जब रास्ते संकरे होते जाते हैं,जब सड़कें मिलनी बंद होने लगती हैं और खडंजा शुरू हो जाता;जब कच्चे-जर्जर मकान श्रृंखलाबद्ध खड़े दिखाई देने लगते हैं, आपको मान लेना चाहिए कि आप किसी ऐसे गांव या बस्ती में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ से न्याय-लोकतंत्र-बराबरी की गाड़ी नहीं गुजरती.मंदसौर के किसान आन्दोलन के दौरान पुलिस गोलीबारी में मारे गए सत्यनारायण गाईरी(26 वर्ष) का परिवार ऐसे ही एक गांव लोध में रहता है.परिवार के पास खेती है पर गुजारे के लिए मजदूरी का सहारा लेना पड़ता है.हर रोज की तरह सत्यनारायण पिपलिया मंडी की तरफ मजदूरी के लिए निकले थे पर हर रोज की तरह घर वापस नहीं लौट पाए और पुलिस की गोली से मारे गए.आन्दोलन में शामिल होना चाहते थे पर दो जून की रोटी के लिए मजदूरी पर जाना हुआ.वे कुआं खोदने का काम कर रहे थे.लेकिन आन्दोलन से खुद को अलग नहीं रख पाए.जिस दौरान पुलिस की गोली उन्हें लगी वह देख रहे थे कि पिपलिया मंडी के पास चल क्या चल रहा है.उनकी मौत की जानकारी परिजनों को लगभग 36 घंटे बाद मिली.
सत्यनारायण का परिवार उन परिवारों में से है जिन्हें भाजपा के लोग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अनशन तुडवाने के कार्यक्रम के लिए ले गए थे.यह परिवार बेहद गरीब है.रोज कमाता है तब खाता है.सत्यनारायण की मौत के बाद से माँ भंवरी बाई(62 वर्ष) बीमार पड़ी हुई हैं, भाई कन्हैयालाल(31 वर्ष) चुप-से रहते हैं और दूसरे भाई राजू(28 वर्ष) गुस्से से भरे हुए सबको घूरते रहते हैं. सत्यनारायण के विक्षिप्तप्राय पिता मांगीलाल(67 वर्ष)धीरे-धीरे बोलते रहते हैं और फिर अचानक से बडबडाना शुरू कर देते हैं.इतने भोले हैं कि उन्हें लगता है कोई भी सरकार किसी को मरने कैसे दे सकती है या मार कैसे सकती है.कहते हैं कि गोली और बन्दूक का तो नंबर होता है तो क्यों नहीं पकड़ लेते मारने वाले को.आगे कहते हैं गरीब का कोई नहीं होता,न कोई राम न सरकार.गाँव से जुटे लोगों में से कोई कहता है कि लड़का मरा मांगीलाल का, शोक यहाँ हो रहा है, पूरा परिवार दुःख में पड़ा हुआ है, कर्म चल रहा है पर मुख्यमंत्री जी खुद नहीं आये बल्कि इन्हें बुलवा लिया अपने पास.तभी कोई कहता है कि मांगीलाल भोला आदमी है राजनीति नहीं समझता.मांगीलाल बोलते-बोलते रोने लगते हैं.उनका शरीर कांपता है और कोई उन्हें सँभालने के लिए गले लगाने लगता है.मांगीलाल जैसे किसान पूरी व्यवस्था की नाकामी की कहानी हैं.वे सरकारों की बदनीयती की कहानी कहते हैं. वे बताते हैं कि अमानवीय सरकारें नागरिकों का रक्त चूस कर पेट भरती हैं.
आन्दोलन के इतने दिन बीत चुके हैं, 7 किसान पुलिस गोलीबारी और लाठीचार्ज में मारे जा चुके हैं पर भाजपा का कोई जनप्रतिनिधि सांत्वना के दो शब्द तक देने किसी मृतक के घर नहीं पहुंचा है.मुख्यमंत्री जी पता नहीं किसके लिए उपवास पर बैठते हैं और उनका उपवास तोडवाने के लिए मृतकों के परिजनों को भोपाल ले जाया जाता है. जैसे पीड़ित मृतकों के परिजन नहीं,मध्य प्रदेश के किसान नहीं शिवराज खुद हैं.अमानवीयता का चरम तब होता है जब इतना सब हो चुकने के बाद भी कैलाश विजयवर्गीय आन्दोलन को किसानों का आन्दोलन मानने से इनकार कर देते हैं.पिछले 24 घंटों में सीहोर, विदिशा,होशंगाबाद में हुई 3 किसान आत्महत्याओं को खारिज कर देते हैं.कहीं कोई लम्पट बोल देता है जीन्स पहनकर आन्दोलन कर रहे लोग किसान नहीं हो सकते.
इसी बीच मांगीलाल बडबडा रहे हैं कि “नेता-वेता किसी का कोई भरोसा नहीं है......ये कैसे लोग हैं? ये तो अभी से बिगड़ गया....तो डर के मारे कौन वोट देगा?......समझ सबको पड़ रही है.न्याय नहीं मिलता है.कैसे न्याय निकालू?जो पालता है वही मारता है.ऐसे नहीं होता है....मरना सबको है.आप बीचबचाव के लिए कर रहे हो.प्रचार..किस-किसके मुंह पर बोलते फिरोगे आप.छाप के बता दोगे शांति हो जाएगी.इसीलिए पधारे न आप...मैं झूठ तो नहीं बोल रहा हूँ?..आपका फ़र्ज़ बताने का है.सब समझते हैं.पहले अनपढ़ थे सरकार.अब समझ रहे हैं.समझ के मालूम पड गया कैसे मरे, क्या हुआ..जानें तो जाएँ, किसको बताएं, ऐसे बोलते मिलते हैं...अब तो साफ़ ही है कि उसके राज में तो नहीं मारा गया.तो इसके राज में कैसे मारा गया?..गोली और बन्दूक के नंबर पकड़ा जाएगी.....इसका नहीं निकलेगा तो फिर?किसकी जांच करेगा वो सरकार वाले?.................मैं पैदल-पैदल गया.मैं साफा बांधता हूँ सर के ऊपर, यही छोड़ के गया.क्योंकि इसका पिता है इसको भी मार दो..किसका भरोसा है.अब कौन मेरे साथ चलेगा...कोई नेता नहीं था ये बात सत्य है सर.मेरे साथ और भी थे मंच पर किसी को नहीं पहचानता हूँ मैं...किसी के कहने के नाते नहीं गया, मेरे दुःख के नाते गया, सच बोलूँगा,झूठ नहीं बोलूँगा.सच बोल रहा हूँ मैं..वो पड़ा है साफा..पूछो बस्ती वालों से..रोज..लाइन में बता रहे हैं कि उसे कि ये इसके पिता हैं..मैं भी मारा जाऊंगा...ये अनपढ़ कैसे जियेगा? वो दस किताब पढ़ा वो. पढ़ा-लिखा था...डर तो सबने है सर....वो भी तो नहीं आये...”
मांगीलाल का हल्का-दुबला-पतला-कांपता बूढ़ा शरीर डराता है.महसूस होता है कि वह कभी-भी भहरा पड़ेगा. और उसे उठा पाने की ताकत न हमारी व्यवस्था के पास है न हमारे लोकतंत्र के पास.देश तो पता नहीं किस चिड़िया का नाम होता है. उसे देश कहते हैं क्या जहाँ का अन्न पैदा करने वाला खुद तरसता रहे और गोली भी खाए.पिछले वर्ष केवल मध्य प्रदेश में लगभग 2000 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी.पूरे देश में लगभग 44 किसान(NCRB) प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं और हम बस गिनती में लगे हुए हैं.सरकारें मांगीलाल जैसे भोले किसानों का फायदा उठाती हैं और झूठ बेंचकर उन्हें मारती रहती हैं. ऐसे में कोई शिवराज सिंह चौहान को शवराज कह देता है तो मैं उसे रोक नहीं पाता.बाकी अबकी बार मोदी सरकार नहीं ‘मोटी सरकार’ है.इसकी चमड़ी इतनी मोटी है कि उसे संवेदना का स्पर्श तक नहीं महसूस होता है.मोदी सरकार की तरह निर्मम, निर्दयी, असंवेदनशील सरकार आजतक शायद ही कोई हुई हो व निसंदेह मोदी सरकार जितनी भयानक निर्लज्जता के साथ शायद ही किसी और सरकार ने झूठे वादे किये हों.
मांगीलाल का बडबडाना जारी है,”राजनीति देखी, मैंने भी देखी है...वोट कांग्रेस को दिया, उसने मेरा भला किया उसको दिया..सत्ता जब पलटी थी मैं भी पलट गया पर अब ये तो गोला-बारूद मारने लग गए....अब पता लगाओ किसने मारा....जिनकी सत्ता होती है वो तो मार नहीं सकता..इसका अनुभव तो सबने मालूम है..जानते तो सब हैं पर सभी जीभ बचाकर बैठे हैं...ऐसे राज में तो किसी को वोट देना ही नहीं...कोई कहता बहुजन पार्टी, कोई कहता है कांग्रेस..तो कोई कहता है जनता पार्टी.ये तो सब अपने-अपने पैसे के लिए,अपने जेब भरने के लिए लड़ रही है और गरीब मारा जा रहा है.....मैं गलत बोल रहा हूँ तो आप बोलो!