आजम खान से माफी मांगने के लिए कहा जाएगा को लीड बनाया, तो सजा होने पर कहां छापेंगे अखबार?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: July 27, 2019
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के मामले में लोकसभा में जो हुआ उसकी रिपोर्टिंग अखबारों में दिलचस्प है। आज लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर (ज्यादातर में लीड के रूप में छपी) इस खबर का शीर्षक है, आजम खान माफी नहीं मांगेंगे तो कार्रवाई हो सकती है। दैनिक भास्कर ने आजम खान को बदजुबान–ए-आजम लिखा है तो नवभारत टाइम्स ने विवाद-ए-आजम। इसके अलावा कोई खास अंतर नहीं है। मेरा मुद्दा यह है कि माफी मांगने का विकल्प होने और नहीं मांगने पर सजा होने की खबर इतनी बड़ी नहीं है कि हिन्दी के लगभग सभी अखबारों में लीड बन जाए। सजा क्या हो सकती है इसपर अखबारों में कुछ खास नहीं है। सोमवार को आजम खान माफी मांग लें और सजा न हो तो अगले दिन (मंगलवार को) अखबार क्या करेंगे? आजम खान ने बिना शर्त माफी मांगी फिर लीड होगी? और अगर माफी नहीं मांगी – सजा हो गई तो लीड से ऊपर क्या करोगे? इस लिहाज से आज इस खबर को कम महत्व देने और सिंगल कॉलम में या अंदर के पन्ने पर छाप देने के आसान विकल्प के मुकाबले राजस्थान पत्रिका ने पूरे मामले को स्पष्ट करते हुए सात कॉलम में अच्छा डिसप्ले दिया है।

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि समाजवादी पार्टी पर माफी मांगने के लिए दबाव बढ़ गया है। टेलीग्राफ ने लिखा है आजम खान की आपत्तिजनक टिप्पणी को रिकार्ड से निकाल दिया गया है। साथ ही, यह भी लिखा है आजम खान ने कहा कि मैंने जो कहा उसमें एक भी शब्द असंसदीय हो तो मैं लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देता हूं। मेरे ख्याल से खबर यह नहीं है कि उनसे माफी मांगने के लिए कहा गया है। खबर यह है कि एक भी असंसदीय शब्द होने पर इस्तीफा देने की पेशकश के बावजूद ऐसी स्थितियां बन गई हैं कि उन्हें बिना शर्त माफी मांगनी होगी और नहीं मांगने पर लोकसभा अध्यक्ष को उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकृत कर दिया गया है। खबरों से यह पक्का नहीं हुआ कि आजम खान की टिप्पणी क्या थी और उसे रिकार्ड से निकाला गया कि नहीं।

यह सही है कि आपत्तिजनक टिप्पणी को दोहराया नहीं जाना चाहिए पर वह असंसदीय नहीं है तो यह कैसे तय होगा कि अपमानजनक है। अखबारों और टेलीविजन से मैंने जो समझा है उसके मुताबिक आजम खान ने लोकसभा की पीठासीन अध्यक्ष रमा देवी से कुछ कहा जिसे उन्होंने आपत्तिजनक माना और माफी मांगने के लिए कहा। आजम खान ने सफाई में जो कहा उसे टेलीग्राफ ने छापा है पर किन परिस्थितियों और मनोदशा में क्यों कहा - यह सब छोड़ भी दिया जाए तो उसमें अगर कुछ अश्लील, असंसदीय या आपत्तिजनक है तो उसका फैसला सार्वनिजक रूप से नहीं होना चाहिए और टिप्पणी का उल्लेख किए बिना सिर्फ आपत्तिजनक कहना आजम खान के साथ अन्याय है। इस बारे में दैनिक हिन्दुस्तान ने लिखा है, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने यह कहकर महिला सांसदों का गुस्सा बढ़ा दिया कि महिला के अपमान का समर्थन कोई नहीं करता लेकिन जिनके खिलाफ शिकायत की जा रही है, उनका पक्ष भी सुनना चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्ट किया वे आजम की टिप्पणी का समर्थन नहीं करते।

टेलीग्राफ के अनुसार, सामान्यतया इस मामले को संसद की एथिक्स कमेटी को भेज दिया जाना चाहिए था पर अभी तक इसका गठन नहीं हुआ है। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने इस विवाद को सोनिया गांधी के बारे में भाजपा सदस्यों की पिछली टिप्पणियों के संदर्भ में पेश करने की कोशिश की पर सत्तापार्टी के नाराज सदस्यों खासकर महिला सांसदों के शोर में उनकी आवाज दब गई। वे आमराय से आजमखान की निन्दा की मांग कर रही थीं । .... हंगामे के आलोक में कांग्रेस सदस्यों ने हार मान ली। अखबार ने लिखा है कि आजम खान की टिप्पणी को रिकार्ड से हटा दिया गया लेकिन वीडियो क्लिप आम तौर पर उपलब्ध थे और मैं यह सुनिश्चित नहीं कर पाया कि विवाद उसी पर था या जो रिकार्ड से हटाया गया है वह कुछ और है। अखबार ने आगे लिखा है, गुरुवार को आजम खान ने यह कहकर उन्हें शांत करने की कोशिश की, आप मेरी बहन हैं , बहुत प्यारी बहन। मेरा लंबा राजनीतिक कैरियर रहा है, मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं कुछ गलत बोलूं। (मैंने जो कहा है उसमें) अगर एक भी असंसदीय शब्द हो तो मैं संसद से अपने इस्तीफे की घोषणा करता हूं।

ऐसे में यह समझना मुस्किल है कि विवाद किस बात पर है। अगर जो कहा गया वह असंसदीय नहीं है तो हटाया क्या गया और हटाया गया तो क्लिप क्या है और क्लिप में कुछ असंसदीय नहीं है तभी तो इस्तीफे की पेशकश या घोषणा की कोई चर्चा नहीं है। अगर इस्तीफे की पेशकश की चर्चा नहीं है तो सजा या कार्रवाई की खबर इतनी बड़ी क्यों बनाई गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह राजनीति है और प्रचारनीति का हिस्सा। इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक और खबर के अनुसार सदस्यों ने आजम खान की टिप्पणी की निन्दा की, और भिन्न दलों ने उन्हें कार्रवाई के लिए अधिकृत किया। खबर का शीर्षक है, उन्हें चेतावनी दी जाएगी : माफी माफी मांगिए या कार्रवाई के लिए तैयार रहिए। शालिनी नायर की बाइलाइन वाली इस खबर की शुरुआत इस प्रकार होती है, शुक्रवार को भिन्न दलों के नेताओं की बैठक में (लोकसभा अध्यक्ष) ओम बिड़ला को अधिकृत किया गया कि आजम खान सदन में माफी नहीं मांगते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

अखबार ने लिखा है कि इससे समाजवादी पार्टी पर पर बिना शर्त माफी मांगने का दबाव बढ़ गया है। अखबार के मुताबिक, संसदीय मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने हैठक के बाद कहा, (लोकसभा) अध्यक्ष उनसे रमा देवी के खिलाफ की गई टिप्पणी के लिए बिनाशर्त माफी मांगने के लिए कहेंगे। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो अध्यक्ष को उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकृत किया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर इसी आशय की छोटी सी खबर है। अंदर के पन्ने पर पूरा घटनाक्रम विस्तार से दिया गया है। हिन्दुस्तान टाइम्स में भी सिंगल कॉलम की खबर का शीर्षक लगभग यही है। साफ है कि आजम खान को जबरदस्ती घेरा गया है। संसद के शोर में दूसरे सदस्यों को भले बोलने नहीं दिया गया पर अखबारों को लिखने से कौन रोक रहा है। दिलचस्प यह है कि महिलाओं से अभद्रता को मुद्दा भारतीय जनता पार्टी बना रही है जिसका अपना रिकार्ड इस मामले में सबसे बुरा है। अखबार पूरी जानकारी देने की बजाय सरकारी पक्ष को हवा दे रहे हैं।

आप जानते हैं कि भाजपा के एक विधायक बलात्कार के आरोप में जेल में हैं और जेल भी वे कब और कैसे गए। भाजपा के ही एक नेता ने मायावती के खिलाफ अबद्र टिप्पणी की थी तब पार्टी ने क्या और कैसी कार्रवाई की थी उसे लगता है लोग भूल गए। कार्रवाई तो बल्लामार विधायक के खिलाफ भी नहीं हुई है जबकि अखबार छाप चुके हैं कि प्रधानमंत्री ने ऐसे कहा है इसलिए कार्रवाई होगी। आजम खान और रमा देवी से संबंधित विवाद के संबंध में दैनिक भास्कर ने लिखा है, रमा देवी ने कहा कि आजम हीरो बनने आए हैं, लेकिन मैं उन्हें जीरो बनाकर ही दम लूंगी। क्या यह अपमानजनक नहीं है? क्या इसके बाद माफी मांगने की गुंजाइश बचती है? दैनिक भास्कर ने ही छापा है कि असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में कहा कि आजम खान पर कार्रवाई जरूरी है लेकिन मीटू मामे में एमजे अकबर पर रिपोर्ट कहां है।

हिन्दुस्तान ने इस खबर को लीड बनाया है और इसके लिए अपना शीर्षक सुधार लिया है। गुस्सा स्लग के तहत अखबार का फ्लैग शीर्षक है, लोकसभा सांसद पर अमर्यादित टिप्पणी से नाराज, सख्त कार्रवाई की मांग। मुख्य शीर्षक है, महिला सांसदों ने एक सुर में आजम को धिक्कारा। किसी खबर को लीड बनाने के लिए अगर आप राजस्थान पत्रिका की तरह विस्तार नहीं देते तो भी कम से कम शीर्षक लीड जैसा होना चाहिए। आजम खान को बदजुबान या विवाद ए जुबान कहने से खबर बड़ी नहीं हो जाएगी। वैसे भी, आजम खान के एक बयान को पहले भी बिना संदर्भ के या अलग संदर्भ में उछाल कर उन्हें घेरा जा चुका है। देश में कौन नहीं जानता है कि कोई खाकी चड्ढी पहनता है कहने का मतलब यह नहीं है कि उसकी डोरा, रुपा, जॉकी या वीआईपी की चड्ढी का रंग खाकी है। आजम खान की पत्नी ने सही कहा है कि चुनाव के समय आजम खान को ऐसे मामलों में लपेटना आम बात है।

अमर उजाला और दैनिक जागरण में भी यह खबर लीड है अमर उजाला का शीर्षक है, आजम माफी मांगें, नहीं तो कार्रवाई। मैंने जितने अखबार देखे उनमें सिर्फ अमर उजाला ने आजम खान की पत्नी तंजीम फातिमा, राज्य सभा सदस्य की प्रतिक्रिया को प्रमुखता से छापा है। यही नहीं अखबार ने इस बात को भी प्रमुखता से छापा है कि आजम खान का भी पक्ष सुना जाए। पर उसका क्या हुआ वह मैं पहले लिख चुका हूं। दैनिक जागरण में शीर्षक है, आजम पर लटकी निलंबन की तलवार। उपशीर्षक है, सख्त रुख - सदन में सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगी तो कार्ववाई निश्चित। इंट्रो है, आजम (खान) से सोमवार को स्पीकर के सामने पेश होकर मांफी मांगने को कहा गया है। तीनों से यह पता नहीं चलता है कि मामला क्या है और क्यों माफी मांगने के लिए कहा गया है या क्यों तलवार लटकी है। दैनिक जागरण में मुख्य खबर के साथ केंद्रीय मंत्री, स्मृति ईरानी की फोटो और उनका बयान है, समाजवादी पार्टी के सांसद का बयान पुरुषों समेत सदन के सभी सदस्यों पर एक धब्बा है। अगर आजम खां ने यह टिप्पणी संसद के बाहर की होती तो महिला के बचाव में पुलिस आ गई होती। बिना टिप्पणी जाने इस बयान पर क्या कहा जाए और पिछली बार ऐसे ही बयान पर (वो तो सार्वजनिक है क्योंकि संसद में नहीं था) पुलिस की कार्रवाई हुई थी – ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।

नवोदय टाइम्स ने इस खबर को टॉप पर दो कॉलम में दो लाइन के शीर्षक और आजम खान तथा रमा देवी की फोटो के साथ छापा है। तथ्य कम हैं और पूरी जगह शीर्षक, फोटो और इंट्रो ने ले ली है। हालांकि, इंट्रो महत्वपूर्ण है, विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पास हुआ तो जा सकती है सदस्यता। इस बारे में दूसरे अखबार की राय अलग है। हालांकि, अखबारों ने सजा को इतना महत्व दिया है तो सजा क्या हो सकती है इसपर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए थी। पर ज्यादातर अखबार इस मुद्दे पर शांत हैं। पता नहीं वास्तविक स्थिति क्या है पर बहुमत का खेल तो दिलचस्प चल रहा है, देखते रहिए, पढ़ते रहिए। मैं यही नहीं जानता कि टिप्पणी क्या थी। इसके बावजूद अगर जिससे कहा उन्हें बुरा लगा तो यह उनका हक है और उसपर प्रतिक्रिया का अंदाज उनका अपना है, होगा। लेकिन सार्वजनिक चर्चा हो तो पूरी तरह या न हो। एक पक्षीय नहीं। अखबारों को इसका ख्याल रखना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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