सांसद राजू शेट्टी के अलावा संसद में और किसी ने नहीं किया। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की ओर से तैयार दो निजी विधेयक “किसानों की कर्ज मुक्ति” और “फसलों की लागत का लाभकारी मूल्य” का सांसद राजू शेट्टी की ओर से 20 जुलाई को संसद के पटल पर बहस के लिए रखा जाना संसद के तय कार्यक्रम में शामिल था।

इन निजी विधेयकों को संसद में 21 राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन देने की वचनबद्धता जताई थी। जिसमें वामपंथी पार्टयों के अलावा कांग्रेस, शिव सेना, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, राजग जैसे तमाम दल शामिल हैं। 14 जुलाई को दिल्ली में आयोजित किसान संघर्ष समन्वय समिति की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह फैसला लिया गया था कि विधेयकों को सदन में पेश करते वक्त किसानों का एक छोटा धरना संसद मार्ग पर रखा जाए।

मात्र चार दिन की तैयारियों में ही पंजाब और दिल्ली के आसपास से हजारों किसान संसद मार्ग पर धरना देने पहुंच गए। पर 20 जून को संसद के पहले से तय सभी कार्यों को स्थगित कर लोकसभा अध्यक्ष ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस का दिन तय कर दिया था। इसलिए किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग कमेटी ने भी अपने धरने के कार्यक्रम को संसद के बाहर किसानों के “अविश्वास प्रस्ताव” में तब्दील कर दिया। कार्यक्रम के लिए पंजाब, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों से किसानों का 19 जुलाई की रात से ही दिल्ली पहुंचना शुरू हो गया था।

किसान अविश्वािस प्रस्ताव के प्रमुख मुद्दे थे– 

पहला- मोदी सरकार अपनी चुनावी घोषणा और चुनाव घोषणापत्र को भूलकर किसानों को उनकी उपज का स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश पर आधारित सही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं दे पाई है। इस महीने सरकार ने मात्र खरीफ फसलों के लिए एमएसपी घोषित कर किसानों के साथ धोखा किया है। मोदी सरकार का घोषित नया एमएसपी सही लागत व सी टू पद्धति से नहीं आंका गया है जो किसानों के साथ खुला धोखा है। 

दूसरा - मोदी शासन ने सूखा और आपदा के दौरान किसानों को राहत नहीं दी। इसके लिए सरकार की आर्थिक दिक्कत का बहाना बनाया लेकिन प्रत्यक्ष में ‘फसल बीमा’ योजना के द्वारा कंपनियों को हज़ारों करोड़ रुपयों का मुनाफा बटोरने में मददगार की भूमिका निभाई। 

तीसरा - मोदी शासन ने 2013 तक के भू-अधिग्रहण कानून, पेसा कानून, भूमि संबंधी नियम/कानून को नकार कर तथा उन्हें राज्यों में बदल कर कई बड़ी बड़ी परियोजनाओं के लिए भूमि जबरन अधिग्रहित की या हड़प ली। आदिवासी किसानों का जल, जंगल, जमीन जबरदस्ती छीनकर उनकी आवीजिका और अस्तित्व पर भी हमला किया है। 

चौथा- मोदी शासन ने कारपोरेट कंपनियों को लाखों करोड़ रुपए की छूट तथा करोड़ों रु. की संपत्ति बख्शी है। कारपोरेट और किसानों के बीच की दूरी को बढ़ाया गया है। मध्य प्रदेश के भावान्तर योजना जैसे निर्णय से मात्र व्यापारियों को लाभ पहुंचा है। 

पांचवा- किसानों की कोई स्थाई आय नहीं है। उनकी मेहनत का सम्मान नहीं है। कर्जे के बोझ से आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, फिर भी देशभर में उठे आक्रोश के बावजूद संपूर्ण कर्जमुक्ति का कोई प्रस्ताव नहीं है। मोदी शासन के इन तमाम कारनामों के चलते, ‘मोदी सपोर्ट प्राइज’ को धोखा मानते हुए इस देश के किसानों ने यह अविश्वास प्रस्ताव पारित किया है।

पहली बार किसान संघर्ष समन्वय समिति ने विपक्ष की उन राजनीतिक पार्टियों को जिन्होंने किसान बिलों पर सदन में समर्थन का वायदा किया था, इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया। जिन राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने किसानों के अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में किसानों को संबोधित किया उनमें माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, समाजवादी नेता शरद यादव, राष्ट्रीय लोकदल के त्रिलोकचंद त्यागी, शिव सेना के अरविंद सावन्त, जनता दल सेकुलर के दानिस अली, आप के संजय सिंह, पूर्व सांसद अली अनवर मुख्य रूप से शामिल थे। इससे पहले सुबह दस बजे से भारी बारिश में मंडी हाउस पर हजारों किसान एकत्र हो गए थे। किसानों का जुलूस बारह बजे काले झंडे और काली पट्टियों के साथ संसद मार्ग को कूच किया। समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह, योगेंद्र यादव, अभिक शाह, प्रेम सिंह गहलावत, गुरुनाम सिंह, डॉ. दर्शनपाल, जगमोहन सिंह, अतुल कुमार अंजान, आशीष मित्तल, मेधा पाटकर,कविता कुरुगंती, डॉ. सुनीलम व सांसद राजू शेट्टी की अगुआई में हजारों किसानों ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर किसानों को धोखा देने वाली इस सरकार को 2019 में उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया।

साभारः जनचौक

(पुरुषोत्तम शर्मा अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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